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चिन्तनफलक स्थानान्तरण (Paradigm Shift)

चिन्तनफलक स्थानान्तरण (Paradigm Shift) कुहन के विचार से सामान्य विज्ञान के विकास में असंगतियों के अवसादन तथा संचयन (Accumulation) में संकट की स्थिति उत्पन्न होती है, जो अन्ततः क्रान्ति के रूप में प्रकट होती है। यह क्रान्ति नए चिन्तनफलक को जन्म देती है। जब नवीन चिन्तनफलक अस्तित्व में आता है वह पुराने चिन्तनफलक को हटाकर उसका स्थान ले लेता है। चिन्तनफलक के परिवर्तन की इस प्रक्रिया को 'चिन्तनफलक प्रघात' (Paradigm Shock) या 'चिन्तनफलक स्थानान्तरण (Paradigm Shift) के नाम से जाना जाता है। ध्यातव्य है कि इस प्रक्रिया में पुराने चिन्तनफलक को पूर्णरूप से अस्वीकार या परिव्यक्त नहीं किया जा सकता, जिसके कारण कोई चिन्तनफलक पूर्णरूप से विनष्ट नहीं होता है। इस गत्यात्मक संकल्पना के अनुसार चिन्तनफलक जीवन्त होता है चाहे इसकी प्रकृति विकासात्मक रूप से अथवा चक्रीय रूप से हो। जब प्रचलित चिन्तनफलक विचार परिवर्तन या नवीन सिद्धान्तों की आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं कर सकता है, तब सर्वसम्मति से नए चिन्तनफलक का प्रादुर्भाव होता है। अध्ययन क्षेत्र के उपागम में होने वाले इस परिवर्तन को चिन्तनफलक स्थानान्त

प्लेन टेबुल सर्वेक्षण

परिचय (Introduction)
प्लेनटेबुलन (plane tabling) सर्वेक्षण करने की वह आलेखी विधि है, जिसमें सर्वेक्षण कार्य तथा प्लान की रचना दोनों प्रक्रियाएँ साथ-साथ सम्पन्न होती हैं। दूसरे शब्दों में, प्लेन टेबुल सर्वेक्षण में किसी क्षेत्र का प्लान बनाने के लिये ज़रीब, कम्पास या थियोडोलाइट सर्वेक्षण की तरह क्षेत्र-पुस्तिका तैयार करने की आवश्यकता नहीं होती । क्षेत्र-पुस्तिका न बनाये जाने तथा क्षेत्र में ही प्लान पूर्ण हो जाने से कई लाभ होते हैं, जैसे-(i) समस्त सर्वेक्षण कार्य अपेक्षाकृत शीघ्र पूर्ण हो जाता है, (ii) क्षेत्र-पुस्तिका में दूरियां आदि लिखने में होने वाली बालों की समस्या दूर हो जाती है तथा (iii) सर्वेक्षक को प्लान देखकर भूलवश छोड़े गये क्षेत्र के विवरणों का तत्काल ज्ञान हो जाता है।
त्रिभुज अथवा थियोडोलाइट संक्रमण के द्वारा पूर्व निश्चित किये गये स्टेशनों के मध्य सम्बन्धित क्षेत्र के अन्य विवरणों को अंकित करने के लिये प्लेन को सर्वाधिक उपयोगी एवं प्रामाणिक माना जाता है। इसके अतिरिक्त प्लेनटेबुलन के द्वारा कछ वर्ग किलोमीटर आकार वाले खुले क्षेत्र के काफी सीमा तक सही-सही प्लान बनाये जा सकते हैं तथा इन प्लानों में क्षेत्र के अगम्य किन्तु दृश्य विवरणों को बिना किसी अतिरिक्त आलेखी रचना या त्रिकोणमितीय गणना के प्रदर्शित किया जा सकता है। प्लेन टेबुल सर्वेक्षण में प्रयुक्त उपकरणों की बनावट जटिल न होने के कारण कोई सर्वेक्षक थोड़े अभ्यास के बाद भी उन्हें सफलतापूर्वक प्रयोग कर सकता है।

प्लेन टेबल सर्वेक्षण के उपकरण 
(Instruments Required for Plane Table Surveying)
प्लेन टेबल सर्वेक्षण में निम्नलिखित उपकरणों व साज-सामान की आवश्यकता होती है :
(1) प्लेन टेबल तथा त्रिपाद-स्टैण्ड, 
(2) दर्शरेखक या ऐलीडेड, 
(3) स्पिरिट लेविल, 
(4) साहुल या साहुल पिण्ड, 
(5) साहुल काँटा, 
(6) ट्रफ कम्पास, 
(7) ज़रीब अथवा फीता, 
(8) सर्वेक्षण दण्ड, 
(9) ज़रीब के तीर, 
(10) ड्राइंग कागज़, 
(11) ड्राइंग पिन कथा आलपिन, 
(12) ड्राइंग-उपकरण।

[।] प्लेन टेबल तथा त्रिपाद-स्टैण्ड 
(Plane table and tripod stand) 
प्लेन टेबुल इस सर्वेक्षण का प्रमुख उपकरण है, जिसके दो अंग होते हैं-(i) आरेख-पट्ट या ड्राइंग-बोर्ड (drawing board) तथा (ii) त्रिपाद-स्टैंड । चूँकि आरेख-पट्ट को त्रिपाद-स्टैण्ड पर रखकर क्षैतिज तल (horizontal plane) में घुमाया अथवा इच्छित स्थिति में स्थिर किया जा सकता है अत:
इसे प्लेन टेबल की संज्ञा दी गई है। बनावट के विचार से प्लेन टेबुल (आरेख-पट्ट तथा त्रिपाद-स्टैण्ड) तीन प्रकार की होती हैं (i) साधारण या चंक्रमण टेबल, (ii) जॉनसन टेबल तथा (iii) तट-सर्वेक्षण टेबल, जिनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है।
1. साधारण या चंक्रमण टेबुल (Simple or traverse table)-छोटी मापनी वाले मानचित्रों के लिये किये गये चंक्रमणों में अथवा स्थलाकृतिक मानचित्रों में अपेक्षाकृत अगम्य विवरणों को अंकित करने के लिये अथवा सैन्य आवीक्षण रेखाचित्र बनाने के उद्देश्य से किये गये प्लेन टेबुल सर्वेक्षणों में प्राय: साधारण या चंक्रमण टेबुल को प्रयोग में लाया जाता है । इस टेबल का आरेख-पट्ट भली-भाँति संशोषण (season) की गई चौड़ की लकड़ी (pine wood) के लगभग 2.5 सेमी मोटे तख्तों को जोड़कर बनाया जाता है। ये पट्ट भिन्न-भिन्न आकार के होते है जैसे, 40x30 सेमी. 75x60 सेमी, 45x45 सेमी तथा 60x60 सेमी, आदि। मजबूती के लिये पट्ट की निचली सतह पर सागौन की लकड़ी (teak wood) की दो पट्टिया (battens)लगी होती हैं। इन पत्तियों तथा पट्ट की निचली सतह पर खाँचेदार (slotted) धारियाँ बनी होती हैं जिससे तापमान परिवर्तन का पट्ट की ऊपरी सपाट सतह पर कोई प्रभाव न पड़ सके । (आरेख-पट्ट के मध्य में नीचे की ओर पीतल या ऐलुमिनियम की एक गोल प्लेट होती है जिसे धुराग्र प्लेट (pivot plate) कहते हैं।
आरेख-पट्ट को लगभग 1.5 मीटर लम्बे त्रिपाद-स्टैण्ड पर कसकर प्रयोग में लाया जाता है। त्रिपाद-स्टैण्ड में तीन टाँगें होने के फलस्वरूप ऊँचे-नीचे धरातल पर भी आरेख-पट्ट को समतल किया जा सकता है। स्टैण्ड की टाँगें सागौन की दोहरी पट्टियों से निर्मित होती हैं तथा इनके ऊपरी सिरे फ्लाई-नटों (fly-nuts) के द्वारा पीतल या ऐलुमिनियम की एक प्लेट से जुड़े होते हैं, जिसे त्रिशाखी प्लेट (tribranch plate) कहते हैं। प्रत्येक टाँग के निचले सिरे पर लोहे के अतिरिक्त किसी अन्य धातु का नुकीला टुकड़ा या खोल होता है जो उसे धरातल पर फिसलने से रोकता है। आरेख-पट्ट को त्रिपाद-स्टैण्ड पर लगाने के लिये धुराग्र प्लेट के बॉस हैड (boss head) को त्रिशाखी प्लेट के छिद्र (tribranch hole) में डालकर, त्रिशाखी प्लेट में लगे बन्धन पेंच (clamping screw) को कस देते हैं।

2. जॉनसन टेबल (Johnson table)-इस टेबल का आविष्कार संयुक्त राज्य भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग के विलार्ड डी. जॉनसन (Willard D. Johnson) नामक भूवैज्ञानिक ने किया था अतः इसे जॉनसन टेबल नाम से पुकारा जाता है। जॉनसन टेबुल की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें आरेख-पट्ट को हाथ से ऊँचा-नीचा करके समतल किया जा सकता है अर्थात् आरेख-पट्ट को समतल करने के लिये साधारण प्लेन टेबल की भाँति त्रिपाद-स्टैण्ड की टांगों को आगे-पीछे हटाने की आवश्यकता नहीं होती। अतः ऊँचे-नीचे धरातल वाले क्षेत्रों में जहाँ समतल भूभाग की कमी होती है, जॉनसन टेबल विशेष उपयोगी रहती है।
चित्र में जॉनसन टेबल के त्रिपाद-स्टैण्ड के शीर्ष को दिखलाया गया है। चित्र के अनुसार आरेख-पट्ट C की धुराग्र प्लेट D को त्रिपाद-शीर्ष में ऊपर की ओर स्थित वृत्ताकार प्लेट E की चूड़ियों पर घुमाकर कस देते हैं। त्रिपाद-शीर्ष में कन्दुक-खल्लिका संधि (ball and socket joint) तथा एक ऊर्ध्वाधर छड़ होती है। खल्लिका या प्याला F त्रिपाद-स्टैंड की टांगों पर टिका होता है। खल्लिका के नीचे की ओर A तथा B दो बन्धन पेंच (clamping screws) होते हैं। A बन्धन पेंच को ढीला करने से प्याले पर G तथा H भागों की पकड़ हट जाती है अतः आरेख-पट्ट को हाथ से समतल किया जा सकता है। पट्ट के समतल हो जाने पर A बन्धन पेंच को पुनः कस देते हैं। इसी प्रकार B बन्धन पेंच को ढीला करके आरेख-पट्ट को क्षैतिज दिशा घुमाया जा सकता है।3. तट-सर्वेक्षण टेबुल (Coast survey table) त्रिभुजन विधि से अपेक्षाकृत बड़े-बड़े क्षेत्रों के अति परिशुद्ध सर्वेक्षण करने के लिये तट-सर्वेक्षण टेबुल को सर्वोत्तम माना जाता है । इस टेबुल में त्रिपाद-स्टैण्ड की त्रिशाखी प्लेट पर लगाये जाने वाला त्रिपाद-शीर्ष (tripod head), जिसे समतलन अवयव (levelling head) भी कहते हैं, अलग से होता है (चित्र 18.3)। इस त्रिपाद-शीर्ष में तीन समतलन पेंच (levelling screws) होते हैं जिनकी सहायता से आरेख-पट्ट को समतल करते हैं। इसके अतिरिक्त त्रिपाद-शीर्ष में एक बंधन पेंच होता है जिसे ढीला करने के पश्चात् पट्ट को क्षैतिज घुमाया जा सकता है। आरेख-पट्ट को क्षैतिज दिशा में बहुत धीमी गति से घुमाने के लिये त्रिपाद-शीर्ष में एक अन्य पेंच लगा होता है जिसे टेंजेंट पेंच (tangent screw) कहते हैं । टेंजेन्ट पेंच को प्रयोग करने से पूर्व बन्धन पेंच को कस देना आवश्यक होता है। तट-सर्वेक्षण टेबुल का पट्ट प्राय: बड़े आकार (75x60 सेमी) वाला होता है तथा इसके किनारों पर धातु की स्प्रिंग क्लिप (spring clips) लगी हैं, जो ड्राइंग कागज़ को पट्ट पर स्थिर रखती हैं।
[।I] दर्शरेखक या ऐलीडेड
(Alidade) 
प्लेन टेबुल सर्वेक्षण में प्रयोग किये जाने वाला यह दूसरा महत्वपूर्ण उपकरण है। ऐलीडेड की सहायता से दो स्टेशनों के मध्य की दृष्टि रेखा (line of sight) की दिशा में ड्राइंग कागज़ पर रेखा या किरण खींचते हैं। बनावट के विचार से ऐलीडेड दो प्रकार के होते हैं- (i) साधारण या द्विवीक्षी ऐलीडेड तथा (ii) दूरदर्शन ऐलीडेड।
1. साधारण या द्विवीक्षी ऐलीडेड (Plain or peepsight alidade)-साधारण ऐलीडेड में पीतल या सागौन आदि किसी कठोर लकड़ी से निर्मित समान्तर किनारे वाली पटरी के दोनों सिरों पर स्थिर अथवा मोड़कर रखे जा सकने वाले दो लम्बवत् फलक होते हैं (चित्र 18.4)। एक फलक में ऊर्ध्वाधर महीन सरल रेखा के समान कटी झिरी होती है जिसके सिरों पर एवं मध्य में गोल छिद्र या अवलोकन छिद्र (eye holes) होते हैं तथा दूसरे फलक की झिरी में एक महीन तार या अवलोकन छिद्रों वाले फलक को नेत्र फलक (eye vane धागा बंधा होता है। or sight) या दर्श फलक (sight vane) तथा तार वाले फलक को दृश्य वेधिका (object vane) कहते हैं। अवलोकन-छिद्र तथा दृश्य वेधिका के तार को मिलाने वाली कल्पित सरल रेखा (अर्थात् दृष्टि रेखा) पटरी के किनारों के पूर्णतया समांतर होती है अतः पटरी के किनारे के साथ ड्राइंग कागज़ पर खींची गई रेखा या किरण (ray) की दिशा दृष्टि रेखा की दिशा के समान होती है। अवलोकन-छिद्र से तार की ओर देखने पर पटरी के दायें किनारे को प्रवणित कर दिया जाता है जिससे इसके सहारे किरणें खींची जा सकें | पटरी के इस प्रवणित किनारे को ढालू धार (fiducial edge) या कार्यकारी किनारा (working edge) भी कहते हैं।
साधारण ऐलीडेड प्रायः 40 से 50 सेमी तक लम्बे होते हैं। उत्तम प्रकार के साधारण ऐलीडेड के प्रवणित किनारे पर सेंटीमीटर आदि में मापनी अंकित होती है तथा पटरी की ऊपरी सतह पर दूफ कम्पास तथा गोल आकृति वाला स्पिरिट लेविल लगा रहता है। ऐलीडेड से किरणें खींचने के लिये इसके कार्यकारी किनारे को प्लान में टेबुल की स्थिति इंगित करने वाले बिन्दु पर गड़े आलपिन से सटाकर रखते हुए अवलोकन-छिद्र के समीप आँख रखकर दृश्य वेधिका के तार को दूर गड़े सर्वेक्षण दण्ड की सीध में करते हैं तथा जब अवलोकन-छिद्र, दृश्य वेधिका का तार तथा सर्वेक्षण दण्ड तीनों एक सरल रेखा में आ जाते हैं तो कार्यकारी बार के सहारे ड्राइंग कागज़ पर सर्वेक्षण दण्ड की ओर को किरण खाच देते हैं। सीध मिलाते समय ऐलीडेड के दोनों फलक लम्बवत होने चाहिएँ।
2. दूरदर्शीय ऐलीडेड (Telescopic alidade) दूरदर्शी य ऐलीडेड साधारण ऐलीडेड का परिष्कृत रूप है। इस ऐलीडेड में फलकों के बजाय एक दूरबीन लगी होती है जिससे न केवल दूरस्थ विवरणों को लक्ष्य करने में सरलता रहती है अपितु स्टेडिया विधि के प्रयोग से किसी विवरण या स्थान की सर्वेक्षक से शुद्ध दूरी भी ज्ञात की जा सकती है । दूरदर्शन ऐलीडेड की प्लेट पीतल आदि किसी अलौह धातु की बनी होती है। इस प्लेट का कार्यकारी किनारा समान्तर रेखक  (parallel ruler) के रूप में समान लम्बाई बाली दो चलनशील क्लिपों के द्वारा मुख्य प्लेट से जुड़ा होता है अत: सीध मिला लेने के पश्चात् ऐलीडेड को हिलाये बिना रेखक को आगे खिसका कर दृष्टि रेखा से कुछ दूरी तक उसके समान्तर रेखा खींची जा सकती है। मुख्य प्लेट के मध्य में 10 से 15 सेमी ऊंचे हत्थे पर ऐलीडेड की दूरबीन लगी होती है। दूरबीन को क्षैतिज अथवा नत अवस्था में स्थिर करने के लिये हत्थे के ऊपर लगे बंधन पेंच तथा उससे नीचे की ओर स्थित टेंजेन्ट पेंच का प्रयोग करते हैं। दूरबीन के ऊपर एक स्पिरिट लेविल लगा होता है। जब इस लेविल की काँच नली में हवा का बुलबुला ठीक मध्य में स्थित हो तो दूरबीन को समतल स्थापित समझ लेना चाहिए। यदि ऊँचाई आदि ज्ञात करने के लिये दूरबीन को नत अवस्था में स्थिर किया गया है तो दृष्टि रेखा के, क्षैतिज तल से कोण का मान हत्थे पर लगे अंशांकित चाप एवं वर्नियर को पढ़कर ज्ञात कर लेते हैं।
दूरदर्शन ऐलीडेड को प्राय: जॉनसन टेबुल या तट सर्वेक्षण टेबल पर रखकर प्रयोग करते हैं। इसके लिये पहले आरेख-पट्ट को यथासम्भव समतल करते हैं तथा उसके बाद बंधन पेंच तथा टेंजेन्ट पेंच की सहायता से दूरबीन को समतल किया जाता है। जब दूरबीन समतल हो जाती है तो उसके अभिदृश्य लेन्स (object lens) को क्षेत्र में दूर गड़े सर्वेक्षण दण्ड की ओर आमुख करके दूरबीन के अभिनेत्र लेन्स (eye lens), जिसे नेत्रिका (eye-piece) कहते हैं, के समीप आँख रखकर सर्वेक्षण दण्ड को देखते हैं। सर्वेक्षण दण्ड को स्पष्ट देखने के लिये दूरबीन के फोकसन पेंच (focussing screw or stud) को आवश्यकतानुसार आगे या पीछे की ओर घुमाते हैं। सर्वेक्षण दण्ड का फोकस कर लेने के पश्चात् नेत्रिका को आगे-पीछे करके दूरबीन के भीतर स्थित स्टेडिया डायाफ्राम (stadia diaphragm) के तार स्पष्ट किये जाते हैं। दूरदर्शन ऐलीडेड के डायाफ्राम में चार तार होते हैं जिनमें एक तार लम्बवत तथा शेष तीन तार क्षैतिज होते हैं। किसी स्थान की ओर को किरण खींचने के लिये उस स्थान की लम्बवत तार से सीध मिलायी जाती है।
स्टेडिया विधि से किसी स्थान की सर्वेक्षक से दूरी ज्ञात करने के लिये उस स्थान पर तलेक्षण मापी दण्ड (levelling staff) रखकर, डायाफ्राम के सबसे ऊपरी तथा सबसे निचले क्षैतिज तारों की सीध में पढ़ी गई ऊँचाइयों के अन्तर में 100 की गुणा कर देते हैं। उदाहरणार्थ, मान लीजिये किसी बिन्दु A पर रखे गये तलेक्षण मापी दण्ड पर निचले तथा ऊपरी तारों की सीध में पढ़ी गई ऊंचाइयों के मान क्रमशः 1.5 व 1.2 मीटर हैं, तो
A बिन्दु की सर्वेक्षक से दूरी, 
= 100(1.5-1.2) =30 मीटर
[III] स्पिरिट लेवल 
(Spirit level) 
यह एक साधारण उपकरण है जिसकी सहायता से त्रिपाद-स्टैण्ड पर लगे आरेख-पट्ट को समतल किया जाता है। स्पिरिट लेविल की काँच नली में स्पिरिट या अल्कोहल (alcohol) होता है। चूँकि इस नली में स्पिरिट या अल्कोहल भरते समय कुछ स्थान रिक्त छोड़ दिया जाता है अत: इसमें हवा का बुलबुला बन जाता है जो सदैव ऊँचाई की ओर को भागता है। नली के ऊपर उसके मध्यवर्ती बिन्दु से दोनों ओर को समान दूरी के अन्तर पर चिह्न अंकित होते हैं। कुछ लेविलों की काँच नलियों पर बीचों-बीच दो आड़ी रेखाएँ अंकित होती हैं। जब हवा का बुलबुला नली के ठीक मध्य में होता है अर्थात् इन आड़ी रेखाओं के बीच में आ जाता है तो आरेख-पट्ट समतल हो जाता है। स्पिरिट लेविल की नली लकड़ी, पीतल या एलुमिनियम के समतल आधार वाले प्राय: 10 से 15 सेमी लम्बे एवं 2 से 3 सेमी मोटे आयताकार खोल में लगी होती है जिससे उसे आरेख-पट पर रखा जा सके।
आरेख-पट्ट को समतल करने के लिये उसके चारों कोनों तथा मध्य में स्पिरिट लेवल को रखते हैं तथा प्रत्येक स्थान पर जिस ओर को हवा का बुलबुला भागता है उसी ओर को त्रिपाद-स्टैण्ड आवश्यकतानुसार नीचा कर दिया जाता है जिससे हवा का बुलबुला नली के ठीक मध्य में स्थिर हो जाये।

[IV] साहुल काँटा तथा साहुल पिण्ड 
(Plumbing fork and plumb bob) 
धरातल के किसी बिन्दु की उसके ठीक ऊपर आरेख-पट्ट पर स्थिति ज्ञात करने अथवा आरेख-पट्ट पर लगे प्लान में किसी पूर्व अंकित बिन्दु को धरातल के तद्नुरूपी स्टेशन (corresponding station) के ठीक ऊपर रखने के लिये साहुल काँटा व साहुल पिण्ड उपकरणों का प्रयोग करते हैं। दूसरे शब्दों में, इन उपकरणों की सहायता से धरातल के किसी स्टेशन पर प्लेन टेबुल का केन्द्रण (centring) किया जाता है। साहुल काँटा लगभग 1 मीटर लम्बी, 2 सेमी चौड़ी तथा 2 मिलीमीटर मोटी पीतल या ऐलुमिनियम की पत्री को चिमटे से मिलती-जुलती आकृति में मोड़कर बनाया जाता है। कांटे की ऊपरी भुजा अपेक्षाकृत कुछ छोटी एवं नोंकदार सिरे वाली होती है। इस नोंकदार सिरे से लम्बवत दिशा में बड़ी भुजा की निचली सतह पर एक छोटा हुक लगा होता है जिसमें डोरी बाँधकर साहुल पिण्ड को लटकाते हैं। धरातल के किसी निर्दिष्ट स्टेशन पर प्लेन टेबल का केन्द्रण करने के लिये काँटे की नोंकदार छोटी भुजा को आरेख-पट्ट के ऊपर रखकर काँटे को इस प्रकार आगे-पीछे या दायीं-बायीं ओर को हटाते हैं कि डोरी में बंधे साहुल पिण्ड की नोंक धरातल के सम्बन्धित स्टेशन के ठीक ऊपर लम्बवत सीध में आ जाये। इस क्रिया को पूर्ण कर लेने के पश्चात् आरेख-पट्ट के ड्राइंग कागज़ पर साहुल काँटे की नोंक से इंगित बिन्दु को पेन्सिल से अंकित कर देते हैं। इसके विपरीत यदि प्लान में किसी पूर्व अंकित बिन्दु का धरातल के संबंधित स्टेशन के लम्बवत ऊपर रखना है तो साहुल काँटे की नोंक को कागज़ पर अंकित बिन्दु पर रखकर त्रिपाद-स्टैण्ड की गगों को आगे-पीछे हटाकर केन्द्रण करते है।

[V] अन्य उपकरण 
(Other instruments)
 प्लेन टेबुल सर्वेक्षण के अन्य आवश्यक उपकरणों जैसे, ज़रीब या फीता, ट्रफ कम्पास, सर्वेक्षण दण्ड व ज़रीब के तीर, आदि को पिछले अध्याय में विस्तारपूर्वक लिखा जा चुका है अतः उन्हें यहाँ पुनः लिखना आवश्यक नहीं है। उपरोक्त उपकरणों के अतिरिक्त इस सर्वेक्षण में उत्तम कोटि के ड्राइंग कागज़, ड्राइंग पीने, स्याही, पेन्सिल तथा ड्राइंग उपकरणों, आदि की आवश्यकता पडती है।

                                     सर्वेक्षण क्रिया 
                                (Survey Operation)
जैसा कि आगे चलकर बतलाया जायेगा प्लेन टेबल से सर्वेक्षण करने की कई विधियाँ होती हैं तथा लगभग प्रत्येक विधि में निम्नलिखित क्रियाएँ की जाती हैं :

[I] आवीक्षण रेखाचित्र 
(Reconnaissance sketch map) 
वास्तविक सर्वेक्षण कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व दिये गये क्षेत्र का भली-भाँति निरीक्षण करके दूर से दिखलाई न देने वाले क्षेत्र के आवश्यक विवरणों, जैसे सीमा रेखा के मोड़ आदि, पर पहचान के लिये सर्वेक्षण दण्ड गाड़ दिये जाते हैं। इसके पश्चात् सर्वेक्षण में प्रयोग की गई विधि के अनुसार आधार रेखा अथवा चंक्रमण स्टेशनों को निश्चित करते हैं। आधार रेखा व चंक्रमण स्टेशनों के चयन में ध्यान देने योग्य बातों को आगे चलकर सर्वेक्षण की सम्बन्धित विधि के अन्तर्गत बतलाया जायेगा। क्षेत्र के आवश्यक विवरणों एवं सर्वेक्षण स्टेशनों का चयन करने के उपरान्त उनकी अनुमानित स्थितियों को आवीक्षण रेखाचित्र में रूढ़ चिह्नों के द्वारा अथवा नाम लिखकर इंगित कर देना चाहिए। स्मरण रहे, किसी सर्वेक्षण स्टेशन की क्षेत्र में स्थिति को अंग्रेज़ी भाषा के बड़े अक्षर (जैसे A, B, C आदि) से इंगित करते हैं तथा उस स्टेशन की ड्राइंग कागज़ पर तद्नुरूपी स्थिति को अंग्रेज़ी भाषा के छोटे अक्षर (जैसे a, b, c आदि) से प्रकट करते हैं।

[II] प्लेन टेबुल का स्थापन 
(Setting up the plane table) आवीक्षण रेखाचित्र बना लेने के पश्चात् ड्राइंग कागज़ लगे आरेख पट्ट को त्रिपाद-स्टैण्ड पर कसकर प्लेन टेबल को क्षेत्र के प्रारम्भिक सर्वेक्षण स्टेशन पर सीने के बराबर ऊँचाई में स्थापित करते हैं। प्रारम्भिक स्टेशन पर प्लेन टेबल के स्थान में दो क्रियाएँ–(i) समतलन एवं (ii) केन्द्रण, तथा किसी अगले स्टेशन पर प्लेन टेबल को स्थापित करने के लिये तीन क्रियाएं- (i) समतलन, (ii) केन्द्रण एवं (iii) पूर्वाभिमुखीकरण, साथ-साथ सम्पन्न की जाती हैं।

1. प्लेन टेबल को समतल करना (Levelling the plane table)-आरेख-पट्ट पर लगे ड्राइंग कागज़ पर किरणें खींचने से पूर्व प्लेन टेबल को क्षैतिज दिशा में स्थापित करना आवश्यक है। जैसा कि पहले लिखा जा चुका है साधारण प्लेन टेबल में त्रिपाद-स्टैण्ड की टाँगों को ऊँचा-नीचा करके आरेख-पट्ट को समतल करते हैं तथा जाँच के लिये स्पिरिट लेवल का प्रयोग करते हैं। चूँकि स्पिरिट लेविल में हवा का बुलबुला सदैव ऊँचाई की ओर भागता है अतः बुलबुले के भागने की दिशा में स्थित त्रिपाद-स्टैण्ड की टाँग को इतना नीचा करते हैं कि बुलबुला काँच नली के ठीक मध्य में स्थिर हो जाये । प्लेन टेबल को समतल करने के लिये आरेख-पट्ट के प्रत्येक कोने एवं मध्य में स्पिरिट लेविल को रखकर उपरोक्त क्रिया की पुनरावृत्ति करते हैं। जॉनसन टेबुल के आरेख-पट्ट को हाथ से दबाकर समतल किया जाता है तथा तट सर्वेक्षण टेबल में त्रिपाद-शीर्ष में लगे समतलन पेंचों को घुमाकर आरेख-पट्ट को समतल करते हैं।

2. केन्द्रण (Centring)-प्रारम्भिक सर्वेक्षण स्टेशन पर प्लेन टेबल के केन्द्रण से हमारा अभिप्रायः सर्वेक्षण स्टेशन की लम्बवत दिशा में आरेख-पट्ट पर स्थिति ज्ञात करना है। इस कार्य के लिये आरेख-पट्ट में साहुल काँटा (plumbing fork) लगाकर कांटे को इस प्रकार इधर-उधर हटाते हैं कि उसमें लटके साहुलपिण्ड की नोंक सर्वेक्षण स्टेशन के ठीक ऊपर आ जाये। इसके पश्चात् आरेख-पट्ट पर कांटे की नोंक से इंगित बिन्दु को पेन्सिल से अंकित करके उस पर आलपिन गाड़ देते हैं तथा जैसा कि आगे चलकर बताया जायेगा, इस आलपिन के सहारे ऐलीडेड रखकर आधार रेखा के दूसरे सिरे पर गड़े सर्वेक्षण दण्ड एवं क्षेत्र के अन्य विवरणों को लक्ष्य करके किरणें खींच दी जाती हैं। प्रारम्भिक स्टेशन पर कार्य समाप्त हो जाने के पश्चात प्लेन टेबुल को उठाकर अगले सर्वेक्षण स्टेशन पर रखते हैं जिसकी स्थिति ड्राइंग कागज़ पर पहले से अंकित होती है। अत: यहाँ साहुल काँटे की नोंक को पूर्व अंकित बिन्दु पर स्थिर रखते हए समूची टेबुल को इधर-उधर हटाकर केन्द्रण किया जाता है। इस प्रक्रिया में आरेख-पट्ट की क्षैतिज दिशा में अन्तर आ सकता है इसलिये केन्द्रण करने के पश्चात् आरेख-पट्ट को पुनः समतल कर लेना चाहिए। एक-दो बार प्रयत्न करने से प्लेन टेबल का केन्दण एवं समतल दोनों ठीक हो जाते हैं।

3. पूर्वाभिमुखीकरण (Orientation)-आरेख-पट्ट पर अंकित रेखाओं को धरातल की तदनुरूप कल्पित रेखाओं के समानांतर रखने की क्रिया को पूर्वाभिमुखीकरण कहते हैं । प्रारम्भिक सर्वेक्षण स्टेशन के पश्चात् आगामी प्रत्येक सर्वेक्षण स्टेशन पर किरणें खींचने से पूर्व प्लेन टेबल का समाकलन एवं केन्द्रण करने के साथ-साथ उसका पूर्वाभिमुखीकरण करना परम आवश्यक है अन्यथा प्लान में अंकित कोई भी विवरण अपनी वास्तविक स्थिति से भिन्न स्थिति में होगा। प्लेन टेबल का अनुस्थापन या पूर्वाभिमुखीकरण करने की निम्नांकित दो प्रमुख विधियाँ हैं :
(a) ट्रफ कम्पास के द्वारा पूर्वाभिमुखीकरण (Orientation by trough compass)-ट्रफ कम्पास की सहायता से किसी सर्वेक्षण स्टेशन पर प्लेन टेबल का पूर्वाभिमुखीकरण करने की विधि बहुत सरल है। इस विधि में जिस सर्वेक्षण स्टेशन पर प्लेन टेबल का पूर्वाभिमुखीकरण करना होता है उस स्टेशन पर, आरेख-पट्ट को त्रिपाद-स्टैण्ड पर ढीला कसकर, प्लेन टेबल का सही-सही समतलन एवं केन्द्रण करते हैं। इसके पश्चात् ड्राइंग कागज़ में प्रारम्भिक सर्वेक्षण स्टेशन पर खींची गई उत्तर-दक्षिण रेखा के सहारे ट्रफ कम्पास रखकर आरेख पट्ट को सुई के द्वारा इंगित चुम्बकीय उत्तर दिशा की ओर घुमाते हैं। जब ट्रफ कम्पास की सुई मध्य में स्थिर हो जाती है अर्थात् उसकी नोंक अंशांकित चाप के शून्य पर आ जाती है तो आरेख-पट्ट को त्रिपाद-स्टैण्ड पर पूरी तरह कस देते हैं। इस प्रकार इस विधि से प्लेन टेबुल का पूर्वाभिमुखीकरण करने के लिये ड्राइंग कागज़ पर पहले से अंकित उत्तर-दक्षिण रेखा को दिशानुरूप स्थापित किया जाता है। पूर्वाभिमुखीकरण हो जाने के बाद प्लेन टेबल के केन्द्रण एवं समतलन की पुनः जाँच कर लेनी चाहिए। यदि सर्वेक्षण स्टेशन के समीप लोहे का कोई खम्बा आदि स्थित है तो आकर्षण के फलस्वरूप ट्रफ कम्पास की सुई चुम्बकीय उत्तर की सही दिशा नहीं बता सकेगी। अतः इस विधि से सदैव सही-सही पूर्वाभिमुखीकरण नहीं किया जा सकता।

(b) पश्चदृष्टिपात के द्वारा पूर्वाभिमुखीकरण (Orientation by back sighting)-इस विधि में ड्राइंग कागज़ पर पहले से अंकित आधार रेखा के दोनों सिरों को धरातल पर स्थित तद्नुरूपी सर्वेक्षण स्टेशनों की दिशा में रखकर प्लेन टेबल का पूर्वाभिमुखीकरण किया जाता है। उदाहरणार्थ मान लीजिये, धरातल पर A तथा B दो सर्वेक्षण स्टेशन हैं जिनके मध्य की AB आधार रेखा ड्राइंग कागज़ पर ab रेखा से प्रकट है  । अब B स्टेशन पर टेबल का पूर्वाभिमुखीकरण करने के लिये A स्टेशन पर एक सर्वेक्षण दण्ड गाड़िये तथा आरेख-पट्ट को त्रिपाद-स्टैण्ड पर ढीला कसकर B स्टेशन पर प्लेन टेबुल का समतल एवं सही केन्द्रण कीजिये। स्पष्ट है कि सही केन्द्रण हो जाने पर B तथा b बिन्दु एक लम्बवत रेखा में होंगे। अब ऐलीडेड के कार्यकारी किनारे को ba रेखा के सहारे रखकर आरेख-पट्ट को इतना घुमाइये कि दृश्य वेधिका का तार A स्टेशन पर गड़े सर्वेक्षण दण्ड की सीध में आ जाये। सीध मिल जाने के बाद आरेख-पट्ट को बंधन पेंच से पूरी तरह कस दीजिये। स्मरण रहे, आरेख-पट्ट को घुमाते समय ऐलीडेड बिना हिले ba रेखा पर यथावत् स्थिर रहना चाहिए। आरेख-पट्ट को घुमाने के फलस्वरूप यदि उसके समतलन अथवा केन्द्रण में कोई अन्तर आ गया है तो उसे दूर करके पूर्व स्टेशन (यहाँ A) पर पुनः पश्चदृष्टिपात करके पूर्वाभिमुखीकरण की शुद्धता को जाँच लेना चाहिए।
पश्चदृष्टिपात के द्वारा प्लेन टेबल का पूर्वाभिमुखीकरण करने की विधि को अपेक्षाकृत अधिक विश्वसनीय एवं प्रामाणिक माना जाता है । अत: पूर्वाभिमुखीकरण करते समय प्रायः इसी विधि का प्रयोग करते हैं।

[III] किरणें खींचना 
(Drawing of rays) 
प्रारम्भिक सर्वेक्षण स्टेशन पर प्लेन टेबल का समतल एवं केन्द्रण करने के पश्चात् तथा किसी आगामी स्टेशन पर समतलन, केन्द्रण एवं पूर्वाभिमुखीकरण तीनों क्रियाएँ पूर्ण कर लेने के बाद क्षेत्र के विवरणों तथा आगे बढ़ायी गई आधार रेखा (अर्थात् चंक्रमण रेखा) के अगले स्टेशन पर गाड़े गये सर्वेक्षण दण्ड को ऐलीडेड से लक्ष्य करके सरल रेखाएं खींचते हैं। इन सरल रेखाओं को किरणें कहा जाता है। इस कार्य के लिये आरेख-पट्ट पर प्लेन टेबुल के स्टेशन की स्थिति को प्रदर्शित करने वाले बिन्दु पर एक आलपिन गाड़ देते हैं तथा किसी विवरण को लक्ष्य करते समय ऐलीडेड के कार्यकारी किनारे को इस आलपिन से सटाकर रखते हैं। जैसा कि आगे समझाया जायेगा, विकिरण विधि में प्रत्येक किरण को पूर्व निश्चित मापनी के अनुसार लम्बा बनाया जाता है, जबकि प्रतिच्छेदन विधि में केवल आधार रेखा को मापनी के अनसार बनाते हैं। प्लान की मापनी को निश्चित करते समय क्षेत्र की अधिकतम लम्बाई-चौड़ाई तथा ड्राइंग कागज़ के आकार को ध्यान में रखा जाता है। प्रारम्भिक स्टेशन पर किरणें खींचने से पूर्व ड्राइंग कागज़ के ऊपर की ओर कोने में ट्रफ कम्पास की सहायता से उत्तर-दक्षिण दिशा इंगित करने वाली एक रेखा अंकित कर देनी चाहिए।

[IV] प्लान को पूर्ण करना 
(Completing the plan) 
क्षेत्र के सभी आवश्यक विवरणों एवं सीमा रेखा को बना लेने के पश्चात् प्लान के नीचे उसकी मापनी अंकित कर देनी चाहिए। प्रत्येक प्लान पर सम्बन्धित क्षेत्र का नाम तथा उसके नीचे कोष्ठक में सर्वेक्षण की विधि का नाम लिख देना आवश्यक है। 

प्लेनटेबुलन की विधियाँ 
(Methods of Plane Tabling)
प्लेन टेबल के द्वारा सर्वेक्षण करने की चार विधियां हैं- (i) प्रतिच्छेदन विधि, (ii) विकिरण या अरीय रेखा विधि, (iii) चंक्रमण या माला रेखा विधि,तथा (iv) रेडियो प्रगामी विधि । यद्यपि उपरोक्त विधियों में प्रत्येक विधि को नीचे अलग-अलग समझाया गया है परन्तु व्यवहार में प्राय: दो या दो से अधिक विधियों का मिश्रित प्रयोग करके सर्वेक्षण कार्य पूर्ण करते हैं। यहाँ यह पुनः संकेत किया जा रहा है कि इन विधियों से सम्बन्धित आगे दिये गये रेखाचित्रों में किसी विवरण या स्टेशन की धरातल पर स्थिति को बड़े अक्षर से तथा उसकी आरेख-पट्ट पर तद्नुरूपी स्थिति को छोटे अक्षर से प्रदर्शित किया गया है। 

[I] प्लेनटेबुलन की प्रतिच्छेदन विधि
(Intersecton method of plane tabling) 
इस विधि में किसी विवरण को प्लान में अंकित करने के लिये क्षेत्र के किन्हीं दो सर्वेक्षण स्टेशनों से उस विवरण को लक्ष्य करके खींची गई किरणों का आरेख-पट्ट पर प्रतिच्छेदन बिन्दु ज्ञात करते हैं। जिन दो सर्वेक्षण स्टेशनों से किरणें खींची जाती हैं उन्हें मिलाने वाली सरल रेखा को आधार रेखा (base line) कहते हैं। चूँकि प्रतिच्छेदन विधि में आधार रेखा के अतिरिक्त किसी अन्य दूरी को मापने की आवश्यकता नहीं होती अत: इस विधि को प्लेन टेबल की त्रिभुजन विधि भी कहा जाता है। खुले क्षेत्रों के अगम्य स्थानों को प्लान में अंकित करने के लिये यह विधि विशेष रूप से उपयोगी है। इसके अतिरिक्त किसी क्षेत्र के प्लान में विवरण भरने के लिये तथा नदी तटों, कटी-फटी सीमा रेखाओं व निश्चित स्थलाकृतिक लक्षणों के मानचित्र में भी प्रतिच्छेदन विधि का प्रयोग लाभदायक रहता है।
 प्रतिच्छेदन विधि के द्वारा बनाये गये किसी क्षेत्र के प्लान की शुद्धता बहुत-कुछ आधार रेखा के सही-सही चयन एवं उसकी शुद्ध माप पर निर्भर करती है। अत: आधार रेखा का चयन करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए :
(1) आधार रेखा के दोनों सिरों से क्षेत्र का प्रत्येक विवरण स्पष्ट दिखलाई देना चाहिए। 
(2) आधार रेखा तथा किसी किरण के बीच का कोण अत्यधिक बड़ा अथवा अत्यधिक न्यून नहीं होना चाहिए। दूसरे शब्दों में, किरणों के प्रतिच्छेदन अत्यधिक तिरछे नहीं होने चाहिए । 
(3) आधार रेखा यथासम्भव समतल एवं बाधा रहित धरातल पर चुनी जानी चाहिए जिससे उसे ज़रीब या फीते की सहायता से सरलतापूर्वक सही-सही मापा जा सके। 
कार्य-विधि (Procedure)-चित्र के अनुसार मान लीजिये ABCD कोई क्षेत्र है। प्रतिच्छेदन विधि के द्वारा इस क्षेत्र का सर्वेक्षण एवं प्लान बनाने की प्रक्रिया को निम्नलिखित चरणों में पूरा किया जायेगाः
(1) दिये गये क्षेत्र का भली-भाँति निरीक्षण करके प्लान में प्रदर्शित किये जाने वाले विवरणों का चयन कीजिये तथा सीमारेखा के मोड़ों पर सर्वेक्षण दण्ड गाड़िये जिससे उनको ऐलीडेड से लक्ष्य किया जा सके। यदि आवश्यकता हो तो क्षेत्र के अन्य विवरणों पर भी सर्वेक्षण दण्ड गाड़ी जा सकते हैं। 
(2) ऊपर लिखी गई बातों को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र में किसी उपयुक्त आधार रेखा का चयन कीजिये तथा ज़रीब अथवा फीते से इस रेखा को मापिये। प्रस्तुत उदाहरण में AB रेखा को आधार रेखा माना गया है।
(3) प्लेन टेबल को A स्टेशन पर समतल स्थापित करके ड्राइंग कागज़ के ऊपर की ओर कोने में ट्रफ कम्पास की सहायता से चुम्बकीय उत्तर दिशा प्रदर्शित कीजिए ।
(4)   साहूलपिण्ड व काँटे के प्रयोग से A स्टेशन केे ठीक ऊपर आरेख पट्ट पर a बिन्दु ज्ञात कीजिये तथा इस बिन्दु पर एक आलपिन गाड़िये
(5) ऐलीडेड के कार्यकारी किनारे को आलपिन से सटाकर रखते हुए B स्टेशन पर गड़े सर्वेक्षण दण्ड को लक्ष्य करके एक किरण खींचिये तथा इस किरण में पूर्व निश्चित मापनी के अनुसार AB दूरी के बराबर ab रेखा काटिये जो प्लान में आधार रेखा को प्रकट करेगी।
(6) इसके पश्चात् क्षेत्र के अन्य विवरणों को बारी-बारी से लक्ष्य करते हुए उनकी ओर को a बिन्दु से किरणें खींचिये तथा पहचान के लिये प्रत्येक किरण पर सम्बन्धित विवरण का संकेत जैसे, To C, To D, To E, आदि अंकित कीजिये।
(7) A स्टेशन पर उपरोक्त क्रिया करने के बाद प्लेन टेबुल को B स्टेशन पर स्थानांतरित करके पूर्व निर्देशित विधि के अनुसार उसका इस प्रकार समतलन, केन्द्रण एवं पूर्वाभिमुखीकरण कीजिये कि आरेख-पट्ट पर अंकित b बिन्दु B स्टेशन के ठीक ऊपर स्थित हो तथा ba रेखा के सहारे ऐलीडेड रखकर देखने पर दृष्टि रेखा A स्टेशन पर गड़े सर्वेक्षण दण्ड से होकर जाये ।
(8) अब b बिन्दु पर आलपिन गाड़कर पहले की भाँति क्षेत्र के विवरणों को बारी-बारी से ऐलीडेड के द्वारा लक्ष्य करते हुए किरणे खींचिये।
(9) दोनों स्टेशनों से किसी विवरण को लक्ष्य करके खींची गई किरणों का प्रतिच्छेदन बिन्दु प्लान में सम्बन्धित विवरण का स्थिति को प्रकट करेगा। अत: सम्बन्धित किरणों को पहचान कर प्लान में c, d, तथा e प्रतिच्छेदन बिन्दु अंकित कीजिये।
(10) विवरणों को अंकित करने के पश्चात प्लान पर सम्बन्धित क्षेत्र का नाम तथा सर्वेक्षण विधि का नाम लिखिय त मापनी व संकेत बनाइये।

[II] प्लेनटेबुलन की विकिरण या अरीय रेखा विधि 
(Radiation or radial line method of plane tabling) 
इस विधि में एक ही सर्वेक्षण केन्द्र से क्षेत्र के विभिन्न विवरणों की ओर को पूर्व निश्चित मापनी के अनुसार लम्बी किरणें खींचकर प्लान को पूर्ण कर लिया जाता है अत: विकिरण विधि से प्लेनटेबुलन करने के लिये प्रत्येक विवरण की प्लेन टेबुल स्टेशन से दूरी मापना आवश्यक होता है। चूंकि इस विधि से बनाये गये प्लान में समस्त किरणें एक ही बिंदु से विभिन्न दिशाओं की ओर विकिरित होती हैं अत: इसे विकिरण या अरीय रेखा विधि कहते हैं। विकिरण विधि के द्वारा प्रायः खुले एवं समतल धरातल वाले छोटे-छोटे क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया जाता है। इसके अतिरिक्त किसी अन्य विधि से किये गये सर्वेक्षण में प्लेन टेबल स्टेशन के समीप स्थित विवरणों को ऑनलाइन में अंकित करने के लिये यह विधि परम उपयोगी है।
कार्य-विधि (Procedure)-मान लीजिये ABCDEF कोई खुला समतल क्षेत्र है। इस क्षेत्र का विकिरण विधि के द्वारा निम्न प्रकार सर्वेक्षण किया जायेगा :
(1) सर्वप्रथम क्षेत्र के मध्यवर्ती भाग में कोई ऐसा सर्वेक्षण स्टेशन (मान लीजिये P) चुनिये जहाँ से क्षेत्र के सभी आवश्यक विवरण स्पष्ट दिखलाई देते हों। यह सर्वेक्षण स्टेशन क्षेत्र के किसी कोने में अथवा क्षेत्र की सीमा के बाहर भी चुना जा सकता है, परन्तु ऐसा करने में कभी-कभी कोई विवरण ड्राइंग कागज़ की सीमा के भीतर अंकित नहीं हो पाता तथा समस्त सर्वेक्षण कार्य पुनः करना पड़ता है । क्षेत्र के मध्यवर्ती भाग में सर्वेक्षण स्टेशन चुनने तथा उपयुक्त मापनी के प्रयोग से यह समस्या दूर हो जाती है।
(2) ड्राइंग कागज़ के मध्यवर्ती भाग में कोई बिन्दु अंकित कीजिये तथा साहुलपिण्ड एवं कांटे की सहायता से p बिन्दु को P स्टेशन के ठीक ऊपर रखते हुए, प्लेन टेबल का सही केन्द्रण एवं समाकलन कीजिये।
(3) ड्राइंग कागज़ के ऊपर की ओर कोने में ट्रफ कम्पास रखकर चुम्बकीय उत्तर दिशा को अंकित कीजिये।
(4) p बिन्दु पर एक आलपिन गाड़िये तथा ऐलीडेड के कार्यकारी किनारे को इस आलपिन से सटाकर रखते हुए A, B, C, D, E तथा F पर गाड़े गये सर्वेक्षण दण्डों तथा क्षेत्र के भीतर स्थित अन्य विवरणों की ओर को किरणें खींचिए ।
(5) सीमा रेखा पर गाड़े गये प्रत्येक सर्वेक्षण दण्ड (A, B, C, D आदि) की P स्टेशन से ज़रीब अथवा फीते से दूरी मापिये तथा इन दूरियों को पूर्व निश्चित मापनी के अनुसार आरेख-पट्ट की तद्नुरूपी किरणों में काटकर ड्राइंग कागज़ में a, b, c,d, e तथा f बिन्दु अंकित कीजिये । इसी प्रकार क्षेत्र के भीतर की ओर स्थित विवरणों को अंकित किया जायेगा। दूरियाँ काटने में होने वाली भूलों से बचने के लिये किसी किरण को खींचने के तुरन्त बाद उस पर सम्बन्धित विवरण की क्षेत्र में मापी गई दूरी को मापनी के अनुसार अंकित कर देना चाहिए ।
(6) आवीक्षण रेखाचित्र अथवा क्षेत्र में देखकर a, b, c,d,e तथा f बिन्दुओं को मिलाकर प्लान में सीमा रेखा पूर्ण कीजिये तथा प्लान पर क्षेत्र व सर्वेक्षण विधि का नाम लिखिये एवं मापनी बनाइये।

[।।।] प्लेनटेबुलन की चंक्रमण या माला रेखा विधि 
(Traverse method of plane tabling) 
इस विधि में किसी माला रेखा (traverse line) के प्रत्येक सर्वेक्षण स्टेशन पर बारी-बारी से प्लेन टेबुल स्थापित करके अगले स्टेशन को किरण खींचते हैं तथा सम्बन्धित स्टेशनों के बीच की धरातल पर मापी गई दूरी को पूर्व निश्चित मापनी के अनुसार इस किरण में काटकर अगले स्टेशन को प्लान में अंकित करते हैं। माला रेखा के इधर-उधर स्थित विवरणों को ऑनलाइन में प्रतिच्छेदन अथवा विकिरण विधि के अनुसार अंकित किया जा सकता है। इस प्रकार प्लेनटेबुलन की मालारेखा  विधि में प्रत्येक सर्वेक्षण स्टेशन पर प्लेन टेबल को स्थापित (अर्थात् समतलन, केन्द्रण व पूर्वाभिमुखीकरण) करना तथा उत्तरोत्तर स्टेशनों के बीच की दूरियों को मापना दो मुख्य क्रियाएँ होती हैं। मालारेखा खुली अथवा बन्द हो सकती है परन्तु दोनों दशाओं में सर्वेक्षण की विधि एक समान होती है। इस सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि बन्द मालारेखा के अन्तिम स्टेशन पर प्लेन टेबल को स्थापित करने एवं वहाँ से प्रारम्भिक स्टेशन को लक्ष्य करने का मुख्य उद्देश्य सर्वेक्षण कार्य की शुद्धता को जाँचना होता है अन्यथा उसकी (अन्तिम स्टेशन की) प्लान में स्थिति पूर्ववर्ती स्टेशन से पहले ही अंकित हो जाती है। उदाहरणार्थ, यदि सर्वेक्षण कार्य में कोई भूल हुई है तो अन्तिम स्टेशन से प्रारम्भिक स्टेशन को लक्ष्य करने पर ऐलीडेड का कार्यकारी किनारा प्लान में प्रारम्भिक स्टेशन की स्थिति इंगित करने वाले बिन्द से कुछ हटा हआ होगा। 
किसी मार्ग या नदी के किनारे का मानचित्र करने के लिये माला रेखा विधि विशेष रूप से उपयोगी है। माला रेखा विधि से सर्वेक्षण किये जाने वाले क्षेत्रों में सर्वेक्षण स्टेशनों के मध्य अभिगम्यता (accessibility) होनी चाहिए जिससे उनके बीच की दूरियों को सफलतापूर्वक मापा जा सके।

कार्य-विधि (Procedure) प्लेन टेबल के द्वारा माला रेखा या चंक्रमण सर्वेक्षण की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में पर्ण करते हैं 
(1) क्षेत्र का भली-भाँति निरीक्षण करने के पश्चात् किसी उपयुक्त माला रेखा का चयन कीजिये तथा इस रेखा के मोडों को सर्वेक्षण स्टेशन मानते हुए A, B, C, D तथा E स्थानों पर सर्वेक्षण दण्ड गाड़िये।
(2) A स्टेशन पर गड़े सर्वेक्षण दण्ड को उखाड़ कर वहाँ प्लेन टेबल को रखिये। क्षेत्र में A स्टेशन की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ड्राइंग कागज़ के उपयुक्त स्थान पर a बिन्दु अंकित कीजिये। अब साहुलपिण्ड व कांटे का प्रयोग करके प्लेन टेबल का सही-सही केन्द्रण कीजिये अर्थात् a बिन्दु को A स्टेशन के ठीक ऊपर रखिये तथा टेबुल का समाकलन कीजिये।
(3) a बिन्दु पर आलपिन के सहारे ऐलीडेड रखकर B स्टेशन पर गड़े सर्वेक्षण दण्ड को लक्ष्य कीजिये तथा ऐलीडेड के कार्यकारी किनारे के सहारे किरण खींचिए।
(4) ज़रीब अथवा फीते की सहायता से A तथा B स्टेशनों के बीच की दूरी मापने तथा इस दूरी को पूर्व निश्चित मापनी के अनुसार B स्टेशन की ओर खींची गई किरण में काटकर b बिन्दु ज्ञात कीजिये। प्लान में b बिन्दु क्षेत्र के B स्टेशन को प्रदर्शित करेगा।
(5) ट्रफ कम्पास की सहायता से ड्राइंग कागज़ पर चुम्बकीय उत्तर दिशा प्रकट कीजिये। यदि A स्टेशन के समीप मालारेखा के इधर-उधर स्थित किसी विवरण या सीमा रेखा के आवश्यक स्थानों को प्लान में दिखलाना हो तो उन्हें विकिरण विधि के द्वारा अंकित कीजिये । माला रेखा से दर स्थित विवरणों को प्रतिच्छेदन विधि के द्वारा अंकित करना चाहिए। इस कार्य के लिये माला रेखा के किन्हीं दो उत्तरोत्तर स्टेशनों को चुना जा सकता है।
(6) अब प्लेन टेबुल को उठाकर B स्टेशन पर रखिये तथा A स्टेशन पर पुनः सर्वेक्षण दण्ड गाड़ दीजिये। b बिन्दु को B स्टेशन के ठीक ऊपर रखते हुए टेबुल का समतलन एवं पूर्वाभिमुखीकरण कीजिये। पूर्वाभिमुखीकरण करने के लिये ऐलीडेड के कार्यकारी किनारे को ba किरण के सहारे रखकर आरेख-पट्ट को घुमाते हुए A स्टेशन पर गड़े सर्वेक्षण दण्ड पर पश्चदृष्टिपात किया जायेगा। जब A स्टेशन दृष्टि रेखा की ठीक सीध में आ जाये तो
आरेख-पट्ट को बंधन पेंच से स्थिर कर दीजिये। पूर्वाभिमुखीकरण के पश्चात् प्लेन टेबल के केन्द्रण एवं समतलन की पुनः जाँच कर लेना आवश्यक है।
(7) b बिन्दु पर आलपिन के सहारे ऐलीडेड रखकर C स्टेशन पर गड़े सर्वेक्षण दण्ड को लक्ष्य करते हुए ऐलीडेड के कार्यकारी किनारे के सहारे एक किरण खींचिए । इस किरण में B तथा C स्टेशनों के बीच की दूरी को मापनी के अनुसार काटकर c बिंदु अंकित कीजिये जो प्लान में C स्टेशन की स्थिति को प्रकट करेगा।
(8) B स्टेशन के इधर-उधर स्थित विवरणों को पहले की भाँति विकिरण या प्रतिच्छेदन विधि से अंकित करके प्लेन टेबुल को C स्टेशन पर स्थापित कीजिये।
(9) c बिन्दु को C स्टेशन के ठीक ऊपर रखकर आरेख-पट्ट को समतल कीजिये । जिस प्रकार B स्टेशन पर ऐलीडेड से A स्टेशन पर पश्चदृष्टिपात करके प्लेन टेबल का पूर्वाभिमुखीकरण किया गया था, उसी तरह यहाँ B स्टेशन पर पश्चदृष्टिपात करके प्लेन टेबल का पूर्वाभिमुखीकरण कीजिये।
(10) c बिन्दु से D स्टेशन को लक्ष्य करके खींची गई किरण में मापनी के अनुसार CD की दूरी काटकर d बिन्दु अंकित कीजिये जो प्लान में D स्टेशन की स्थिति को प्रदर्शित करेगा।
(11) उपरोक्त प्रक्रिया की पुनरावृत्ति करते हुए माला रेखा के शेष सर्वेक्षण स्टेशनों को प्लान में अंकित कीजिए । चित्र में किसी रेखा पर लिखी संख्या उस रेखा की प्लान में रचना की क्रम संख्या को प्रकट करती है।
मालारेखा विधि में पूर्ववर्ती सर्वेक्षण कार्य की शुद्धता को किसी भी सर्वेक्षण स्टेशन से जाँचा जा सकता है। इस कार्य के लिये ऐलीडेड से क्षेत्र के किसी ऐसे विवरण या विवरणों को लक्ष्य करते हैं जिनको प्लान में पूर्ववर्ती किसी स्टेशन से पहले अंकित किया जा चुका है। ऐसे विवरणों को लक्ष्य करने पर यदि ऐलीडेड का कार्यकारी किनारा सम्बन्धित विवरण की प्लान में स्थिति प्रकट करने वाले बिन्दु पर स्थित है तो सर्वेक्षण कार्य शुद्ध समझा जायेगा। कभी-कभी सर्वेक्षक के द्वारा की गई भूलों अथवा किसी अन्य त्रुटि के फलस्वरूप बन्द माला रेखा की प्लान में आकृति बन्द नहीं हो पाती अर्थात् प्लान की अन्तिम या समापक रेखा (closing line) खुली रह जाती है। इस त्रुटि को समापक त्रुटि (closing error) कहते हैं। ऐसी दशा में समापक त्रुटि को समस्त प्लान पर बाँटकर माला रेखा को बन्द करते हैं। समापक त्रुटि को बॉटने की आलेखी विधि को प्रिज्मीय कम्पास सर्वेक्षण के अन्तर्गत अगले अध्याय में समझाया जायेगा।

[IV] प्लेनटेबुलन की रेडियो-प्रगामी विधि (Radio-progression method of plane tabling)
इस विधि को प्लेनटेबुलन की विकिरण तथा मालोरखा विधियों का मिश्रित रूप कहा जा सकता है। रेडियो-प्रगामी विधि के तीन लक्षण होते हैं-प्रथम, इस विधि में सदैव आरेख-पट्ट के मध्यवर्ती बिन्दु को किसी सर्वेक्षण स्टेशन के ठीक ऊपर रखकर प्लेन टेबल का समतलन, केन्द्रण व पूर्वाभिमुखीकरण करते हैं। द्वितीय, मालारेखा के प्रत्येक सर्वेक्षण स्टेशन पर आरेख-पट्ट के मध्यवर्ती बिन्दु से क्षेत्र के विवरणों को किरणें खींची जाती हैं। भारतीय, सर्वेक्षण स्टेशनों को प्लान में किरणों के समान्तर बनाई गई रेखाओं पर अंकित किया जाता है। छोटे-छोटे क्षेत्रों का बृहत् मापनी पर मानचित्रण करने के लिये यह एक उपयोगी विधि है परन्तु समय व श्रम अधिक लगने के कारण इस विधि को कम प्रयोग करते हैं।
कार्य-विधि (Procedure)-रेडियो-प्रगामी विधि के द्वारा निम्नलिखित प्रकार से सर्वेक्षण करते हैं :
(1) मान लीजिये ABCD कोई क्षेत्र है, जिसका उपरोक्त विधि से प्लेनटेबुलन करना है। क्षेत्र का भली प्रकार निरीक्षण करने के बाद सीमा रेखा के मोड़ों पर सर्वेक्षण दण्ड गाड़िये तथा क्षेत्र के अन्य आवश्यक विवरणों का चयन कीजिये।
(2) आरेख-पट्ट के मध्यवर्ती बिन्दु (मान लीजिये p) को A स्टेशन के ठीक ऊपर रखते हुए प्लेन टेबल को समतल स्थापित कीजिये तथा ड्राइंग कागज़ पर चुम्बकीय उत्तर दिशा प्रकट कीजिये। 
(3) A स्टेशन की क्षेत्र में स्थिति को ध्यान में रख कर ड्राइंग कागज़ के उपयुक्त भाग में कोई बिन्दु a अंकित कीजिये। यद्यपि a बिन्दु A स्टेशन के ठीक ऊपर नहीं होगा तथापि प्लान में इस बिन्दु से A स्टेशन को प्रकट किया जायेगा।
(4) p बिन्दु पर आलपिन गाड़िये तथा आलपिन के सहारे ऐलीडेड रखकर B स्टेशन को लक्ष्य करते हुए एक किरण खींच के। धरातल पर AB दूरी को मापिये। 
(5) a बिन्दु से B स्टेशन की ओर को इस किरण के समान्तर एक रेखा बनाइये तथा इस रेखा में AB दूरी को मापनी के अनुसार काटकर b बिन्दु ज्ञात कीजिये । b बिन्दु प्लान में B स्टेशन को प्रकट करेगा। 
(6) अब A स्टेशन पर सर्वेक्षण दण्ड गाड़कर प्लेन टेबल को B स्टेशन पर ले जाइये। पहले की भाँति यहाँ भी p बिन्दु को B स्टेशन के ऊपर रखकर प्लेन टेबल का केन्द्रक, समचलन व पूर्वाभिमुखीकरण कीजिये। स्मरण रहे, पूर्वाभिमुखीकरण करने के लिये ऐलीडेड के कार्यकारी किनारे को किरण पर रखकर A स्टेशन पर पश्चदृष्टिपात करेंगे।
(7) p बिन्दु से C स्टेशन को लक्ष्य करके अगली किरण खींचिये तथा b बिन्दु से इस किरण के समान्तर बनाई गई रेखा में मापनी के अनुसार BC की दूरी काटकर c बिन्दु अंकित कीजिये, जो प्लान के C स्टेशन को प्रकट करेगा।
(8) उपरोक्त प्रक्रिया की पुनरावृत्ति करते हुए शेष सर्वेक्षण स्टेशनों को प्लान में अंकित कीजिये।


                                          स्थिति-निर्धारण
                                           (Resection)
किसी क्षेत्र में दो या तीन स्थानों को लक्ष्य करते हुए उन स्थानों की प्लान में अंकित स्थितियों से वापिस किरणे खींचकर, प्लान में प्लेन टेबुल की स्थिति ज्ञात करने की प्रक्रिया को स्थिति-निर्धारण कहते हैं। सरल शब्दों में, किसी क्षेत्र के पूर्व निर्मित प्लान में अंकित ज्ञात बिन्दुओं की सहायता से प्लेन टेबल स्टेशन की प्लान में स्थिति ज्ञात करने की विधि स्थिति-निर्धारण कहलाती है। क्षेत्र में छाँटे गये किसी नवीन सर्वेक्षण स्टेशन को स्थिति-निर्धारण के द्वारा प्लान में अंकित करने के लिये उस क्षेत्र के दो या तीन ऐसे स्थानों को लक्ष्य करते हुए वापिस किरणे खींची जाती हैं जो उस सर्वेक्षण स्टेशन से दिखलाई देते हों तथा जिनकी प्लान में स्थितियाँ ज्ञात हैं। स्मरण रहें, स्थिति-निर्धारण के द्वारा केवल नवीन सर्वेक्षण स्टेशनों को प्लान में अंकित करते हैं। 
किसी अपूर्ण प्लान को अगले दिन क्षेत्र में ले जाकर पूर्ण करने के लिये अथवा पूर्व निर्मित प्लान में क्षेत्र के शेष विवरणों को प्लेन टेबल की किसी विधि से अंकित करने के लिये क्षेत्र में कभी-कभी ऐसे नवीन सर्वेक्षण स्टेशनों को चुनना आवश्यक हो जाता है जिनकी प्लान में स्थितियाँ पहले से अंकित नहीं होती। ऐसी दशा में सर्वप्रथम इन नवीन सर्वेक्षण स्टेशनों को स्थिति-निर्धारण की किसी विधि के द्वारा प्लान में अंकित करते हैं तथा उसके बाद इन अंकित स्थितियों के ठीक नीचे सर्वेक्षण स्टेशनों को चिह्नित करके पहले लिखी गई विधियों में कोई विधि छाँटकर सर्वेक्षण कार्य पूर्ण कर लिया जाता है । उपरोक्त विवरण से प्लेनटेबुलन में स्थिति-निर्धारण के महत्व को सहज समझा जा सकता है।


                               स्थिति-निर्धारण की विधियाँ 
                              (Methods of Resection)

स्थिति-निर्धारण करने की विधियों के चार प्रमुख भेद हैं - (i) कम्पास द्वारा पूर्वाभिमुखीकरण करने के पश्चात् स्थिति-निर्धारण की विधि, (ii) पश्चदृष्टिपात द्वारा पूर्वाभिमुखीकरण करने के पश्चात् स्थिति-निर्धारण की विधि, (iii) त्रिबिन्दु समस्या तथा (iv) द्विबिन्दु समस्या । उपरोक्त विधियों में प्रथम दो में पूर्वाभिमुखीकरण करने के पश्चात् स्थिति-निर्धारण करते हैं जबकि शेष दो विधियों में पूर्वाभिमुखीकरण एवं स्थिति-निर्धारण दोनों क्रियाएँ साथ-साथ सम्पन्न होती हैं। 

[।] कम्पास से पूर्वाभिमुखीकरण करने के पश्चात् स्थिति-निर्धारण (Resection after orientation by compass)
इस विधि के द्वारा निम्न प्रकार स्थिति-निर्धारण करते हैं:
(1) मान लीजिये किसी क्षेत्र में A तथा B दो ऐसे दृश्य स्थान या स्टेशन हैं जिन्हें प्लान पर क्रमश: a तथा b बिन्दुओं से प्रकट किया गया है तथा P कोई नवीन स्टेशन है, जिसकी प्लान में स्थिति अंकित करनी है। 
(2) दिये हुए प्लान को आरेख-पट्ट पर लगाकर प्लेन टेबुल को P स्टेशन पर समतल स्थापित कीजिये। 
(3) प्लान पर अंकित चुम्बकीय उत्तर-दक्षिण रेखा के सहारे ट्रफ कम्पास रखकर आरेख-पट्ट को कम्पास की सुई से इंगित दिशा में घुमाइये तथा सही पूर्वाभिमुखीकरण हो जाने पर आरेख-पट्ट को कस दीजिये। 
(4) बिन्दु पर आलपिन के सहारे ऐलीडेड रखकर A स्टेशन को लक्ष्य कीजिये तथा ऐलीडेड के कार्यकारी किनारे के साथ अपनी ओर को वापिस किरण खींचिये। 
(5) अब b बिन्दु पर आलपिन के सहारे ऐलीडेड रखकर B स्टेशन को लक्ष्य करके अपनी ओर को दूसरी किरण खींचिये, जो पहली किरण को p बिन्दु पर काटती हैं। p बिन्दु प्लान में P स्टेशन की स्थिति को प्रकट करेगा।
इस विधि का प्रयोग केवल लघु मापनी वाले प्लानों में अथवा रूक्ष मानचित्रण (rough mapping) के लिये किया जाना चाहिए क्योंकि कम्पास के द्वारा पूर्वाभिमुखीकरण करने से उत्पन्न त्रुटियों का ऐसे मानचित्रों की उपयोगिता पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ता।

[II] पश्चदृष्टिपात द्वारा पूर्वाभिमुखीकरण करने के पश्चात् स्थिति-निर्धारण (Resection after orientation by back sighting) 
इस विधि में पश्चदृष्टिपात के द्वारा आरेख-पट्ट का पूर्वाभिमुखीकरण करके प्लेन टेबल स्टेशन की प्लान में स्थिति अंकित करते हैं, जिसकी निम्न प्रक्रिया है :
(1) चित्र के अनुसार मान लीजिये A तथा B क्षेत्र में दो दृश्य स्टेशन हैं, जिनके बीच की दूरी को प्लान में ab रेखा के द्वारा प्रकट किया गया है तथा P कोई नवीन स्टेशन है, जिसे प्लान पर अंकित करना है। 
(2) क्षेत्र के प्लान को आरेख-पट्ट पर लगाकर प्लेन टेबुल को B स्टेशन पर समतल स्थापित कीजिये। B स्टेशन पर सही-सही केन्द्रण करने के पश्चात् ऐलीडेड के कार्यकारी किनारे को ba रेखा के सहारे रखकर आरेख पट्ट को घुमाते हुए A स्टेशन पर पश्चदृष्टिपात कीजिये। सही-सही पूर्वाभिमुखीकरण हो जाने पर आरेख-पट्ट को कस कीजिये।..
(3) प्लेन टेबल के केन्द्र, समतल एवं पूर्वाभिमुखीकरण की शुद्धता को पुनः जाँचने के पश्चात् b बिन्दु से P स्टेशन को लक्ष्य करके एक किरण खींचिए । इस किरण में P स्टेशन की सम्भावित स्थिति प्रकट करने वाला कोई बिन्दु p अंकित कीजिये।
(4) प्लेन टेबल को P स्टेशन पर ले जाइए । यहाँ के p को P स्टेशन के ठीक ऊपर रखते हुए प्लेन टेबुल को समतल कीजिए ।
(5) pb रेखा के सहारे ऐलीडेड रखकर आरेख-पट्ट को घुमाते हुए B स्टेशन को लक्ष्य कीजिये तथा सही पूर्वाभिमुखीकरण हो जाने पर आरेख-पट्ट को कस दीजिये।
(6) स्थापन सम्बन्धी आवश्यक जाँच के पश्चात् a बिन्दु पर आलपिन के सहारे ऐलीडेड रखकर A स्टेशन को लक्ष्य करते हुए अपनी ओर को वापिस किरण खींचिये जो bp रेखा को p बिन्दु पर काटती है । p बिन्दु प्लान में P स्टेशन की स्थिति को प्रकट करेगा।

[III] त्रिबिन्दु समस्या 
(Three point problem) 
प्लेन टेबल स्टेशन से क्षेत्र में दृश्य किन्हीं तीन बिन्दुओं, जिनकी स्थितियाँ प्लान में अंकित है, की सहायता से प्लेन टेबुल स्टेशन की प्लान में स्थिति ज्ञात करने की विधि को त्रिबिन्दु समस्या कहते हैं। उदाहरण के लिये, यदि क्षेत्र में A, B, तथा C तीन ऐसे बिंदु हैं जिन्हें प्लेन टेबुल स्टेशन (P) से देखा जा सकता है तथा जिनकी प्लान में भी स्थितियाँ a, b तथा c आदि से इंगित हैं तो यांत्रिक, आलेखी अथवा जाँच और भूल विधियों में से किसी भी एक विधि को चुनकर प्लान में P स्टेशन की स्थिति अंक की जा सकती है। इन विधियों को विस्तारपूर्वक नीचे लिया गया है।

1. यांत्रिक या अनुरेखण-कागज़ विधि (Mechanical or tracing paper method)–त्रिबिन्दु समस्या को हल करने की यह एक अत्यन्त सरल विधि है । यांत्रिक विधि में अनुरेखण-कागज (tracing paper) का प्रयोग होता है अत: तांत्रिक विधि को अनुरेखण-कागज़ विधि नाम से पुकारा जाता है।
कार्य-विधि (Procedure)-मान लीजिये प्लेन टेबल को क्षेत्र के किसी स्टेशन P पर स्थापित किया गया है जहाँ से क्षेत्र में स्थित A, B तथा C किन्हीं तीन बिन्दुओं को स्पष्ट देखा जा सकता है। यदि प्लान में A, B, तथा C बिन्दुओं को क्रमशः a, b तथा c के द्वारा प्रकट किया गया है तो अनुरेखण-कागज़ विधि के अनुसार P स्टेशन को प्लान में निम्न प्रकार अंकित किया जायेगा।
(1) P स्टेशन पर प्लेन टेबुल को समतल करने के पश्चात् आरेख-पट्ट के ऊपर लगे प्लान का ट्रफ कम्पास की सहायता से अथवा आँख से देखकर यथासम्भव सही-सही पूर्वाभिमुखीकरण कीजिये।
(2) आरेख-पट्ट के प्लान पर पिनों की सहायता से एक अनुरेखण कागज़ लगाइये तथा साहुलपिण्ड व कांटे का प्रयोग करके P स्टेशन की अनुरेखण कागज़ पर स्थिति (p') अंकित कीजिये। 
(3) p बिन्दु पर आलपिन के सहारे ऐलीडेड रखकर A, B तथा C बिन्दुओं को बारी-बारी से लक्ष्य करके तीन किरणें खींचिये। पहचान के लिये इन किरणों पर क्षेत्र के सम्बन्धित बिन्दु का नाम लिखिये।
(4) अब अनुरेखण कागज़ की पिनों को हटाकर, अनुरेखण कागज़ को आवश्यकतानुसार आगे-पीछे या इधर-उधर घुमाकर इस प्रकार प्लान पर रखिये कि अनुरेखण कागज़ पर A, B तथा C बिन्दुओं को लक्ष्य करके खींची गई किरणें प्लान में अंकित क्रमशः a, b तथा c बिन्दुओं के ठीक ऊपर से होकर जाएं । 
(5) जब अनुरेखण कागज़ की प्रत्येक किरण प्लान में अंकित सम्बन्धित बिन्दु के ठीक ऊपर स्थित हो तो p' बिन्दु पर पिन चुबोकर प्लान में p बिन्दु अंकित कीजिये। p बिन्दु प्लान में P स्टेशन की स्थिति को प्रकट करेगा।
उपरोक्त विधि के अनुसार प्लान में प्लेन टेबल स्टेशन को अंकित करने के पश्चात् स्थिति-निर्धारण की शुद्धता की जाँच कर लेनी चाहिए। इस कार्य के लिये pa रेखा के सहारे ऐलीडेड रखकर आरेख-पट्ट को घुमाते हुए A स्टेशन की सीध में प्लेन टेबुल का पूर्वाभिमुखीकरण कीजिये। यदि स्थिति-निर्धारण शुद्ध ह तो Bb तथा Cc किरणों में प्रत्येक p बिन्दु से होकर जायेगी।

2. आलेखी विधियाँ (Graphical methods) स्थिति-निर्धारण करने की अनेक आलेखी विधियाँ हैं। यहाँ केवल दो आलेखी विधियों-वेसल विधि तथा लानो विधि, को समझाया गया है।
(a) बेसल विधि (Bessel's method) यदि क्षेत्र में A, B तथा C कोई तीन ऐसे दृश्य बिन्दु हैं, जिन्हें प्लान में क्रमश: a, b तथा c के द्वारा प्रकट किया गया है तो बेसल विधि के अनुसार निम्न प्रकार प्लेन टेबल स्टेशन (P) को प्लान में अंकित किया जायेगा :
(1) प्लेन टेबल को P स्टेशन पर समतल स्थापित कीजिये तथा ca रेखा के सहारे ऐलीडेड से A को लक्ष्य करके आरेख-पट्ट को कस दीजिये। विन्दु से B को लक्ष्य करके किरण खींचिये। (चित्र A)। 
(2) आरेख-पट्ट को ढीला कीजिये तथा इस बार ac रेखा के सहारे ऐलीडेड में C को देखकर आरेख-पट्ट को पुन: कसिये। a बिन्दु से B को लक्ष्य करके दूसरी किरण खींचिये जो पहली किरण को d बिन्दु पर काटती है (चित्र B)।
(3) b तथा d को मिलाइये तथा आरेख-पट्ट को ढीला कीजिये। अब चित्र 18.14 C के अनुसार bd रेखा के सहारे ऐलीडेड में B को लक्ष्य करके आरेख-पट्ट को कसिये तथा a बिन्दु पर आलपिन के सहारे ऐलीडेड को रखकर A को लक्ष्य करते हुए अपनी ओर को वापिस किरण खींचिये जो आगे बढ़ाई गई db रेखा को p बिन्दु पर काटती है p बिन्दु प्लान में P स्टेशन की स्थिति प्रकट करेगा।
स्थिति-निर्धारण की शुद्धता को जांचने के लिये pc रेखा के सहारे ऐलीडेड रखिये। ऐलीडेड में देखने पर यदि दृष्टि रेखा C से होकर जाती है तो स्थिति-निर्धारण शुद्ध समझा जायेगा।

(b) लानो विधि (Llano's method)—मान लीजिये क्षेत्र में दृश्य A, B तथा C किन्हीं तीन बिन्दुओं को प्लान में क्रमश: a, b तथा c से प्रकट किया गया है तो लानो विधि के अनुसार निम्न प्रक्रिया करके प्लेनटेबुल स्टेशन (P) को प्लान में अंकित किया जा सकता है :
(1) प्लेन टेबल को P स्टेशन पर समतल स्थापित कीजिये। प्लान में a तथा b बिन्दुओं को मिलाइये एवं ab सरल रेखा का Bd लम्बअर्द्धक खींचिये। इस लम्बअर्द्धक के सहारे ऐलीडेड का कार्यकारी किनारा रखकर आरेख-पट्ट को घुमाते हुए B को लक्ष्य कीजिये तथा उसके पश्चात् आरेख-पट्ट को कस दीजिये। अब a बिन्दु पर ऐलीडेड रखकर A को लक्ष्य कीजिये तथा अपनी ओर को A किरण खींचिये जो आगे बढ़ाये जाने पर Bd लम्बअर्द्धक को d बिन्दु पर काटती है  (चित्र A)।
(2) आरेख-पट्ट को ढीला कीजिये तथा इस बार bc रेखा के Be लम्बअर्द्धक के सहारे ऐलीडेड रखकर पुन: B को लक्ष्य कीजिये और उसके बाद आरेख-पट्ट को कस दीजिये। अब c बिन्दु पर ऐलीडेड रखकर C को लक्ष्य कीजिये तथा अपनी ओर को Cc किरण खींचिये जो आगे बढ़ाये जाने पर Be लम्बअर्द्धक को बिन्दु पर काटती है (चित्र B) |
(3) अब d तथा e को केन्द्र मानकर क्रमशः da तथा ec अर्द्धव्यासों से दो चाप खींचिये जो एक-दूसरे को p बिन्दु पर काटते हैं। प्लेन में p बिन्दु प्लेन टेबल स्टेशन (P) को प्रकट करेगा।
स्थिति-निर्धारण की शुद्धता की जाँच हेतु pb रेखा के सहारे ऐलीडेड रखकर आरेख-पट्ट को इतना घुमाइये कि B स्टेशन लक्ष्य होने लगे। आरेख-पट्ट को कसिये । यदि pa तथा pc रेखाओं के सहारे ऐलीडेड में देखने पर दृष्टि रेखा क्रमशः A तथा C से होकर जाये तो इसका यह अर्थ होगा कि प्लान में p बिन्दु की स्थिति शुद्ध हैं।

3. जाँच और भूल विधि (Trial and error method) स्थिति-निर्धारण करने की यह एक सरल एवं शीघ्र सम्पन्न होने वाली शुद्ध विधि है,जिसे त्रुटि-त्रिभुज विधि (triangle of error method) भी कहते हैं। इस विधि में आवश्यक जाँच एवं भूल सुधार के द्वारा प्लेन टेबल स्टेशन की प्लान में सही स्थिति ज्ञात होने तक प्रत्येक बार एक नवीन सम्भावित स्थिति चुनकर उसकी शुद्धता को परखा जाता है।
कार्य-विधि (Procedure)- यदि प्लेन टेबल स्टेशन (मान लीजिये P) से क्षेत्र में दृश्य A, B तथा C किन्हीं तीन स्थानों का प्लान में क्रमशः a, b तथा c के द्वारा प्रदर्शित किया गया है तो जाँच और भूल विधि के अनुसार निम्न प्रक्रिया करके प्लान में P स्टेशन की शुद्ध स्थिति अंकित की जायेगी :
(1) P स्टेशन पर प्लेन टेबुल रखकर उसका समतलन एवं टूफ कम्पास अथवा अनुमान से यथासम्भव सही-सही पूर्वाभिमुखीकरण कीजिये।
(2) पूर्वाभिमुखीकरण के पश्चात् आरेख-पट्ट को कसिये तथा a bac बिन्दुओं से क्रमश: A, B व C को लक्ष्य करके अपनी ओर को वापिस किरणें खींचिए ।
(3) यदि संयोगवश आरेख-पट्ट का पूर्वाभिमुखीकरण बिल्कुल शुद्ध हो गया है तो ये तीनों किरणे प्लान में एक ही बिन्दु पर एक-दूसरे को काटेंगी तथा वह बिन्दु P स्टेशन की स्थिति को प्रकट करेगा। चूँकि ट्रफ कम्पास या अनुमान से पूर्वाभिमुखीकरण करने में प्रायः कुछ दोष रह जाता है अतः एक बिन्दु पर मिलने के बजाय इन किरणों में या तो दो किरणें एक दूसरे के समान्तर होती हैं तथा तीसरी किरण उन्हें काटती है अथवा तीनों किरणों के प्रतिच्छेदन से एक छोटा त्रिभुज बन जाता है, जिसे त्रुटि-त्रिभुज (triangle of error) कहते हैं ।
(4) त्रुटि-त्रिभुज बन जाने पर अपेक्षाकृत अधिक सामान्य से प्लेन टेबल स्टेशन को प्लान में अंकित किया जा सकता है। एक विधि के अनुसार a, b तथा d (A व B किरणों का प्रतिच्छेदन विन्दु); b, c तथा e (B व C किरणों का प्रतिच्छेदन बिन्दु); तथा a, c व f (A तथा C किरणों का प्रतिच्छेदन बिन्दु) से होकर जाने वाले तीन वृत्तों के चाप खींचिए । इन वृत्त चापों का प्रतिच्छेदन बिन्दु p प्लान में P स्टेशन की स्थिति को इंगित करें  । स्मरण रहे कि जाँच और भूल विधि में उपरोक्त प्रक्रिया के बजाय लेहमान नियमों (Lehmann's rules) के अनुसार त्रुटि-त्रिभुज के भीतर अथवा बाहर प्लेन टेबल स्टेशन की नवीन सम्भावित स्थिति अंकित करके क्षेत्र के सबसे दूरस्थ ज्ञात स्थान पर पश्चदृष्टिपात करते हुए आरेख-पट्ट का पुनः पूर्वाभिमुखीकरण किया जाता है। इसके पश्चात् पहले को भॉति a, b व c बिन्दुओं पर ऐलीडेड से क्रमश: A,B तथा C को लक्ष्य करके अपनी ओर को वापिस किरणें खींची जायेंगी। यदि इस बार भी तीनों किरणें कोई त्रुटि-त्रिभुज बनाती हैं अर्थात् वे एक बिन्दु पर नहीं मिलती हैं तो उनके एक बिन्दु पर मिलने तक उपरोक्त प्रक्रिया की पुनरावृत्ति की जाती रहेगी।
लेहमान नियम (Lehmann's rules) जैसा कि ऊपर संकेत किया गया है, त्रुटि-त्रिभुज के भीतर अथवा बाहर की ओर प्लेन टेबल स्टेशन की नवीन सम्भावित स्थिति को अनुमानित करते समय लेहमान द्वारा प्रतिपादित नियमों को ध्यान में रखते हैं। इन नियमों को लिखने से पूर्व यह बता देना आवश्यक है कि तीन ज्ञात बिन्दुओं को क्षेत्र में मिलाने से निर्मित कल्पित त्रिभुज को बृहत् त्रिभुज (great triangle) कहते हैं तथा क्षेत्र मे इन बिन्दुओं से होकर जाने वाले कल्पित वृत्त को बृहत् वृत्त (great circle) की संज्ञा देते हैं। इसी प्रकार प्लान में प्लेन टेबल स्टेशन की सही स्थिति प्रकट करने वाला बिन्दु प्वांइट सोंठ (point sought) अथवा यंत्र-स्टेशन बिन्दु कहलाता है। 
प्रथम नियम-प्रत्येक स्थिति-निर्धारण किरण या रेखा (resection line) की यन्त्र स्टेशन बिन्दु (point sought) से दूरी उस रेखा की लम्बाई के समानुपातिक (proportional) होती है। यहाँ रेखा की लम्बाई का अर्थ प्लेन टेबल स्टेशन से क्षेत्र के ज्ञात बिन्दु की वास्तविक दूरी अथवा प्लान में अंकित तदनुरूप दूरी से है। उदाहरणार्थ मान लीजिये, किसी क्षेत्र में प्लेन टेबल स्टेशन (P) से दृश्य A, B व C बिन्दुओं को उस क्षेत्र के प्लान में क्रमशः a, b व c के द्वारा प्रकट किया गया है तथा Aa, Bb व Cc स्थिति-निर्धारण रेखाओं पर यन्त्र-स्टेशन बिन्दु p से क्रमशः pd, pe व epf लम्ब गिराये गये हैं तो इस नियम के अनुसार,

Pd/pa=pe/pb=pf/pc
                                          अथवा
Pd/PA=pe/PB=pf/PC

द्वितीय नियम-प्लान में यन्त्र-स्टेशन विन्दु तीनों स्थिति-निर्धारण रेखाओं के सदैव एक ही ओर (दायीं अथवा बायीं ओर) स्थित होता है। दूसरे शब्दों में, क्षेत्र के विवरणों की ओर मुँह करके खड़े होने पर यन्त्र-स्टेशन बिन्दु या तो प्रत्येक स्थिति-निर्धारण रेखा के दायीं ओर स्थित होगा अथवा प्रत्येक स्थिति-निर्धारण रेखा के बायीं तरफ स्थित होगा। जैसा कि चित्र  से प्रकट है, स्थिति-निर्धारण रेखाएँ एक-दूसरे को काटकर त्रुटि-त्रिभुज के चारों ओर 6 सेक्टर बनाती हैं। अतः इस नियम के अनुसार यन्त्र-स्टेशन बिन्दु की स्थिति सेक्टर 1 अथवा 4 में होगी क्योंकि इन दो सेक्टरों को छोड़कर कोई भी अन्य सेक्टर ऐसा नहीं है जो प्रत्येक किरण के दायीं ओर अथवा प्रत्येक किरण के बायीं ओर स्थित हो ।
अब यह निश्चित करने के लिये कि यंत्र स्टेशन बिन्दु किरणों के दायीं ओर स्थित है अथवा बायीं ओर है, आरेख-पट्ट को एक ओर, मान लीजिये दायीं ओर, को थोड़ा घुमाइये तथा a, bac से क्रमश: A, B C को लक्ष्य करके तीन नवीन Aa, Bb व Cc स्थिति-निर्धारण रेखाएँ खींचिये। यदि इस बार त्रुटि-त्रिभुज पहले की अपेक्षा कुछ बड़ा बनता है तो इसका यह अर्थ होगा कि यन्त्र-स्टेशन बिन्दु किरणों के बायीं ओर अर्थात् सेक्टर 1 में स्थित है।
     प्लेनटेबुल स्टेशन की पुलिस में सम्भावित स्थिति निश्चित करते समय लेहमान नियमों के साथ-साथ निम्नलिखित सहायक नियमों (auxiliary rules) को ध्यान में रखना हितकर रहता है:
(1) यदि प्लेन टेबल स्टेशन (P) क्षेत्र में बृहत् त्रिभुज (ABC) के बाहर स्थित है तो प्लान में त्रुटि-त्रिभुज भी त्रिभुज abc के बाहर बनेगा तथा यन्त्र-स्टेशन बिन्दु (p) की स्थिति त्रुटि-त्रिभुज के बाहर होगी। इसके विपरीत यदि प्लेनटेबुल स्टेशन (P) बृहत् त्रिभुज (ABC) के भीतर स्थित है तो त्रुटि-त्रिभुज की स्थिति त्रिभुज abc के भीतर होगी तथा यन्त्र-स्टेशन बिन्दु (p) भी त्रुटि-त्रिभुज के भीतर स्थित होगा। (चित्र A)
(2) यदि प्लेनटेबुल स्टेशन (P) क्षेत्र में बृहत व्रत (ABCD) के  बाहर स्थित है तो सबसे दूरस्थ बिन्दु को खींची गई किरण (यहाँ a किरण) के जिस ओर शेष दो किरणों का प्रतिच्छेदन बिन्दु (d) स्थित है उसी ओर यन्त्र-स्टेशन बिन्दु (p) की स्थिति होगी । (चित्र B)।
(3) यदि प्लेन टेबल स्टेशन बृहत् त्रिभुज के बाहर किन्तु बृहत् वृत्त के भीतर उसके किसी खण्ड (segment) में स्थित है तो मध्यवर्ती बिन्दु को लक्ष्य करके खींची गयी किरण (यहाँ b किरण) के जिस ओर शेष दो किरणों का प्रतिच्छेदन बिन्दु (d) होगा उसके विपरीत ओर यंत्र-स्टेशन बिन्दु (p) स्थित होगा (चित्र C)।
(4) यदि प्लेन टेबल स्टेशन बृहत् वृत्त की परिधि पर स्थित है तो प्लान में उसकी स्थिति अनिर्धारित (indeterminate) होगी क्योंकि इस दशा में आरेख-पट्ट का सही-सही पूर्वाभिमुखीकरण न किये जाने पर भी तीनों स्थिति-निर्धारण किरणे प्लान में एक बिन्दु पर मिलेंगी (चित्र D)|

[IV] द्विबिन्दु समस्या 
(Two-point problem) 
प्लेन टेबल स्टेशन से दृश्य तथा प्लान में अंकित क्षेत्र के किन्हीं दो सुनिश्चित स्थानों की सहायता से प्लान में प्लेन टेबल स्टेशन की स्थिति ज्ञात करने की विधि द्विबिन्दु समस्या कहलाती है। द्विबिन्दु समस्या को हल करने की प्रक्रिया अपेक्षाकृत लम्बी होती है अतः इस विधि का प्रयोग प्राय: उस दशा में किया जाता है जब किसी अन्य विधि के द्वारा स्थिति-निर्धारण करना सम्भव नहीं होता।
कार्य-विधि (Procedure)-मान लीजिये प्लेन टेबल को किसी स्टेशन P पर स्थापित किया गया है, जिसकी प्लान में स्थिति ज्ञात करनी है (चित्र 18.21)। यदि P स्टेशन से क्षेत्र में दृश्य A व B बिन्दुओं को प्लान में क्रमश: a व b के द्वारा प्रकट किया गया है तो निम्नलिखित प्रक्रिया करके द्विबिन्दु समस्या को हल किया जा सकता है:
(1) क्षेत्र में कोई ऐसा उपयुक्त सहायक स्टेशन C चुनिये जहाँ से A व B को ऐलीडेड के द्वारा भली प्रकार प्रतिच्छेदित किया जा सके। 
(2) प्लेन टेबल को C स्टेशन पर समतल स्थापित कीजिये तथा ट्रफ कम्पास से अथवा अनुमान से ab पर AB के समान्तर रखकर आरेख-पट्ट का यथासम्भव सही-सही पूर्वाभिमुखीकरण कीजिये।
(3) a बिन्दु पर ऐलीडेड रखकर A को लक्ष्य करते हुए अपनी ओर को वापिस Aa किरण खींचिये। इसी प्रकार b बिन्दु से B को लक्ष्य करके Bb किरण खींचिये जो आगे बढ़ायी गई Aa किरण को ' पर काटती है। चूँकि ट्रफ कम्पास या अनुमान के द्वारा आरेख-पट का पूर्ण रूप से शुद्ध पूर्वाभिमुखीकरण नहीं किया जा सकता अत: c विन्दु प्लान में C स्टेशन की केवल लगभग शुद्ध स्थिति को प्रकट करेगा।
(4) c बिन्दु पर आलपिन के सहारे ऐलीडेड रखकर P स्टेशन को लक्ष्य करके किरण खींचिये तथा इस किरण में P स्टेशन की अनुमानित स्थिति को p' के द्वारा प्रकट कीजिये । P स्टेशन की अनुमानित स्थिति अंकित करने के लिये धरातल पर B व P के बीच की दूरी को मापा जा सकता है। 
(5) प्लेन टेबल को P स्टेशन पर स्थानान्तरित कीजिये तथा p' को P स्टेशन के ठीक ऊपर रखते हुए आरेख-पट को समतल कीजिये। इसके पश्चात् pc' रेखा के सहारे ऐलीडेड रखकर आरेख-पट्ट को घुमाते हुए C स्टेशन पर पश्चदृष्टिपात कीजिये तथा पूर्वाभिमुखीकरण हो जाने पर आरेख-पट्ट को कस कीजिये । 
(6) a बिन्दु पर ऐलीडेड रखकर A स्टेशन को लक्ष्य करके अपनी ओर को Aa किरण खींचिये जो आगे बढ़ाये जाने पर p'c' रेखा को p' बिन्दु पर काटती है।
(7) p' बिन्दु पर आलपिन के सहारे ऐलीडेड रखकर B की ओर को peB किरण खींचिये। यदि C स्टेशन पर किया गया पूर्वाभिमुखीकरण बिल्कुल शुद्ध होता तो यहाँ यह किरण b बिन्दु से होकर जाती। चूँकि C स्टेशन पर अनुमान से पूर्वाभिमुखीकरण किया गया था अतः p'B किरण b स्टेशन से होकर जाने के बजाय आगे बढ़ायी गई cb रेखा को किसी बिन्दु b' पर काटेगी जो प्लान में B स्टेशन की नवीन स्थिति को प्रकट करेगा। चूँकि AB दूरी को प्लान में वस्तुतः ab रेखा प्रकट करती है इसलिये C स्टेशन पर पूर्वाभिमुखीकरण में की गई त्रुटि का मान कोण bab के समान होगा।
(8)इस त्रुटि को दूर करने के लिये ab' रेखा की सीध में काफी  दूर स्थित किसी बिन्दु Z पर एक सर्वेक्षण दण्ड गाड़िये । 
(9) ab रेखा के सहारे ऐलीडेड रखकर आरेख-पट्ट को इतना घुमाइये कि दृष्टि रेखा Z पर गाड़े गये सर्वेक्षण दण्ड को प्रतिच्छेदित करने लगे। इसके पश्चात् आरेख-पट्ट को पुनः कस दीजिये।   
(10) अब a बिन्दु पर ऐलीडेड रखकर A को लक्ष्य करते हुए तथा b बिन्दु पर ऐलीडेड रखकर B को लक्ष्य करते हुए अपनी ओर को दो वापिस किरणें खींचिए इन किरणों का प्रतिच्छेदन बिन्दु (जो चित्र में प्रकट नहीं है) प्लान में P स्टेशन की स्थिति को प्रदर्शित करेगा।
प्लेनटेबुलन के गुण एवं दोष 
(Merits and Demerits of Plane Tabling)

[I] गुण
(Merits)
 (1) प्लेनटेबुलन का सबसे बड़ा गुण यह है कि इसके द्वारा क्षेत्र में ही प्लान तैयार हो जाता है। इससे कई लाभ होते हैं - प्रथम, सर्वेक्षण कार्य अपेक्षाकृत शीघ्र पूर्ण हो जाता है। द्वितीय, क्षेत्र-पुस्तिका बनाने की आवश्यकता नहीं होती अत: क्षेत्र-पुस्तिका भरने में की जाने वाली भूलों से बच जाते हैं। तृतीय, मानचित्र में अंकित होने वाले विवरणों की क्षेत्र के विवरणों से तुलना करके सर्वेक्षण के द्वारा की गई त्रुटियों का साथ-साथ पता चल जाता है अत: उन्हें दूर किया जा सकता है। चतुर्थ, किसी विवरण के भूलवश छूटने की संभावना नहीं रहती । पंचम, पिछले स्टेशनों पर अंकित विवरणों की शुद्धता को आगामी स्टेशनों से पड़ताल रेखाएँ डालकर जाँचा जा सकता है। षष्ठम् समोच्च रेखाओं एवं टेढ़ी-मेढ़ी आकृति वाले विवरणों को क्षेत्र में देखकर अपेक्षाकृत अधिक शुद्धता पूर्वक प्लान में बनाया जा सकता है। नवम , दिए हुए प्लान में नवीन विवरण सफलतापूर्वक अंकित किये जा सकते हैं।
(2) चुम्बकीय क्षेत्रों में, जहाँ कम्पास सर्वेक्षण विश्वसनीय नहीं होता, प्लेनटेबुलन विशेष रूप से उपयोगी है। 
(3) लघुमान मानचित्रों (small-scale maps) की रचना करने के लिये प्लेनटेबुलन बहुत उपयुक्त रहता है। 
(4) प्लेनटेबुलन के उपकरण बहुत सरल होते हैं अत: उन्हें प्रयोग करने के लिये बहुत अधिक योग्यता की आवश्यकता नहीं होती।

[।।] दोष
(Demerits)
(1) आर्द्र प्रदेशों में, जहाँ वर्षा एवं मेघावरण आदि के कारण दृश्यता (visibility) कम हो जाती है, प्लेनटेबुलन करना कठिन होता है। 
(2) प्लेनटेबुलन में अपेक्षाकृत अधिक सर्वेक्षण उपकरणों की आवश्यकता होती है तथा सभी उपकरणों को क्षेत्र में ले जाना पड़ता है। 
(3) आरेख-पट्ट तथा त्रिपाद-स्टैण्ड आदि भारी उपकरणों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने-ले जाने में कठिनाई होती है। 
(4) क्षेत्र-पुस्तिका के अभाव में एक बार अंकित प्लान को पुनः किसी दूसरी मापनी पर अंकित करना अपेक्षाकृत कठिन होता है।

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