मौसमी संकट और आपदाएँ (मौसम संबंधी खतरे और आपदाएँ) प्रकृत्तिजन्य अप्रत्याशित ऐसी सभी घटनाएँ जो प्राकृतिक प्रक्रमों को इतना तीव्र कर देती हैं कि विनाश की स्थिति उत्पन्न होती है, चरम प्राकृतिक घटनाएँ या आपदा कहलाती है। इन चरम घटनाओं या प्रकोपों से मानव समाज, जन्तु एवं पादप समुदाय को अपार क्षति होती है। चरम घटनाओं में ज्वालामुखी विस्फोट, दीर्घकालिक सूखा, भीषण बाढ़, वायुमण्डलीय चरम घटनाएँ; जैसे- चक्रवात, तड़ित झंझा, टॉरनेडो, टाइफून, वृष्टि प्रस्फोट, ताप व शीत लहर, हिम झील प्रस्फोटन आदि शामिल होते हैं। प्राकृतिक और मानव जनित कारणों से घटित होने वाली सम्पूर्ण वायुमण्डलीय एवं पार्थिव चरम घटनाओं को प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। इन आपदाओं से उत्पन्न विनाश की स्थिति में धन-जन की अपार हानि होती है। प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं का वर्णन निम्न प्रकार है:- चक्रवात (Cyclone) 30° उत्तर से 30° दक्षिण अक्षांशों के बीच उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्णकटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं। ये आयनवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाला एक निम्न वायुदाब अभिसरणीय परिसंचरण तन्त्र होता है। इस चक्रवात का औसत व्यास लगभग 640 किमी...
भौगोलिक सूचना तंत्र
(Geographical Information System)
भौगोलिक सूचना तंत्र एक कम्प्यूटर आधारित तकनीक है जिसे संक्षेप में जी. आई. एस. (GIS) कहते हैं । यद्यपि इस तकनीक का विकास 1960 के दशक में हुआ था परन्तु विगत कुछ वर्षों में दूरसंवेद (remote sensing) व कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी (computer technology) के क्षेत्र में हुई अभूतपूर्व प्रगति तथा भिन्न-भिन्न देशों में पर्यावरण-सम्बन्धी सूचनाओं की निरंतर बढ़ती माँग ने भौगोलिक सूचना तंत्र की तकनीक के अनुप्रयोग (application) का क्षेत्र बहुत व्यापक कर दिया है। इस व्यापार को भौगोलिक सूचना तंत्र की तकनीक के अनुसार अध्ययन की जाने वाली समस्याओं की विविधता से सहज समझा जा सकता है। भौगोलिक सूचना तंत्र की तकनीक पर आधारित अन्य अनेक सूचना तंत्रों, जैसे भू-सम्पत्ति सूचना तंत्र (Cadastral Information System), प्रतिबिम्ब-आधारित सूचना तंत्र (Image, Based Information System), प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन सूचना तंत्र (Natural Resource Management Information System), बाजार विश्लेषण सूचना तंत्र (Market Analysis Information System), आयोजन सूचना तंत्र (Planning Information System), नगरीय सूचना तंत्र (Urban Information System), आपदा प्रबंधन सूचना तंत्र (Hazard Management Information System) 74T परिपथ जाल विश्लेषण सूचना तंत्र (Network Analysis Information System) आदि, का विकास एवं प्रयोग इस विविधता के कतिपय उदाहरण हैं। संक्षेप में यही समझना चाहिए कि उपर्युक्त सभी सूचना तंत्र वास्तव में भौगोलिक सूचना तंत्र के ही विशिष्ट रूप हैं, अन्तर केवल उनमें अध्ययन की जाने वाली विषय-वस्तु का है।
[I] भौगोलिक सूचना तंत्र की परिभाषा (Definition of a geographical information system)
भौगोलिक सूचना तंत्र को परिभाषित करें इतना सरल नहीं है जितना कि यह दिखलायी देता है इस समस्या का एक मात्र कारण इस तंत्र की तकनीक के अनुप्रयोग-क्षेत्र (area of application) की विविधता है। वस्तु: भिन्न-भिन्न विषयों से सम्बंधित जितनी समस्याओं के अध्ययन में भौगोलिक सूचना तंत्र की तकनीकों का अनुप्रयोग हुआ है, उतने ही इस तकनीक के उपनाम व परिभाषा हैं। सामान्यतः स्वीकार्य परिभाषा के अनुसार, 'पृथ्वी के क्षेत्रों के बारे में सूचना के संग्रहण (collection), संचयन (storage), विश्लेषण (analysis) व प्रकीर्णन (dissemination) हेतु हार्डवेयर (hardware), सॉफ्टवेयर (software), दत्त (data), विशेषज्ञों (specialists), संगठनों (organizations) व संस्थागत व्यवस्था (institutional arrangements) के तंत्र' को भौगोलिक सूचना तंत्र की संज्ञा देते हैं। इसी प्रकार किसी भू-सूचना तंत्र (land information system) को ऐसा भौगोलिक सूचना तंत्र कहा जा सकता है, जिसमें भू-अभिलेखों (land records) से सम्बन्धित आंकड़ों या दत्त को केन्द्रीय स्थान प्राप्त है। संक्षेप में, सभी भू-सूचना तंत्र वास्तव में भौगोलिक सूचना तंत्र के ही विभिन्न रूप होते हैं। कुछ विद्वानों ने इन दोनों प्रकार के सूचना तंत्रों में थोड़ा-सा अन्तर बतलाया है। इन विद्वानों के मतानुसार भौगोलिक सूचना तंत्र में प्रादेशिक, राष्ट्रीय या ग्लोब स्तर के बड़े-बड़े क्षेत्रों के सामान्यीकृत আकड़ों (generalised data) का प्रयोग होता है तथा भू-सूचना तंत्रों में स्थानीय (local) व छोटे-छोटे क्षेत्रों के अपेक्षाकृत विस्तृत आंकड़ों (detailed data) का विश्लेषण किया जाता है। अध्ययन की सफलता के विचार से हम यहाँ भौगोलिक सूचना तंत्र की परिभाषा के अन्तर्गत उपर्युक्त सभी प्रकार के छोटे-बड़े क्षेत्रों को सम्मिलित कर रहे हैं ।
[II] भौगोलिक सूचना तंत्र का क्षेत्र (Scope of geographical information system)
जैसा कि हम ऊपर संकेत कर चुके हैं, भौगोलिक सूचना तंत्रों के अन्तर्गत अध्ययन की जाने वाली समस्याओं की विविधता ने इस तंत्र के अनुप्रयोग-क्षेत्र को असीमित बना दिया है। वस्तु पृथ्वी पर भौगोलिक अवस्थिति (geographical location) के द्वारा संदर्भित लक्षणों के बारे में किसी भी प्रकार की सूचना प्राप्त करने के लिये भौगोलिक सूचना तंत्र की तकनीक का उपयोग किया जा सकता है। इन कम्प्यूटर-आधारित तंत्रों में ऐसे भूगोलीय संदर्भित (geographically referenced) लक्षणों के अवस्थितिक दत्त (location data) तथा उनके गुण दत्त (attribute data), दोनों को एक-साथ प्रयोग में लाने की क्षमता होती है। दूसरे शब्दों में, भौगोलिक सूचना तंत्रों में न केवल लक्षणों की अवस्थितियों का स्वत: प्रदर्शन (automatic display) या मानचित्र होता है, अपितु ये तंत्र सम्बन्धित लक्षणों के विवेचन-योग्य अभिलक्षणों (descriptive characteristic) के अभिलेखन (recording) व विश्लेषण (analysis) का एक सम्बन्धपरक दत्त आधार (relational database) भी प्रस्तुत करते हैं। उदाहरणार्थ, सड़क नेटवर्क (Road network) के भौगोलिक सूचना तंत्र में न केवल सड़कों की अवस्थितियों (locations) का प्रदर्शन होता है, अपितु उसमें प्रत्येक सड़क का गुणवाचक दत्त जैसे, सड़क की चौड़ाई, सड़क के फर्श का प्रकार (pavement type), ट्रैफिक लेनों की संख्या, निर्माण की तिथि आदि, का ब्यौरा भी दिया होता है। इस प्रकार के गुणदत्त की पारस्परिक तुलना (comparison) व संयोजन (combination) के द्वारा एकदम नवीन प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती है। उदाहरण के लिये कम्प्यूटर की सहायता से भिन्न-भिन्न बिन्दुओं के बीच की दूरियों की गणना करके नगरों, विभिन्न प्रकार की सेवाओं (services) एवं सड़कों से दूरता (remoteness) को प्रदर्शित किया जा सकता है। इस भौगोलिक सूचना तंत्र में यदि कुछ अन्य आवश्यक सूचनाओं, जैसे स्थलाकृतिक प्रवणता (Topographic gradient), भू-आवरण (land cover) व भूमि उपयोग (Land use) के प्रकार तथा भू-स्वामित्व सीमाएँ (land-ownership boundaries) आदि, का संयोजन कर दिया जाये तो भावी आवासीय योजनाओं एवं औद्योगिक इकाइयों की दृष्टि से उपयुक्त स्थलों (sites) को सीमांकित किया जा सकता है। इसी प्रकार विभिन्न प्रकार की भूवैज्ञानिक (geological) व भूभौतिकीय (geophysical) सूचनाओं के संयोजन से धातु व हाइड्रोकार्बन (hydrocarbon) के अन्वेषण लिये नये क्षेत्र चिह्नित किये जा सकते हैं। उपर्युक्त उदाहरण भौगोलिक सूचना तंत्र के महत्व एवं उसके क्षेत्र की विशालता को दर्शाते हैं।
[III] भौगोलिक सूचना तंत्र के तत्व (Elements of geographical information system)
कम्प्यूटर-आधारित किसी भी अन्य सूचना तंत्र की भाँति, भौगोलिक सूचना तंत्र की तकनीक के निम्नलिखित चार मुख्य घटक तत्व होते हैं :
1. कम्प्यूटर हार्डवेयर (Computer hardware) प्रत्येक कम्प्यूटर तंत्र पाँच मूलभूत क्रिया करता है-(i) निवेश (inputting), (ii) संचयन (storing), (iii) संसाधन (processing), (iv) निर्गम (outputting) तथा (v) नियंत्रण (controlling) । कम्प्यूटर तंत्र में दत्त (data) एवं अनुदेश (instruction) प्रविष्ट करने की क्रिया को निवेश या निवेश करना (inputting) कहते हैं। संचयन का अभिप्रायः प्रवेशी दत्त एवं अनुदेशों का कम्प्यूटर तंत्र में सुरक्षित रहना है जिससे दत्त संसाधन हेत उन्हें कभी भी प्रयोग में लाया जा सके। प्रविष्ट दत्त को दिये गये अनुदेशों के अनुसार गणितीय या तर्कसंगत विधियों के द्वारा उपयोगी सूचनाओं में परिवर्तित करने की क्रिया-विधि दत्त संसाधन कहलाती है। इन उपयोगी सूचनाओं या परिणामों को प्रतिवेदन (report) या चाक्षुण विधि (visual method) के द्वारा उपयोगकर्ता (user) के समक्ष प्रस्तुत करना निर्यात कहा जाता है । कम्प्यूटर तंत्र में उपर्युक्त चारों प्रक्रियाओं को पूर्ण करने के ढंग एवं क्रम (sequence) को सुनिश्चित करने की क्रिया नियंत्रण कहलाती है।
उपर्युक्त मूलभूत कार्यों का निष्पादन करने के लिये कम्प्यूटर तंत्र में उपलब्ध मशीनरी व इलेक्ट्रॉनिक घटकों (electronic components) को कम्प्यूटर हार्डवेयर कहते हैं। इस हार्डवेयर को पाँच एककों (units) में विभाजित किया जा सकता है-(i) निवेश यूनिट (input unit), (ii) निगम यूनिट (output unit), (iii) संचयन यूनिट (storage uniliv) गणितीय तर्क यूनिट (arithmetic logic anil) तथा (v) नियंत्रण यूनिट (control unit)। अन्तिम दो यूनिटों को सम्मिलित रूप से केन्द्रीय संसाधन यूनिः (central processing unit) कहा जाता है। कम्प्यूटर तर में अनुदेशों (instructions) व असंसाधित दत्त (raw data) को प्रविष्ट करने के लिये परिस्थितिनुसार भिन्न भिन्न युक्तियों (devices) का प्रयोग करते हैं। इनमें कुंजी पटल युक्ति (keyboard device) सबसे सामान्य है, जिसे टाइपराइटर की तरह प्रयोग में लाते हैं। दत्त प्रविष्टि (data entry) की अन्य युक्तियों में प्रकाशिक लक्षण पाठक (optical character reader, OCR), चुम्बकीय स्याही लक्षण पाठक (magnetic ink character reader, MICR)a mouse) आदि, उल्लेखनीय हैं। कम्प्यूटर हमारी भाषा को नहीं समझता अतः कम्प्यूटर तंत्र की निवेश यूनिट (input unit) उपयोगकर्ता के द्वारा प्रविष्ट किये गये दत्त व अनुदेशों को कम्प्यूटर-ग्राह्य भाषा अर्थात् द्वि-आधारी अंकों (binary digits, BITS) में बदलकर, तंत्र की संचयन यूनिट को भेज देता है।
कम्प्यूटर तंत्र की संचयन यूनिट (storage unit) इस प्रकार डिजाइन की जाती है कि उसमें सभी प्रकार के असंसाधित दत्त (unprocessed data), दत्त संसाधन के लिये दिये गये अनुदेशों (instructions), अनुदेशों के क्रम में सम्पन्न उत्तरोत्तर विश्लेषणों के नतीजे व अन्तिम परिणामों का भण्डारण हो सके। इस प्रकार इस यूनिट का कार्य कम्प्यूटर में प्रविष्ट किये गये दत्त व अनुदेशकों, दत्त संसाधन के भिन्न-भिन्न चरणों में प्राप्त परिणामों व अन्तिम परिणामों को सुरक्षित रखना है जिससे उन्हें कभी भी देखा या प्रयोग में लाया जा सके। कम्प्यूटर तंत्र की गणितीय तर्क यूनिट (ALU) वह स्थान है जहाँ अनुदेशों के अनुसार दत्त संसाधन की वास्तविक प्रक्रिया सम्पन्न होती है। यह यूनिट कम्प्यूटर की संचयन यूनिट से असंसाधित दत्त प्राप्त करने के उपरान्त, दिये गये अनुदेशों के अनुसार इस दत्त को विभिन्न चरणों में संसाधित करती है तथा प्रत्येक चरण के परिणाम को, भण्डारण एवं आगामी विश्लेषण के लिये पुनः पा्त करने हेतु तंत्र की संचयन यूनिट में स्थानांतरित करती रहती है। इस प्रकार अन्तिम परिणाम प्राप्त होने तक संचयन यूनिट तथा गणितीय तर्क यूनिट के मध्य, उत्तरोत्तर चरणों के संसाधित दत्त का आदान-प्रदान जारी रहता है। विश्लेषण के अन्तिम परिणाम को संचयन यूनिट, कम्प्यूटर की भाषा में, तंत्र की निर्गम यूनिट (output unit) में भेज देती है।
कम्प्यूटर तंत्र की नियंत्रण यूनिट (control unit) को 'कम्प्यूटर का मस्तिष्क' कहा जाता है। जिस प्रकार हमारे द्वारा की जाने वाली सभी क्रियाओं पर मस्तिष्क का नियंत्रण होता है, ठीक उसी प्रकार यह यूनिट कम्प्यूटर तंत्र की अन्य सभी यूनिटो की कार्य-प्रणाली को निर्देशित एवं नियंत्रित करती है। इस यूनिट का कार्य किसी प्रोग्राम के अनुदेशों को समझकर, उन अनुदेशों के अनुपालन हेतु केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system) की भाँति कम्प्यूटर की अन्य यूनिटों को आवश्यक संकेत या सिग्नल (signal) देना है। गणितीय तर्क यूनिट (ALU) तथा नियंत्रण यूनिट (control unit) को सम्मिलित रूप से कम्प्यूटर तंत्र की केन्द्रीय संसाधन यूनिट (central processing unit, CPU) के नाम से पुकारा जाता है। दत्त संसाधन के फलस्वरूप प्राप्त परिणाम कम्प्यूटर तंत्र की संचयन यूनिट में सुरक्षित रहते हैं। चूँकि ये परिणाम भी द्वि-आधारी अंकों (BITS) में होते हैं अत: केन्द्रीय संसाधन यूनिट (CPU) से संकेत मिलने पर तंत्र की निर्गम यूनिट (output unit) द्वि-आधारी अंकों में संचित परिणामों को हमारे पढ़ सकने योग्य भाषा में बदलकर, कम्प्यूटर के स्क्रीन पर प्रदर्शित कर देती है।
2. कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर (Computer software)- किसी कम्प्यूटर का हार्डवेयर (मशीनरी) हमारे द्वारा दिये गये अनुदेशों के अनुसार कार्य करता है। कम्प्यूटर तंत्र में प्रविष्ट किये गये इन अनुदेशों (instructions) को कम्प्यूटर प्रोग्राम या कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर कहते हैं। दूसरे शब्दों में, सोफ्टवेयर किसी कम्प्यूटर के हार्डवेयर को यह बतलाता है कि उसे क्या करना है और कैसे करना है। इस प्रकार कम्प्यूटर तंत्र में हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर एक-दूसरे के पूरक होते हैं। कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर को सामान्यतः दो बड़े वर्गों में विभाजित किया जाता है-(i) अनुप्रयोग सॉफ्टवेयर (application software) तथा (ii) तंत्र सॉफ्टवेयर (system software)। किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति हेतु बनाये गये एक या एक से अधिक प्रोग्रामों के समुच्चय (set) को अनुप्रयोग सॉफ्टवेयर कहते हैं तथा कम्प्यूटर तंत्र के प्रचालन (operation) को नियंत्रित करने के लिये लिखे गये एक या एक से अधिक प्रोग्रामों के समुच्चय को तंत्र सोफ्टवेयर कहा जाता है।
3. लाइववेयर (Liveware)-यहाँ लाइववेयर से हमारा अभिप्राय भौगोलिक सूचना तंत्र के अन्तर्गत प्रारम्भ से अन्त तक की जाने वाली सम्पूर्ण क्रिया-विधि में निपुण ऐसे वैज्ञानिकों कम्प्यूटर क्रमादेशकों (programmers), तकनीकज्ञों (technicians) व सांख्यिकीविदों (statisticians) से है, जो सम्बन्धित जी. आई. एस. से अपेक्षित सूचना प्राप्त करने के लिये आवश्यक दत्त आधार (data base) का चयन करके, उसका सही-सही विश्लेषण कर सकें । दूसरे शब्दों में, चयनित विषय से अनभिज्ञता, अपूर्ण दत्त आधार अथवा त्रुटिपूर्ण सॉफ्टवेयर होने की दशा में जी. आई. एस. विश्लेषण से प्राप्त परिणाम गलत व भ्रामक हो सकते हैं।
4. दत्त आधार (Data base)-कम्प्यूटर में संचित दत्त का कोई संगठित समुच्चय (organised set), जिसे आवश्यकता होने पर देखा जा सके अथवा प्रयोग में लाया जा सके, दत्त आधार कहलाता है। दत्त आधार के अभाव में किसी भी प्रकार का विश्लेषण सम्भव नहीं है। यह दत्त आधार फाइलों (files) में बँटा होता है तथा प्रत्येक फाइल में विश्लेषण के लिये उपयुक्त कसी एक पक्ष का गुणदत्त (attribute data) सचित होता है। दूसरे शब्दों में, भिन्न-भिन्न प्रकार के गुण दत्त की अलग-अलग फसलें होती हैं जिससे आवश्यकता होने पर किस एक फाइल के दत्त को दूसरी फाइल के दत्त पर अधिचित्र( overlay) किया जा सके।
[IV] जी. आई. एस. प्रक्रिया का विधितंत्र
(Methodology of GIS procedure)
भौगोलिक सूचना तंत्र के अन्तर्गत की जाने वाली समूची प्रक्रिया को निम्नलिखित पाँच उत्तरोत्तर चरणों में पूर्ण किया जाता है :
1. मूल दत्त का संकलन (Compilation of source data) जी. आई. एस. की प्रक्रिया में सर्वप्रथम दी गई समस्या के समाधान में आवश्यक मूल दत्त का संकलन करते हैं जिससे विश्लेषण हेतु अनेक भौगोलिक दत्त समुच्चय (geographical data sets) बनाये जा सके । यह मूल दत्त बहुस्पेक्ट्रमी प्रतिबिम्बों (multispectral images), समोच्चरेखी मानचित्रों (contour maps), थीमेटिक मानचित्रों (thematic maps) और/अथवा सांख्यिकी प्राणियों के रूप में हो सकता है। सारणीबद्ध दत्त (tabular data) व अनुरूप मानचित्रों (analog maps) को प्रयोग में लाने से पूर्व उन्हें अंकीय रूपण (digital formal) में परिवर्तित करना परम आवश्यक होता है। कुछ दत्त समुच्चयों में कई समीपवर्ती मानचित्र हो सकते हैं। ऐसी दशा में इन समीपवर्ती मानचित्रों को हाथ से अथवा अंकीय विधि से आपस में जोड़कर समूचे अध्ययन-क्षेत्र का सीवनहीन (seamless) मोज़ेक (mosaic) बना लेते हैं। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि इस अवस्था में सभी दत्त समुच्चय रैस्टर या चित्ररेखापुंज रूपण (raster format) में एक ही क्षेत्र को प्रदर्शित करते हैं परन्तु उनकी मापनी (scale), मानचित्र प्रक्षेप व पिक्सल-आकार (pixel size) में अन्तर हो सकता है।
2. मूल दत्त का भू-कोडन (Geocoding of source data)-द्वितीय चरण में मूल दत्त का भू-कोडन या भू-संदर्भन (georeferencing) किया जाता है। इस प्रक्रिया में प्रत्येक दत्त समुच्चय का, किसी भौगोलिक निर्देशांक पद्धति से पंजीकृत एक समान पिक्सल आकार में पुनलेखन करते हैं। वस्तुतः जी. आई. एस. अध्ययनों में सबसे अधिक समय मूल दत्त के संकलन व उसके मकान में लगता है।
3. गुण दत्त प्राप्त करना (Deriving attribute data)- विश्लेषण की दृष्टि से उपयुक्त दत्त को गुण-न्यास या गुण दत्त (attribute data) कहते है तथा भूकोडित गुण-न्यास का संग्रह निवेश दत्त (input data) कहलाता है। भूकन के पश्चात कुछ दत्त समुच्चय जैसे भूमि उपयोग/भू-आवरण मानचित्र आदि विश्लेषण के लिये उपयुक्त हो जाते हैं परन्तु अन्य दत्त समुच्चयों से गुण-न्याय प्राप्त करने के लिये उनका अतिरिक्त संसाधन (processing) करना पड़ता है। उदाहरणार्थ, अंकीय ऊँचाई मानचित्र (digital elevation map) पिक्सलों का रैस्टर व्यूह (raster array) होता है जिसमें प्रत्येक पिक्सल सम्बन्धित ऊँचाई के मान को दशोता है । यद्यपि ऊँचाई सम्बन्धी यह सूचना स्वयं अपने-आप में एक गुण-न्यास है परन्तु इस सूचना को संसाधित करके अन्य महत्वपूर्ण गुण न्यास, जैसे ढाल की मात्रा व दिशा आदि, प्राप्त किये जा सकते हैं।
4. गुण दत्त का विश्लेषण (Analysis of attribute _data)-किसी इच्छित सूचना जैसे भूमि उपयोग के वर्ग, ज्ञात करने के लिये गुण दत्त का ऑकिक पद्धति (digital methods) के अनुसार संसाधन करते हैं। यह कार्य कई चरणों में पूर्ण होता है। उदाहरणार्थ, सर्वप्रथम चयनित गुण दत्त समुच्चयों को एल्गोरिथ्म (algorithms) के अनुसार वर्गीकरण किया जाता है। वर्गीकरण की इस प्रक्रिया को कभी-कभी गुच्छन (clustering) कहा जाता है क्योंकि इस प्रक्रिया में दत्त के समान लक्षणों वाले गुच्छ (cluster) बन जाते हैं। ये गुच्छ पर्याप्त बड़े होते हैं तथा उनमें दत्त की विभिन्न श्रेणियाँ सम्मिलित हो सकती हैं। अतः अगले चरण में कुछ बड़े-बड़े गुच्छों को छोटे-छोटे समांगी उपविभागों (homogeneous subdivision) में विभाजित किया जाता है। विभाजन की यह प्रक्रिया स्तरण (stratification) कहलाती है। अन्त में, प्रत्येक श्रेणी को एक विवेक नाम दे दिया जाता है।
5. परिणाम का प्रदर्शन (Display of result)- जी. आई. एस. की प्रक्रिया के अन्तिम चरण में उपर्युक्त नामित श्रेणियों में सहायक सूचना, जैसे राजनीतिक सीमाएँ व अक्षांश-देशान्तर आदि, जोड़ने के उपरान्त प्राप्त अन्तिम परिणाम को वर्ण मानचित्र (colour map) अथवा छाया मानचित्र (shade map) के रूप में प्रदर्शित कर देते हैं इस प्रदर्शन को निर्गम दत्त (output data) भी कहते हैं।
चित्र में मृदा अपरदन (soil erosion) सम्बन्धी अध्ययनों में भौगोलिक सूचना तंत्र के प्रयोग को दिखाया गया है। इस चित्र को देखकर जी. आई. एस. के विचित्र के उपर्युक्त चरणों को भली-भाँति समझा जा सकता है।
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