मौसमी संकट और आपदाएँ (मौसम संबंधी खतरे और आपदाएँ) प्रकृत्तिजन्य अप्रत्याशित ऐसी सभी घटनाएँ जो प्राकृतिक प्रक्रमों को इतना तीव्र कर देती हैं कि विनाश की स्थिति उत्पन्न होती है, चरम प्राकृतिक घटनाएँ या आपदा कहलाती है। इन चरम घटनाओं या प्रकोपों से मानव समाज, जन्तु एवं पादप समुदाय को अपार क्षति होती है। चरम घटनाओं में ज्वालामुखी विस्फोट, दीर्घकालिक सूखा, भीषण बाढ़, वायुमण्डलीय चरम घटनाएँ; जैसे- चक्रवात, तड़ित झंझा, टॉरनेडो, टाइफून, वृष्टि प्रस्फोट, ताप व शीत लहर, हिम झील प्रस्फोटन आदि शामिल होते हैं। प्राकृतिक और मानव जनित कारणों से घटित होने वाली सम्पूर्ण वायुमण्डलीय एवं पार्थिव चरम घटनाओं को प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। इन आपदाओं से उत्पन्न विनाश की स्थिति में धन-जन की अपार हानि होती है। प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं का वर्णन निम्न प्रकार है:- चक्रवात (Cyclone) 30° उत्तर से 30° दक्षिण अक्षांशों के बीच उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्णकटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं। ये आयनवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाला एक निम्न वायुदाब अभिसरणीय परिसंचरण तन्त्र होता है। इस चक्रवात का औसत व्यास लगभग 640 किमी...
समोच्च रेखाएं (Contours)
समोच्च रेखाओं की सहायता से मानचित्र में उच्चावच प्रदर्शित करने की विधि को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यह उच्चावच के निरूपण की एक मानक (standard) विधि है जिस पर उच्चावच-निरूपण की कई अन्य महत्वपूर्ण विधियाँ आधारित हैं। समोच्च रेखा मानचित्र में सर्वेक्षण द्वारा निर्धारित स्थान ऊँचाइयों (spot heights) के अंतर्वेशन (interpolation) से बनायी जाती हैं। अत: समोच्च रेखाओं के द्वारा मानचित्र में समुद्र तल से धरातल के समान ऊँचाई वाले स्थानों का प्रदर्शन होता है। सरल शब्दों में, धरातल पर समुद्र तल से समान ऊँचाई वाले समीपस्थ बिन्दुओं को जोड़ने वाली कल्पित रेखाएँ समोच्च रेखाएं कहलाती है। यदि किसी स्थल रूप पर समुद्र तल से समान ऊँचाई वाले स्थानों को छोड़ते हुए कुछ रेखाएँ अंकित कर दी जाए तथा समुद्र तल से लम्बवत दिशा में ऊपर से नीचे की ओर देखी गईं इन रेखाओं की आकृति को कागज़ आदि किसी समतल सतह पर बना दिया जाये तो यह उस स्थल रूप का समोच्च रेखी मानचित्र होगा (चित्र )।
समोच्च रेखी मानचित्र में किन्हीं दो उत्तरोत्तर समोच्च रेखाओं के मानों का अन्तर समोच्च .रेखा अंतराल कहलाता है । मानचित्र में साधारणतया समान समोच्च रेखा अंतराल पर समोच्च रेखाएँ खींची जाती हैं, परन्तु कभी-कभी परिवर्तनशील समोच्च रेखा अंतराल का भी प्रयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ, पर्वतीय क्षेत्रों के समोच्च रेखी मानचित्र में एक निश्चित ऊँचाई के पश्चात् समोच्च रेखा अंतराल में कभी-कभी वृद्धि कर दी जाती है। कुछ विद्वान केवल छोटी मापनी पर बने मानचित्रों में ही समोच्च रेखा अंतराल के परिवर्तन को उचित मानते हैं। इन विद्वानों के अनुसार बड़ी मापनी पर बने स्थलाकृतिक मानचित्रों में यथासम्भव समान रेखा अंतराल पर समोच्च रेखाएं बनानी चाहिएँ समोच्च रेखी मानचित्र को देखकर प्रवणता (gradient) का सहज अनुमान हो जाता है । चूँकि समोच्च रेखाएं समुद्र तल से विभिन्न ऊँचाई वाले स्थानों को प्रदर्शित करती हैं अतः स्पष्ट है कि मानचित्र में जहाँ समोच्च रेखाएं पास-पास होंगी वहाँ प्रवणता या ढाल की मात्रा अधिक होगी। इसके विपरीत कम प्रवणता वाले भागों में समोच्च रेखाओं के बीच की दूरी अपेक्षाकृत अधिक होगी।
मानचित्र में समोच्च रेखाएं बनाते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना परम आवश्यक है:
(1) समोच्च रेखाएं कम्प तथा लघुमोड़ों से रहित एवं लगातार एक-समान निष्कोण वक्रों (smooth curves) के रूप में खींची जानी चाहिए ।
(2) समोच्च रेखाएं बनने से पूर्व मानचित्र में अपवाह तन्त्र (drainage) को बना लेना चाहिए जिससे समोच्च रेखाओं को सही-सही बिन्दुओं से गुजारा जा सके।
(3) अधिक ऊँचे क्षेत्रों का उच्चावच प्रदर्शित करने के लिये समोच्च रेखा अंतराल को सदैव बड़ा रखना चाहिए।
(4) प्रत्येक समोच्च रेखी मानचित्र के नीचे समोच्च रेखा अंतराल लिख देना चाहिए।
(5) समोच्च रेखाओं के मान एक सीध में प्रत्येक रेखा के ऊपर ऊँचाई की ओर को लिखे जाते हैं। कभी-कभी रेखाओं के मान उनके ऊपर लिखने के बजाय रेखाओं को एक सीध में खण्डित करके प्रत्येक रेखा के मध्य में उसका फीट या मीटर में मान लिख दिया जाता है।
(6) यदि समोच्च रेखी मानचित्र का बाद में लघुकरण किया जाना हो तो समोच्च रेखाओं तथा स्थानिक ऊँचाइयों के मान आवश्यकतानुसार कुछ बड़े आकार में लिखने चाहिएँ जिससे लघुकरण के पश्चात् मानचित्र में उन्हें सफलतापूर्वक पढ़ा जा सके।
(7) यदि अधिक मान वाली किसी समोच्च रेखा से घिरे भाग में कोई गर्त जैसे क्रेटर आदि स्थित हो तो उस गर्त को देखने वाली समोच्च रेखा के अन्दर की ओर छोटी-छोटी रेखाओं से छायाकरण कर देना चाहिए।
(8) मानचित्र में समोच्च रेखाएं एक किनारे से दूसरे किनारे तक अथवा बन्द प्रतिरूप मे बनानी चाहिएँ अर्थात् उन्हें मानचित्र में लटकी हुई अवस्था में नहीं छोड़ना चाहिए।
(9) यद्यपि लम्बवत् ढाल होने की दशा में विभिन्न मान वाली समोच्च रेखाएं एक-दूसरे के ऊपर स्थित होती हैं परन्तु विभिन्न मान वाली दो समोच्च रेखाओं को परस्पर काटते हुए नहीं बनाया जाता।
जैसा कि पहले लिखा गया है समोच्च रेखाओं के द्वारा उच्चावच के निरूपण की विधि को अधिक से अधिक उपयुक्त बनाने के लिए निरन्तर प्रयास किये जाते रहे हैं। इन प्रयासों के फलस्वरूप समोच्च रेखाओं पर आधारित उच्चावच निरूपण की जिन नवीन विधियों का विकास हुआ है, उनमें (i) तनाका किटीरो विधि, (ii) स्तर-छायाकरण विधि, (ii) स्तर-रंजन विधि तथा (iv) रंग विधि प्रमुख हैं। इन विधियों को संक्षेप में नीचे समझाया गया है।
1. तनाका की विधि (Tanaka Kitiro's method)- क्यूशू इम्पीरियल विश्वविद्यालय, जापान के प्रोफेसर तनाका किटीरो ने समोच्च रेखाओं को एक प्रकार के पर्वतीय या प्लास्टिक छायाकरण में परिवर्तित करने की एक नवीन विधि बतलाई है। इस विधि के अनुसार समोच्च रेखी मानचित्र पर समान दूरी के अन्तर पर पहले महीन समान्तर रेखाएं बनाते हैं और उसके पश्चात् सबसे कम मान वाली समोच्च रेखा से प्रारम्भ करते हुए, किसी समोच्च रेखा तथा किसी समान्तर रेखा के छेदन-बिन्दु को अगली अधिक मान वाली समोच्च रेखा तथा अगली समान्तर रेखा के छेदन-बिन्दु से मिलाते हुए रेखाएँ खींचते हैं (चित्र ) । यहाँ यह संकेत कर देना आवश्यक है कि समोच्च रेखी मानचित्र पर उपरोक्त विधि के अनुसार समान्तर रेखाओं तथा समोच्च रेखाओं के छेदन बिन्दुओं को मिलाने वाली ये रेखाएँ अनुगामी या परवर्ती परिच्छेदिकाएँ (subsequent profiles) नहीं होतीं। वस्तुतः ये रेखाएँ ऐसे समान्तर तलों के द्वारा काटी गई परिवर्तन समोच्च रेखाएं (subsequent contours) होती हैं जिनका आधार तल (datum plane) क्षैतिज होने के बजाय झुका हुआ होता है।
2. स्तर-छायाकरण विधि (Layer-shading method)- इस विधि में विभिन्न ऊँचाई-कटिबन्धों को अलग-अलग छायाओं के द्वारा स्पष्ट किया जाता है। नियमानुसार सबसे कम ऊँचे कटिबन्ध में सबसे हल्की तथा सबसे ऊँचे कटिबन्ध में सबसे भारी छाया होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ छाया के भारीपन में वृद्धि होना आवश्यक है जिससे मानचित्र को देखने मात्र से उसमें प्रदर्शित विभिन्न भागों की तुलनात्मक ऊँचाई का सहज अनुमान लगाया जा सके। स्तर-छायाकरण विधि के द्वारा ऊँचाई-कटिबन्धों के प्रदर्शन करने में दो प्रमुख दोष रहते हैं-(i) प्रत्येक कटिबन्ध निश्चित ऊँचाई वाली दो समोच्च रेखाओं के मध्य स्थित एक समतल भूभाग सा प्रतीत होता है, जबकि वास्तविकता में ऐसा नहीं होता। इस प्रकार छायाकरण से किसी भी एक कटिबन्ध में होने वाला ऊँचाई का निरन्तर परिवर्तन प्रदर्शित नहीं होता तथा (ii) मानचित्र को देखने से ऐसा प्रतीत होता है मानों नीचे बालों की ओर को सीढ़ियाँ सी बना दी गई हों।
यह विधि अधिक ऊँचाई-नीचाई वाले पर्वतीय प्रदेशों के उच्चावच को दिखलाने के लिये विशेष उपयोगी है।
3. स्तर-रंजन विधि (Layer-tinting method) कभी-कभी मानचित्र में ऊँचाई-कटिबन्धों को किसी एक रंग की विभिन्न आभाओं (tints) के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। आभाओं का चयन स्तर-छायाकरण विधि के अन्तर्गत बतलाये गये नियमों के अनुसार करना चाहिए।
4. रंग विधि (Colour method)-इस विधि में विभिन्न रंगों के प्रयोग द्वारा मानचित्र में ऊँचाई-कटिबन्धों को प्रदर्शित किया जाता है। अलग-अलग ऊँचाई-कटिबन्धों के लिये रंगों के चयन तथा समोच्च रेखा अंतराल, जिस पर रंग का परिवर्तन किया जाये, की छाँट विशेष सावधानी पूर्वक करनी चाहिए। सामान्यतः नीचे भागों से ऊँचे भागों की ओर को क्रमशः हरा, पीला, भूरा, लाल तथा बैंगनी रंगों का प्रयोग करते हैं। अधिक ऊँचे भागों (हिम क्षेत्रों) को रिक्त छोड़ दिया जाता है। यह पुनः समझ लेना चाहिए कि किसी रंग विशेष का प्रयोग एक निश्चित ऊँचाई तक ही किया जा सकता है।
मिश्रित विधियाँ
(Mixed methods)
मिश्रित विधि से हमारा तात्पर्य उच्चावच-निरूपण की ऊपर बतलाई गई विधियों में से किन्हीं दो या दो से अधिक विधियों के सम्मिलित प्रयोग से है। हम यह पढ़ चुके हैं कि प्रत्येक विधि के अपने विशेष गुण होते हैं अतः उच्चावच मानचित्रों को अधिक से अधिक उपयोगी बनाने के लिये वर्तमान समय में विभिन्न विधियों का मिश्रित प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये, यदि किसी समोच्च रेखी मानचित्र में समोच्च रेखा अंतराल अधिक होता है तो मानचित्र में समोच्च रेखाओं के द्वारा छोड़े गये छोटे-छोटे किन्तु महत्वपूर्ण स्थलाकृतिक लक्षणों को हैश्यूर द्वारा प्रदर्शित कर देते हैं। इसी प्रकार समोच्च रेखी मानचित्र में स्थानिक ऊँचाइयाँ तथा त्रिकोणमितीय स्टेशन आदि की स्थिति और प्रकट कर देने पर मानचित्र की उपयोगिता बढ़ जाती है।
समोच्च रेखा अंतर्वेशन
(Interpolation of Contours)
मानचित्र में स्थानिक ऊँचाइयाँ (spot heights) की सहायता से समोच्च रेखाएं बनाने की विधि समोच्च रेखा अंतर्वेशन कहलाती है। इस विधि के द्वारा समोच्च रेखाएं बनाने का कार्य निम्नलिखित चरणों में पूर्ण किया जाता है :
(1) सर्वप्रथम, थियोडोलाइट (theodolite), डम्पी लेवल (dumpy level) अथवा क्लाइनोमीटर (clinometer) आदि सर्वेक्षण यन्त्रों की सहायता से धरातल पर विभिन्न स्थानों की समुद्र तल से ऊँचाई ज्ञात की जाती है और उसके बाद इन स्थानों को प्लेन टेबुल (plane table) आदि की सहायता से मानचित्र में यथास्थान स्थानिक ऊँचाइयों के रूप में अंकित करते हैं। स्मरण रहे कि स्थानिक ऊँचाइयों की संख्या जितनी अधिक होगी उतनी ही समोच्च रेखाएं अधिक शुद्ध होंगी।
(2) स्थानिक ऊँचाइयाँ अंकित कर देने के पश्चात् उनके आधार पर ऊँचाई-परास (range of elevation) ज्ञात करते हैं अर्थात् यह देखा जाता है कि सबसे कम तथा सबसे अधिक ऊँचाई देखने वाले बिन्दुओं के मान क्या है।
(3) स्थानिक ऊँचाइयों के द्वारा प्रदर्शित ऊँचाई-परास को दृष्टि में रखते हुए आवश्यकतानुसार समोच्च रेखा अंतराल निश्चित किया जाता है। समोच्च रेखा अंतराल का मान सदैव शून्यान्त अंकों (round figures) जैसे 10203050 तथा 100 मीटर आदि में होना चाहिए।
(4) समोच्च रेखा अंतराल निश्चित कर लेने के पश्चात् मानचित्र में खींची जाने वाली समोच्च रेखाओं के मान निर्धारित करते हैं। नियमानुसार समोच्च रेखाओं के मान भी शून्यान्त अंकों में होने चाहिएँ अत: प्रथम समोच्च रेखा का मान ज्ञात करने के लिये सबसे नीची स्थानिक ऊँचाई के मान को शून्यान्त अंकों में बदल देते हैं। अन्य समोच्च रेखाओं के मान पूर्व निर्धारित समोच्च रेखा अंतराल के अनुसार ज्ञात कर लेते हैं।
(5) उपरोक्त कार्य के पश्चात समोच्च रेखाएं बनाने के लिये चित्र देखिये। इस चित्र में प्रदर्शित मानचित्र में अंकित कुल 22 स्थानिक ऊँचाइयों में निम्नतम व उच्चतम स्थानिक ऊँचाइयों के मान क्रमश: 980 तथा 1640 मीटर है अत: चित्र में प्रदर्शित ऊँचाई-परास (range of elevation) का मान 1640980 =660 मीटर हुआ। यदि समोच्च रेखा अंतराल 100 मीटर हो तो स्पष्ट है कि मानचित्र में 1000, 1100, 1200, 1300, 1400, 1500 तथा 1600 मीटर वाली सात समोच्च रेखाएं बनायी जा सकती हैं। इन समोच्च रेखाओं के वास्तविक मार्ग स्थानिक ऊँचाइयों की स्थिति के अनुसार निर्धारित किये जायेंगे। उदाहरणार्थ, 1000 मीटर की समोच्च रेखा को लेते हैं। यह समोच्च रेखा ऐसी पेटी या क्षेत्र में से होकर खींची जायेगी जिसके एक और 1000 मीटर से कम तथा दूसरी ओर 1000 मीटर से अधिक मान वाली स्थानिक ऊंचाइयां स्थित हैं। अत: मानचित्र में यह समोच्च रेखा 980 तथा 990 मीटर वाली स्थानिक ऊँचाइयों के पश्चिम तथा 110510551160 व 1140 मीटर की स्थानिक ऊँचाइयों के पूर्व की ओर खींची गई है। समोच्च रेखा अंतर्वेशन करते समय दो समीपवर्ती स्थानिक ऊँचाइयों के मध्य लगातार एक समान ढाल मान लिया जाता है अत: कोई समोच्च रेखा उन दोनों स्थानिक ऊँचाइयों में किसके कितनी समीप या दूर होगी यह बात उन स्थानिक ऊँचाइयों के बीच की मानचित्र पर दूरी तथा उनके द्वारा प्रदर्शित ऊँचाइयों के अन्तर पर निर्भर करेगी। इसलिये समोच्च रेखाएं बनने से पूर्व स्थान ऊँचाइयों को मिलाने वाली खण्डित सरल रेखाओं पर वे बिन्दु निश्चित कर लिये जाते हैं जहाँ से कोई समोच्च रेखा गुजरेगी। उदाहरणार्थ, मानचित्र में 1400 मीटर की समोच्च रेखा 1350 तथा 1450 मीटर वाली स्थानिक ऊँचाइयों को मिलाने वाली खण्डित सरल रेखा के मध्य बिन्दु से होकर जायेगी। इसके पश्चात् सरल रेखाओं पर अंकित सम्बन्धित बिन्दुओं को मिलाते हुए समोच्च रेखाएं पूर्ण कर लेते हैं।
समोच्च रेखाओं के द्वारा उच्चावच लक्षणों का निरूपण
(Representation of Relief Features by Contours)
समोच्च रेखाओं की सहायता से उच्चावच लक्षणों का निरूपण करते समय उनकी धरातल पर वास्तविक आकृति एवं समुद्र तल से ऊँचाई को ध्यान में रखना परम आवश्यक है। ऊँचाई का ध्यान न रखने की दशा में आकृति शुद्ध होने के बावजूद कन्टूर आकृति अस्वाभाविक एवं दोषपूर्ण मानी जायेगी। कुछ प्रमुख उच्चावच लक्षणों की कन्टूर आकृतियों को नीचे समझाया जा रहा है।
[I] शंक्वाकार पहाड़ी (Conical hill)
शंकु की आकृति में ऊँचा उठा हुआ कोई भू-भाग जिसकी ऊँचाई समीपवर्ती क्षेत्र से 1000 मीटर से कम हो, शंक्वाकार पहाड़ी कहलाता है। ज्वालामुखी शंकु का विशिष्ट उदाहरण है। शंक्वाकार पहाड़ी को समान दूरी के अन्तर से खींची गई संकेन्द्री समोच्च रेखाओं से प्रदर्शित करते हैं ।
समीपवर्ती क्षेत्र से ऊँचा उठा हुआ वह भू-भाग जिसका शिखर क्षेत्र लगभग समतल हो, पठार कहलाता है। पठार की समुद्र तल से ऊँचाई केवल कुछ सौ मीटर से 5,000 मीटर (तिब्बत का पठार) तक हो सकती है। समोच्च रेखाओं के द्वारा पठार दिखलाने के लिये किनारे की ओर समोच्च रेखाएं पास-पास बनायी जाती हैं जबकि मध्यवर्ती भाग समोच्च रेखाओं से लगभग रहित रहता है ।
अपेक्षाकृत लम्बी एवं संकीर्ण पहाड़ी अथवा पहाड़ियों की शृंखला को कटक कहते हैं। इसके किनारे प्राय: तेज ढाल वाले होते हैं। इस उच्चावच लक्षण को दीर्घवृत्ताकार (elliptical) समोच्च रेखाओं के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है ।
(Spur)
किसी पर्वत या पहाड़ी का ऊँचाई से नीचाई की ओर को प्रक्षेपित (projected) भाग पर्वत स्कंध कहलाता है। अपेक्षाकृत छोटे पर्वत स्कंध को 'शोल्डर' (shoulder) की संज्ञा दी जाती है। पर्वत स्कंध को अंग्रेज़ी भाषा के V' अक्षर के समान आकृति वाली समोच्च रेखाओं के द्वारा प्रदर्शित करते हैं। इस अक्षर की भुजाएँ ऊँचे भागों की ओर तथा दोनों भुजाओं का मिलन बिन्दु नीचे भागों की ओर रहता है।
(Saddle)
किसी कटक में दो शिखरों के मध्य स्थित अपेक्षाकृत नीचे एवं सपाट भू-भाग को काठी या सैडिल कहते हैं। इसकी आकृति कोल (col) से कुछ भिन्न होती है क्योंकि काठी की तुलना में कोल अपेक्षाकृत छोटा किन्तु तेज पार्श्व वाला गर्त होता है। दो ऊँचे पर्वत शिखरों के मध्य में स्थित ऐसी काठी जिसमें से होकर कोई मार्ग जाता हो, दर्रा (pass) कहलाती है। बहते हुए जल द्वारा काटकर नीचे किये गए दर्रे को गैप (gap) कहते हैं। चित्र में एक काठी दिखलाई गई है।
[VI] टेकरी युक्त मैदान
(Plain with knoll)
मैदानों में मिलने वाली कम ऊँची, एकांकी तथा गोल आकृति वाली पहाडी को टेकरी कहते हैं। कहीं-कहीं ये टेकरियाँ टीलों के रूप में मिलती हैं। किसी मैदान में टेकरी दिखलाने के लिये दूर-दूर बनी समोच्च रेखाओं के बीच-बीच में वृत्ताकार बन्द समोच्च रेखाएँ खींचते हैं।
(Re-entrant)
किसी पर्वत या पहाड़ी के ढाल पर अन्दर की ओर के कटाव या गर्त को अंतश्रवेशी कहते हैं। इस दृष्टि से पर्वतीय क्षेत्र की सभी नदी घाटियों को अंतः प्रवेश कहा जा सकता है, परन्तु सभी अन्तःप्रवेशी नदी घाटी नहीं होते। समोच्च रेखी मानचित्र में ऊँचाई की ओर समोच्च रेखाओं को उल्टी V' अक्षर के रूप में बनाकर अंत:प्रवेशी दिखलाते हैं।
(Uniform slope)
समान ढाल प्रदर्शित करने के लिये मानचित्र पर समोच्च रेखाएँ समान दूरी के अन्तर पर खींची जाती हैं।
[IX] असमान ढाल
(Undulating slope)
असमान ढाल देखने वाली समोच्च रेखाओं के मध्य की दूरी भी समान होती है अर्थात् समोच्च रेखाएं कहीं पास-पास तथा कहीं दूर-दूर स्थित होती हैं ।
[X] सीढ़ीदार या सोपानी ढाल
(Terraced slope)
सीढ़ीदार या सोपानी ढाल में थोड़ी-थोड़ी दूरी के अन्तर पर साड़ियाँ सी बनी होती हैं अत: मानचित्र में इस प्रकार के ढालों का प्रदर्शित करने के लिये दो-दो समोच्च रेखाओं के जोड़े इस कार खींचे जाते हैं कि प्रत्येक जोडे के बीच की दूरी परस्पर समान हो तथा यह दूरी किन्हीं समीपस्थ दो जोड़ों के बीच की दूरी की तुलना में छोटी हो। इस प्रकार प्रत्येक जोड़ा अपेक्षाकृत तेज ढाल तथा दो जोड़ों के बीच की अपेक्षाकृत अधिक दूरी मन्द ढाल प्रदर्शित करेगी ।
(Concave slope)
जिन ढालों के निचले भागों में मन्द ढाल तथा ऊपरी भागों में तेज ढाल होता है उन्हें अवतल ढाल की संज्ञा देते हैं। ऐसे ढालों को प्रदर्शित करने के लिये निचले भागों में स्थित कम मान वाली समोच्च रेखाओं को दूर-दूर तथा ऊपर की ओर स्थित अधिक मान वाली समोच्च रेखाओं को अपेक्षाकृत पास-पास बनाया जाता है।
उत्तल ढाल अवतल ढाल के बिल्कुल विपरीत होता है अर्थात् इसके निचले भागों में ढाल तेज तथा ऊपरी भागों में ढाल मन्द होता है। ऐसे बालों को देखने वाली समोच्च रेखाएँ निचले भागों में पास-पास तथा ऊपरी भागों में दूर-दूर बनी होती हैं।
[XII] कगार
(Escarpment)
किसी कटक अथवा पहाड़ी का खड़ा या समान रूप से तेज ढाल वाला किनारा कगार कहलाता है। कगार की उत्पत्ति चट्टानों में भ्रंश उत्पन्न होने अथवा चट्टानों की झुकी हुई परतों के अपरदन से होती है। कगार देखने वाली समोच्च रेखाएं अपेक्षाकृत पास-पास बनी होती हैं।
(Cliff)
किसी समुद्र तट के किनारे स्थित चट्टान का लम्बवत् ढाल वाला पार्श्व भृगु कहलाता है। भृगु के विभिन्न मान वाली समोच्च रेखाओं को एक दूसरे के ऊपर खींचकर प्रदर्शित किया जाता है।
(Valley)
दो कटकों अथवा पहाड़ियों के मध्य स्थित लम्बा ग़र्त, जिसकी तली में प्रति: कोई नदी बहती है, घाटी कहलाता है। नदी घाटी की समोच्च रेखाओं अंग्रेज़ी भाषा के उल्टे V' अक्षर के समान होती हैं। इस अक्षर की भुजाएँ नीचे भागों की ओर तथा भुजाओं का मिलन बिन्दु ऊँचे भागों की ओर होता है।
(Waterfall)
जब किसी नदी आदि का जल पर्याप्त ऊँचाई से लम्बवत रूप में नीचे गिरता है तो उसे 'जलप्रपात कहते हैं। जहाँ जलप्रपात की स्थिति होती है वहाँ घाटी की समोच्च रेखाओं को आवश्यक संख्या में एक दूसरे से मिला देते हैं ।
(Gorge)
किसी नदी की खड़े पार्श्व वाली गहरी तथा संकीर्ण घाटी को महाखड्ड या गॉर्ज कहते हैं। जिस स्थान पर कोई नदी किसी महाखड्ड में बहती है. उस स्थान पर नदी के दोनों ओर स्थित महाखड्ड-भित्तियों (gorge wels) की समोच्च रेखाओं को एक दूसरे के बहुत समीप अथवा मिलाकर बनाते हैं ।
(U- shaped valley)
हिमनद (glacier) के द्वारा निर्मित घाटी को U-रूप की घाटी कहते हैं क्योंकि इसकी आकृति अंग्रेज़ी भाषा के 'U' अक्षर से मिलती-जुलती होती है। हिमनदीय घाटी के पार्श्व खड़े एवं तली चौड़ी तथा सपाट होती है। इन घाटियों को दिखलाने के लिये उल्टे 'U' की आकृति में समोच्च रेखाएं खींची जाती हैं।
(Hanging valley)
मुख्य हिमनद में सहायक हिमनद की अपेक्षा बर्फ की मात्रा अधिक होती है अत: अपरदन के द्वारा सहायक हिमनद की तुलना में मुख्य हिमनद अपनी घाटी को अधिक गहरा बना लेता है और सहायक हिमनद का बर्फ प्रपात के रूप में मुख्य हिमनद में गिरने लगता है। सहायक हिमनद की ऐसी घाटियों को निलंबी घाटी कहते हैं। चित्र में निलंबी घाटी दिखलाई गई है।
(Fiord coast)
फियोर्ड तटों का निर्माण हिमनदीय क्रिया के फलस्वरूप होता है। जब कोई हिमनद अपनी घाटी को समुद्र तट तक विस्तीर्ण कर लेता है तथा घाटी का कुछ भाग समुद्र के जल में डूब जाता है तो फियोर्ड तट बन जाते हैं। नार्वे का समुद्री तट इसका अच्छा उदाहरण है। फियोर्ड तट पर हिमनद की छोटी-छोटी U-रूप की जल में डूबी हुई घाटियों को सफलतापूर्वक पहचाना जा सकता है ।
(Ria coast)
समुद्र में मिलने से पूर्व नदी का जल विभक्त होकर कई घाटियों में बहने लगता है। जब ये घाटियाँ अपरदित होकर समुद्र तल से नीची हो जाती हैं तो इनमें समुद्र का जल भर जाता है और रिया तट बन जाते हैं। फियोर्ड की तुलना में रिया छोटा होता है तथा उसमें फियोर्ड की अपेक्षा गहराई सम्बन्धी असमानताएँ कम होती हैं। रिया तट की समोच्च रेखाएं अपेक्षाकृत दूर-दूर तथा कम समोच्च रेखा अंतराल पर बनाई जाती हैं।
(Lake)
किसी झील या गर्त (depression) को बन्द वृत्ताकार समोच्च रेखाओं से दिखलाया जाता है इस सम्बन्ध में यह ध्यान रखना चाहिए कि इन समोच्च रेखाओं के पान केन्द्र से बाहर की ओर को बढ़ते जाते हैं।
(Incised meander)
नदी के गहरे मोड़ों को अध:कर्तित विसर्प कहते हैं। इन घोड़ों की उत्पत्ति का एक प्रमुख कारण नदी का पुनर्युवनित (rejuvenated) होना है।
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