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चिन्तनफलक स्थानान्तरण (Paradigm Shift)

चिन्तनफलक स्थानान्तरण (Paradigm Shift) कुहन के विचार से सामान्य विज्ञान के विकास में असंगतियों के अवसादन तथा संचयन (Accumulation) में संकट की स्थिति उत्पन्न होती है, जो अन्ततः क्रान्ति के रूप में प्रकट होती है। यह क्रान्ति नए चिन्तनफलक को जन्म देती है। जब नवीन चिन्तनफलक अस्तित्व में आता है वह पुराने चिन्तनफलक को हटाकर उसका स्थान ले लेता है। चिन्तनफलक के परिवर्तन की इस प्रक्रिया को 'चिन्तनफलक प्रघात' (Paradigm Shock) या 'चिन्तनफलक स्थानान्तरण (Paradigm Shift) के नाम से जाना जाता है। ध्यातव्य है कि इस प्रक्रिया में पुराने चिन्तनफलक को पूर्णरूप से अस्वीकार या परिव्यक्त नहीं किया जा सकता, जिसके कारण कोई चिन्तनफलक पूर्णरूप से विनष्ट नहीं होता है। इस गत्यात्मक संकल्पना के अनुसार चिन्तनफलक जीवन्त होता है चाहे इसकी प्रकृति विकासात्मक रूप से अथवा चक्रीय रूप से हो। जब प्रचलित चिन्तनफलक विचार परिवर्तन या नवीन सिद्धान्तों की आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं कर सकता है, तब सर्वसम्मति से नए चिन्तनफलक का प्रादुर्भाव होता है। अध्ययन क्षेत्र के उपागम में होने वाले इस परिवर्तन को चिन्तनफलक स्थानान्त...

दूरसंवेद का अर्थ (meaning of remote sensing)

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परिचय (Introduction)

दूरसंवेद कोई नवीन विषय नहीं है परन्तु विगत कुछ दशकों में दूरसंवेद की तकनीकों में इतना अधिक सुधार हुआ है कि आज यह विषय आर्थिक, राजनीतिक, सामरिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व प्राकृतिक आपदाओं के अध्ययन, मूल्यांकन व प्रबंधन (management) सहित संसाधनों की खोज व उनके मॉनिटर (monitoring) का अद्वितीय साधन बन गया है। इसी कारणवश उपर्युक्त विषयों से जुड़े वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, इंजीनियर, नियोजनकर्ताओं, सैन्य अधिकारियों तथा प्रशासकों सहित अनेक विशेषज्ञों को अपनी जरूरत के अनुसार क्षेत्रों के वायुफ़ोटोचित्रों अथवा प्रतिबिम्बों की आवश्यकता रहती है। 1950 के दशक से पूर्व विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम (electromagnetic spectrum) के केवल एक बहुत छोटे भाग, जिसे दृश्य-स्पेक्ट्रम (visible spectrum) या दृश्य प्रदेश (visible region) कहते हैं तथा जिसके प्रति हमारी आँखें संवेदनशील होती हैं, में फोटोग्राफी की जा सकती थी। परन्तु आज उन्नत प्रकार के बहुस्पेक्ट्रमी क्रमवीक्षकों (multispectral scanners) की सहायता से विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के अन्य प्रदेशों में भी संवेदन किया जा सकता है, जिसके फलस्वरूप गुणवत्ता की दृष्टि से उच्च कोटि के प्रतिबिम्बों की प्राप्ति सुलभ हो गयी है। दूरसंवेद की लोकप्रियता का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि इसके द्वारा हम पृथ्वी के किसी भी भाग की प्राकृतिक या सांस्कृतिक दृश्यभूमि (landscape) में होने वाले परिवर्तनों का करीब-करीब तुरन्त अवलोकन कर सकते हैं। इन परिवर्तनों में ग्लोब वातावरण, पृथ्वी के नवीकरणीय (renewable) व अनवीकरणीय (non-renewable) संसाधन, भूमि उपयोग, वन सम्पदा, हिमावरण, हिमनदों का विस्तार अथवा उनके पीछे हटने की दर, सम्भावित कृषि उत्पादन का पूर्वानुमान, समुद्र-तटीय भागों के परिवर्तन, बाढ़, अकाल व भूकम्प आदि के प्रभाव, नगरीकरण तथा परिवहन-जाल का विकास आदि-आदि अनेक बातों को सम्मिलित किया जा सकता है। राष्ट्रीय प्रतिरक्षा (national defence) की दृष्टि से भी दूरसंवेद को अद्वितीय स्थान प्राप्त है क्योंकि दूरसंवेद के द्वारा उपग्रहों से लिये गये प्रतिबिम्बों की सहायता से पड़ोसी देशों की सैन्य गतिविधियों, जैसे सेना का जमाव, सैनिक चौकियाँ व शस्त्रशाला तथा सीमापार क्षेत्र में बंकरों व युद्ध सम्बन्धित मार्गों के निर्माण पर लगातार नजर रखी जा सकती है।


दूरसवेद का अर्थ (Meaning of Remote Sensing)

किसी वस्तु को स्पर्श किये बिना अर्थात् दूर खड़े होकर उसके बारे में सही-सही जानकारी या सूचना प्राप्त करना दूरसंवेद कहलाता है। दूरसंवेद के इस मूल अर्थ को भिन्न-भिन्न विद्वानों ने अपने-अपने शब्दों में निम्न प्रकार व्यक्त किया है :
लिलीसेंड व कीफर (Lillesand and Kiefer) के मतानुसार, 'अध्ययन के लिये चुनी गयी किसी वस्तु, क्षेत्र या परिघटना से प्रत्यक्षतः दूर स्थित किसी युक्ति (device) के द्वारा प्राप्त किये गये दत्त (data) का विश्लेषण करके, उस वस्तु, क्षेत्र या परिघटना के बारे में जानकारी प्राप्त करने की कला एवं विज्ञान को दूरसंवेद की संज्ञा देते हैं।'
The science and art of obtaining information about an object, area or phenomenon through the analysis of data acquired by a device that is not in direct contact with the object, area or phenomenon under investigation.
                                                           -Lillesand and Kiefer

कोलवेल (Colwell) के शब्दों में, 'वायुयान अथवा उपग्रह से प्राप्त वायूफोटोचित्रों एवं सम्बंधित दत्त की सहायता से पृथ्वी के वातावरण, विशेषकर इसके प्राकृतिक व सांस्कृतिक संसाधनों के बारे में सूचना का संग्रहण व संसाधन (processing) दुरसंवेदन कहलाता है।

Remote sensing may be regarded as 'the gathering and processing of information about the Earth's environment, particularly its natural and cultural resources, through the use of photographic and related data acquired from an aircraft or satellite.
                                                                             -R.N. Colwell

एफएफ० साविन्स (F. F. Sabins) के मतानुसार, दुरसंवेदन शब्द का तात्पर्य उन विधियों से है जिनमें किसी लक्ष्य को पहचानने तथा उसके लक्षणों को मापने के लिये विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा जैसे, प्रकाश, ऊष्मा व रेडियो तरंगों को प्रयोग में लाया आता है।

The term Remote Sensing refers to methods that employ electromagnetic energy, such as light, heat and radio waves, as the means of detecting and measuring target characteristics.-Floyd F. Sabins

कैम्पबेल (Campbell) के अनुसार, पर्याप्त दूरी से लिये गये प्रतिबिम्बों (images) से पृथ्वी के स्थल व जल भाग के बारे में सूचना प्राप्त करने के विज्ञान को दूरसंवेद कहते हैं तथा यह विज्ञान इच्छित लक्षण से उत्सर्जित या परावर्तित विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा के मापन पर आश्रित होता है।'

Remote sensing may be defined as the science of deriving information about the Earth's land and water areas from images acquired at a distance. It usually relies upon measurement of electron magnetic energy reflected or emitted from the features of interest
                                                                     J.B. Campbell

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि दूरसंवेद की सूची किया वायफोटोचिों व प्रतिबिम्बों की (i) प्राप्ति (acquisition),(¡¡) प्रदर्शन (display) तथा (iii) व्याख्या या विवेचन (terpretation) पर आधारित है। हम अपने चारों ओर जो कुछ देखते हैं अथवा देखी गयी वस्तुओं में भेद स्थापित कर पाते हैं, उन सबमें दूरसंवेद का नियम लागू होता है। इस समय आप इस पोस्ट को दूरसंवेद की सहायता से ही पढ़ पा रहे हैं। उदाहरणार्थ, प्रस्तुत पृष्ठ को पढ़ते समय आपकी आँखें एक संवेदक (sensor ) का कार्य कर रही हैं। ये संवेदक पृष्ठ के लिखे हुए व विना लिखे अर्थात् काले व खाली स्थानों से परावर्तित (reflected) प्रकाश या विद्युत चुम्बकीय विकिरण (electromagnetic radiation) के तदनुरूप आवेगों (corresponding impulses) को ग्रहण कर रहे हैं। इसके पश्चात् ये आवेग आपके मस्तिष्क में जाते हैं जहाँ एक प्राकृतिक कम्प्यूटर के द्वारा इनका साथ-साथ विश्लेषण हो रहा है। इस विश्लेषण से प्राप्त सूचना के आधार पर आपको यह पता चल रहा है कि पृष्ठ के काले भाग वस्तुतः अक्षरों से निर्मित शब्द एवं वाक्य हैं तथा आप इन वाक्यों में निहित सूचना या अर्थ को समझ रहे हैं। 
वस्तुतः मनुष्य अपनी पाँच ज्ञानेन्द्रियों ( आँख, (ii) कान, (iii) नाक, (iv) जीभ या जिह्वा तथा (v) स्पर्श, से प्राप्त सूचना के बल पर अपने चारों ओर स्थित वस्तुओं या परिघटनाओं का ज्ञान प्राप्त करता है। इन ज्ञानेन्द्रियों में दृष्टि सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि बहुत दूर स्थित वस्तुओं के चाक्षुष रूप (visual appearance) से ही उनके बारे में कोई ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है, जो आँखों का विषय है। दृष्टि के महत्व को इस तथ्य से भी भली-भांति समझा जा सकता है कि भूकम्प तरंगों के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक बनावट का अथवा अति दूर स्थित आकाश गंगाओं (galaxies) से उत्सर्जित (emitted) रेडियो तरंगों (radio- waves) के आधार पर अंतरिक्ष की अदृश्य गहराइयों का अध्ययन करते समय ऐसे उपकरण प्रयोग में लाए जाते हैं, जो इन तरंगों के अस्तित्व को किसी भी रूप में हमारे लिये दृश्य (visible) बना सकें जिससे इन दूरस्थ एवं अगम्य भागों के बारे में अमूर्त ढंग (abstract way) से कोई बात कहने के बजाय अधिक विश्वसनीय सूचना दी जा सके। भूकम्प अभिलेख (seismogram) अथवा विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम (electromagnetic spectrum) में दृश्य भिन्न-भिन्न तरंग-दैर्य (wavelengths) के स्पेक्ट्रमी प्रदेश (spectral regions) इसके अच्छे उदाहरण हैं।

                                दूरसंवेद की प्रक्रिया एवं तत्व
           ( Processes and Elements of Remote Sensing)

चित्र । में भू-संसाधनों के विद्युत-चुम्बकीय दूरसंवेद में की जाने वाली सामान्य प्रक्रियाओं एवं उनके प्रमुख घटक तत्वों को व्यवस्थित ढंग से प्रदर्शित किया गया है। इस चित्र को देखने से विदित होता है कि दूरसंवेद की प्रक्रिया दो बड़े वर्गों में विभाजित की जा सकती है- (i) दत्त अर्जन (data acquisition) तथा (ii) दत्त विश्लेषण (data analysis)। इन वर्गों की प्रक्रियाओं के घटक तत्वों को इस चित्र में A, B, C. I अक्षरों से इंगित किया गया है।
(1) दत्त अर्जुन (Data acquisition) 
      दत्त अर्जन का सामान्य अर्थ उन तत्वों एवं विधियों से है, जिनको प्रयोग में लाकर हम किसी भू-संसाधन, वस्तु अथवा क्षेत्र के सम्बंध में सूचनाएँ एकत्रित करते हैं। दूरसंवेद में हमें ये सूचनाएँ या दत्त उत्पाद (data product) दो रूपों में प्राप्त होता है- (¡) (चित्रीय (pictorial) रूप में तथा (ii) अंकीय (digital) रूप में। दत्त अर्जन की प्रक्रिया को छः तत्वों अथवा उत्तरोत्तर अवस्थाओं (successive stages) में विभाजित किया जा सकता है—प्रथम, विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा (electromagnetic energy) के किसी स्रोत की प्राप्ति होना, दूरसंवेद की प्रथम आवश्यकता है क्योंकि इस ऊर्जा के अभाव में दूरसंवेद करना संभव है। यह ऊर्जा हमें ऊष्मा (heat) तथा प्रकाश (light) के रूप में प्राप्त होती है। सूर्य इस ऊर्जा का प्राकृतिक स्रोत है तथा विद्युत-बल्ब के प्रकाश को इसका कृत्रिम स्रोत कहा जा सकता है। सूर्य के प्रकाश में की गई फोटोग्राफी को निष्क्रिय फोटोग्राफी (passive photography) तथा विद्युत-बल्ब के प्रकाश में सम्पन्न फोटोग्राफी को सक्रिय फोटोग्राफी (active photography) कहते हैं। द्वितीय, सूर्य से विकिरित (radiated) विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा तरंगों (waves) के रूप में संचार (propagate) करती है। इन तरंगों को धरातल पर पहुंचने से पूर्व पृथ्वी के वायुमण्डल को पार करना पड़ता है। वायुमण्डल में विद्यमान जल वाष्प (water vapour), गैसों तथा धूलिकणों (dust particles) के कारण धरातल पर आने वाली ऊर्जा की मात्रा व वितरण में अन्तर उत्पन्न हो जाता है। अतः दूरसंवेद करते समय वायुमण्डल में ऊर्जा के संचरण की दशा को ध्यान में रखना आवश्यक है। तृतीय, पृथ्वी पर पहुँचने वाली विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा धरातल के पदार्थों से अन्योन्यक्रिया (interaction) करती है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि धरातल के किन्हीं दो पदार्थों या वस्तुओं की विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा से अन्योन्यक्रिया समान नहीं होती। इसी असमानता के कारणवश हम उन वस्तुओं या पदार्थों में भेद स्थापित करके उन्हें अलग-अलग देख पाते हैं या पहचान पाते हैं। चतुर्थ, धरातल तथा आपतित ऊर्जा (incident energy) की अन्योन्यक्रिया से विद्युत-चुम्बकीय आवेग (electromagnetic impulses) उत्पन्न होते हैं। इन आवेगों को किसी संवेदक तक पहुँचने के लिये परावर्तित (reflected) अथवा उत्सर्जित (emitted) प्रकाश के रूप में वायुमंडल में पुनः संचार (retransmission) करना पड़ता है। पंचम, धरातल से आने वाले विद्युत-चुम्बकीय आवेगों को ग्रहण करने के लिये दूरसंवेद में दो प्रकार के स्थान या प्लेटफार्म (platforms) चुने जाते हैं (1) वायुमण्डल-आधारित (atmosphere-based) प्लेटफार्म, जैसे गैस के गुब्बारे (balloons) व वायुयान तथा (ii) अन्तरिक्ष-आधारित (space-based) प्लेटफार्म, से राकेट, अंतरिक्ष यान व कृत्रिम उपग्रह । उपर्युक्त प्लेटफार्मों में आवश्यकतानुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के कैमरे और संवेदक तंत्र (sensing systems) लगे होते हैं। षष्टम्, यद्दपि कैमरा भी एक संवेदक है जिससे धरातल या दृश्य क्षेत्र का सीधा (direct) फोटो चित्र प्राप्त हो जाता है। इसके विपरीत अन्य प्रकार के संवेदक धरातल से परावर्तित विद्युत चुम्बकीय आवेगों को अकों (digits) के रूप में आलेखित करते हैं। इस प्रकार विभिन्न प्लेटफामों से प्राप्त दत्त उत्पाद के दो भेद होते हैं-(i) चित्रीय (pictorial) दत्त उत्पाद तथा (ii) अंकीय (digital) दत्त उत्पाद । अंकों के रूप में भेजे गये दत्त उत्पाद को भू-आधारित (ground based) दत्त प्राप्ति केन्द्रों में साथ-साथ कम्प्यूटर-अनुकूल टेप (computer compatible tape) पर रिकार्ड करते रहते हैं।

(¡¡) दत्त विश्लेषण (Data analysis)
 वायुमंडल अथवा अंतरिक्ष आधारित संवेदकों के द्वारा भेजे ये दत्त उत्पाद में दृश्य-क्षेत्र के सभी विवरण अंकित होते हैं। अतः इन विवरणों को पहचानने एवं उनके बारे में इच्छित जानकारी যाप्त करने के कार्य में पर्याप्त श्रम, ज्ञान, अभ्यास व अनुभव की आवश्यकता होती है। कम्प्यूटर-अनुकूल टेप पर अंकित अंकीय दत्त (digital data) को कम्प्यूटर व अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की सहायता से प्रतिबिम्बों (images) में परिवर्तित कर लिया जाता है। इसके पश्चात् विभिन्न प्रकार के दर्शन उपकरणों (viewing instruments), जैसे स्टीरियोस्कोप (stereoscope) व स्टूडियो मीटर (stereometer) आदि व अन्य तकनीकों की मदद से सभी प्रकार के वायु फ़ोटो चित्र व प्रतिबिम्बों का विश्लेषण करते हैं। वायुफ़ोटोचित्रों व प्रतिबिम्बों के विश्लेषण एवं व्याख्या से प्राप्त सभी प्रकार के सूचना दत्त (information product) को पारदर्शी चित्रों (transparencies), संपठनीय मानचित्रों (hard copy maps) अथवा कम्प्यूटर फाइलों (computer files) के रूप में सरक्षित रखा जाता है जिससे भविष्य में कोई उपभोक्ता संस्थान सरकारी विभाग अथवा व्यक्तिगत शोधकर्ता इस सूचना दत्त को अपने प्रयोग में ला सके।
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