मौसमी संकट और आपदाएँ (मौसम संबंधी खतरे और आपदाएँ) प्रकृत्तिजन्य अप्रत्याशित ऐसी सभी घटनाएँ जो प्राकृतिक प्रक्रमों को इतना तीव्र कर देती हैं कि विनाश की स्थिति उत्पन्न होती है, चरम प्राकृतिक घटनाएँ या आपदा कहलाती है। इन चरम घटनाओं या प्रकोपों से मानव समाज, जन्तु एवं पादप समुदाय को अपार क्षति होती है। चरम घटनाओं में ज्वालामुखी विस्फोट, दीर्घकालिक सूखा, भीषण बाढ़, वायुमण्डलीय चरम घटनाएँ; जैसे- चक्रवात, तड़ित झंझा, टॉरनेडो, टाइफून, वृष्टि प्रस्फोट, ताप व शीत लहर, हिम झील प्रस्फोटन आदि शामिल होते हैं। प्राकृतिक और मानव जनित कारणों से घटित होने वाली सम्पूर्ण वायुमण्डलीय एवं पार्थिव चरम घटनाओं को प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। इन आपदाओं से उत्पन्न विनाश की स्थिति में धन-जन की अपार हानि होती है। प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं का वर्णन निम्न प्रकार है:- चक्रवात (Cyclone) 30° उत्तर से 30° दक्षिण अक्षांशों के बीच उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्णकटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं। ये आयनवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाला एक निम्न वायुदाब अभिसरणीय परिसंचरण तन्त्र होता है। इस चक्रवात का औसत व्यास लगभग 640 किमी...
मौसमी संकट और आपदाएँ
(मौसम संबंधी खतरे और आपदाएँ)
प्रकृत्तिजन्य अप्रत्याशित ऐसी सभी घटनाएँ जो प्राकृतिक प्रक्रमों को इतना तीव्र कर देती हैं कि विनाश की स्थिति उत्पन्न होती है, चरम प्राकृतिक घटनाएँ या आपदा कहलाती है। इन चरम घटनाओं या प्रकोपों से मानव समाज, जन्तु एवं पादप समुदाय को अपार क्षति होती है। चरम घटनाओं में ज्वालामुखी विस्फोट, दीर्घकालिक सूखा, भीषण बाढ़, वायुमण्डलीय चरम घटनाएँ; जैसे- चक्रवात, तड़ित झंझा, टॉरनेडो, टाइफून, वृष्टि प्रस्फोट, ताप व शीत लहर, हिम झील प्रस्फोटन आदि शामिल होते हैं। प्राकृतिक और मानव जनित कारणों से घटित होने वाली सम्पूर्ण वायुमण्डलीय एवं पार्थिव चरम घटनाओं को प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। इन आपदाओं से उत्पन्न विनाश की स्थिति में धन-जन की अपार हानि होती है।
प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं का वर्णन निम्न प्रकार है:-
चक्रवात (Cyclone)
30° उत्तर से 30° दक्षिण अक्षांशों के बीच उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्णकटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं। ये आयनवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाला एक निम्न वायुदाब अभिसरणीय परिसंचरण तन्त्र होता है। इस चक्रवात का औसत व्यास लगभग 640 किमी तक होता है। ये उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी के सूई के प्रतिकूल दिशा में तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी के सूई के अनुकूल दिशा में चलता है। उष्णकटिबन्धीय चक्रवात अत्यधिक शक्तिशाली, विनाशकारी, घातक तथा खतरनाक वायुमण्डलीय तूफान होते हैं।
इस चक्रवात को विश्व के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है-ऑस्ट्रेलिया में विलीविली, फिलीपीन्स तथा दक्षिण पूर्ण एशिया में टाइफून, बांग्लादेश व भारत के पूर्वी तट पर चक्रवात तथा उत्तरी अटलाण्टिक महासागर (कैरीबियन) तथा दक्षिण पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका में इसे हरिकेन कहा जाता है।
चक्रवात की विशेषताएँ
चक्रवात की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है
- सामान्यतः इस चक्रवात के आकार में व्यापक अन्तर देखने को मिलता है। औसतन इसका व्यास 80 से 300 किमी तक होता है, लेकिन कभी-कभी 50 किमी व्यास के छोटे चक्रवात भी देखने को मिलते हैं।
- चक्रवात की गति से भी पर्याप्त अन्तर देखने को मिलता है। इसमें सुपर चक्रवात की गति 200 किमी प्रति घण्टा, हरिकेन की गति 120 किमी प्रतिघण्टा और क्षीण होते चक्रवात की गति औसतन 32 किमी प्रति घण्टा होती है।
- उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों की गति सागरों पर तीव्र होती है जबकि स्थल भाग पर पहुँचते समय इसकी गति मध्यम तथा आन्तरिक भागों में इसकी गति शून्य हो जाती है। इसलिए इस प्रकार के चक्रवात से सर्वाधिक हानि तटीय प्रदेशों में होती है।
- उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों से वर्षा प्रत्येक भाग में होती है। इसमें वर्षा की भिन्न-भिन्न कोशिकाएँ नहीं होती हैं। ये सदैव गतिशील नहीं रहती हैं। यह अनेक स्थानों पर अनेक दिनों तक स्थायी रहती हैं तथा वहाँ पर भारी वर्षा भी करती हैं।
- इस चक्रवात के केन्द्र में वायुदाब कम होता है। इसकी समताप रेखाएँ वृत्ताकार होती हैं जिसकी संख्या कम होती है। यही कारण है कि ये मानचित्र पर आसानी से दृष्टिगोचर नहीं होती हैं। कभी-कभी इसके केन्द्र का दाब 650 मिलीबार तक चला जाता है।
- उष्णकटिबन्धीय चक्रवात भिन्न-भिन्न पथों पर विभिन्न प्रकार से चलता है। इसकी दिशा विषुवत् रेखा से 15° अक्षांशों तक पश्चिमी तथा 15° अक्षांशों से 30° तक ध्रुवों की ओर तथा उसके बाद पुनः पश्चिमी हो जाती है। ये चक्रवात उपोष्ण कटिबन्ध में प्रवेश के साथ समाप्त होने लगते हैं।
- उष्णकटिबन्धीय चक्रवात मुख्यतः ग्रीष्मकाल में आता है। शीतकाल में ये दिखाई नहीं देते हैं। शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की अपेक्षा इनकी संख्या और प्रभावित क्षेत्र बहुत ही कम होते हैं।
चक्रवातों के प्रकार
सामान्यतः उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों को तीव्रता के आधार पर दो प्रमुख वर्गों एवं चार उप-वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है
कमज़ोर चक्रवात (उष्णकटिबंधीय विक्षोभ और अवदाब)
- उष्ण कटिबन्धीय विक्षोभ ये एक या दो घिरी हुई समदाब रेखाओं वाला चक्रवात होता हैं, जिसमें हवाएँ क्षीण गति से केन्द्र की ओर प्रवाहित होती हैं। इन चक्रवातों का क्षेत्र अधिक व्यापक एवं विस्तृत होता है।
- उष्णकटिबन्धीय अवदाब एक से अधिक समदाब रेखाओं वाले छोटे आकार के उष्णकटिबन्धीय चक्रवात अवदाब कहलाते हैं। इनकी दिशा व गति अनियमित होती है।
प्रचण्ड चक्रवात (हरिकेन और टॉरनेडो)
- हरिकेन या टाइफून अनेक घिरी हुई समदाब रेखाओं वाले विस्तृत उष्णकटिबन्धीय चक्रवात को यू. एस. ए. में हरिकेन तथा चीन में टाइफून कहते हैं।
- टॉरनेडो यह कीप के आकार वाला एक प्रचण्ड स्थानीय तूफान है जिनका ऊपरी भाग छतरीनुमा होता है तथा मध्यवर्ती व निचला भाग पाइप जैसा होता है, जो धरातल को स्पर्श करता है।
चक्रवात और मौसम
उष्णकटिबन्धीय चक्रवात के समय मौसम में निम्नलिखित परिवर्तन देखने को मिलते हैं
- उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों के आगमन से पहले वायु की गति धीमी हो जाती है, लेकिन शीघ्र ही तापमान के बढ़ने और वायुदाब के घटने के कारण वायु की गति बढ़ने लगती है।
- चक्रवात के आगमन से आकाश में पक्षाभ मेघ दिखने लगते हैं। समुद्र में ऊँची तरंगें उठने लगती हैं। जैसे-जैसे चक्रवात समीप आता जाता है हवाएँ तूफान का रूप धारण करती हैं, आकाश में काले कपासी बादल छा जाते हैं और भारी वर्षा होती है।
- चक्रवात से सामान्यतः 10-25 सेमी औसतन वर्षा होती है, लेकिन चक्रवात में अवरोध होने पर इसकी औसतन वर्षा 75-100 सेमी तक हो जाती है।
- चक्रवात के चक्षु (केन्द्र) तब दृष्टिगोचर होते हैं जब आकाश पूर्णतया मेघाच्छादित हो जाता है। दृश्यता समाप्त हो जाती है। यह स्थिति घण्टों तक रहती है। इसके बाद अचानक वायु मन्द पड़ जाती है, आकाश मेघ रहित हो जाता है और वर्षा रुक जाती है।
- चक्रवात के आगे बढ़ने पर वायुदाब बढ़ता जाता है, मेघों का आवरण हल्का होता जाता है, वायु की गति मन्द पड़ने लगती है और अन्त में वर्षा भी क्षीण हो जाती है। चक्रवात की स्थिति समाप्त हो जाने पर आकाश साफ हो जाते हैं और मौसम खुल जाता है।
चक्रवातों का वितरण
5° से 15° अक्षांशों के मध्य उत्तरी व दक्षिणी दोनों गोलार्द्ध में सागरों के ऊपर उष्णकटिबन्धीय चक्रवात पाए जाते हैं। यह महाद्वीपों के तटीय भाग को प्रभावित करते हैं। विश्व में उष्णकटिबन्धीय चक्रवात मुख्यतः निम्न छः प्रदेश में पाए जाते हैं
- उत्तरी अटलाण्टिक महासागर इसके अन्तर्गत निम्नलिखित क्षेत्रों को शामिल किया जाता है
-फ्लोरिडा और संयुक्त राज्य अमेरिका में जून से अक्टूबर के महीने में चक्रवात आते हैं।
-उत्तरी कैरीबियन सागर में मई से नवम्बर तक तथा दक्षिणी कैरेबियाई सागर में जून से अक्टूबर तक चक्रवात आते हैं। मैक्सिको की खाड़ी में जून से अक्टूबर तक हरिकेन आते हैं।
- उत्तरी प्रशान्त महासागर यहाँ उत्पन्न होने वाले चक्रवात उत्तर-पश्चिम दिशा में सफर करके कैलिफोर्निया के तट को भी प्रभावित करते हैं तथा कभी-कभी ये हवाई द्वीप तक पहुँच जाते हैं। यहाँ जून से नवम्बर के माह में प्रतिवर्ष चक्रवात आते हैं।
- दक्षिणी-पश्चिमी व उत्तरी प्रशान्त महासागर इन क्षेत्रों में चक्रवात मई से दिसम्बर तक आते हैं। जिससे चीन सागर, फिलीपीन्स द्वीप समूह और दक्षिणी जापान क्षेत्र प्रभावित होते हैं। इन भागों में इस चक्रवात को टाइफून कहा जाता है। इन क्षेत्रों में औसतन 21 टाइफून प्रतिवर्ष आते हैं।
- दक्षिणी हिन्द महासागर यहाँ नवम्बर से अप्रैल के मध्य मैडागास्कर, मॉरीशस व रीयूनियन द्वीपों में चक्रवात आते हैं।
- दक्षिणी प्रशान्त महासागर दिसम्बर से अप्रैल के मध्य यह चक्रवात उत्तरी-पूर्वी ऑस्ट्रेलियाई तटों को प्रभावित करते हैं।
- उत्तरी हिन्द महासागर इन क्षेत्रों में आने वाले चक्रवात को अवदाब भी कहा जाता है। इस प्रदेश में अप्रैल से दिसम्बर तक बंगाल की खाड़ी तथा सितम्बर से दिसम्बर तक अरब सागर क्षेत्र में चक्रवात आते हैं।
चक्रवातों के प्रभाव
ऊष्णकटिबन्धीय चक्रवातों का आकार छोटा होता है और दाब प्रवणता अधिक होने के कारण वायु बड़ी तीव्र गति से चलती है। अतः इससे जान-माल की भारी क्षति होती है। इसके कारण पेड़, बिजली तथा टेलीफोन के खम्भे उखड़ जाते हैं और मकानों को भी भारी क्षति पहुँचती है। इन चक्रवातों से भारी वर्षा (हेवी रेनफॉल) होती है, जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। समुद्र में चक्रवात के पैदा होने से समुद्र में ऊँची-ऊँची लहरें उठती है, जिससे समुद्र में मछुआरों तथा नाविकों की जान को खतरा हो जाता है। ये चक्रवात ओडिशा, आन्ध्र प्रदेश तथा बंगाल में अत्यधिक विनाशकारी होते हैं।
तड़ित झंझा (Lightening)
यह एक स्थानीय तूफान होता है, जो वायुमण्डल के परिसंचरण के तृतीय वर्ग के अन्तर्गत वर्गीकृत है। तड़ित झंझा की स्थिति में हवाएँ तीव्र गति से ऊपर की ओर उठती हैं तथा बिजली की चमक के साथ मूसलाधार बारिश होती है।
ट्रिवार्था के अनुसार तडित झंझा एक ऐसी जटिल कपासीवर्षी मेघ है, जिसमें झोंकेदार तथा अत्यधिक तीव्र पवन, मेघगर्जन तथा विद्युत एक साथ उपस्थित होते हैं।
स्ट्रॉलर के अनुसार, तड़ित झंझा एक प्रचण्ड स्थानीय तूफान है जिसके साथ वृहत घने कपासीवर्षी मेघ होते हैं तथा जिसमें प्रचण्ड हवाएँ तेजी से ऊपर की ओर उठती हैं। स्थानीय स्तर पर तड़ित झंझा में कभी-कभी ओलापात भी होता है, बिजली की चमक और बादलों की गर्जना भी होती है। इस प्रकार तड़ित झंझा एक प्रचण्ड अस्थिरता प्रस्फोट का रूप धारण करती है। बादल फटना भी तड़ित झंझा का ही एक रूप होता है।
तड़ित झंझा की विशेषताएँ
तड़ित झंझा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- तड़ित झंझा एक ऐसी स्थानीय पवन है जिसमें केन्द्रीय भाग से तीव्र गति से वायु ऊपर की ओर उठती है।
- तड़ित झंझा को गति प्रदान करने में गतिज ऊर्जा की भूमिका होती है। गतिज ऊर्जा संघनन की गुप्त ऊष्मा के निवेश द्वारा स्थितिज ऊर्जा का गतिज ऊर्जा में रूपान्तरण होता है।
- विशालकाय तड़ित झंझा को मध्य स्तरीय संवहनीय कॉम्पलेक्स भी कहा जाता है। इसका निर्माण अनके तड़ित झंझा के आपस में मिलने से होता है। यह एक अत्यन्त शक्तिशाली वायुमण्डलीय तूफान होता है।
- तड़ित झंझा में अनेक संवहनीय कोशिकाएँ होती हैं, जो आर्द्र वायु के रूप में ऊर्ध्वाधर गति करती हैं।
- एक कोशिकीय तड़ित झंझा अधिक शक्तिशाली नहीं होता है, लेकिन जब तड़ित झंझा का निर्माण अनेक कोशिकाओं के द्वारा होता है, तो वह एक सर्वाधिक शक्तिशाली तूफान का रूप लेता है। इसका प्रभाव बहुत ही विध्वंसक होता है।
- तड़ित झंझा एक अल्पकालिक स्थानीय मौसमी घटना है, जो एक से दो घण्टे में अपने सम्पूर्ण जीवनकाल को प्राप्त करता है, लेकिन विशिष्ट परिस्थितियों में ये मौसमी घटना अनेक घण्टों तक चलती रहती है।
- आर्द्र आयनवर्ती प्रदेशों में तड़ित झंझा एक दैनिक परिघटना है जिसकी आवृत्ति समुद्र तल की अपेक्षा स्थल भागों में अधिक देखने को मिलती है, क्योंकि संवहनीय क्रियाएँ सागर की अपेक्षा स्थलीय भागों में अधिक सम्भावित हैं।
तड़ित झंझा के विकास की आवश्यक दशाएँ
तड़ित झंझा के विकास एवं निर्माण के लिए वायुमण्डल में निम्न दशाएँ आवश्यक होती हैं
- वायुमण्डल में अस्थिरता होनी चाहिए। इसमें संवहनीय अस्थिरता अधिक प्रभावी होती है।
- ऊपरी भाग में रुद्धोष्म ताप परिवर्तन की दर सामान्य से अधिक होनी चाहिए।
- हवाएँ गर्म, आर्द्र और ऊपर की ओर उठती हुई होनी चाहिएँ।
- वायु में धरातल से पर्याप्त मात्रा में आर्द्रता की पूर्ति होनी चाहिए।
- झंझा को संघनन एवं संलयन से भारी मात्रा में गुप्त ऊष्मा की आपूर्ति होनी चाहिए तथा वायुमण्डल में कपासीवर्षी मेघों की एक मोटी परत होनी भी झंझावात के लिए आवश्यक होती है।
तड़ित झंझा के विकास की अवस्थाएँ
तड़ित झंझा का विकास निम्नलिखित तीन चरणों से आरम्भ होकर अपने अन्तिम अवस्था को प्राप्त करता है, जिसका विवरण निम्नलिखित है
- कपासी बादल की अवस्था यह तड़ित झंझा के विकास का पहला चरण है इसे तरुणावस्था भी कहते हैं। इसमें धरातलीय उष्मन से हवाएँ गर्म होती हैं और आर्द्रता ग्रहण करने के बाद फैलकर संवहनीय धारा का रूप ले लेती हैं। इसमें वायु का केवल उपरिमुखी संचलन ही होता है।
- दूसरी अवस्था अथवा प्रौढ़ावस्था तड़ित झंझा की इस अवस्था में वायु का उपरिमुखी और अधोमुखी दोनों दिशाओं में संचलन होता है। इस समय बादलों के तेज गर्जना और बिजली के चमकने के साथ कपासीवर्षी मेघों द्वारा भारी मात्रा में मूसलाधार वर्षा होती है
- अवसान अवस्था इसको तड़ित झंझा की अन्तिम अवस्था अथवा जीर्णावस्था भी कहा जाता है। इस अवस्था में वायु का उपरिमुखी संचलन समाप्त हो जाता है और अधोमुखी संचलन प्रभावी हो जाता है। आकाश में पक्षाभस्तरीय मेघ छा जाते हैं। वर्षा समाप्त हो जाती है और वायुमण्डल स्थिरता को प्राप्त करता है।
तड़ित झंझा का वर्गीकरण
तड़ित झंझा को उनकी उत्पत्ति की प्रक्रिया, वायु के उत्थान के कारकों एवं उनके क्रियाविधियों के आधार पर निम्न वर्गों में बाँटा जाता है
तापीय अथवा स्थानीय तड़ित झंझा
सूर्यातप के कारण पृथ्वी की सतह के गर्म होने से तापीय संवहन तरंगें ऊपर की ओर तीव्र गति से चलने लगती हैं इसी को स्थानीय झंझा या तापीय तड़ित झंझा कहा जाता है। इसका प्रभाव सीमित क्षेत्रों में होता है। तापीय तड़ित झंझा ही वास्तविक तड़ित झंझा है, जो गर्मियों में दोपहर के बाद बनते हैं और सायंकाल तक समाप्त हो जाते हैं।
तापीय तड़ित झंझा डोलड्रम की पेटी में बनते हैं जहाँ उच्च तापमान, अत्यधिक आर्द्र वायु और व्यापारिक पवनों का अभिसरण इसके लिए आदर्श दशाएँ उपलब्ध कराती हैं। गर्मियों के समय मध्य अक्षांशों में महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में भी तापीय तड़ित झंझा उत्पन्न होता है। इसके उत्पन्न होने की भविष्यवाणी करना काफी कठिन होता है, क्योंकि इनका व्यवहार अनिश्चित एवं सतत् परिवर्तनशील होता है।
पर्वतीय तड़ित झंझा
पर्वतीय क्षेत्रों में जब आर्द्र एवं गर्म हवाएँ पर्वतीय रुकावट से पर्वतीय ढाल के सहारे ऊपर चढ़ने लगती हैं, तो वायुमण्डल में संघनन की क्रिया होती है और संघनन की क्रिया से मुक्त ही गुप्त ऊष्मा वायु के उपरिमुखी संचलन को और अधिक तीव्र कर देती है जिससे एक सक्रिय तड़ित झंझा का निर्माण होता है जिसको पर्वतीय तड़ित झंझा कहा जाता है।
इस क्रिया के फलस्वरूप मूसलाधार वर्षा होती है। इस प्रकार के तीव्र वर्षा को मेघ फटना या बादल फटना कहा जाता है। प्रायः दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी पवनें पर्वतों से टकराकर पर्वतीय तड़ित झंझा को उत्पन्न करती है। इसी प्रकार की घटनाएँ असम, मेघालय के चेरापूँजी और मॉसिनराम, उत्तराखण्ड के गढ़वाल एवं कुमाऊँ हिमालयी प्रदेश में देखने को मिलती है। यहाँ बादल फटने की घटना से व्यापक हानि होती है।
अभिवहनीय तड़ित झंझा
इस प्रकार के तड़ित झंझा का निर्माण तब होता है जब सामान्य ताप ह्रास दर में भारी वृद्धि होती है। इससे गर्म वायु बहुत तेजी से ऊपर की ओर उठती है और अस्थिरता को जन्म देती है इससे ही तड़ित झंझा का निर्माण होता है।
इस प्रकार के तड़ित झंझा अन्धेरी रात में बादलों से घिरे हुए आकाश में विकसित होते हैं, क्योंकि बादलों की ऊपरी सतह विकिरण द्वारा ऊष्मा के क्षय होने से ठण्डी होती है और इससे भारी वायु नीचे बैठती है और नीचे स्थित गर्म वायु ऊपर उठती है जो संवहनीय प्रवाह को बढ़ाती है। तड़ित झंझा के लिए संवहनीय क्रिया आवश्यक होती है।
उष्ण वाताग्री तड़ित झंझा
इस तड़ित झंझा का निर्माण शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के अग्रभाग में गर्म एवं आर्द्र वायु के उष्ण वाताग्र के सहारे ठण्डी हवा के ऊपर उठने से होता है। ये प्रायः धरातल से अधिक ऊँचाई पर निर्मित होते हैं। इनका धरातल पर प्रभाव भी कम होता है। उष्ण वाताग्री तड़ित झंझा सामान्य प्रक्रिया में न तो उत्पन्न होता है और न ही इसका विकास सम्भव हो पाता है।
शीत वाताग्री तड़ित झंझा
इसका निर्माण शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के अग्रभाग में गर्म वायु के बलपूर्वक ऊपर उठने से होता है। इसकी उत्पत्ति में धरातलीय उष्मन की भूमिका नहीं होती है, बल्कि दो विपरीत गुणों वाली वायुराशियों के अभिसरण की भूमिका वाताग्र जनन में होती है। इसकी उत्पत्ति/निर्माण किसी भी ऋतु में दिन व रात किसी समय में हो सकता है। शीत वाताग्री तड़ित झंझा उष्ण वाताग्री तड़ित झंझा की अपेक्षा अधिक प्रबल एवं सक्रिय होती है। शीत वाताग्री तड़ित झंझा की भविष्यवाणी करना आसान होता है।
तड़ित झंझा और मौसम
तड़ित झंझा के साथ अनेक मौसमी घटनाएँ होती हैं जिसमें वर्षा, ओलावृष्टि, आकाशीय विद्युतीय घटना, बादल फटना, मेघ गर्जना व स्क्वाल आदि शामिल हैं। पाठ्यक्रम के आधार पर हम यहाँ वर्षा ओलावृष्टि, वृष्टि प्रस्फोट का अध्ययन करेगें।
वर्षा
तड़ित झंझा में वर्षा मूसलधार प्रकृति की होती है। इसमें वर्षा की गहनता और तीव्रता दोनों ही प्रबल होती है। ये वर्षा अल्प अवधि अथवा छोटी अवधि के लिए ही होती है। तड़ित झंझा में वर्षा की मात्रा भिन्न-भिन्न कोशिकाओं में अलग-अलग होती है, जैसे तड़ित झंझा के केन्द्र में अधिकतम वर्षा होती है तथा बाहर की ओर कम होती जाती है। जब तड़ित झंझा पूर्णतया विकसित होता है, तब उसमें लगभग एक घण्टे तक बारिश होती है जबकि कमजोर तड़ित झंझा की स्थिति में वर्षा की अवधि चन्द मिनटों में सिमटकर रह जाती है।
ओलावृष्टि
सामान्य रूप से ओला सभी तड़ित झंझा के साथ सम्बन्धित नहीं होते हैं। जब संघनन की क्रिया हिमांक से नीचे होती है तो असंख्य हिम कणों का निर्माण होता है जिसका धरातल पर गिरना ओलावृष्टि कहलाता है। इसमें हिमकणों का आकार मटर के दोने से लेकर बड़ी गेंद तक होता है। ओले प्रमुखतया तीन प्रकार के होते हैं
- कोमल ओला इसको ग्रापेल भी कहा जाता है। इसके हिमकणों का व्यास 5 मिलीमीटर से कम होता है। धरातल पर गिरने के बाद यह टूट जाते हैं।
- लघु ओला इसमें हिमकण जलवर्षा के साथ मिले होते हैं यह धरातल पर गिरने के बाद कोमल ओले के समान बिखरते नहीं हैं।
- विनाशी ओला ये प्रचण्ड प्रकृति के ओले होते हैं। इनके आकार बड़े होते हैं जिसका भार ग्राम से लेकर किलोग्राम तक होता है। इनसे खड़ी फसलों, मनुष्यों, पक्षियों, जन्तुओं और वनस्पतियों को भारी हानि होती है।
वृष्टि प्रस्फोट (बादल का फटना)
मौसम विभाग के अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, अगर किसी स्थान पर लगातार एक घण्टे तक 10 सेमी की दर से वर्षा होती है, तो इसे बादल फटने वृष्टि प्रस्फोट की संज्ञा दी जाती है। इसकी विशेषता यह है कि यह वर्षा एक विशेष क्षेत्र में मौजूद बादल में उपस्थित पानी के अचानक गिरने से होती है। इस समय बादल की ऊँचाई जमीन से लगभग 12-13 किमी होती है। एक घण्टे के बाद मौसम पूरी तरह से साफ हो जाता है और उस पूरे क्षेत्र में कुछ समय तक वर्षा नहीं होती है।
प्रायः पर्वतीय क्षेत्रों में बादलों का कम समय में अत्यधिक वर्षा करना ही वस्तुतः बादल प्रस्फोट (cloud Burst) है। मौसम विज्ञानियों के अनुसार, 100 मिमी जल या इससे अधिक जल के प्रति घण्टे बरस जाना बादल प्रस्फोट के अन्तर्गत आता है। इनमें बादलों की ऊँचाई जमीन से 15 किमी तक पहुँच सकती है। बादल फटने के दौरान 20 मिमी तक बरसात तो कुछ ही मिनटों में हो जाती है।
उत्तराखण्ड के केदारनाथ जिले में सतत् एवं मूसलाधार बारिश भू-स्खलन तथा भागीरथी नदी में बाढ़ के कारण 10000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थी। सैकड़ों पशुधन भी इस बाढ़ में बह गए। इस तबाही का सबसे बड़ा कारण केदार गुम्बद का टूटना था। यह गुम्बद एक हिमनद था, जो चट्टानों एवं बर्फ से निर्मित था।
इस विशाल गुम्बद के टूटने, बादल के फटने और अन्ततः भू-स्खलन के कारण चाबरी झील में बड़ी दरार निर्मित हो गई। यह झील केदारनाथ मन्दिर से मात्र 5 किमी की दूरी पर स्थित है उपरोक्त सभी कारणों से केदारनाथ में भीषण तबाही हुई। भारतीय सेना ने उत्तराखण्ड में केदारनाथ क्षेत्र में जीवित बचे लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने के लिए ऑपरेशन सूर्य होप चलाया था।
तड़ित झंझा का वितरण
भूमध्यरेखीय क्षेत्र तड़ित झंझा के लिए आदर्श स्थिति उपलब्ध कराता है। तड़ित झंझा का सम्बन्ध उच्च तापमान, उच्च आर्द्रता एवं वायु के अभिसरण से होता है जो भूमध्य रेखा की विशेषता है। यहाँ प्रायः स्थानीय/तापीय तड़ित झंझा आते रहते हैं। इन प्रदेशों में प्रतिवर्ष लगभग 75 से 150 दिन झंझावात के होते हैं और कहीं-कहीं यह आँकड़ा 200 दिन तक चला जाता है।
तड़ित झंझा भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर कम होता चला जाता है। उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में तड़ित झंझा की सम्भावना बहुत ही कम होती है। यहाँ वार्षिक रूप लगभग 5 दिन ही झंझावात वाले होते हैं। 60-70 के अक्षांशों के मध्य तड़ित झंझा अनुपस्थित होते हैं जबकि 40 से 60° के मध्य शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के साथ इनका निर्माण देखने को मिलता है।
टॉरनेडो (Tornado)
टॉरनेडो अल्प अवधि का एक भयंकर तबाही वाला तूफान है। इस तूफान का आकार अत्यन्त लघु होता है, लेकिन इसकी प्रचण्डता बहुत ही तीव्र होती है। इस तूफान में वायु की धरातल के समीप गति लगभग 320 किमी प्रति घण्टा तक होती है। इस तूफान को संयुक्त राज्य अमेरिका में टॉरनेडो कहा जाता है। टॉरनेडो शब्द की उत्पत्ति स्पेनिश भाषा के त्रोनादा (ट्रोनदा) से हुई है। तड़ित झंझा के लिए उत्तरी तथा मध्य अफ्रीका में टॉरनेडो शब्द का प्रयोग ही किया जाता है, लेकिन विद्वानों द्वारा टॉरनेडो का उपयोग विशेष प्रकार के भीषण तूफान के लिए किया जाता है।
बार्यस के अनुसार,
टॉरनेडो वायुमण्डलीय विक्षोभों का सबसे शक्तिशाली रूप होता है। ये सिनाप्टिक चार्टी और दैनिक ऋतुपटकों पर अपने क्षैतिज विस्तार और छोटे प्रभाव क्षेत्र के कारण प्रकट नहीं हो पाते हैं।
क्रिचफील्ड के अनुसार,
टॉरनेडो निचले विक्षोभमण्डल का सार्वाधिक प्रचण्ड तूफान है। इनके अनुसार टॉरनेडो एक ऐसा चुस्त भ्रमिल (टाइट वोर्टेक्स) है जो अत्यधिक निम्न दाब केन्द्र के चारों ओर परिभ्रमण करता है।
पेटसर्न के अनुसार,
टॉरनेडो एक अल्प क्षैतिज विस्तार एवं अत्यधिक तीव्रता वाला भ्रमिल (वोर्टेक्स) होता है जो तड़ित बादलों से नीचे की ओर फैला हुआ होता है। सामान्य रूप से यह तूफान एक ऐसे कीप के आकार वाले मेघ के समान दिखाई पड़ता है जिसका चौड़ा भाग कपासीवर्षी मेघों में तथा नीचे का संकरा भाग नालिकार रूप में धरातल पर लटकता हुआ प्रतीत होता है।
टॉरनेडो की विशेषताएँ
टॉरनेडो की विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित है
- टॉरनेडो प्रचण्ड का वह रूप है जिसमें घरातलीय वायु को ऊपरी वायु बहुत ही तीव्रता के साथ ऊपर की ओर खींचती है जिससे संवहनीय अस्थिरता उत्पन्न होती है।
- टॉरनेडो में वायुदाब बहुत ही अल्प होता है इसके केन्द्र के वायुदाब और इसके बाह्य भाग के वायुदाब में 100 मिलीबार तक का अन्तर होता है। वर्ष 1904 में यू.एस.ए. के मिनिसोय प्रान्त में टॉरनेडो का वायुदाब 813 मिलीबार रिकॉर्ड किया गया था।
- टॉरनेडो के छलनी के व्यास में धरातल और ऊपरी भाग में व्यापक अन्तर दिखाई देता है जहाँ धरातल के समीप छलनी का व्यास 90 मी तक होता है वहीं ऊपरी भाग में इसका व्यास 460 मी तक होता है।
- टॉरनेडो एक प्रचण्ड तड़ित झंझावात है। जिसके केन्द्रीय भाग और बाह्य भाग के वायुदाब में तीव्र प्रवणता होती है। इस तीव्र प्रवणता के कारण वायु का वेग 400 से 800 किमी प्रति घण्टा तक चला जाता है।
- टॉरनेडो में वायु केन्द्र की ओर तेजी से झपटती हुई भँवर के रूप में ऊपर की ओर उठती दिखाई देती है। यह किसी सुनिश्चित मार्ग या दिशा का पालन नहीं करती है। कभी-कभी ये एक विशेष स्थान पर ही स्थायी हो जाते हैं।
- टॉरनेडो का जीवनकाल 15 से 20 मिनट तक का होता है जो बहुत ही संकरे मार्ग से आगे बढ़ते हैं। इसकी चौड़ाई कुछ मीटर से लेकर 2000 मी तक होती है। इसकी औसतन लम्बाई 40-50 किमी जो सामान्यतः 40 से 50 किमी तक की यात्रा करती है। वर्ष 1970 में संयुक्त राज्य अमेरिका के इण्डियाना प्रान्त में टॉरनेडो द्वारा 570 किमी तक की दूरी तय की थी।
- टॉरनेडो के आगमन से पूर्व आकाश में गहरे रंग के बादल छा जाते हैं, जिसके कारण वातावरण में घुँघ अन्धेरा छा जाता है। टॉरनेडो के साथ धूल, राख, मलवा आदि भारी मात्रा में मिलकर चलते हैं।
- टॉरनेडो के समूह को टॉरनेडो का परिवार कहते हैं। प्रायः टॉरनेडो अकेले चलते हैं, लेकिन कभी-कभी ये 7-8 के समूह में चलते हैं। जब किसी क्षेत्र विशेष में टॉरनेडो एक के बाद एक लगातार क्रम में आते हैं तो उसको टॉरनेडों प्रस्फोट या टॉरनेडो विप्लव कहा जाता है।
टॉरनेडो की उत्पत्ति
टॉरनेडो की उत्पत्ति में प्रबल संवहनीय क्रियाविधि का आविर्भाव और उसके अन्तर्गत गर्म एवं आर्द्र अस्थिर वायु का तेजी से ऊपर उठना प्रमुख भूमिका निभाता है। टॉरनेडो के निर्माण व उत्पत्ति के लिए निम्न दशाओं की आवश्यकता होती है
- ज़मीन की सतह के पास हवा का प्रबल अभिसरण
- वायुराशियों की उत्पत्ति जो ऊपर उठती हैं और विश्राम करती हैं, अर्थात् उत्प्लावन वायुराशि
- धरातलीय सतह के ऊपर वायु का वृहत अपसरण
- लम्ववत् रूप में पवन अपरूपण
- वायुमण्डल के निचली परत में आर्द्र वायुराशि की उत्पत्ति
- ऊँचाई के साथ तापमान में तेजी से परिवर्तन अर्थात् अस्थिर तापीय उत्तम संरचना
- धरातलीय सतह पर चक्रवात जनन की दशाएँ हों और वायु के घूर्णन के लिए पहले से स्थापित क्रियाविधि उपस्थित हो।
विभिन्न विद्वानों ने टॉरनेडो की उत्पत्ति के लिए भिन्न-भिन्न स्थिति को जिम्मेदार बताया है। विद्वान् वी. जे. रोसाव के अनुसार दो मेघ राशियों के आपसी आकर्षण के कारण भी टॉरनेडो की उत्पत्ति होती है। टॉरनेडो का निर्माण कभी भी हो सकता, लेकिन इसकी अधिकांश घटनाएँ बसन्त एवं ग्रीष्म ऋतु में देखने को मिलती हैं।
टॉरनेडो का वितरण
टॉरनेडो का विकास ध्रुवीय क्षेत्रों को छोड़कर किसी भी भाग में हो सकता है, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका में टॉरनेडो की अधिकता देखने को मिलती है। संयुक्त राज्य अमेरिका के 40° उत्तरी अक्षांश के दक्षिण एवं रॉकी पर्वत के पूर्व में स्थित वृहद् क्षेत्र में टॉरनेडो का विकास अप्रैल से सितम्बर तक होता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के वृहत् मैदानी भाग में टॉरनेडो की उत्पत्ति के लिए सर्वाधिक अनुकूल दशाएँ पाई जाती हैं। यहाँ टॉरनेडो द्वारा सर्वाधिक दुष्प्रभावित राज्यों में टेक्सस, मिसीसिपी, अलबामा, मिसौरी, ओक्लाहामा, अरकन्सास, कन्सस तथा अयोवा आदि प्रमुख हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में टॉरनेडो किसी भी महीने में उत्पन्न हो सकता है।
वर्ष 1950 से 1970 तक की टॉरनेडो की आवृत्ति को देंखे तो पाएँगे कि यहाँ सर्वाधिक आवृत्ति तीन महीनों विशेषकर अप्रैल, मई तथा जून में होती है। संयुक्त राज्य अमेरिका के अतिरिक्त टॉरनेडो फ्रांस, यूनाइटेड क्रिगडम, जर्मनी, अर्जेण्टीना, दक्षिण अफ्रीका, चीन, भारत, ऑस्ट्रेलिया आदि में आते हैं। भारत में इनको बवण्डर भी कहा जाता है।
टॉरनेडो प्रचण्डता का मापक
टॉरनेडो की प्रचण्डता को मापने के लिए विभिन्न विद्वानों ने भिन्न मापक बताए। इसी क्रम में वर्ष 1960 में टी. थियोडोर फ्यूजिटा ने एक फ्यूजिटा मापक को चलाया, जो काफी प्रसिद्ध हुआ। इसके लिए इन्होंने टॉरनेडो में पवन वेग एवं उसके द्वारा की गई क्षति की मात्रा के आधार पर मापक तैयार किया। फ्यूजिटा मापक के आधार पर टॉरनेडो को निम्न वर्गों में बाँटा गया है
कमजोर टॉरनेडो
- श्रेणी 0 इसमें वायु की गति 64 से 115 किमी प्रति घण्टा होती है। इसमें पेड़ों की शाखाएँ टूट जाती हैं, साइनबोर्ड क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
- श्रेणी 1 इसमें वायु की गति 116 से 179 किमी प्रति घण्टा होती है। इसमें वृक्ष टूट जाते हैं व मकान के काँच की खिड़कियाँ आदि टूट जाती हैं।
प्रबल टॉरनेडो
- श्रेणी 2 इसमें वायु की गति 180 से 187 किमी प्रति घण्टा होती है। इसमें बड़े पेड़ उखड़ जाते हैं ढीली संरचना वाले भवन अधिक क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
- श्रेणी 3 इसमें वायु की गति 188 से 329 किमी प्रति घण्टा होती है। इसमें पेड उखड़कर टॉरनेडो के साथ उड़ने लगते हैं। इसको टॉरनेडो मिसाइल भी कहा जाता है।
उग्र टॉरनेडो
- श्रेणी 4 इसमें वायु की गति 330 से 416 किमी प्रति घण्टा होती है। इसमें मकान नष्ट हो जाते हैं, पेड़, स्वचालित वाहन आदि हवा में तैरते नजर आते हैं।
- श्रेणी 5 इसमें वायु की गति 417 से 509 किमी प्रति घण्टा होती है। इसमें विध्वंसक क्षति होती है। यह सर्वनाश की अवस्थिति है।
टॉरनेडो का प्रभाव
- सभी वायुमण्डलीय तूफानों में टॉरनेडो सर्वाधिक विनाशकारी प्रकोप एवं आपदा की श्रेणी में आता है। संयुक्त राज्य अमेरिका का दक्षिणी एवं पूर्वी क्षेत्र टॉरनेडो से प्रभावित क्षेत्र है।
- टॉरनेडो मानव जीवन एवं सम्पत्ति की क्षति के दृष्टिकोण से सर्वाधिक घातक तथा खतरनाक वायुमण्डलीय घटना है। इससे सामान्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रतिवर्ष लगभग 100 मिलियन डॉलर मूल्य की सम्पत्ति की हानि होती है और प्रतिवर्ष लगभग 150 से अधिक लोगों की जानें भी जाती हैं।
- टॉरनेडो से पेड़ उखड़ जाते हैं, भवनों के लोहे व चादरों से बनी छतें उड़ जाती हैं, इसके साथ ही इससे मानवकृत अन्य संरचनाओं तथा मानव जीवन की अपार क्षति होती है।
ताप एवं शीत लहर (उष्ण एवं शीत तरंगें) (Heat and Cold Waves)
ताप एवं शीत लहर लम्बे समयावधि तक की मौसमी घटनाओं के कारण उत्पन्न होने वाले प्रकोपों का संचयी रूप है, जो संचयी वायुमण्डलीय प्रकोप कहलाता है। इनका विवरण निम्न हैं
- ताप लहर किसी एक दिन की गर्म स्थिति के कारण उत्पन्न नहीं होता है बल्कि यह तब संकट के रूप में आता है जब अति गर्म एवं अति शुष्क दशाएँ लगातार अनेक सप्ताह तक रहती हैं। ताप लहर एक पर्यावरणीय प्रकोप है जिससे मनुष्य के साथ-साथ जीव एवं जन्तुओं को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। उत्तर भारत में गर्मियों के समय चलने वाली गर्म हवाएँ 'लू' भी एक प्रकार का ताप लहर (हीट वेव्स) ही है।
- शीत लहर जब लगातार अनेक सप्ताह तक अति शीत दशा के कारण जब प्रचण्ड हिमपात होने लगता है, तो वह स्थिति शीत लहर कहलाती है। शीत लहर का संकट तब उत्पन्न होता है जब लगतार अनेक वर्षों तक अति शीतल दशा शुष्कता के साथ किसी क्षेत्र विशेष में पाई जाती है। शीत लहर भी ताप लहर की तरह एक पर्यावरणीय घटना है जिसे मानव समुदाय के साथ-साथ जीव-जन्तु व वनस्पति आदि भी प्रभावित होते हैं।
हिम झील प्रस्फोटन (Glacier Lake Outburst Flood, Glof)
तापक्रम के बढ़ने से हिमनदों के पिघलने की दर भी बढ़ी है, इस कारण कुछ हिमनदीय झीलों में जल का स्तर बढ़ा है। हिमालय क्षेत्र में अनेर्क हजार झीलें स्थित हैं, परन्तु इसमें कुछ संवेदनशीलता की श्रेणी में आती हैं। इन हिमनदीय झीलों के अचानक टूटने से भारी मात्रा में जल एवं मलबा नदियों में बहकर बाढ़ के खतरे को उत्पन्न करता है।
जो झीलें हिमनदों के मुहाने पर स्थित होती हैं वह हिमनद द्वारा छोड़े गए मलबे के पीछे बनती हैं, ये झीलें अत्यधिक जल धारण करने के कारण खतरनाक हो जाती है।
इसके विच्छेदन से अधिक मात्रा में जल बहुत कम समय में आकर अनुप्रवाह क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति पैदा कर देता है। झीलों के इन्हीं अचानक टूटने पर आई बाढ़ का प्रवाह सामान्य से अनेक गुना अधिक होता है। इसी बाढ़ को हिम झील प्रस्फोटन कहते हैं।
एक ग्लेशियर झील के विस्फोट को सामान्यतः ग्लेशियर झील विस्फोट बाढ़ या ग्लोफ के रूप में कहा जाता है, जो अचानक नदी में बाढ़ का कारण बनता है।
हिमालय क्षेत्र में अनेक जल संसाधन परियोजनाओं का संचालन हो रहा है और इस प्रकार की गई और परियोजनाएँ इस क्षेत्र के उपलब्ध संसाधनों को दोहन कर रही हैं। पिछले कुछ दशकों में हिमालय में अनेक हिमनदी झीलों का गठन हुआ है और ग्लोफ की अनेक घटनाएँ इस क्षेत्र विशेष में देखी गईं।
हिमनद के प्रस्फोटन के विश्लेषण की तकनीक
हिमनद झील या बाँध टूटने से आने वाली बाढ़ की गणितीय मॉडलिंग एक आयामी विश्लेषण या दो आयामी विश्लेषण के माध्यम से की जा सकती है
- एक आयामी विश्लेषण इस प्रकार के आयामी विश्लेषण में बाढ़ की भयावहता के बारे में जानकारी अर्थात् जल प्रवाह (बहाव), प्रवाह का वेग और जल स्तर तथा समय के साथ इनकी भिन्नता को ज्ञात किया जा सकता है।
- दो आयामी विश्लेषण इस प्रकार की आयामी विश्लेषण के मामलों में बाढ़ क्षेत्र के बारे में अतिरिक्त जानकारी जैसे कि सतह ऊँचाई और दो आयामों में वेग की भिन्नता का भी मूल्यांकन किया जा सकता है।
सम्भावित खतरनाक हिमनदों के झीलों की पहचान करने के लिए ग्लेशियरों और हिमनदों के झीलों का डिजिटल डाटाबेस आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, इलाके की स्थिति, जानकारी और अनुभव से ग्लेशियर और हिमनदों झील की संख्या, इनमें होने वाले बदलाव का अध्ययन किया जा सकता है।
विभिन्न शोधकर्ताओं द्वारा सम्भावित खतरनाक हिमनदों के झीलों की पहचान के लिए झील का क्षेत्र, झील में जल की मात्रा, झील में दरार के प्रमाण झील और उसके आस-पास की स्थिति को मानदण्ड बनाया गया है। घाटी में बहने वाली नदियों पर स्थित बाँध एवं स्थानीय परियोजनाओं को बनाते समय इन हिमनद झीलों का विश्लेषण करना अतिआवश्यक है। जब भी कोई जल विद्युत परियोजना बनाई जाती है तो इसके लिए डिजाइन फ्लड का आकलन किया जाता है, परन्तु जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे बदलाव को ध्यान में रखते हुए झीलों के टूटने से उत्पन्न प्रवाह का आकलन भी जरूरी हो गया है। राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान में पिछले कुछ वर्षों में भारत एवं भूटान स्थित कुछ विद्युत परियोजना के लिए ग्लोफ सम्बन्धी अध्ययन किए गए तथा ग्लोफ की मात्रा का आकलन किया गया।
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