मौसमी संकट और आपदाएँ (मौसम संबंधी खतरे और आपदाएँ) प्रकृत्तिजन्य अप्रत्याशित ऐसी सभी घटनाएँ जो प्राकृतिक प्रक्रमों को इतना तीव्र कर देती हैं कि विनाश की स्थिति उत्पन्न होती है, चरम प्राकृतिक घटनाएँ या आपदा कहलाती है। इन चरम घटनाओं या प्रकोपों से मानव समाज, जन्तु एवं पादप समुदाय को अपार क्षति होती है। चरम घटनाओं में ज्वालामुखी विस्फोट, दीर्घकालिक सूखा, भीषण बाढ़, वायुमण्डलीय चरम घटनाएँ; जैसे- चक्रवात, तड़ित झंझा, टॉरनेडो, टाइफून, वृष्टि प्रस्फोट, ताप व शीत लहर, हिम झील प्रस्फोटन आदि शामिल होते हैं। प्राकृतिक और मानव जनित कारणों से घटित होने वाली सम्पूर्ण वायुमण्डलीय एवं पार्थिव चरम घटनाओं को प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। इन आपदाओं से उत्पन्न विनाश की स्थिति में धन-जन की अपार हानि होती है। प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं का वर्णन निम्न प्रकार है:- चक्रवात (Cyclone) 30° उत्तर से 30° दक्षिण अक्षांशों के बीच उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्णकटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं। ये आयनवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाला एक निम्न वायुदाब अभिसरणीय परिसंचरण तन्त्र होता है। इस चक्रवात का औसत व्यास लगभग 640 किमी...
दूरसंवेदन का इतिहास
(History of remote sensing)
वर्तमान अन्तरिक्ष-आधारित दूरसंवेद का विकास वायव फोटोग्राफी से हुआ है अत: दूरसंवेद के विकास के इतिहास को नीचे लिखे गए दो भागों में बाँटकर सफलतापूर्वक समझा जा सकता है।
[I] वायव फोटोग्राफी का प्रारम्भिक इतिहास
(Early history of aerial photography)
कैमरा के आविष्कार के साथ-साथ 1839 में फोटोग्राफी का जन्म हुआ था। 1840 में अगो (Argo) नामक एक फ्रांसीसी विद्वान, जो उस समय पुलिस प्रशिक्षण शाला में डायरेक्टर थे, ने स्थलाकृतिक सर्वेक्षण (topographic surveying) में फोटोग्राफी के प्रयोग की सम्भावना स्पष्ट की थी। अब तक प्राप्त सूचनाओं के अनुसार 1858 में गैसपर्ड फैलिक्स टूर्नाचन (Gaspard Felix Tournachon) नामक एक परसियन फोटोग्राफर ने सबसे पहली बार एक वायु फ़ोटो चित्र खींचा था। इस वायु फ़ोटो चित्र को प्राप्त करने के लिये वह फ्रांस के बीवरे (Bievre) नामक स्थान पर एक गुब्बारे में बैठकर 60 मीटर की ऊँचाई तक उड़ा था। इसी वर्ष फ्रांस के लूसिडाल्ट (Laussedalt) नामक एक सर्वेक्षण ने धरातलीय सर्वेक्षण में पहली बार बैलून फोटोग्राफी का प्रयोग किया था। इसके पश्चात् कुछ अन्य देशों में बैलून फोटोग्राफी की जाने लगी। उदाहरणार्थ, 13 अक्टूबर, 1860 में जेम्स वालेस ब्लैक (James Wallace Black) नामक एक अमेरिकन ने गुब्बारे में बैठकर 365 मीटर की ऊँचाई से बोस्टन नगर का एक वायु फोटो चित्र खींचा था, जिसे संयुक्त राज्य में आज उपलब्ध वायु है। फोटो चित्रों में सबसे प्राचीन माना जाता है।
1880 तक मौसम-सम्बंधी आंकड़ों की प्राप्ति हेतु पतंगों (kites) का काफी प्रचलन हो चुका था अतः पतंगों की सहायता से वायु फ़ोटोचित्र प्राप्त करने के प्रयास होने लगे। प्राप्त जानकारी के अनुसार 1882 में इ. डी. आर्कीबाल्ड (E. D. Archibald) नामक एक अंग्रेज़ मौसम विज्ञान (meteorologist) ने पतंग-फ़ोटोग्राफी के द्वारा सबसे पहली बार वायु फोटोचित्र खींचा था। 1900 के दशक में जी. आर. लारेन्स (G.R. Lawrence) नामक एक अमेरिकन की पतंग-फोटोग्राफी ने सारे संसार का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया। उसने 28 मई 1906 में अनेक पतंगों की रेल सी बनाकर अपने 22 किलोग्राम वजन वाले विशालकाय कैमरे को सेन्फ्रांसिस्को नगर में 600 मीटर की ऊँचाई पर हवा में स्थिर लटका दिया था। इस कैमरे से काँच की सुग्राही सतह वाली प्लेट पर दृश्य-क्षेत्र का नेगेटिव प्राप्त होता था तथा इस नेगेटिव का आकार 0.4x 1.2 मीटर था।
यद्यपि वायुयान का आविष्कार 1903 में हो चुका था परन्तु कैमरा-प्लेटफार्म के रूप में, वायुयान का सबसे पहली बार प्रयोग उस समय हुआ जब 1909 में विल्बर राइट (Wilbur Wright) नामक शिक्षार्थी पायलट के साथ उड़ान भरकर एक फोटोग्राफर ने इटली के नौसेना अधिकारियों के प्रयोग हेतु एक चल चित्र (motion picture) बनाया था। इस सफलता के पश्चात् वायुयान वायव फोटोग्राफी के आम साधन बन गये तथा प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सैन्य आवीक्षण (military Reconnaissance) कार्यों में इनका काफी प्रयोग हुआ था। इसके साथ-साथ जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन व संयुक्त राज्य आदि कुछ देशों में वायव फोटोग्राफी की सहायता से स्थलाकृतिक सर्वेक्षण किया जाने लगा। उदाहरणार्थ, संयुक्त राज्य के 'यू. एस. कोस्ट एण्ड जियोडैटिक सर्वे' (U. S. Coast and Geodetic Survey) विभाग ने 19201930 के मध्य वायव फोटोग्राफी के द्वारा मिसीसिपी डेल्टा का सर्वेक्षण किया तथा 1928 में वहाँ के हाइड्रोग्राफिक ऑफिस' (Hydrographic Office) ने इसी तकनीक से क्यूबा का सर्वेक्षण किया था। वायव फोटोग्राफी को सबसे बड़ा प्रोत्साहन द्वितीय विश्व युद्ध में मिला था। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि वायु फोटोचित्र की प्राप्ति व उनके विश्लेषण की तकनीकों के विकास का मूल कारण सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति था। बाद में इन तकनीकों का प्रयोग शान्तिकालीन विकास परियोजनाओं में किया जाने लगा।
[।I] अन्तरिक्षीय दूरसंवेद का प्रारम्भिक इतिहास
(Early history of space remote sensing)
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के साथ-साथ दूरसंवेद के अंतरिक्ष युग का प्रारम्भ हुआ था। चूँकि वायुयानों को एक निश्चित सीमा से ऊँचा नहीं उडाया जा सकता अत: वायव फोटोग्राफी के द्वारा किसी बड़े क्षेत्र या देश को एक ही वायु फोटो चित्र में अंकित करना सम्भव नहीं होता। इसी कारणवश वायव फोटोग्राफी के द्वारा किये जाने वाले स्थलाकृतिक सर्वेक्षणों में संलग्न क्षेत्रों के वायु फ़ोटोचित्रों को जोड़कर फ़ोटोमोज़ैक (photomosaic) बनाने पड़ते हैं। किसी बड़े क्षेत्र के फ़ोटोमोज़ैक के लिये एक ओर सभी आवश्यक वायु फ़ोटोचित्र प्राप्त करने में पर्याप्त समय, श्रम व धन की आवश्यकता होती है तथा दूसरी ओर अलग-अलग उड़ानों में खींचे जाने के कारण ये वायु फोटो चित्र अलग-अलग समय की दशाओं को दर्शाते हैं। संक्षेप में, वायव फोटोग्राफी की सहायता से अपेक्षाकृत बड़े-बड़े क्षेत्रों में दूर-दूर तक व्याप्त परिघटनाओं की एक-साथ चौकसी (surveillance) व मॉनिटरन करना अत्यंत कठिन है । इस समस्या का समाधान ढूढने के प्रयास में वैज्ञानिकों का ध्यान अंतरिक्ष की ओर आकर्षित हुआ था।
द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी ने अपने वी-2 राकेटों (V-2 rockets) के द्वारा ब्रिटेन पर भारी बमबारी (bombardment) की थी। परन्तु युद्ध में जर्मनी के द्वारा आत्मसमर्पण करने पर उसके बचे हुए वी-2 राकेटों को अध्ययन के लिये अमेरिका में लाया गया। इन राकेटों का अध्ययन करने के पश्चात्, 1949 में न्यू मैक्सिको के व्हाइट सैंड नामक स्थान से प्रथम बार एक सोपानी राकेट (step rocket) दागा गया, जिसका ऊपरी भाग या 'अपर स्टेज वायुमण्डल को चीरता हुआ समुद्र तल से लगभग 390 किमी की ऊँचाई तक चला गया था। इस राकेट का निचला भाग या 'लोअर स्टेज' वस्तु जर्मनी के वी-2 रॉकेट का ही एक संशोधित रूप था। अत: वी-2 रॉकेट को आधुनिक अन्तरिक्षयानों का पूर्वज कहा जा सकता है।
1950 के दशक में राकेट तकनीक तथा अन्तरिक्ष-विजय के क्षेत्र में संयुक्त राज्य तथा तत्कालीन सोवियत संघ के मध्य एक स्पर्धा सी उत्पन्न हो गयी| 1955 में संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति निवास, व्हाइट हाउस से यह घोषणा की गई थी कि 1957-58 के अंतरराष्ट्रीय भूभौतिकीय वर्ष (International Geophysical Year) में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक कृत्रिम उपग्रह (artificial satellite) छोड़ेगा। परन्तु इस प्रस्तावित उपग्रह से पूर्व, तत्कालीन सोवियत संघ ने 4 अक्टूबर 1957 को स्पूतनिक-1 (Sputnik I) नामक अपने प्रथम उपग्रह को अंतरिक्ष में छोड़ दिया। पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करते हुए, इस उपग्रह के द्वारा भेजे गये रेडियो संकेत सारे संसार में प्राप्त हुए थे। इस सफलता ने अंतरिक्ष युग के वास्तविक प्रारम्भ को चिह्नित कर दिया। 1959 के जनवरी, सितम्बर व अक्टुबर माह में सोवियत संघ ने तीन और उपग्रह-लनिक-1.लनिक-2 वूनिक-3, अन्तरिक्ष में छोडे थे। इनमें लूनिक-1 (Lunik-1) चन्द्रमा से लगभग 6400 किमी दूर रहकर अपने पथ पर आगे बढ़ गया; लूनिक-2 चन्द्रमा की सतह से टकरा गया था लूनिक-3 ने चन्द्रमा की परिक्रमा करते हुए पहली बार चन्द्रमा के उस भाग के फोटो चित्र लिये जो भाग कभी भी हमारी पृथ्वी के सामने नहीं आता। 12 अप्रैल 1961 को सोवियत संघ के यूरी गागरिन (Yuri Gagarin) नामक व्यक्ति को संसार का प्रथम अंतरिक्ष मानव-यात्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ। उसने अपनी 1 घन्टा 48 मिनट की अन्तरिक्ष-यात्रा में वोस्टक-1 (Vostok-1) अंतरिक्ष यान के द्वारा लगभग 325 किमी ऊँचा उड़ते हुए, समस्त पृथ्वी का चक्कर लगाया था।
1960-61 में अमेरिका-वियतनाम युद्ध के दौरान फोटोग्राफी की एक ऐसी तकनीक का पता चला जिसने अंतरिक्ष-उड़ानों के सैन्य एवं शान्तिकालीन उपयोगों को स्पष्ट कर दिया। इस युद्ध में खाकी वर्दी-धारी वियतनामी गुरिल्ला छापामार सैनिक हमला करने के बाद वनों व जंगलों में छिप जाते थे तथा अमेरिका के टोही विमान वनों में इन छापामारों की गतिविधि व ठिकानों का पता लगाने में असमर्थ थे। इस समस्या को हल करने के लिये वायुयानों के कैमरों में मिथ्या-रंग (false colour) फोटोग्राफी फिल्म प्रयोग की गई, जिसमें हरी वनस्पति का रंग लाल (red) तथा खाकी वर्दी का रंग नीला (blue) आने के कारण न केवल छापामारों को ढूढने का कार्य सरल हुआ अपितु यह भी पता चल गया कि मिथ्या-रंग फोटोग्राफी की सहायता से वन एवं कृषि संसाधनों का सफलतापूर्वक मानीटरन किया जा सकता है। अत:1960-61 के पश्चात् संयुक्त राज्य व सोवियत संघ आदि पुरोगामी देशों के अंतरिक्ष प्रोग्रामों में अंतरिक्ष की खोज के साथ-साथ दूरसंवेद के द्वारा संसाधनों के मानीटरन का एक नया आयाम जुड़ गया। संयुक्त राज्य के मरकरी (Mercury), जेमिनी (Gemini) तथा अपोलो (Apollo) प्रोग्राम उपर्युक्त तथ्य के अच्छे उदाहरण है।
5 मई 1961 के मरकरी मिशन में ऐलन बी. शैपर्ड (Alan B. Shepard) को प्रथम अमेरिकन अन्तरिक्ष यात्री में बनने का गौरव मिला। उसने अपनी 15 मिनट की अन्तरिक्ष यात्रा एक 70-मिमी स्वचालित कैमरे से 150 उत्कृष्ट फोटो चित्र प्राप्त किये थे। इन फ़ोटो चित्र में मेघावरण (cloud cover) व महासागरीय भाग का चित्रण था। 20 फरवरी 1962 के मरकरी मिशन में जोहन ग्लेन (John Glenn) ने किसी अमेरिकन अन्तरिक्ष यात्री के रूप में पहली बार पृथ्वी की परिक्रमा की थी। उसने इस मिशन में पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा करते हुए अंतरिक्ष से पृथ्वी के 48 रंगीन फोटो चित्र खींचे जिनमें कुछ फोटो चित्र उत्तरी-पश्चिमी अफ्रीका के मरुस्थलीय भागों को दिखलाते थे। जेमिनी प्रोग्राम में 80-मिमी लेन्स वाले संशोधित कैसे ब्लड (Hasselblad) कैमरे का प्रयोग किया गया इस प्रोग्राम के GT-4 मिशन का एक उद्देश्य भू-विज्ञान के क्षेत्र में दूरसंवेद के अनुप्रयोग (application) की सम्भावनाओं का पता लगाना भी था । GT-4 मिशन में दक्षिणी-पश्चिमी संयुक्त राज्य, उत्तरी मैक्सिको तथा उत्तरी अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका व एशियाई भागों के जो फोटो चित्र प्राप्त हुए, उनके अध्ययन-विश्लेषण से भू-आकृति विज्ञान (geomorphology), विवर्तनिकी (tectonics) तथा ज्वालामुखी विज्ञान (volcanology) के क्षेत्र में कुछ नवीन एवं रोमांचक तथ्यों को पता चला था। जैमिनी प्रोग्राम की अन्य उड़ानों में विभिन्न भौगोलिक एवं महासागरीय परिघटनाओं का चित्रण किया गया जिसके फलस्वरूप इस प्रोग्राम के अन्त तक 32° उत्तरी अक्षांश से 32° दक्षिणी अक्षांश के मध्य स्थित क्षेत्र के 1: 2400000 मापनी पर लगभग 1100 उच्चकोटि के रंगीन फोटो चित्र प्राप्त हो गये।
23 जुलाई 1962 में संयुक्त राज्य ने टेलस्टार (Telstar) नामक एक उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ा था। 88 सेमी व्यास वाले तथा 77 किलो भारी इस उपग्रह की सहायता से पहली बार अटलांटिक महासागर के आर-पार टेलीविजन प्रोग्राम को सफलतापूर्वक रिले (relay) किया गया था। 1967 के ऑर्बिटर (Orbiter) प्रोमो में चन्द्रमा की सम्पूर्ण सतह का परिशुद्ध (precise) मानचित्रण कर लिया गया जिससे भविष्य में चन्द्रमा पर मानव के उतरने का उपयुक्त स्थान चुना जा सके। जेमिनी प्रोग्राम की भाँति अपोलो प्रोग्राम में भी कई मानवयुक्त उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़े गए जिनका उद्देश्य चन्द्रमा की खोज तथा पृथ्वी का दूरसंवेद था । उदाहरणार्थ, दिसम्बर 1968 के अपोलो-8 मिशन में बोरमन (Borman), लेवल (Lovell) तथा एड्स (Anders) नामक तीन अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों ने चन्द्रमा की 10 बार परिक्रमा करके अनेक फ़ोटो चित्र पृथ्वी पर भेजे थे। अपोलो-9 की उड़ान में भू-संसाधनों का अध्ययन करने के लिये पहली बार बहु-स्पेक्ट्रमी कक्षीय फोटोग्राफी (multi-spectral orbital photography) का नियंत्रित प्रयोग संभव हो सका था। इस उड़ान में विद्युत चालित (electrically driven) 70-मिमी हैसिलब्लाड चार-कैमरा व्यूह (Hasselblad four-camera array) के द्वारा चार प्रकार की फिल्मों-(i) हरे रंग के फिल्टर के साथ पेन्क्रोमेटिक फिल्म (panchromatic), (ii) लाल रंग के फिल्टर के साथ पेन्क्रोमेटिक फिल्म, (i) कृष्ण-स्वेत अवरक्त (black and white infra-red) फिल्म तथा (iv) रंगीन अवरक्त (colour infra-red) फिल्म, पर संयुक्त राज्य के अनेक फोटो चित्र प्राप्त हुए थे। अपोलो प्रोग्राम की सफलता का चरम उत्कर्ष अपोलो-11 मिशन में प्राप्त हुआ जब जुलाई 1969 में नील आर्मस्ट्रांग (Neil Armstrong) तथा एडविन एल्ड्रिन (Edwin Aldrin) नामक दो अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों ने पहली बार चन्द्रमा की सतह पर अपने पैर रखे थे। नवम्बर, 1969 के अपोलो-12 मिशन में अमेरिका के चार्ल्स कोनार्ड (Charles Conrad), एलन बीन (Alan Bean) तथा रिचर्ड गोर्डन (Richard Gordon) नामक अंतरिक्ष यात्रियों ने चन्द्रमा की सतह पर नवीन वैज्ञानिक उपकरण स्थापित किये तथा अपोलो-11 मशीन में स्थापित भूकंपमापी आदि के खराब पुजों को जाँच हेतु अपने साथ ले आये। अपोलो-11 व 12 मिशन में प्राप्त चन्द्रमा की सतह के शैल नमूनों (rock samples) को विभिन्न देशों में उपहार के रूप में भेजा गया था।
1973 में संयुक्त राज्य ने स्काईलैब (Skylab) नामक एक मानवयुक्त प्रयोगशाला को अन्तरिक्ष में स्थापित कर दिया। स्काई लैब के 'भू संसाधन प्रयोग पैकेज' (Earth Resource Experiment Package) में अन्य वैज्ञानिक उपकरणों के साथ-साथ, एक छ- कैमरा बहु-स्पेक्ट्रमी व्यूह, एक भू-टैरेन कैमरा (earth terrain camera), एक 13-चैनल का बहु-स्पेक्ट्रमी क्रमवीक्षक, एक स्पेक्ट्रमी ऊर्जामापी (spectroradiometer) तथा एक लघु तरंग तंत्र (microwave system) लगाया गया था। इन संवेदकों की सहायता से स्काइलैब के अंतरिक्ष यात्रियों ने पृथ्वी के भिन्न-भिन्न भागों के लगभग 3500 प्रतिबिम्ब प्राप्त किये थे जो आज भी बहुत उपयोगी माने जाते हैं।
उपर्युक्त सफलताओं के पश्चात् संयुक्त राज्य ने भू-संसाधनों का गहन अध्ययन करने के उद्देश्य से अपना लैंडसैट प्रोग्राम (Landsat programme) प्रारम्भ किया था। इसके साथ-साथ फ्रांस तथा भारत आदि कुछ अन्य देशों में भी दूरसंवेद की सहायता से संसाधनों के संरक्षण के प्रयास किये जाने लगे। इन प्रोग्रामों को आगे चलकर समझाया जायेगा।
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