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चिन्तनफलक स्थानान्तरण (Paradigm Shift)

चिन्तनफलक स्थानान्तरण (Paradigm Shift) कुहन के विचार से सामान्य विज्ञान के विकास में असंगतियों के अवसादन तथा संचयन (Accumulation) में संकट की स्थिति उत्पन्न होती है, जो अन्ततः क्रान्ति के रूप में प्रकट होती है। यह क्रान्ति नए चिन्तनफलक को जन्म देती है। जब नवीन चिन्तनफलक अस्तित्व में आता है वह पुराने चिन्तनफलक को हटाकर उसका स्थान ले लेता है। चिन्तनफलक के परिवर्तन की इस प्रक्रिया को 'चिन्तनफलक प्रघात' (Paradigm Shock) या 'चिन्तनफलक स्थानान्तरण (Paradigm Shift) के नाम से जाना जाता है। ध्यातव्य है कि इस प्रक्रिया में पुराने चिन्तनफलक को पूर्णरूप से अस्वीकार या परिव्यक्त नहीं किया जा सकता, जिसके कारण कोई चिन्तनफलक पूर्णरूप से विनष्ट नहीं होता है। इस गत्यात्मक संकल्पना के अनुसार चिन्तनफलक जीवन्त होता है चाहे इसकी प्रकृति विकासात्मक रूप से अथवा चक्रीय रूप से हो। जब प्रचलित चिन्तनफलक विचार परिवर्तन या नवीन सिद्धान्तों की आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं कर सकता है, तब सर्वसम्मति से नए चिन्तनफलक का प्रादुर्भाव होता है। अध्ययन क्षेत्र के उपागम में होने वाले इस परिवर्तन को चिन्तनफलक स्थानान्त
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गुणात्मक बनाम मात्रात्मक (Qualitative Vs Quantitative)

गुणात्मक बनाम मात्रात्मक   (Qualitative Vs Quantitative) अनुसन्धान के समय अध्ययन के मुख्य बिन्दु के आधार पर कार्यप्रणाली का चयन करना एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण निर्णय होता है। किसी विश्लेषण को जानने का मुख्य तरीका होता है-गुणात्मक विश्लेषण या मात्रात्मक विश्लेषण। अनुसन्धान के समय ऐसे अनेक लोग होते हैं जो इन दो अवधारणाओं के बीच अन्तर नहीं कर पाते हैं। इस प्रकार से वह गलत तथ्यों की ओर अग्रसर होते हैं जो भ्रामक होता है। यदि विश्लेषण सटीक व निरन्तरता के रूप में किया जाए तो हम पाएँगे कि मात्रात्मक विश्लेषण एक चरम और गुणात्मकता पर ही निहित होता है। जानकारी एकत्र करने का महत्त्वपूर्ण तरीका वैज्ञानिक डेटा संग्रह में अवलोकन के दो भिन्न-भिन्न तरीके हैं अर्थात् गुणात्मक और मात्रात्मक । इन दोनों की सुविधाओं से मतभेद को सही व सटीक रूप में उजागर किया जाता है जिससे एक सही निष्कर्ष पर पहुँचा जा सके। इसके लिए इन दोनों का भिन्न-भिन्न अध्ययन आवश्यक होता है जिसका विवरण अग्रलिखित है गुणात्मक अलग-अलग शैक्षणिक विषयों में विनियोजित पारस्परिक रूप से सामाजिक विज्ञान, साथ ही बाजार अनुसन्धान और अन्य सन्दर्भों में जा

प्रादेशिक भूगोल बनाम क्रमबद्ध भूगोल (Regional Geography Vs Systematic Geography)

प्रादेशिक भूगोल बनाम क्रमबद्ध भूगोल (Regional Geography Vs Systematic Geography) भूगोल के द्विभाजन का इतिहास, किन्तु इसका वास्तविक विकास उन्नीसवीं शताब्दी के भूगोलवेत्ताओं द्वारा सम्भव हुआ । सत्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध जर्मन भूगोलवेत्ता वरेनियस ने भूगोल को दो खण्डों में विभाजित किया था सामान्य भूगोल वरेनियस के अनुसार, “सामान्य भूगोल' विज्ञान का अंग है और पृथ्वी का सामान्य अध्ययन करता है। यह सम्पूर्ण पृथ्वी से सम्बन्धित है और उसके विभिन्न क्षेत्रों तथा दृश्य घटनाओं या तथ्यों का वर्णन करता है।" वरेनियस द्वारा प्रयुक्त शब्दावली और प्रयोग का अन्तर वास्तविक अर्थ में तत्त्वों और क्षेत्रों के अध्ययन से ही सम्बन्धित है। ब्लाश के अनुसार, वरेनियस की आस्था भूगोल के द्विभाजन में नहीं थी। 18वीं शताब्दी में काण्ट और उन्नीसवीं शताब्दी में हम्बोल्ट ने सामान्य (General) के स्थान पर भौतिक का प्रयोग करके पहले से अधिक भ्रान्ति उत्पन्न कर दी। रिचथोफेन के प्रभाव से उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक जर्मन भूगोलवेत्ता इस बात पर लगभग एकमत हो गए थे कि भूगोल में तत्त्वों और क्षेत्रों दोनों का अध्ययन समान र

निश्चयवाद बनाम सम्भववाद (Determinism Vs Possibilism)

निश्चयवाद बनाम सम्भववाद  (Determinism Vs Possibilism) नियतिवाद मूलतः 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में विकसित एक जर्मन भौगोलिक विचारधारा है, जो मानव प्रकृति अन्तःक्रिया की व्याख्या प्रकृति (पर्यावरण) को सर्वशक्तिमान और समस्त मानव व्यवहार तथा मानवीय क्रियाओं को नियन्त्रक मानकर करती है। इस विचारधारा के अनुसार मनुष्य प्रकृति की विशिष्ट देन है और समस्त मानवीय क्रियाएँ प्राकृतिक पर्यावरण (स्थिति, उच्चावच, जलवायु, अपवाह, प्राकृतिक जलाशय, मिट्टी एवं खनिज, प्राकृतिक वनस्पति आदि) द्वारा नियन्त्रित होती हैं। मनुष्य प्रकृति का अनुचर एवं दास है, जो प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार ही आचरण करने के लिए बाध्य होता है। इस विचारधारा के समर्थक प्राकृतिक पर्यावरण के तत्त्वों को सर्वाधिक सशक्त तथा प्रभावशाली मानते हैं। नियतिवाद या निश्चयवाद की पृष्ठभूमि प्राचीन यूनानी विचारकों ने प्राकृतिक शक्तियों की प्रबलता तथा मानव जीवन पर उनके अवश्यम्भावी प्रभावों की सोदाहरण व्याख्या की है। ईसा से 400 वर्ष पूर्व यूनानी विचारक हिप्पार्कस ने आराम पसन्द एशियाई लोगों तथा मेहनती यूरोपीय निवासियों को उनके पर्यावरणीय भिन्नता का परिणा

Dualism in Geography

भूगोल में द्वैतवाद  (Dualism in Geography) भौगोलिक तथ्यों के अन्तर्गत भौतिक तथा मानवीय दोनों प्रकार के तथ्य सम्मिलित होते हैं। द्वैतवाद केवल भूगोल में ही नहीं, बल्कि ज्ञान की अन्य शाखाओं में भी उपस्थित है। एक स्थानिक विज्ञान के रूप में भूगोल के सम्यक् अध्ययन के लिए निश्चित वैज्ञानिक विधियाँ आपेक्षित होती हैं। अध्ययन को सुविधाजनक तथा बोधगम्य बनाने के लिए भौगोलिक अध्ययनों में दो प्रमुख विधियाँ प्रयुक्त होती हैं क्रमबद्ध विधि (Systematic Method) प्रादेशिक विधि (Regional Method) अध्ययन विषय के आधार पर पारम्परिक रूप से भूगोल को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है भौतिक भूगोल मानव भूगोल भौतिक भूगोल में भौतिक (प्राकृतिक) तथ्यों का और मानव भूगोल में मानवीय (सांस्कृतिक) तथ्यों का अध्ययन किया जाता है। यूनानी, रोमन और अरब भूगोलवेत्ताओं की रचनाओं में भी द्वैतवाद के लक्षण दिखाई देते हैं। जैसे हैरोडोटस ने जनजातियों के विवरण के साथ-साथ उनकी प्राकृतिक परिस्थितियों की ओर ध्यान दिया। स्ट्रैबो का प्रादेशिक विवरण और टॉलमी का गणितीय भूगोल पर ध्यान भी ऐसे विवरण हैं, जो द्वैतवादी हैं। अन्य विद्वानों ने भी अपने

Geography as Earth Science

भूगोल भू-भौतिकी के रूप में  (Geography as Earth Science) काण्ट, हम्बोल्ट, रिटर, रेक्ल्यु ग्रयट जेसे प्रभुत्वशील विद्वानों ने इनके योगदान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन्होनें ईश्वर की सोद्देश्य सृष्टि अथवा प्रकृति में व्याप्त एकलयता एवं जीवन समष्टि के रूप में पृथ्वी का भू-भौतिकीय अध्ययन किया था। रिटर ने अर्थात् सम्पूर्ण भू-विज्ञान के रूप में पृथ्वी का अध्ययन किया था और उनकी इस अवधारणा का समर्थन फ्रोइबेल, पेसेल एवं जरलैण्ड ने किया था। परन्तु इन लोगों ने उनकी सोद्देश्यवादी अवधारणा को स्वीकार नहीं किया था। फ्रोबेल भूगोल को एक प्राकृतिक विज्ञान मानते थे तथा मनुष्य को प्रकृति का अभिन्न अंग मानते थे। मानवीय कार्यकलापों को व्यावहारिक भूगोल अथवा ऐतिहासिक- दार्शनिक भूगोल के रूप में एक गौण स्थान प्रदान करते थे— जरलैण्ड, भू-विज्ञान अर्डकुण्डे के शाब्दिक अर्थ को स्वीकार करते हुए इसे पृथ्वी का विज्ञान कहने पर जोर देते थे, जिसके अन्तर्गत मानव अथवा उसके कार्यकलाप के लिए कोई स्थान नहीं था।  जरलैण्ड के अनुसार, पृथ्वी भौतिक तत्त्वों का एक ऐसा पुंज है जो सतत परिवर्तनशील है तथा जो विभिन्न शक्तियों द्