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मौसमी संकट और आपदाएँ ( Meteorological Hazards and Disasters)

मौसमी संकट और आपदाएँ (मौसम संबंधी खतरे और आपदाएँ) प्रकृत्तिजन्य अप्रत्याशित ऐसी सभी घटनाएँ जो प्राकृतिक प्रक्रमों को इतना तीव्र कर देती हैं कि विनाश की स्थिति उत्पन्न होती है, चरम प्राकृतिक घटनाएँ या आपदा कहलाती है। इन चरम घटनाओं या प्रकोपों से मानव समाज, जन्तु एवं पादप समुदाय को अपार क्षति होती है। चरम घटनाओं में ज्वालामुखी विस्फोट, दीर्घकालिक सूखा, भीषण बाढ़, वायुमण्डलीय चरम घटनाएँ; जैसे- चक्रवात, तड़ित झंझा, टॉरनेडो, टाइफून, वृष्टि प्रस्फोट, ताप व शीत लहर, हिम झील प्रस्फोटन आदि शामिल होते हैं। प्राकृतिक और मानव जनित कारणों से घटित होने वाली सम्पूर्ण  वायुमण्डलीय एवं पार्थिव चरम घटनाओं को प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। इन आपदाओं से उत्पन्न विनाश की स्थिति में धन-जन की अपार हानि होती है। प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं का वर्णन निम्न प्रकार है:- चक्रवात (Cyclone) 30° उत्तर से 30° दक्षिण अक्षांशों के बीच उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्णकटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं। ये आयनवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाला एक निम्न वायुदाब अभिसरणीय परिसंचरण तन्त्र होता है। इस चक्रवात का औसत व्यास लगभग 640 किमी...

मानचित्रों की परिभाषा, मूल संकल्पना, उद्देश्य एवं वर्गीकरण

मानचित्र का अर्थ तथा परिभाषा 
(Meaning and Definition of a Map)

मानचित्र को अंग्रेजी भाषा में 'मैप' (map) कहते हैं। 'मैप' शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'मैप्पा' (Mappa) शब्द से हुई है। चिरसम्मत (classical) लैटिन में 'मैप्पा' का अर्थ कपड़े का मेजपोश' या 'रुमाल' होता है। अत: मध्यकालीन युगों में कपड़े पर बने संसार के चक्र-मानचित्र 'मैप्पा मुण्डी' (mappa mundi) कहे जाने लगे। सम्भवतया 'मैप्पा मुण्डी' शब्द को सर्वप्रथम सन् 840 में सेन्ट रिक्वीयर के मिकन (Micon) नामक मठाधीश ने प्रयोग किया था तथा बाद में यह शब्द इतना प्रचलित हो गया कि सभी मध्यकालीन संसार-मानचित्रों को कई शताब्दियों तक इसी नाम से पुकारा जाता रहा था। नीचे कुछ विद्वानों के द्वारा दी गई मानचित्र की परिभाषाओं को लिखा गया है। इन परिभाषाओं के अध्ययन से मानचित्र के अर्थ को भली-भाँति समझा जा सकता है।

फिन्च तथा टिवार्था के अनुसार 'मानचित्र धरातल के आलेखी निरूपण होते हैं।'
Maps are graphic representations of the surface of the earth'.
                                                            - Finch and Trewartha

एफ. जे. माँकहाउस धरातल के किसी भाग के लक्षणों के समतल सतह पर निरूपण' को मानचित्र की संज्ञा दी है। ने 'निश्चित मापनी के अनुसार
Map is 'a representation on a plane surface of the features of part of the earth's surface, drawn to some specific scale.
                                                                     - F. J. Monkhouse

इरविन रेज़ कोई मानचित्र धरातल के प्रतिरूप का ऊपर की ओर से देखा गया रूढ़ चित्र होता है, जिसमें पहचान के लिये अक्षर लिख दिये जाते हैं।' के अनुसार 'अपनी प्राथमिक संकल्पना में
'A map is, in its primary conception, a conventionalized picture of the earth's pattern as seen from above, to which lettering is added for identification.'
                                                                             -Erwin Raisz

डडले स्टाम्प ने मानचित्रों की बहुत विस्तृत परिभाषा दी है। उनके अनुसार मानचित्र 'धरातल अथवा उसके किसी भाग का तथा वहाँ के भौतिक और राजनीतिक लक्षणों आदि का अथवा खगोलीय पिण्डों का कागज़ या किसी अन्य पदार्थ की समतल सतह पर निर्मित ऐसा चित्र है, जिसमें अंकित प्रत्येक बिन्दु निश्चित मापनी या प्रक्षेप के अनुसार अपनी भौगोलिक अथवा खगोलीय स्थिति के अनुरूप स्थित होता है।'
Map is 'a representation of the earth's surface or a part of it, its physical and political features, etc., or of the heavens, delineated on a flat surface of paper or other material, each point in the drawing corresponding to a geographical or celestial position according to a definite scale or projection
                                                                          -Dudley Stamp

आर. ओगिल्वी बुचानन द्वारा सम्पादित भूगोल-शब्दकोष में लिखी गई परिभाषा के अनुसार 'किसी समतल सतह (से कागज़, कपड़ा, प्लास्टिक या गत्ता) पर धरातल अथवा उसके किसी भाग का मापित निरूपण, जिसमें कुछ चुने हुए भौतिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक अथवा आर्थिक लक्षण दिखलाये गये हों मानचित्र कहलाता है।
A map is 'the scaled representation on a flat surface (such as paper, cloth, plastic, or cardboard) of the earth's surface, or a section of it, showing certain selected features-physical, political, historical or economic, 
                                                               -R. Ogilvie Buchanan

मानचित्रों के सम्बन्ध में दो बातें विशेष रूप से विचारणीय हैं। प्रथम, अब से कुछ समय पूर्व तक मानचित्रों की विषय-वस्तु केवल धरातल अथवा उसके किसी भाग के लक्षणों के निरूपण तक सीमित थी। परन्तु आधुनिक काल में नक्षत्र, ग्रह तथा उपग्रह आदि, खगोलीय पिण्ड भी मानचित्रों की विषय-वस्तु बन गये हैं। । आकाश में नक्षत्रों एवं ग्रहों की स्थिति अथवा चन्द्रमा की सतह को दिखलाने वाले मानचित्र उपरोक्त तथ्य की पुष्टि करते हैं। अतः मानचित्रों को केवल धरातलीय लक्षणों का निरूपण बतलाने में कुछ दोष रह जाता है। द्वितीय, मानचित्र खगोलीय पिण्डों अथवा धरातल के चुने गये लक्षणों का चित्र (picture) प्रस्तुत करता है, परन्तु यह चित्र फोटो चित्र से भिन्न होता है। फोटो चित्र में कैमरे की फोकस परास (focal range) के भीतर स्थित किसी क्षेत्र का प्रत्येक दृश्यमान विवरण अपनी वास्तविक आकृति में अंकित हो जाता है। दूसरे शब्दों में, फोटो चित्र में किसी क्षेत्र के वे विवरण भी अंकित हो जाते हैं, जिन्हें प्रदर्शित करना फोटोग्राफी का उद्देश्य नहीं होता। इसके विपरीत मानचित्रकार विवरणों का चयन करने में स्वतंत्र होता है, अत: मानचित्र में केवल वे ही विवरण होते हैं, जिन्हें मानचित्रकार दिखलाना चाहता है। फोटो चित्रों के विपरीत, मानचित्र में विवरणों को उनकी वास्तविक आकृति में दिखलाने के बजाय रूढ़ प्रतीकों (conventional symbols) के द्वारा प्रकट करते हैं। इसके अतिरिक्त फ़ोटो चित्र में केवल शारीरिक रूप से विद्यमान एवं दृश्य विवरण अंकित हो सकते हैं परन्तु मानचित्र के द्वारा किसी क्षेत्र के दृश्य एवं अदृश्य दोनों प्रकार के विवरणों को प्रकट किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, जनसंख्या का घनत्व, प्रति व्यक्ति आय, वर्षा की मात्रा, प्रति हेक्टेयर फसलों का उत्पादन तथा सीमा रेखाएँ आदि, ऐसे अनेक विवरण हैं, जिन्हें फोटो चित्रों के द्वारा प्रदर्शित करना संभव है। 
मानचित्र की सही परिभाषा में मानचित्र की उपरोक्त सभी विशेषताओं का समावेश होना चाहिए। अतः आर. पी. मिश्रा तथा ए. रमेश के अनुसार 'समस्त पृथ्वी या उसके किसी भाग, आकाश या किसी अन्य आकाशीय पिण्ड के दृश्य एवं विचारे गये अवस्थितिक व वितरणात्मक प्रतिरूपों का मापनी के अनुसार प्रतीकात्मक आरेखन' मानचित्र कहलाता है।
A map is 'a symbolic drawing to scale of the visible as well as conceived locational and distributional patterns of the whole or a part of the earth, the sky, or any other heavenly body.'
                                                     - R.P. Misra and A. Ramesh


                                मानचित्र की मूल संकल्पना 
                              (Basic Concepts of Map)

मानचित्र की मूल संकल्पनाओं से हमारा तात्पर्य उन लक्षणों से है, जो कुछ अपवादों को छोड़कर सभी प्रकार के मानचित्रों में सदैव विद्यमान रहते हैं। विभिन्न विद्वानों के द्वारा दी गई मानचित्र की परिभाषाओं से मानचित्र की पाँच मूल संकल्पनाओं या लक्षणों पर प्रकाश पड़ता है । ये संकल्पना निम्नलिखित हैं :

[I] मापनी 
(Scale) 
मानचित्र के द्वारा समस्त पृथ्वी अथवा उसके किसी भाग को छोटे आकार में दिखलाया जाता है। अत: प्रत्येक मानचित्र सदैव किसी पूर्व निश्चित की गई मापनी के अनुसार बनाया जाता है, जिससे धरातल पर मापी गई दूरियों एवं मानचित्र पर प्रदर्शित तदनुरूपी (corresponding) दूरियों के बीच का अनुपात सर्वत्र एक समान रह सके। मापनी के अभाव में मानचित्र पर अंकित किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच की धरातल पर वास्तविक दूरी ज्ञात करना संभव है। मापनी का प्रयोग किये जाने के फलस्वरूप मानचित्र पर प्रदर्शित क्षेत्रों की वास्तविक लम्बाई, चौड़ाई एवं क्षेत्रफल की सही-सही गणना की जा सकती है, जो रेखा मानचित्रों (sketch maps) पर सम्भव नहीं है। स्मरण रहे, बिना मापनी प्रयोग किये केवल अनुमान के आधार पर बनाये गये 'मानचित्र' को रेखा मानचित्र' की संज्ञा दी जाती है।
मापनी का चयन करते समय (i) कागज़ आदि के आकार तथा (ii) मानचित्र में प्रदर्शित किये जाने वाले विवरणों की मात्रा को ध्यान में रखा जाता है। सरलता के लिये, प्रत्येक मानचित्र पर उसकी मापनी को निरूपक भिन्न से (जैसे, 1 : 100,000), शब्दों से (जैसे, 1 सेमी = 1 किमी) अथवा किसी आलेखी विधि (graphical method) से व्यक्त कर देते हैं। जिस मानचित्र को बाद में छोटा या बड़ा करके मुद्रित करना हो, उसकी मूल प्रति पर केवल आलेखी विधि के द्वारा मापनी को व्यक्त करना चाहिए।
[।।] मानचित्र-प्रक्षेप 
(Map-projection) 
हमारी पृथ्वी की आकृति गोलाकार (spherical) है, जिसे मानचित्रों के द्वारा किसी समतल सतह पर प्रदर्शित किया जाता है। अत: समस्त पृथ्वी अथवा उसके किसी बड़े भाग का मानचित्र बनाने के लिये सर्वप्रथम प्रकाश या गणितीय विधियों की सहायता से ग्लोब के अक्षांश-देशान्तर जाल को किसी समतल सतह पर बनाते हैं तथा इसके पश्चात् इस रेखाजाल में ग्लोब के विवरणों को सावधानीपूर्वक स्थानांतरित कर देते हैं। समतल सतह पर बनाया गया अक्षांश-देशान्तर रेखाओं का यह जाल मानचित्र प्रक्षेप कहलाता है। बड़े भूभागों के मानचित्र सदैव किसी पूर्व निश्चित प्रक्षेप के अनुसार बनाये जाते हैं परन् छोटे-छोटे क्षेत्रों के मानचित्रों जैसे मकानों के प्लान अथवा बस्तियों के मानचित्र आदि, के लिये प्रक्षेप बनाना आवश्यक नहीं समझा जाता, क्योंकि ऐसे क्षेत्रों का आकार इतना कम होता है कि उनके मानचित्रों में पृथ्वी की गोलाकार आकृति का प्रभाव नगण्य के समान रहता है। 
मानचित्र-प्रक्षेप अनेक प्रकार के होते हैं। कुछ प्रक्षेपों पर समस्त पृथ्वी का मानचित्र बनाया जा सकता है जबकि कुछ प्रक्षेपों पर केवल एक गोलार्ध अथवा उससे कम भाग को दिखलाया जा सकता है; कुछ प्रक्षेप ध्रुवीय क्षेत्रों अथवा मध्य अक्षांशों के लिये उपयोगी होते हैं तथा कुछ प्रक्षेप केवल भूमध्यरेखीय क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है । इसी प्रकार कुछ प्रक्षेप यथाकृतिक (orthomorphic) होते हैं जबकि कुछ प्रक्षेपों में शुद्ध क्षेत्रफल अथवा शुद्ध दिशा प्रदर्शित करने का गुण होता है। परन्तु आज तक किसी ऐसे प्रक्षेप की रचना नहीं हो पायी है, जिसमें उपरोक्त सभी गुण एक साथ विद्यमान हों। अतः प्रक्षेप का चयन करते समय मानचित्र बनाने के उद्देश्य तथा मानचित्र में प्रदर्शित किये जाने वाले क्षेत्र की ग्लोब पर स्थिति एवं अक्षांश-देशान्तर विस्तार को ध्यान में रखना परम आवश्यक है।
प्रत्येक मानचित्र पर उसके प्रक्षेप का नाम लिख देना चाहिए जिससे कोई पाठक मानचित्र में विद्यमान आकृति,क्षेत्रफल अथवा दिशा सम्बन्धी विकृतियों (distortions) को भली प्रकार समझ जाये।

[।I।] पृथ्वी का द्विविमीय निरूपण 
(Two-dimensional representation of the earth)
मानचित्र पृथ्वी की त्रिविम (three-dimensional) आकृति का द्विविमीय निरूपण करते हैं। पृथ्वी एक गोलाकार ठोस पिण्ड है, जिसमें लम्बाई, चौड़ाई व मोटाई तीनों प्रकार के विस्तार (dimensions) विद्यमान होते हैं। मानचित्र सदैव किसी समतल सतह पर बनाये जाते हैं अतः उनमें केवल दो विस्तारों (अर्थात् लम्बाई व चौड़ाई) का निरूपण हो सकता है। इसके फलस्वरूप मानचित्र में पृथ्वी की गोलाकार आकृति एवं उच्चावच (relief) सपाट प्रदर्शित होते हैं, जैसा कि वे दूर अंतरिक्ष से दिखलाई देते हैं। मानचित्र पर उच्चावच प्रदर्शित करने की अनेक विधियाँ हैं जैसे, समोच्च रेखाएं (contours), हेश्यूर (hachures), पर्वतीय छायाकरण (hill shading),संदर्श आरेखण (perspective drawing) तथा चित्रीय प्रतीक (pictorial symbols) आदि, परन्तु उनसे वास्तविक उच्चावच, जैसा कि धरातल पर दिखलाई देता है, का बोध नहीं होता। वस्तुत: पृथ्वी की मोटाई एवं उच्चावच प्रदर्शित करने वाले चित्रों को 'मानचित्र' न कहकर, उच्चावच मॉडल (relief model) की संज्ञा देते हैं।

[IV] समतल सतह पर निरूपण 
(Representation on plane surface) 
हम पहले पढ़ चुके हैं कि मानचित्र सदैव कागज़, गत्ता, कपड़ा, दीवार, धातु की चादर अथवा काष्ठ-पट्ट आदि किसी समतल सतह पर बनाये जाते हैं। गोलाकार पृथ्वी को समतल सतह पर सपाट प्रदर्शित करने के गुण से सभी मानचित्र मूलत: दोषपूर्ण होते हैं। यद्यपि ग्लोब पृथ्वी की आकृति को सही-सही प्रदर्शित करती है तथापि ग्लोब की तुलना में मानचित्र अधिक उपयोगी होते हैं, जिसके निम्नलिखित कारण हैं :
(1) मानचित्र में समस्त पृथ्वी को एक साथ देखा जा सकता है, परन्तु ग्लोब पर एक दृष्टि में पृथ्वी का केवल आधा भाग दिखलाई देता है। 
(2) ग्लोब की तुलना में मानचित्रों पर विवरणों को अधिक विस्तार पूर्वक प्रदर्शित किया जा सकता है। 
(3) किसी छोटे क्षेत्र का मानचित्र बनाने के लिये पूरे देश या महाद्वीप का मानचित्र बनाना आवश्यक नहीं होता परन्तु ग्लोब पर किसी भूभाग को दिखलाने के लिये पूरी पृथ्वी का ग्लोब बनाना पड़ता है। इस कठिनाई के फलस्वरूप ग्लोब पर किसी छोटे क्षेत्र को मानचित्र की तरह बड़ी मापनी पर प्रदर्शित नहीं किया जा सकता। 
(4) मानचित्र को मोडकर रखने अथवा उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने-ले जाने में सरलता रहती है।

[V] प्रतीकात्मक निरूपण 
(Symbolic representation) 
मानचित्र पर धरातल के प्रतिरूपों (patterns) को प्रतीकों (symbols) के द्वारा प्रदर्शित करते हैं अतः किसी मानचित्र को धरातल का आलेखी (graphical) या प्रतीकात्मक निरूपण कहा जा सकता है। यदि धरातलीय लक्षणों अथवा सांस्कृतिक प्रतिरूपों को मानचित्र में उनके फ़ोटोचित्रों के द्वारा प्रदर्शित किया जाये तो ये फ़ोटोचित्र आकार में इतने छोटे होंगे कि उन्हें नंगी आँखों से देखकर पहचानना भी कठिन होगा। उदाहरणार्थ, 
1:1000000 मापनी पर बने किसी मानचित्र में 10 मीटर चौड़े मार्ग को इसी मापनी पर फोटो चित्र के द्वारा प्रदर्शित करने के लिये 1/1000 सेमी मोटी रेखा होनी चाहिए, जिसे खींचना अत्यन्त कठिन है। इस कठिनाई को दूर करने के लिये मानचित्र में प्रतीकों का प्रयोग करते हैं। 
ये प्रतीक कई प्रकार के होते हैं, जैसे (i) रूढ़ (conventional) प्रतीक (ii) ज्यामितीय (geometrical) प्रतीक (iii) चित्रमय (pictorial) प्रतीक, (iv) मूलाक्षर (literal) प्रतीक तथा (v) विभक्त (divided) प्रतीक, आदि । यद्यपि मानचित्र पर अंकित प्रत्येक प्रतीक का अर्थ मानचित्र के संकेत' में लिख दिया जाता है तथापि मानचित्र में यथासम्भव ऐसे प्रतीकों का प्रयोग करना चाहिए, जिनका अर्थ बिना संकेत देखे भी समझा जा सके।

मानचित्रों का उद्देश्य 
(Purpose of Maps)
मानचित्र बनाने के दो मुख्य उद्देश्य होते हैं-प्रथम, हमारी पृथ्वी का आकार इतना विशाल है कि उसके सम्पूर्ण भाग को एक साथ आँख से देखना असम्भव है। मानचित्र पृथ्वी के आकार व आकृति को मापनी के अनुसार छोटा करके बोधगम्य बनाते हैं। धरातल पर स्थलाकृतिक आकृतियाँ कहाँ-कहाँ किस-किस प्रकार की हैं; विभिन्न क्षेत्रों में नदियों का प्रवाह किधर को है; वहाँ की चट्टानें, वनस्पति, मिट्टियाँ, खनिज सम्पदा और जन्तुसृष्टि किस-किस भाँति की हैं; किसी प्रदेश में जलवायु व मौसम की दशाएँ कैसी रहती हैं ; पृथ्वी पर जनसंख्या का वितरण एवं बस्तियों के प्रतिरूप किस प्रकार के हैं; वहाँ के आर्थिक व्यवसाय जैसे कृषि, कारखाने, परिवहन तथा व्यापार आदि की क्या अवस्था है तथा सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रणालियाँ कैसी हैं- इस प्रकार के भौगोलिक तथ्यों एवं कारकों को स्पष्ट करना मानचित्रों का उद्देश्य होता है। 
द्वितीय, धरातल पर विभिन्न प्रकार के भौतिक, आर्थिक, समाज-सांस्कृतिक तथा राजनीतिक प्रतिरूप साथ-साथ विद्यमान मिलते हैं। इन विवरणों में से केवल आवश्यकतानुसार छाँटे गये विवरणों को प्रदर्शित करने के मानचित्र महत्वपूर्ण साधन होते हैं। इसके अतिरिक्त धरातल पर दिखलाई न देने वाले प्रतिरूपों को भी मानचित्रों के द्वारा प्रकट किया जा सकता है। यद्यपि इस कार्य के लिये आरेख, चार्ट, मानारेख व रेखा मानचित्र भी बनाये जाते हैं, परन्तु ये विधियाँ गौण हैं तथा इन्हें मानचित्रों की कोटि में नहीं गिना जाता।

मानचित्रों का उपयोग
(Use of Maps)

समस्त संसार में मानचित्रों का उपयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। विभिन्न देशों में प्राकृतिक संसाधनों (natural resources) की खोज हो रही है। इन संसाधनों को अंकित करने के लिये तथा मानव जीवन के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक पक्षों को प्रदर्शित करने के लिये मानचित्रों का निर्माण एवं उपयोग किया जाता है। चित्र 32 में मानचित्रों को प्रयोग करने वाले कुछ विषयों को दिखलाया गया है। इन विषयों की संख्या को देखकर आधुनिक काल में मानचित्रों के व्यापक प्रयोग का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। भूगोल में मानचित्रों का सबसे अधिक प्रयोग होता है, अतः कभी-कभी मानचित्र को 'भूगोलवेत्ता का उपकरण' कहा जाता है। भूगोल के अतिरिक्त अन्य अनेकों विषयों जैसे, भूविज्ञान (Geology), जलवायु विज्ञान (Climatology), मौसम विज्ञान (Meteorology), जल विज्ञान (Hydrology), समुद्र विज्ञान (Oceanography), मृदा-विज्ञान (Pedology), वनस्पति-विज्ञान (Botany), प्राणिविज्ञान (Zoology), रसायन विज्ञान (Chemistry), भौतिकी (Physics), खगोल-विज्ञान (Astronomy), खगोल भौतिकी (Astrophysics), इतिहास, राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, मानव विज्ञान (Anthropology), कृषि, व्यापार एवं वाणिज्य, नौसंचालन, परिवहन तथा पत्रकारिता (Journalism) आदि, में रेखाचित्रों एवं मानचित्रों का प्रयोग बढ़ रहा है।
मानवीय ज्ञान को विकसित करने के लिये पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं में, देश-देशों की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास की योजनाओं का वर्णन करने के लिये, प्रथम महायुद्ध के बाद से लगभग प्रत्येक देश में मानचित्रों का प्रयोग बढ़ गया है। सैन्य विज्ञान में मानचित्रों को विशेष स्थान प्राप्त है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी देश के सैनिकों ने मानचित्रों के पढ़ने में जितनी अधिक भूलें की हैं उतना ही उन्होंने पराजय का मुँह अधिक देखा है।

मानचित्रों का वर्गीकरण 
(Classification of Maps)

मानचित्र-वर्गीकरण के चार मुख्य आधार होते हैं
(।) मापनी, (ii) स्थलाकृतिक लक्षणों की मात्रा, (iii) मानचित्र की अन्तर्वस्तु या उद्देश्य तथा (iv) रचना-शैली ।

[।] मापनी के अनुसार मानचित्रों के भेट
(Kinds of maps according to scale)
मापनी के आधार पर मानचित्रों को प्राय: दो भागों में बाँटा जाता है-6) बृहत् मापनी मानचित्र (large scale maps) तथा (ii) लघुमान मानचित्र (small scale maps)| भूसम्पत्ति मानचित्रों (cadastral maps), नगरों के प्लानों (city plans) तथा स्थलाकृतिक मानचित्रों (topographical maps) को बृहत् मापनी वाले मानचित्रों की संज्ञा देते हैं तथा दीवारी मानचित्र (wall maps) व एटलस मानचित्र (atlas maps) लघुमान मानचित्र कहलाते हैं।
1. भूसण्पत्ति मानचित्र (Cadastral maps)-कैडस्ट्रल शब्द फ्रांसीसी भाषा के डॉक्टर (cadastre) शब्द से बना है, जिसका अर्थ 'सम्पत्ति रजिस्टर होता है। बृहत् मापनी पर बनाये गये नगरों के प्लान, जिनमें मार्ग व नागरिकों के भवनों की सीमाएँ अंकित हों अथवा किसी ग्राम का मानचित्र, जिसमें खेतों की सीमाएँ, मार्ग, जलाशय, कुएँ, पूजा गृह, सार्वजनिक स्थान एवं व्यक्तिगत भूमि-क्षेत्रों को प्रदर्शित किया गया हो, भूसम्पत्ति मानचित्र कहे जाते हैं। भूमि भवन कर (property tax) एव लगान आदि वसूल करने के लिये अथवा नागरिकों के भूमि सम्बन्धी विवादों को हल करने के लिये लगभग प्रत्येक देश की सरकार के द्वारा इस प्रकार के मानचित्र बनाए जाते हैं। कर प्राप्त करने के अतिरिक्त, नगर योजना (town planning) एवं ग्रामीण भूमि उपयोग आयोजना सम्बन्धी अध्ययनों के लिये ये मानचित्र परम उपयोगी होते हैं।
हमारे देश में ग्रामों के मानचित्र, जो 1: 3960 (अथात् 16 इंच = 1 मील) से 1 : 1980 (अर्थात् 32 इंच =1 मील) तक की कंपनियों पर बनाये गये हैं इस प्रकार के मानचित्रों के उदाहरण हैं। प्रोफेसर आर. एल. सिंह के अनुसार ब्रिटेन के 25-इंच तथा 6-इंच मापनी वाले प्लानों को भूसम्पत्ति मानचित्रों की श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है। परन्तु टी. डब्ल्यू. बर्च ने इन प्लानों को भू संपत्ति मानचित्र कहना गलत बताया है। ब्रिटेन के 25.344 इंच =1 मील तथा 6 इंच =1 मील की मापनी वाले प्लान, जिन्हें क्रमश: 25-इंच प्लान' तथा '6-इंच प्लान' नामों से पुकारा जाता है, भूसम्पत्ति की सीमाओं को प्रदर्शित नहीं करते, अतः इन्हें भू संपत्ति मानचित्र की संज्ञा देना अशुद्ध कहा जायेगा।
2. स्थलाकृतिक मानचित्र (Topographical maps)- भारतीय सर्वेक्षण विभाग के अनुसार, पर्याप्त मात्रा में बृहत्  मापनी पर बना कोई मानचित्र, जिसमें अंकित प्रत्येक लक्षण की आकृति एवं स्थिति को देखकर उसे धरातल पर पहचाना जा सके, स्थलाकृतिक मानचित्र कहलाता है।
'A Topographical Map is on a sufficiently large scale to enable the individual features shown on the map to be identified on the ground by their shape and position"
       इसके विपरीत भौगोलिक मानचित्र (geographical map) इतनी लघु मापनी पर बना होता है कि उसमें व्यक्तिगत लक्षणों का धरातल पर पहचान हेतु निरूपण करना संभव होता है। सामान्यतया 1/4 इंच शीट अथवा 1 : 250,000 और इससे बृहत् मापनियों पर बने मानचित्रों को स्थलाकृतिक मानचित्र कहते हैं तथा 1 इंच बराबर 4 मील (अर्थात् 1/4 इंच शीट) अथवा 1 : 250,000 निरूपक भिन्न से छोटी मापनी वाले मानचित्रों को भौगोलिक मानचित्र कहा जाता है। भूसम्पत्ति मानचित्र भी बृहत् मापनी पर बने होते हैं, परन्तु उन्हें स्थलाकृतिक मानचित्रों की संज्ञा नहीं दी जा सकती। इसका कारण यह है कि भूसम्पत्ति मानचित्रों में व्यक्तिगत क्षेत्रों एवं भवनों की सीमाएँ अंकित होती हैं जबकि स्थलाकृतिक मानचित्र में व्यक्तिगत क्षेत्रों अथवा वनों को दिखलाने के बजाय प्रमुख स्थलाकृतिक लक्षणों, उच्चावच, प्रवाह प्रणाली, जलाशयों, वनों, दलदलों, नगरों, ग्रामों एवं परिवहन-मार्गों को प्रदर्शित किया जाता है। यहाँ यह संकेत करना आवश्यक है कि भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न कंपनियों पर स्थलाकृतिक मानचित्र बनाये गये हैं। उदाहरणार्थ, संयुक्त राज्य में प्राय: 1 : 62,500 और 1:125,000 निरूपक भिन्नों पर स्थलाकृतिक मानचित्रों की रचना की जाती है । अधिकांश यूरोपीय देशों में 1 : 25,000 से 1 : 100,000 तक की कंपनियों पर इन मानचित्रों का निर्माण किया गया है। भारत में पहले ब्रिटिश माप प्रणाली का अनुसरण किया गया था, परन्तु हाल ही में मीट्रिक प्रणाली अपना लेने के फलस्वरूप यहाँ 1/4 इंच मानचित्रों को 1 : 250,000 तथा 1-इंच मानचित्रों (1-inch sheets) को 1 : 50,000 की कंपनियों पर परिवर्तित किया जा रहा है। पहले इन मानचित्रों में रंगों का प्रयोग नहीं किया जाता था परन्तु मीट्रिक प्रणाली के अनुसार बनाये गये स्थलाकृतिक मानचित्रों में रंगों के प्रयोग से उनकी उपयोगिता बहुत बढ़ गई है। इन मानचित्रों को आगे चलकर स्थलाकृतिक मानचित्र वाले अध्याय में विस्तार सहित समझाया जायेगा।
3. दीवारी मानचित्र या वाल मैप (Wall maps)-दीवारी मानचित्रों की मापनी एटलस मानचित्रों की मापनी से बड़ी परन्तु स्थलाकृतिक मानचित्रों की तुलना में छोटी होती है। स्कूल एवं कॉलिज आदि में दीवारों पर लटकाये जाने के कारण इन्हें दीवारी मानचित्र या वाल मैप कहा जाता है। वस्तुतः ये भौगोलिक मानचित्र होते हैं, जिनमें समस्त पृथ्वी अथवा किसी महाद्वीप या देश अथवा उसके किसी छोटे भाग जैसे, राज्य, जनपद व तहसील आदि, को प्रदर्शित किया जाता है। इन मानचित्रों के द्वारा सम्बन्धित क्षेत्र के स्थल रूपों (landforms), जलवायु की दशाओं, मिट्टियों के प्रकार, खनिजों के वितरण, वनस्पति के प्रकार, जनसंख्या का वितरण, परिवहन-साधनों एवं आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक प्रतिरूपों को दिखलाया जाता है। दीवारी मानचित्र आवश्यकतानुसार भिन्न-भिन्न आकारों में बनाये जाते हैं अतः इनकी मापनियाँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं। उदाहरणार्थ, भारतीय सर्वेक्षण विभाग के द्वारा बनाये गये दीवारी मानचित्रों की मापनियाँ 1 : 15000000 से 1 : 2500000 तक हैं। 1 : 15000000 मापनी पर बने भारत के मानचित्र का आकार 32x30 सेमी है तथा 1 : 2500000 पर बनाये गये भारत के सड़क मानचित्र (Road Map) का आकार 152x 121 सेमी है।

4. एटलस मानचित्र (Atlas maps)- मानचित्र वलियों के मानचित्र प्राय: 1 : 2000000 से छोटी मापनी पर बनाये जाते हैं। मानचित्रावलियाँ भिन्न-भिन्न आंकड़ों में मुद्रित की जाती है अतः उनके मानचित्रों की निरूपक भिन्नों में पर्याप्त अन्तर मिलता है। उदाहरणार्थ, ऑक्सफोर्ड एटलस (Oxford Atlas) में संसार के मानचित्रों को 1 : 110 मिलियन पर; महाद्वीपों के मानचित्र 1 : 16 से 1:32 मिलियन तक पर ; भारत तथा मध्यपूर्व के मानचित्रों को 1 : 10 मिलियन पर ; तथा यूरोप के विभिन्न भागों के मानचित्रों को 1:2 मिलियन से 1:8 मिलियन तक की कंपनियों पर बनाया गया है। इसी प्रकार भारत की राष्ट्रीय मानचित्रावली (National Atlas of India) का अंग्रेज़ी संस्करण 1: 1,000,000 मापनी पर तैयार हुआ है ; इस मानचित्रावली में दो प्लेट 1: 2000000 मापनी की भी हैं। इसके विपरीत 'ऑक्सफोर्ड स्कूल एटलस' में संसार के लिये 1 : 132 मिलियन, महाद्वीपों के लिये 1: 24 मिलियन से 1:48 मिलियन तक, तथा भारत के लिये 1: 18 मिलियन निरूपक भिन्नों का प्रयोग किया गया है। यद्यपि मानचित्र वलियों के दष्टिकोण से 1:1 मिलियन से 1: 10 मिलियन तक की मापनियाँ पर्याप्त बड़ी होती है तथापि एटलस मानचित्रों में महाद्वीपों या प्रदेशों के केवल मुख्य-मुख्य भौगोलिक तथ्यों को ही प्रदर्शित किया जा सकता है।

[I] स्थलाकृतिक लक्षणों की मात्रा के अनुसार मानचित्रों के भेद (Kinds of maps according to the amount of topographic details)
उपरोक्त आधार पर मानचित्रों के निम्नलिखित दो भेद होते हैं :

1. उच्चतादर्शी मानचित्र (Hypsometric map) उच्चतादर्शी मानचित्रों में स्थलाकृतिक लक्षणों (topographical features) तथा उच्चावच (relief) के निरूपण पर विशेष बल दिया जाता है। विभिन्न देशों के सर्वेक्षण विभागों के द्वारा बनाये गये स्थलाकृतिक मानचित्र, जिनमें हैश्यूर प्रणाली, समोच्च रेखाओं, तल चिह्नों (bench marks) तथा स्थानिक ऊँचाइयों (spot heights) आदि की सहायता से उच्चावच प्रदर्शित किया जाता है, उच्चतादर्शी मानचित्रों के उदाहरण हैं।

2. प्लैनीमीट्रिक मानचित्र (Planimetric map)-जिन मानचित्रों में स्थलाकृतिक लक्षणों के बजाय सांस्कृतिक एवं आर्थिक तत्वों के निरूपण को प्रधानता दी जाती है, उन्हें प्लैनीमीट्रिक मानचित्र कहते हैं। इन मानचित्रों में समुद्र तल से ऊँचाई प्रकट करने के लिए केवल कुछ विशेष स्थानों पर अंकों में ऊँचाई लिख देते हैं। इस प्रकार सांस्कृतिक अथवा आर्थिक प्रतिरूपों का वितरण दिखलाने वाले अधिकांश थिमैटिक मानचित्र (thematic maps) मीट्रिक होते हैं।

[III] उद्देश्य या अंतर्वस्तु के अनुसार मानचित्रों के भेद 
(Kinds of maps according to purpose or content)

प्रत्येक मानचित्र को बनाने का कोई उद्देश्य होता है, जिसे मानचित्र की अंतर्वस्तु अर्थात् उसमें प्रदर्शित किये गये तथ्य या तथ्यों को देखकर भली-भाँति समझा जा सकता है। चूंकि मानचित्रों के द्वारा अनेक विषयों से सम्बन्धित बातों का निरूपण किया जाता है अत: अंतर्वस्तु या उद्देश्य के आधार पर मानचित्रों के प्रकारों की सही-सही गणना करना अत्यन्त कठिन कार्य है। अंतर्वस्तु के अनुसार मानचित्रों के कुछ प्रमुख भेदों को नीचे लिखा गया है।
1. भौतिक मानचित्र (Physical map)- प्राकृतिक वातावरण के तत्वों का विवरण प्रदर्शित करने वाले मानचित्रों को भौतिक मानचित्रों की संज्ञा दी जाती है। नीचे भौतिक मानचित्रों के कुछ उदाहरण दिये गये हैं।
(a) खगोलीय मानचित्र (Astronomical map)-इस मानचित्र के द्वारा किसी निश्चित समय पर आकाश में नक्षत्रों (stars), नक्षत्र-पुन्जों (star clusters), नीहारिकाओं (nebulae), ग्रहों (planets) तथा उपग्रहों (satellites) आदि की स्थितियों को प्रकट किया जाता है।
(b) समदिक्पाती मानचित्र (Isogonic map) इन मानचित्रों में समदिक्पाती रेखाएँ (isogonic Lines) खींचकर धरातल पर चुम्बकीय दिक्पात (magnetic declination) का विवरण प्रदर्शित किया जाता है। किसी स्थान पर भौगोलिक उत्तर-दक्षिण रेखा व चुम्बकीय उत्तर-दक्षिण रेखा के बीच का कोण उस स्थान का चुम्बकीय दिक्पात प्रदर्शित करता है।
(c) भूकम्प मानचित्र (Seismic map)- भूकम्प अधिकेन्द्र (epicentre) से भूकम्पीय तरंगों (seismic waves) का फैलाव प्रकट करने वाले मानचित्रों को भूकम्प मानचित्र कहते है। इन मानचित्रों के द्वारा भूकम्प क्षेत्रों का विवरण एवं किसी प्रदेश में आये भूकम्पों की संख्या व तीव्रता को भी प्रदर्शित किया जाता है।
(d) भूवैज्ञानिक मानचित्र (Geological map) भूवैज्ञानिक मानचित्रों के द्वारा किसी क्षेत्र में शैल दृश्यांशों (rock outcrops) के वितरण, शैल संस्तरों (rock-beds) के नमन (dip) की मात्रा व दिशा, विभंग रेखाओं (fracture lines) एवं वलन-अक्ष (axis of fold) आदि, को धरातलीय बनावट के साथ-साथ प्रकट किया जाता है। कुछ भूवैज्ञानिक मानचित्रों में शैल दृश्यांशों की भूमिगत संरचना (underground structure) को स्पष्ट करने के लिये पार्श्वचित्र (section) बना दिये जाते हैं।
(e) उच्चावच मानचित्र (Relief map)- धरातल की दशा प्रदर्शित करने वाले मानचित्र को उच्चावच मानचित्र कहते हैं। अंतर्वस्तु के अनुसार उच्चावच मानचित्रों के कई भेद होते हैं जैसे, सामान्य उच्चावच मानचित्र, भू-आकृति मानचित्र (landform map), भूल मानचित्र (landscape map), तथा समभूमि अनुपात मानचित्र (flatland ratio map) आदि। सामान्य उच्चावच मानचित्र में समोच्च रेखाओं आदि के द्वारा किसी क्षेत्र की समुद्र तल से वास्तविक ऊँचाई प्रकट की जाती है। भू-आकृति मानचित्रों में किसी प्रदेश के स्थलाकृतिक लक्षणों को चित्रमय प्रतीकों के द्वारा स्पष्ट किया जाता है। इन मानचित्रों को आकृतिक मानचित्र (morphographic map) भी कहा जाता है। भूगोल मानचित्रों में किसी क्षेत्र के धरातल का औसत ढाल (average slope) अथवा आपेक्षिक उच्चावच (relative relief) दिखलाया जाता है। जिन भूगोल मानचित्रों में औसत ढाल एवं आपेक्षिक उच्चावच दोनों का साथ-साथ प्रदर्शन होता है, उन मानचित्रों को ट्रैकोप्राफी य मानचित्र (trachographic map) की संज्ञा दी जाती है। समभूमि अनुपात मानचित्र में ढाल के विचार से कृषि के लिये जोतने योग्य भूमि का वितरण प्रदर्शित किया जाता है।
(f) जलवायु व मौसम मानचित्र (Climatic and weather map)-किसी अपेक्षाकृत बड़े भूभाग में दीर्घकालीन औसत मौसम की दशाओं को प्रकट करने वाले मानचित्रों को जलवायु मानचित्र कहते हैं। ये मानचित्र कई प्रकार के होते हैं जैसे, औसत तापमान मानचित्र, औसत वर्षा मानचित्र, औसत वायुदाब मानचित्र, आदि। इसके विपरीत मौसम मानचित्रों के द्वारा अल्पकालीन वायुमण्डलीय दशाओं को प्रदर्शित किया जाता है। विभिन्न देशों के मौसम विभागों के द्वारा बनाये जाने वाले दैनिक मौसम मानचित्र इस प्रकार के मानचित्रों के उदाहरण हैं।
(g) मृदा मानचित्र (Soil map)-मृदा मानचित्र में किसी प्रदेश में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की मिट्टियों का वितरण प्रदर्शित किया जाता है। कृषि आयोजना (agricultural planning) के लिये ये मानचित्र बहुत आवश्यक होते हैं।
(h) वनस्पति मानचित्र (Vegetation map)-प्राकृतिक वनस्पति जैसे, वन, घास के मैदान तथा कंटीली झाड़ियाँ आदि, का वितरण प्रदर्शित करने वाले मानचित्र वनस्पति मानचित्र कहलाते हैं। इन मानचित्रों के द्वारा कभी-कभी एक ही प्रकार की वनस्पति के विभिन्न प्रकारों जैसे वनों के प्रकार आदि को दिखलाया जाता है।
(i) अपवाह मानचित्र (Drainage map)-किसी प्रदेश के अपवाह मानचित्र में उस प्रदेश की मुख्य एवं सहायक नदियों के जाल एवं अपवाह तन्त्रों (drainage systems) को प्रदर्शित किया जाता है।
(J) महासागरीय मानचित्र (Ocean Map) महासागरीय मानचित्रों में महासागरीय तली की बनावट, महासागरीय अवसादों (deposits) का वितरण, महासागरीय धाराओं की प्रकार एवं दिशा, तथा महासागरों में लवणता (salinity) की मात्रा का वितरण प्रदर्शित किया जाता है। इसके अतिरिक्त नौसंचालन मांगों को प्रदर्शित करने के लिये भी महासागरीय मानचित्र बनाये जाते हैं।

2. जनसंख्या एवं बस्ती मानचित्र (Population and settlement maps)- जनसंख्या मानचित्रों के द्वारा जनसंख्या का वितरण, घनत्व, जनसंख्या वृद्धि, स्त्री-पुरुष अनुपात, आयु-वर्ग, जन्म व मृत्यु की दरें तथा जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना आदि को प्रकट करते हैं । बस्ती मानचित्र में किसी नगर या ग्राम की बनावट (morphology) या विन्यास (layout) तथा परिवहन मार्गों के जाल को प्रदर्शित किया जाता है। इन मानचित्रों के द्वारा किसी नगर के विभिन्न भूमि उपयोग कटिबन्धों की अवस्थितियों (locations) को भी प्रकट किया जाता है।

3. समाज-सांस्कृतिक मानचित्र (Socio-cultural map)-धर्म, जाति, शिक्षा, भाषा, वेशभूषा, स्वास्थ्य, कला, मनोरंजन एवं पर्यटन (tourism) आदि से सम्बन्धित मानचित्रों को समाज-सांस्कृतिक मानचित्रों की संज्ञा दी जाती है।

4. राजनीतिक मानचित्र (Political map)-इन मानचित्रों में किसी देश की अन्तर्राष्ट्रीय व प्रशासनिक सीमाएँ, राष्ट्रीय एवं प्रान्तीय राजधानियाँ तथा अन्य प्रशासनिक केन्द्रों को प्रदर्शित किया जाता है।

5. ऐतिहासिक मानचित्र (Historical map)-प्राचीन समय में भिन्न-भिन्न राजा-महाराजाओं के अधिकार क्षेत्रों, दुर्गों, आक्रमण-मार्गों एवं ऐतिहासिक महत्व के नगरों को दिखलाने वाले मानचित्र ऐतिहासिक मानचित्र कहलाते हैं। इन मानचित्रों से किसी देश के इतिहास को स्पष्ट किया जाता है।

6. सैनिक मानचित्र (Military map)-सैनिकों के उपयोग हेतु बनाये गये ये मानचित्र कई प्रकार के होते हैं जैसे, सामान्य मानचित्र, स्त्रातेजी मानचित्र (strategic map), सामरिक मानचित्र (tactical map) तथा फ़ोटो मैप (photomap), आदि। सामान्य मानचित्र 1 : 1000000 या उससे छोटी मापनी पर बने होते हैं तथा इनमें मुख्य-मुख्य स्थल रूपों को प्रकट किया जाता है। उच्च सैन्य अधिकारी सामान्य नियोजन सम्बन्धी कार्यों में इस प्रकार के मानचित्रों का प्रयोग करते हैं। 1 : 1000000 से 1 : 500,000 तक की मापनी वाले मानचित्र प्रायः स्त्रातेजी मानचित्र कहलाते हैं। इन मानचित्रों का अपेक्षाकृत अधिक संकेन्द्रित सैनिक कार्यों के सामान्य नियोजन हेतु प्रयोग होता है। सामरिक मानचित्र 1:500,000 से बड़ी मापनी पर बने होते हैं तथा इन्हें छोटी-छोटी सैनिक इकाइयाँ युद्ध क्षेत्रों में प्रयोग करती हैं। फोटो मैप वायुयान द्वारा लिये गये फ़ोटो चित्र होते हैं, जिन पर बाद में सामरिक (tactical) सूचनाएँ अंकित कर दी जाती हैं।

7. आर्थिक मानचित्र (Economic map)-आर्थिक क्रिया-कलापों से सम्बन्धित मानचित्रों को आर्थिक मानचित्र कहते हैं। ये मानचित्र अनेक प्रकार के हो सकते हैं। आर्थिक मानचित्रों की केवल कुछ मुख्य प्रकारों को नीचे लिखा गया है।
(a) भूमि उपयोग मानचित्र (Land use map)-इन मानचित्रों में किसी प्रदेश में भूमि उपयोग की विभिन्न श्रेणियों जैसे, वन, चरागाह, कृष्य भूमि (cultivable land), कृषि योग्य व्यर्थ भूमि (cultivable waste land) तथा कृषि भूमि (uncultivable land) आदि, के अन्तर्गत क्षेत्रफल का वितरण प्रदर्शित किया जाता है।
(b) परिवहन मानचित्र (Transport map) - परिवहन मार्गों को प्रदर्शित करने वाले मानचित्र परिवहन मानचित्र कहलाते हैं। सड़क मानचित्र, रेलमार्ग मानचित्र, वायुमार्ग मानचित्र तथा नौसंचालन चार्ट (navigation chart) आदि, इस प्रकार के मानचित्रों के कुछ उदाहरण हैं।
(c) कृषि मानचित्र (Agricultural map)- कृषि मानचित्रों के द्वारा किसी प्रदेश में विभिन्न प्रकार की फसलों के वितरण, फसलों की कोटि (crop-ranking), फसल साहचर्य (crop association),  कृषि दक्षता (agricultural effi-ciency) एवं वहन क्षमता (carrying capacity) आदि. को प्रदर्शित किया जाता है।
(d) खनिज मानचित्र (Mineral map)-इन मानचित्रों में किसी प्रदेश के खनिज क्षेत्रों तथा खनन केन्द्रों की स्थितियों को दिखलाया जाता है। 
(e) औद्योगिक मानचित्र (Industrial map)-औद्योगिक मानचित्रों में किसी प्रदेश की औद्योगिक पेटियों (industrial belts) एवं केन्द्रों का वितरण प्रदर्शित किया जाता है। कभी-कभी इन मानचित्रों में किसी औद्योगिक केन्द्र को प्राप्त कच्चे माल, श्रम एवं शक्ति के साधन के स्रोतों की स्थितियाँ तथा परिवहन की सुविधा को भी इंगित कर देते हैं।

[IV] रचना-शैली के अनुसार मानचित्रों के भेद (Kinds of maps according to the style of construction)
        रचना-शैली के आधार पर मानचित्रों को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है-(i) गुणात्मक (qualitative) मानचित्र तथा (i) मात्रात्मक (quantitative) मानचित्र । मानचित्रों की उपरोक्त प्रकारों को वितरण मानचित्र वाले अध्याय में विस्तारपूर्वक लिखा जायेगा।


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