चिन्तनफलक स्थानान्तरण (Paradigm Shift) कुहन के विचार से सामान्य विज्ञान के विकास में असंगतियों के अवसादन तथा संचयन (Accumulation) में संकट की स्थिति उत्पन्न होती है, जो अन्ततः क्रान्ति के रूप में प्रकट होती है। यह क्रान्ति नए चिन्तनफलक को जन्म देती है। जब नवीन चिन्तनफलक अस्तित्व में आता है वह पुराने चिन्तनफलक को हटाकर उसका स्थान ले लेता है। चिन्तनफलक के परिवर्तन की इस प्रक्रिया को 'चिन्तनफलक प्रघात' (Paradigm Shock) या 'चिन्तनफलक स्थानान्तरण (Paradigm Shift) के नाम से जाना जाता है। ध्यातव्य है कि इस प्रक्रिया में पुराने चिन्तनफलक को पूर्णरूप से अस्वीकार या परिव्यक्त नहीं किया जा सकता, जिसके कारण कोई चिन्तनफलक पूर्णरूप से विनष्ट नहीं होता है। इस गत्यात्मक संकल्पना के अनुसार चिन्तनफलक जीवन्त होता है चाहे इसकी प्रकृति विकासात्मक रूप से अथवा चक्रीय रूप से हो। जब प्रचलित चिन्तनफलक विचार परिवर्तन या नवीन सिद्धान्तों की आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं कर सकता है, तब सर्वसम्मति से नए चिन्तनफलक का प्रादुर्भाव होता है। अध्ययन क्षेत्र के उपागम में होने वाले इस परिवर्तन को चिन्तनफलक स्थानान्त
परिच्छेदिकाएँ
(Profiles)
[I] परिच्छेदिका तथा अनुभाग का भेद
(Difference between a profile and a section)
प्रायः 'परिच्छेदिका' तथा 'अनुभाग' शब्दों का समान अर्थों में प्रयोग किया जाता है परन्तु इनमें थोड़ा अन्तर होता है। अनुभव का शाब्दिक अर्थ काट (cutting) या काट द्वारा उत्पन्न नग्न सतह होता है। इसके विपरीत काट द्वारा उत्पन्न सतह की धरातल पर रूपरेखा (outline) परिच्छेदिका कहलाती है। दूसरे शब्दों में, यदि किसी भू-आकृति को एक रेखा के सहारे ऊर्ध्वाधर दिशा में नीचे तक काट दिया जाये तो जो नयी सतह नज़र आयेगी उसे अनुभाग कहा जायेगा तथा इस सतह का धरातल को प्रकट करने वाला ऊपरी किनारा परिच्छेदिका होगा। इस प्रकार अनुभाग की सहायता से धरातल के नीचे स्थित चट्टानों की भूवैज्ञानिक संरचना (geological structure) प्रदर्शित की जाती है जबकि परिच्छेदिका के द्वारा धरातल पर उच्चावच तथा ढाल की दशाओं का निरूपण होता है । मृदा परिच्छेदिका (soil profile) इसका एक अपवाद है।
[II] परिच्छेदिका खींचने की विधि
(Method of drawing a profile)
समोच्च रेखी मानचित्र के किसी भाग की परिच्छेदिका खींचने की दो विधियाँ हैं। प्रथम विधि में किसी सीधे किनारे वाली कागज की पट्टी या ग्राफ पेपर को प्रयोग करके मानचित्र से अलग किसी कागज़ पर परिच्छेदिका बनाई जाती है जबकि द्वितीय विधि का प्रयोग स्वयं मानचित्र पर परिच्छेदिका बनाने के लिये किया जाता है।
प्रथम विधि-मान लीजिये किसी समोच्च रेखी मानचित्र पर A तथा B कोई दो बिन्दु हैं जिनके मध्य की परिच्छेदिका बनानी है (चित्र A) | A तथा B बिन्दुओं को सरल रेखा द्वारा मिलाइये तथा किसी सीधे किनारे वाली कागज की पट्टी अथवा ग्राफ पेपर को AB रेखा के सहारे रखिये। अब कागज़ की पट्टी पर पेन्सिल से सावधानीपूर्वक A तथा B बिन्दुओं सहित उन सभी बिन्दुओं की स्थितियाँ अंकित कीजिये जहाँ A तथा B बिन्दुओं के बीच की समोच्च रेखाएं पट्टी को स्पर्श करती हों। प्रत्येक चिह्न पर सम्बन्धित समोच्च रेखा की ऊँचाई लिखिये (चित्र B)| अब किसी अन्य कागज़ पर AB के बराबर कोई सरल रेखा AB' खींचिये और इस रेखा पर पट्टी में अंकित बिन्दुओं को सावधानीपूर्वक स्थानान्तरित कीजिये तथा प्रत्येक बिन्दु पर किसी मानी गई ऊर्ध्वाधर मापनी के अनसार उस पर लिखी ऊँचाई के बराबर लम्ब उठाइये। इन लम्ब रेखाओं के शीर्ष बिन्दुओं को मिलाते हुए निष्कोण वक्र (smooth curve) खीचिये । यह वक्र मानचित्र पर A तथा B बिन्दुओं के मध्य की परिच्छेदिका प्रकट करेगा (चित्र )।
चँकि किसी परिच्छेदिका की आधार रेखा की लम्बाई सदैव काट रेखा की लम्बाई के बराबर होती है अतः काट रेखा के क्षैतिज न होने की दशा में यह विधि विशेष रूप से उपयोगी है। उदाहरणार्थ, चित्र में प्रदशित समोच्च रेखी मानचित्र पर खींची गयी CD काट रेखा क्षेतिज नहीं है अत: चित्र में दायीं ओर की परिच्छेदिका को CD काट रेखा के सहारे इसी विधि के अनुसार बनाया गया है। इसके अतिरिक्त समोच्च रेखी मानचित्र में प्रदर्शित किसी मार्ग आदि के सहारे धरातल की परिच्छेदिका बनाने हेतु काट रेखा का टेढ़ा-मेढ़ा हो जाना स्वाभाविक है। ऐसी दशा में भी इसी विधि का प्रयोग होता है। उदाहरणार्थ, चित्र A के प्लान में EFGH एक टेढ़ी-मेढी काट रेखा दिखलायी गयी है जिसके सहारे धरातल की efgh परिच्छेदिका को ऊपर बतलायी गयी विधि के अनुसार ही बनाया गया है।
द्वितीय विधि-इस विधि का प्रयोग समोच्च रेखी मानचित्र पर परिच्छेदिका बनाने के लिये किया जाता है। मान लीजिये समोच्च रेखी मानचित्र पर स्थित किन्हीं दो बिन्दु A तथा B के मध्य परिच्छेदिका खींचनी है। A तथा B बिन्दुओं को मिलाते हुए एक सरल रेखा खींचिये जो इन बिन्दुओं के मध्य स्थित समोच्च रेखाओं को C, D, E, F G तथा H बिन्दुओं पर काटती है । A तथा B बिन्दुओं से मानचित्र के नीचे की ओर समान लम्बाई वाले क्रमशः X तथा BY लम्ब गिराइये। तथा Y को मिलाइये। XY सरल रेखा परिच्छेदिका की आधार रेखा होगी तथा यह रेखा समुद्र तल को प्रकट करेगी। अब X तथा Y का मान शून्य मानते हुए XA तथा YB लम्ब रेखाओं पर किसी मापनी के अनुसार ऊँचाइयों के चिह्न लगाइये। इन चिह्नों के मानों का अन्तर समोच्च रेखा अंतराल के मान के बराबर होना चाहिए। प्रत्येक चिह्न से XY के समान्तर रेखाएँ खींचिये। ये समान्तर रेखाएँ समुद्र तल से भिन्न-भिन्न ऊँचाइयों को प्रकट करेंगी। अब चित्र के अनुसार A, C, D, E, F G, H तथा B बिन्दुओं से सम्बन्धित ऊँचाई प्रदर्शित करने वाली समान्तर रेखा तक क्रमश: AA', CC', DD', EE', FF', GG', HH' तथा BB' लम्ब खींचिये। A, C, D, E, F, G', H' तथा B' बिन्दुओं से होकर जाने वाला निष्कोण वक्र अभीष्ट परिच्छेदिका होगी।
(Horizontal and vertical scales of a profile)
जैसा कि हम ऊपर पढ़ चुके हैं, किसी परिच्छेदिका में क्षैतिज दूरी एवं ऊँचाई को भिन्न-भिन्न कंपनियों के अनुसार दिखलाया जाता है। अतः परिच्छेदिका के द्वारा धरातल पर ढाल की वास्तविक मात्रा का निरूपण नहीं होता। ढाल की वास्तविक मात्रा प्रदर्शित करने के लिये क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर मापनियों का एक समान होना परम आवश्यक है परन्तु ऐसा करने से ऊँचे-नीचे भागों के स्पष्ट प्रत्यक्षीकरण में कठिनाई होती है। उदाहरण के लिये, यदि 1:100,000 निरूपक भिन्न पर बने किसी मानचित्र की परिच्छेदिका में इसी मापनी पर ऊँचाई प्रदर्शित की जाये तो 200 मीटर ऊंचे पहाड़ी शिखर को दिखलाने के लिये परिच्छेदिका को आधार रेखा से केवल 1/5 सेमी ऊँचा करना पर्याप्त होगा और इस प्रकार उस पहाड़ी शिखर को परिच्छेदिका में स्पष्ट रूप से पहचानना भी एक दुष्कर कार्य होगा। इस कठिनाई को दूर करने के लिये परिच्छेदिका में ऊँचाइयों को प्रदर्शित करने के लिये क्षैतिज मापनी की तुलना में बड़ी मापनी का प्रयोग करते हैं तथा ऊर्ध्वाधर मापनी में की गई बढ़ोत्तरी या विकृति (exaggeration) को परिच्छेदिका के नीचे लिख देते हैं।
ऊर्ध्वाधर मापनी में विकृति (exaggeration in vertical scale) को निम्नलिखित सूत्र के अनुसार ज्ञात करते हैं :
ऊर्ध्वाधर मापनी में विकृति = ऊर्ध्वाधर मापनी/क्षैतिज मापनी
उदाहरणार्थ, यदि किसी परिच्छेदिका की क्षैतिज मापनी 1:150,000 तथा ऊर्ध्वाधर मापनी 1:25,000 है, तो ऊर्ध्वाधर मापनी में विकृति
=1/25,000÷1/150,000=1/2500×150,000/1
=6 गुनी
[IV] परिच्छेदिकाओं के प्रकार
(Kinds of profiles)
किसी स्थल रूप में स्थान-स्थान पर होने वाले ढाल के परिवर्तनों को केवल एक परिच्छेदिका के द्वारा स्पष्ट नहीं किया जा सकता। अत: ढाल परिवर्तन के समुचित निरूपण के लिये उस स्थल रूप के समोच्च रेखी मानचित्र पर समान दूरी के अन्तर पर कुछ सरल एवं परस्पर समान्तर रेखाएं खींचकर, प्रत्येक रेखा के अनुसार अलग-अलग परिच्छेदिका बनाना आवश्यक होता है। अलग-अलग रेखाओं के सहारे खींची गई परिच्छेदिकाओं को चार रूपों के प्रकारों में प्रस्तुत किया जा सकता है (i) संक्रमण परिच्छेदिका (serial profiles), (ii) अध्यारोपित परिच्छेदिका (superimposed profiles), (iii) प्रक्षिप्त परिच्छेदिका (projected profiles) तथा (iv) मिश्र परिच्छेदिका (composite profiles)। परिच्छेदिकाओं की उपरोक्त प्रकारों के अन्तर को नीचे समझाया गया है।
1. संक्रमण परिच्छेदिकाएँ
(Serial profiles)-
यदि किसी समोच्च रेखी मानचित्र पर विभिन्न सरल रेखाओं के सहारे खींची गई परिच्छेदिकाओं को अलग-अलग चौखटों में क्रमवार ढंग से व्यवस्थित कर दिया जाये तो परिच्छेदिकाओं की इस शृंखला को संक्रमण परिच्छेदिका कहा जायेगा संक्रमण परिच्छेदिकाएँ बनाने के लिये समोच्च रेखी मानचित्र पर आवश्यक संख्या में कुछ समानांतर रेखाएँ खींच लेते हैं (चित्र देखिये)। इसके पश्चात् इन अलग-अलग सरल रेखाओं के अनुसार बनाई गई परिच्छेदिकाओं को एक शृंखला के रूप में क्रमानुसार ढंग से व्यवस्थित कर देते हैं। पहचान के लिये प्रत्येक परिच्छेदिका पर सम्बन्धित सरल रेखा का नाम जैसे AB, CD अथवा EF आदि लिख देना चाहिए।
(Superimposed profiles)-
यदि समोच्च रेखी मानचित्र पर विभिन्न सरल रेखाओं के अनुसार प्राप्त परिच्छेदिकाओं को अलग-अलग बनाने के बजाय किसी चौखटे में एक ही आधार रेखा पर खींच दिया जाये तो ये परिच्छेदिकाएँ अध्यारोपित कही जायेंगी। चित्र में संक्रमण परिच्छेदिकाओं को अध्यारोपित परिच्छेदिकाओं के रूप में दिखलाया गया है तथा पहचान के लिये प्रत्येक परिच्छेदिका पर उसका क्रमांक लिख दिया गया है।
3. प्रक्षिप्त परिच्छेदिकाएँ
(Projected profiles)-
प्रक्षिप्त परिच्छेदिकाएँ बनाने के लिये पहले अध्यारोपित परिच्छेदिकाएँ खींची जाती हैं और उसके पश्चात् अध्यारोपित परिच्छेदिकाओं में प्रत्येक परिच्छेदिका के दिखलाई न देने वाले निचले भाग मिटा दिये जाते हैं। दूसरे शब्दों में, प्रक्षिप्त परिच्छेदिकाओं में किसी परिच्छेदिका के वे भाग, जो नीचे होने के कारण पहले खींची गई परिच्छेदिकाओं के पीछे छुप जाते हैं, नहीं बनाये जाते । उदाहरणार्थ, चित्र B में क्रमांक 1 की परिच्छेदिका को पूरा दिखलाया गया है तथा क्रमांक 2 की परिच्छेदिका के उन भागों को छोड़ दिया गया है जो क्रमांक 1 की परिच्छेदिका से नीचे हैं। इसी प्रकार तीसरे व चौथे क्रमांक वाली परिच्छेदिकाओं के क्रमश: पहली व दूसरी तथा पहली, दूसरी व तीसरी परिच्छेदिकाओं से नीचे भागों को छोड़ दिया गया है।
(Composite profiles)-
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें