मौसमी संकट और आपदाएँ (मौसम संबंधी खतरे और आपदाएँ) प्रकृत्तिजन्य अप्रत्याशित ऐसी सभी घटनाएँ जो प्राकृतिक प्रक्रमों को इतना तीव्र कर देती हैं कि विनाश की स्थिति उत्पन्न होती है, चरम प्राकृतिक घटनाएँ या आपदा कहलाती है। इन चरम घटनाओं या प्रकोपों से मानव समाज, जन्तु एवं पादप समुदाय को अपार क्षति होती है। चरम घटनाओं में ज्वालामुखी विस्फोट, दीर्घकालिक सूखा, भीषण बाढ़, वायुमण्डलीय चरम घटनाएँ; जैसे- चक्रवात, तड़ित झंझा, टॉरनेडो, टाइफून, वृष्टि प्रस्फोट, ताप व शीत लहर, हिम झील प्रस्फोटन आदि शामिल होते हैं। प्राकृतिक और मानव जनित कारणों से घटित होने वाली सम्पूर्ण वायुमण्डलीय एवं पार्थिव चरम घटनाओं को प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। इन आपदाओं से उत्पन्न विनाश की स्थिति में धन-जन की अपार हानि होती है। प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं का वर्णन निम्न प्रकार है:- चक्रवात (Cyclone) 30° उत्तर से 30° दक्षिण अक्षांशों के बीच उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्णकटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं। ये आयनवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाला एक निम्न वायुदाब अभिसरणीय परिसंचरण तन्त्र होता है। इस चक्रवात का औसत व्यास लगभग 640 किमी...
विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा
(Electromagnetic Energy)
हरात्मक (harmonic) एवं ज्यावक्रीय (sinusoidal) तरंगों के रूप में प्रकाश के वेग से संचार (propagation) या गति करने वाली ऊर्जा को विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा कहते हैं। तरंग सिद्धांत के अनुसार किसी विद्युत-चुम्बकीय तरंग में एक ज्यावक्रीय विद्युत तरंग (sinusoidal electric wave) तथा एक ठीक उसी जैसी ज्यावक्रीय चुम्बकीय तरंग (sinusoidal magnetic wave) होती है। ये दोनों तरंगें न केवल आपस में समकोण पर होती हैं अपितु तरंग संचरण की दिशा से भी समकोण बनाती हैं। चित्र 15.3 में किसी विद्युत-चुम्बकीय तरंग की विद्युत तरंग को A अक्षर से तथा चुम्बकीय तरंग को M अक्षर से इंगित किया गया है । प्रकाश विज्ञान (optics) के नियमानुसार जब कोई प्रकाश किरण विभिन्न प्रकाशिक घनत्वों (optical densities) के माध्यम में संचार करती है तो वह तरंग के रूप में व्यवहार करने लगती है। दृश्य प्रकाश (visible light) विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा का केवल एक रूप है; इसके अन्य रूपों में ऐक्स-किरणें (x-rays), पराबैंगनी किरणें (ultraviolet rays), ऊष्मा (heat), लघु तरंगें (microwaves) तथा रेडियो तरंगें (radio waves) विशेष उल्लेखनीय हैं। विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा के उपर्युक्त सभी रोगों के संचरण का ढंग एक जैसा होता है।
यहाँ यह संकेत करना आवश्यक है कि किसी संवेदक को विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा का आभास केवल उस दशा में होता है जब यह ऊर्जा किसी पदार्थ से अन्योन्यक्रिया करती है। इस अन्योन्यक्रिया में विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा कुछ ऐसा व्यवहार करती है मानो उसकी रचना, ऊर्जा व संवेग (momentum) के गुण रखने वाले अनेक घटक पिण्डों (constituent bodies) या फ़ोटॉनो (photons) के मिलने से हुई है। इन फ़ोटॉनों की पदार्थ से अन्योन्यक्रिया होने पर विद्युत संकेत उत्पन्न होते हैं जिनकी शक्ति उनमें विद्यमान फोटॉनों की संख्या के अनुपात में होती है।
दूरसंवेद में इन्हीं विद्युत संकेतों के आधार पर प्रतिबिम्ब प्राप्त किये जाते हैं।
दूरसंवेद की दृष्टि से विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के तीन प्रमुख लक्षणों (properties)-(i) वेग, (ii) तरंग-दैर्ध्य तथा (iii) बारंबारता, को भली-भाँति समझ लेना आवश्यक है।
[I] तरंग वेग
(Wave velocity)
सभी प्रकार की विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के संचरण का वेग समान होता है। चूंकि प्रकाश भी विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा का ही एक रूप है अतः प्रकाश के वेग (speed of light) को सभी विद्युत-चुम्बकीय तरंगों का वेग मान लिया जाता है। किसी निर्वात (vacuum) में प्रकाश अथवा किसी अन्य विद्युत-चुम्बकीय तरंग का वेग 299,793 किमी प्रति सेकंड होता है। गणना की सुविधा के विचार से इस वेग को सामान्यतः 300,000 किमी प्रति सेकंड अथवा 3x10° मीटर प्रति सेकंड मान लिया जाता है। गणितीय सूत्रों में प्रकाश के वेग लिये अंग्रेज़ी का छोटा अक्षर (c) प्रयोग करते हैं। यहाँ यह बात पुनः समझ लेनी चाहिए कि 30 करोड़ मीटर प्रति सेकंड का यह प्रकाश-वेग केवल निर्वात में ही सम्भव है। दूसरे शब्दों में, जब कोई विद्युत-चुम्बकीय तरंग किसी भिन्न घनत्व वाले माध्यम में संचार करती है तो उसके उपयुक्त वेग में अंतर उत्पन्न हो जाता है।
[I।] तरंग-दैर्ध्य
(Wavelength)
जैसा कि चित्र 15.3 से स्पष्ट है, किसी विद्युत-चुम्बकीय तरंग के किन्हीं दो उत्तरोत्तर तरंग-शीर्षों (successive wave peaks) के बीच की दूरी तरंग-दैर्ध्य कहलाती है। इस दूरी को सामान्यतः माइक्रोमीटर (um), जिसे पहले माइक्रोन (micron) कहते थे तथा ग्रीक भाषा के u / (म्यू) अक्षर से इंगित करते थे, में लिखा जाता है। एक माइक्रोमीटर का मान 1 मीटर के 10 लाख-वें भाग (अर्थात् 10 मी अथवा 0.000001 मी) के बराबर होता है। अतः 1 माइक्रोमीटर से कम दूरी वाले तरंग-दैय को कभी-कभी सफलता के विचार से माइक्रोमीटर के दशमलव अंकों में लिखने के बजाय नैनोमीटर (nanometre) में लिख देते हैं। एक नैनोमीटर (nm) का मान 1 मीटर के अरब-वें भाग (अर्थात 10-"मी) के बराबर होता है। गणितीय सूत्रों में तरंग-दैर्ध्य को ग्रीक भाषा के 12 (लेम्बडा, Lambda) अक्षर से इंगित करते हैं। सारणी 15.1 में मीट्रिक माप-प्रणाली की दूरी सम्बंधी विभिन्न इकाईयों (units) के मानों को मीटर में लिखने का ढंग दिखलाया गया है जिससे इस अध्याय के किसी भाग या चित्र में निम्न प्रकार लिखी दूरियों की मापों का सही-सही अर्थ समझने में किसी छात्र को कोई कठिनाई न हो।
[।।।] तरंग बारंबारता
(Wave frequency)
समय की निश्चित अवधि में किसी दिये हुए बिन्दु से होकर गुजरने वाले तरंग-शीर्षों (wave crests) की संख्या को सम्बंधित विद्युत-चुम्बकीय तरंग की बारंबारता कहते हैं। किसी तरंग की बारंबारता को पहले 'प्रति सेकंड कारों' (cycles per second) के रूप में बतलाने का चलन था परन्तु आजकल इसके लिये हर्टज़ (hertz) का प्रयोग करते हैं। जैसा कि सारणी 15.2 से स्पष्ट है, 1 चक्र प्रति सेकंड की बारंबारता को 1 हर्ट्ज कहा जाता है। गणितीय सूत्रों में बारंबारता को ग्रीक भाषा के v (नू) अक्षर से प्रदर्शित करते हैं।
विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के उपर्युक्त लक्षणों के संबंध में दो बातें विशेष उल्लेखनीय हैं। प्रथम, तरंग वेग (c), तरंग-दैध्र्य (y) तथा तरंग वारंवारता (v) के मध्य एक निश्चित पारस्परिक सम्बंध होता है, जिसे निम्नलिखित सूत्रों के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है:
(1) c=yv
(2) y= c/v
(3) v=c/y
इस प्रकार यदि तरंग वेग, तरंग-दैर्ध्य तथा तरंग बारंबारता में किन्हीं दो लक्षणों के मान ज्ञात हों तो ऊपर लिखे गये सूत्रों की सहायता से तीसरे लक्षण का मान प्राप्त हो जाता है। द्वितीय, विद्युत-चुम्बकीय तरंग के उपर्युक्त तीनों लक्षणों में बारंबारता (frequency) को सबसे अधिक आधारभूत (fundamental) लक्षण माना जाता है। इसका कारण यह है कि विभिन्न घनत्वों के माध्यम में संचार करने के साथ-साथ किसी तरंग के वेग तथा तरंग-दैर्ध्य के मानों में अन्तर उत्पन्न हो जाते हैं परन्तु उसकी बारंबारता का मान सदैव नियत (constant) रहता है। इसी कारणवश इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के रेडियो एवं रेडार ऊर्जा क्षेत्रों के नामांकन में बारंबारता नामपद्धति का प्रयोग करते हैं। परन्तु तरंग-दैर्ध्य के आधार पर विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के विभिन्न भागों को अपेक्षाकृत अधिक सरलतापूर्वक समझा जा सकता है।
चित्र 15.5 में ऊर्जा की तरंग-बारंबारता व तरंग-दैर्ध्य के प्रतिलोमी सम्बंध को दिखलाया गया है जिससे स्पष्ट होता है कि कोई तरंग-दैर्ध्य जितना छोटा होता है, उतनी ही उसकी बारंबारता अधिक होती है।
विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम
(Electromagnetic Spectrum)
यदि हम प्रकाश की बहन किरण को किसी प्रिज्म (prism) में से गुजार दें तो प्रिज्म के दूसरी ओर रखे गये सफेद रंग के पर्दे पर एक बहु-रंगीन (multi-coloured) पट्टी बन जाती है। इस पट्टी के एक सिरे पर बैंगनी (violet) रंग होता है तथा दूसरे सिरे की ओर को क्रमश: नीले (blue), हरे (green), पीले (yellow) व लाल (red) रंग होते हैं । बैंगनी, नीले, हरे, पीले व लाल रंग की पत्तियों के इस लगातार क्रम (continuum) को प्रकाश-स्पेक्ट्रम (light spectrum) अथवा दृश्य-स्पेक्ट्रम (visible spectrum) कहते हैं। 1880 में सर विलियम हर्शेल (Sir William Herschel) नामक एक अंग्रेज़ वैज्ञानिक ने तापमापी (thermometer) को प्रयोग करके यह बताया था कि पर्दे पर दिखाई देने वाले प्रकाश-स्पेक्ट्रम में बैंगनी रंग की पट्टी से लाल रंग की पट्टी की ओर को तापमान की मात्रा बढ़ती जाती है तथा तापमान की यह वृद्धि लाल सिरे से और आगे की ओर भी जारी रहती है। इस खोज के कुछ वर्ष पश्चात् विद्युत के रासायनिक प्रभावों का अध्ययन करते समय पता चला कि प्रकाश-स्पेक्ट्रम के बैंगनी सिरे से पहले स्थित भाग में भी कुछ तापमान विद्यमान है। उपर्युक्त दोनों खोजों से यह प्रमाणित हो गया कि जो प्रकाश-स्पेक्ट्रम हमें पर्दे पर दिखाई देता है, वह वस्तु किसी बड़े स्पेक्ट्रम का एक छोटा सा मध्यवर्ती भाग मात्र है। यह बड़ा स्पेक्ट्रम, जिसमें अति लघु अंतरिक्ष (cosmic) व गामा (gamma) किरणों से लेकर अपेक्षाकृत बड़ी-बड़ी रेडियो तरंगों (radio waves) तक के सभी तरंग-दैर्घ्य विद्यमान होते हैं, विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम कहलाता है। दूसरे शब्दों में, विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम में ऊर्जा के सभी तरंग-दैयों व तरंग बारंबारताओं का एक व्यवस्थित एवं लगातार क्रम मिलता है।
तरंग-दैयों के सुविधाजनक मानों के आधार पर विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम को सात बड़े-बड़े भागों या स्पेक्ट्रमी प्रदेशों (spectral regions)-(i) गामा-किरण (gamma-ray) प्रदेश, (ii) ऐक्स-किरण (x-ray) प्रदेश, (ii) पराबैंगनी (ultraviolet) प्रदेश, (iv) दृश्य (visible) प्रदेश, (v) अवरक्त (infrared) प्रदेश, (vi) लघु-तरंग (microwave) प्रदेश तथा (ii) रेडियो तरंग (radio wave) प्रदेश, में विभाजित किया जाता है (चित्र 15.4)। यहाँ यह पुनः संकेत करना आवश्यक है कि स्पेक्ट्रमी प्रदेशों को तरंग-दैर्ध्य के किन्हीं निश्चित मानों के अनुसार विभाजित करना अत्यंत कठिन है क्योंकि विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम में इन प्रदेशों का विभाजन एकदम स्पष्ट दिखलायी नहीं पड़ता (चित्र 15.5 देखिये)। अत:चित्र 15.4 व सारणी 153 में विभिन्न स्पेक्ट्रमी प्रदेशों की जो तरंग-दैर्घ्य सीमाएँ (wavelength limits) दिखलायी गई हैं, वे पूर्णत स्वेच्छ (arbitrary) एवं अध्ययन की सुविधा पर आधारित हैं।
जैसा कि हम आगे पढ़ेंगे, कुछ स्पेक्ट्रमी प्रदेशों, जैसे गामा-किरण प्रदेश, ऐक्स-किरण प्रदेश तथा अधिकांश पराबैंगनी प्रदेश, की ऊर्जा वायुमंडल में ही अवशोषित (absorbed) हो जाती है अत: इन प्रदेशों के तरंग-दैर्ध्य को दूरसंवेद के कार्य में प्रयोग नहीं किया जा सकता। इसी कारणवश हम धरातल के दूरसंवेद में विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के केवल लघु-तरंग, अवरक्त व दृश्य स्पेक्ट्रमी प्रदेशों तथा पराबैंगनी प्रदेश के लम्बे तरंग-दैर्य वाले भाग (अर्थात् फोटोग्राफी पराबैंगनी बैन्ड) का ही उपयोग कर पाते हैं। ऊपर लिखे गये सात बडे-बडे स्पेक्टमी प्रदेशों के उपविभागों को तरंग-दैर्ध्य बैंड (wavelength band) अथवा केवल बैन्ड (band) की संज्ञा दी जाती हैं, जैसे दृश्य प्रदेश के नीला, हरा व लाल बैंड। दूरसंवेद की दृष्टि से विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के विभिन्न प्रदेशों एवं उनके कुछ उपविभागों या बैन्डों के तुलनात्मक लक्षणों को सारणी 15.3 में दिखलाया गया है। दिन के समय दृश्य प्रदेश के हरे बैन्ड से सम्बंधित 0.5 um तरंग-दैर्ध्य पर पृथ्वी से विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा के परावर्तन की मात्रा सबसे अधिक होती है । ऊर्जा के परावर्तन की इस अधिकतम मात्रा को परावर्तित ऊर्जा शिखर (reflected energy peak) कहते हैं। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ऊर्जा के परावर्तन की क्रिया है। केवल दिन में सम्पन्न होती है परन्तु पृथ्वी से ऊर्जा के विकिरण (radiation) की क्रिया दिन-रात चलती रहती है। पृथ्वी से विकिरित (radiated) ऊर्जा की सबसे अधिक मात्रा, जिसे विकिरण ऊर्जा शिखर (radiant energy peak) कहते हैं, अवरक्त प्रदेश के तापीय बैन्ड (thermal band) से सम्बंधित 9.7um तरंग-दैर्ध्य पर प्राप्त होती है।
ऊर्जा की पदार्थ से अन्योन्यक्रिया
(Interaction of Energy with Matter)
दूरसंवेद में प्राकृतिक (natural) तथा कृत्रिम (artificial), दोनों प्रकार के स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा का प्रयोग होता है । इन स्रोतों से किसी ठोस (solid), द्रव (liquid) अथवा गैसीय (gaseous) पदार्थ पर पड़ने या टकराने वाली ऊर्जा को आपतित विकिरण (incident energy) कहते हैं। यह आपतित विकिरण भिन्न-भिन्न पदार्थों से भिन्न-भिन्न रूपों में अन्योन्य क्रिया करता है। इन अन्योन्य क्रिया के फलस्वरूप आपतित विकिरण के कुछ लक्षणों, जैसे (i) उग्रता (intensity), (ii) दिशा (direction), (ii) तरंग-दैर्ध्य (wave length) व (iv) प्रावस्था (phase) आदि, की मौलिक दशाओं (original conditions) में अन्तर उत्पन्न हो जाते हैं । दूरसंवेद में इन अन्तरों का संवेदन (sensing), अभिलेखन (recording) व विवेचन (interpretation) करके सम्बंधित पदार्थ के विभिन्न लक्षणों, जैसे (i) रंग (colour), (ii) आकृति (shape), (ii) आकार (size), (iv) गठन (texture) तथा (v) आन्तरिक संरचना (internal structure) आदि, की जानकारी प्राप्त करते हैं।
पदार्थ से ऊर्जा की अन्योन्यक्रिया के परिणामों को किसी वस्तु के दिखलायी देने वाले रंग के संदर्भ में भली-भाँति समझा जा सकता है। हमें किसी वस्तु का कोई रंग केवल इस कारण दिखलायी देता है क्योंकि रोशनी पड़ने पर उस वस्तु के पदार्थ ने समूचे प्रकाश स्पेक्ट्रम के सभी तरंग-दैयों का असमान मात्राओं में अवशोषण (absorption) एवं परावर्तन (reflection) किया है। उदाहरणार्थ, सभी तरंग-दैर्यों का पूर्णतः अवशोषण करने वाले पदार्थों का रंग काला, सभी तरंग-दैयों का समान किन्तु अपूर्ण अवशोषण करने वाले पदार्थों का रंग धूसर (grey) तथा सभी तरंग-दैयों का समान मात्रा में परावर्तन करने वाले पदार्थों का रंग सफेद दिखलायी देता है। इसी प्रकार लाल तथा नीले दिखलायी देने वाले पदार्थों में प्रकाश-स्पेक्ट्रम के क्रमशः अपेक्षाकृत छोटे व अपेक्षाकृत बड़े तरंग-दैर्यों का अवशोषण अधिक होता है। प्रकाश-स्पेक्ट्रम के नीले बैन्ड का अवशोषण बादामी या भग (brown) रंग उत्पन्न कर देता है तथा हरे रंग का अवशोषण और पर किसी वस्तु का रंग बैंगनी (purple) दिखलायी देने लगता है।
दूरसंवेद की दृष्टि से विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा व पदार्थ के अन्योन्यक्रियाओं के प्रक्रमों (interaction processes) के पार बड़े वर्ग है- पारगमन (ransmission), (i) प्रकीर्णन (scattering), (i) अवशोषण (absorption), (iv) परावर्तन (reflection) तथा (1) उत्सर्जन (emission) | इनमें प्रथम तीन प्रक्रम वायुमण्डल में तथा शेष दो प्रक्रम धरातल पर अपेक्षाकृत अधिक प्रभावशाली प्रतीत होते हैं (चित्र 15.6)।
[।] वायुमंडल में ऊर्जा की अन्योन्यक्रियाएँ
(Energy interactions in the atmosphere)
ऊर्जा को किसी संवेदक तक पहुँचने के लिये सदैव कुछ दूरी तय करनी पड़ती है, जिसे पथ-दूरी (path length) कहते हैं। प्लेटफार्म की अवस्थिति तथा प्रयोग किये गये संवेदक की प्रकार के अनुसार इस पथ-दूरी के मानों में अन्तर मिलना स्वाभाविक है। उदाहरणार्थ, धरातल की अन्तरिक्ष-आधारित फोटोग्राफी में सूर्य की किरणों को सूर्य से कैमरे तक की अपनी यात्रा में समूचे वायुमण्डल को दो बार पार करना पड़ता है। इसके विपरीत वायुमण्डल-आधारित धरातल के तापीय दूरसंवेद (thermal remote sensing), जिसमें किसी तापीय संवेदक की सहायता से पृथ्वी की उत्सर्जित ऊर्जा (emitted energy) का अभिलेखन होता है, में यह पथ-दूरी अपेक्षाकृत बहुत छोटी होती है। दूरसंवेद में वायुमण्डल के प्रभावों की न्यूनाधिकता काफी सीमा तक पथ-दूरी की न्यूनाधिकता पर निर्भर करती है। किसी संवेदक को प्राप्त होने वाली ऊर्जा पर वायुमण्डल के प्रभावों को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:
1. ऊर्जा का पारगमन (Transmission of energy)- किसी पदार्थ में होकर ऊर्जा के गुजर जाने की क्रिया पारगमन कहलाती है। जब विद्युत-चुम्बकीय विकिरण किसी एक घनत्व के माध्यम (medium) से दूसरे घनत्व वाले माध्यम, जैसे हवा से जल में प्रवेश करता है तो उसका वेग परिवर्तित हो जाता है । निर्वात (vacuum) में विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा के मूल वेग (original velocity) तथा किसी पदार्थ में उसके परिवर्तित वेग (changed velocity) के अनुपात को अपवर्तन सूचकांक (index of refraction) कहते हैं अर्थात
अपवर्तन सूचकांक=निर्वात में ऊर्जा का वेग/पदार्थ में ऊर्जा का वेग
चूँकि पृथ्वी का वायुमण्डल भिन्न-भिन्न घनत्व की परतों से निर्मित है अत: विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा के वेग पर इसका प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।
2. ऊर्जा का प्रकीर्णन (Scattering of energy) वायुमण्डल में विद्यमान कणों (particles) के द्वारा विद्युत-चुम्बकीय विकिरण का सभी दिशाओं में विक्षेपण (deflection) अर्थात विकिरण का विसरण (diffusion) होना प्रकीर्णन कहलाता है। इस प्रकीर्णन के निम्नलिखित तीन मुख्य भेद होते हैं :
(a) रैले प्रकीर्णन (Rayleigh scatter)-तरंग-दैर्ध्य की तुलना में बहुत छोटे व्यास वाले वायुमण्डलीय अणुओं (atmospheric molecules) से विकिरण की अन्योन्यक्रिया रैले प्रकीर्णन उत्पन्न करती है। यदि यह प्रकीर्णन न होता तो हमें आकाश का रंग नीले के बजाय काला दिखाई देता। वस्तु सूर्य की रोशनी पड़ने पर ये अणु दृश्य प्रकाश के अन्य तरंग-दैयों की तुलना में अपेक्षाकृत छोटे (नीले) तरंग-दैर्ध्य का प्रभावोत्पादक ढंग से प्रकीर्णन कर देते हैं जिसके फलस्वरूप हमें दिन में आकाश का रंग नीला प्रतीत होता है। दोपहर की तुलना में सूर्य के उदय तथा अस्त होते समय वायुमण्डल में सूर्य-किरणों की पथ-दूरी बढ़ जाती है जिसके फलस्वरूप छोटे तरंग-दैर्ध्य (नीले) का प्रकीर्णन (तथा अवशोषण) इतना पूर्ण हो जाता है कि इन समयों में हम केवल कम प्रकीर्णन (less scattered) लाल व नारंगी रंग वाले लम्बे तरंग-दैर्ध्य देख पाते हैं। रैले प्रकीर्णन के कारण प्रतिबिम्ब धुंधले हो जाते हैं तथा रंगीन फ़ोटो चित्रों में एक हल्के नीले-धूसर रंग की छाया सी पड़ जाती है जो फोटो चित्र को अस्पष्ट बना देती है। इस प्रभाव को कम करने के लिये कैमरे के लेन्स पर उपयुक्त फिल्टर लगाये जाते हैं।
(b) मी-प्रकीर्णन (Mie scatter)-यदि वायुमण्डलीय अणुओं के व्यास संवेद किये जाने वाले तरंग-दैयों के बराबर हैं तो उन अणुओं से मी प्रकाश के प्रकीर्णन की उत्पत्ति होती है। वायुमण्डल में विद्यमान जल-वाष्प (water vapour) तथा धूलि-कण (dust particles) इस प्रकीर्णन के मुख्य कारण है। अपेक्षाकृत लम्बे तरंग-दैर्ध्य पर रैले प्रकीर्णन की तुलना में मी-प्रकीर्णन का प्रभाव अधिक होता है।
(c) अवरणात्मक प्रकीर्णन (Non-selective scatter) किसी एक चुनिन्दा तरंग-दैर्ध्य के बजाय कई तरंग-दैर्ध्य का एक-समान बिखराव अवरणात्मक प्रकीर्णन कहलाता है। यह प्रकीर्णन उस दशा में सम्भव है जब संवेद किये जाने वाले तरंग-दैर्ध्य की तुलना में प्रकीर्णन करने वाले कणों के व्यास बहुत बड़े हों । उदाहरणार्थ, जल की बूँदें (water droplets), जिनका व्यास सामान्यत: 5 से 100 mm तक होता है, विकिरण का अवरणात्मक प्रकीर्णन करती हैं क्योंकि इनमें दृश्य प्रदेश से अवरक्त प्रकाश के परावर्तित अवरक्त बैन्ड तक के सभी तरंग- दैध्र्यों का समान रूप से प्रकीर्णन करने की क्षमता होती है। चूँकि अवरणात्मक प्रकीर्णन में दृश्य प्रदेश के नीले, हरे व लाल सभी बैन्डों का समान मात्रा में प्रकीर्णन हो जाता है इसलिये हमें मेघ व कुहरे का रंग श्वेत दिखलायी देने लगता है।
3. ऊर्जा का अवशोषण (Absorption of energy) पदार्थों में आपतित विकिरण की हानि को विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा का अवशोषण कहते हैं। किसी पदार्थ के द्वारा अवशोषित की गई ऊर्जा का अधिकांश भाग उस पदार्थ को गर्म करने में व्यय होता है। । वायुमण्डल में विद्यमान ओज़ोन (ozone), कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide) तथा जल-वाष्प (water vapour), जिन्हें क्रमशः 0, CO, तथा H0 संकेताक्षरों से प्रकट करते हैं, सूर्य से प्राप्त विकिरण के सबसे बड़े अवशोषक हैं। ये गैस पदार्थ विभिन्न स्पेक्ट्रमी प्रदेशों के कुछ तरंग-दैर्थ्यो का न के बराबर, कुछ का आंशिक रूप में तथा कुछ का पूर्णरूपेण अवशोषण कर लेते हैं। स्पष्ट है कि अवशोषण के कारण विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा के जिन तरंग-दैॉ का मार्ग वायुमण्डल में ही अवरुद्ध हो जाता है, उन तरंग-दैर्ध्य का धरातल के दूरसंवेद में प्रयोग नहीं हो सकता। दूसरे शब्दों में, धरातल का दूरसंवेद केवल उन तरंग-दैर्ध्य परासों (wavelength ranges) में किया जाता है जिनके लिये वायुमण्डल विशेष रूप से पारगम्य (Transmissive) होता है। दूरसंवेद के लिये उपयुक्त इस तरह के तरंग-दैर्ध्य परासों को वायुमण्डलीय खिड़कियाँ (atmospheric windows) कहा जाता है क्योंकि वायुमण्डल अथवा अन्तरिक्ष में स्थित कोई संवेदक केवल इन्हीं खिड़कियों से धरातल को झाँक सकता है। जैसा कि हम आगे पढ़ेंगे, भिन्न-भिन्न वायुमण्डलीय खिड़कियों में अलग-अलग प्रकार के संवेदक प्रयोग में लाये जाते हैं।
[I।] धरातलीय लक्षणों से ऊर्जा की अन्योन्यक्रियाएँ
(Energy interactions with earth surface features)
धरातल पर आपतित ऊर्जा (incident energy) की तीन मूलभूत अन्योन्य क्रियाएँ- (i) परावर्तन, (ii) अवशोषण तथा/अथवा (ii) पारगमन, सम्भव हैं। उदाहरणार्थ, किसी जलाशय पर आपतित ऊर्जा की कुल मात्रा के कुछ भाग का परावर्तन, कुछ का अवशोषण तथा शेष भाग का पारगमन हो जाता है (चित्र 15.7)| धरातल पर आपतित ऊर्जा की इन अन्योन्यक्रियाओं के पारस्परिक सम्बंध को सूत्र के रूप में निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:
E1 (y) = ER (y) + EA (y)+ET(T)
अर्थात् किसी धरातलीय लक्षण पर आपतित ऊर्जा की कुल मात्रा E1(y) का मान, उस लक्षण से परावर्तित ऊर्जा ER(y), अवशोषित ऊर्जा EA(y) तथा पारगमित ऊर्जा ET(y) के योग के बराबर होता है। चूंकि विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा के पारगमन (transmission) व अवशोषण (absorption) का पहले उल्लेख किया जा चुका है अत: यहाँ ऊर्जा के परावर्तन (reflection) की अन्योन्यक्रिया को समझाया गया है।
किसी पदार्थ से टकराकर आपतित विकिरण के वापिस लौट जाने की क्रिया ऊर्जा का परावर्तन कहलाती है। दूरसंवेद में ऊर्जा की इस अन्योन्यक्रिया का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि अधिकांश संवेदकों को ऐसे तरंग-दैर्ध्य बैन्डों में प्रयोग करते हैं जिनमें परावर्तित ऊर्जा की प्रचुरता होती है। वस्तुत: परावर्तित ऊर्जा के ज्यामितीय प्रतिरूप का सम्बंधित पदार्थ की सतह की रूक्षता (roughness) से गहरा सम्बंध होता है। रूक्षता की मात्रा के आधार पर सतहों के दो मुख्य वर्ग होते हैं- (i) नियमित (specular) सतह तथा (ii) विसरित (diffuse) या लैम्बर्टियन (Lambertian) सतह | दर्पण के समान निष्कोण (smooth), सपाट व चिकनी सतह को नियमित सतह कहते हैं तथा ऊबड़-खाबड़ रूक्ष सतह को विसरित सतह की संज्ञा देते हैं नियमित सतह से हुए परावर्तन में दर्पण के प्रतिबिम्ब की भाँति ऊर्जा के परावर्तन-कोण (angle of reflection) का मान ऊर्जा के आपतन-कोण (angle of incidence) के मान के बराबर होता है। इसके विपरीत विसरित सतह आपतित ऊर्जा का सभी दिशाओं में एक-समान परावर्तन कर देती है। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि पृथ्वी की अधिकांश सतहें, उपर्युक्त दोनों प्रकार की सतहों के किसी बीच की दशा को प्रकट करती हैं । चित्र 15.8 में चार प्रकार की सतहों-(i) नियमित (specular), (ii) करीब-करीब नियमित (near-specular), (ii) करीब-करीब विसरित (near-diffuse) तथा (iv) विसरित (diffuse), से परावर्तित ऊर्जा के ज्यामितीय प्रतिरूप दिखलाये गये हैं।
परावर्तन की दृष्टि से किसी सतह की कोटि या वर्ग निश्चित करने के लिये उस सतह की रूक्षता व आपतित ऊर्जा के तरंग-दैर्ध्य की तुलना करना परम आवश्यक है। उदाहरणार्थ, रेडियो प्रदेश में ऊबड़-खाबड़ सतह निष्कोण तथा दृश्य प्रदेश में महीन रेत से निर्मित सतह रूक्ष प्रतीत हो सकती है। संक्षेप में,यदि किसी सतह में ऊँचे-नीचे भागों का अन्तर, आपतित ऊर्जा के तरंग-दैर्ध्य से बहुत बड़ा है तो उस सतह को रूक्ष कहा जायेगा। दूरसंवेद की दृष्टि से ऊर्जा के विसरित परावर्तन (diffuse reflection) को अधिक उपयोगी माना जाता है क्योंकि नियमित परावर्तन (specular reflection) में सम्बंधित सतह के रंग के बारे में कोई स्पेक्ट्रमी सूचना निहित नहीं होती।
[।।।] ऊष्मा का उत्सर्जन
(Emission of heat)
किसी पदार्थ के द्वारा वायुमण्डल में छोड़ी गई ऊष्मा को उत्सर्जित ऊष्मा कहते हैं। पृथ्वी पर ज्वालामुखी क्षेत्रों को छोड़कर, पृष्ठीय तापमान का मुख्य कारण सूर्य से प्राप्त ऊर्जा है जिसका कुछ अंश धरातल में अवशोषित हो जाता है। ऊष्मा के रूप में अवशोषित इस ऊर्जा का पृथ्वी से पुनः वायुमण्डल में उत्सर्जन होता रहता है। यह उत्सर्जन मध्य-अवरक्त तरंग-दैयौँ (mid-IR wavelengths) पर होता है अर्थात् इसके तरंग-दैयों के मान से 4 um 50um पर मिलता है।
दूरसंवेद के क्षेत्र में ऊर्जा की उपर्युक्त सभी अन्योन्यक्रियाओं के महत्व को ऊर्जा-स्रोतों, वायुमण्डलीय खिड़कियों तथा संवेदन-तंत्रों के अन्तर्सम्बंध से भली-भांति समझा जा सकता है (चित्र 15.9)। चित्र 15.9 A में सूर्य तथा धरातलीय लक्षणों से उत्सर्जित ऊर्जा के स्पेक्ट्रमी वितरण को अलग-अलग वक्रों के द्वारा दिखलाया गया है। तरंग-दैर्यों की लघुगणक मापनी (logarithmic scale) पर बनाये गये ये दोनों वक्र दूरसंवेद के लिये आवश्यक ऊर्जा के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोतों को प्रदर्शित करते हैं। चित्र 15.9 B में विभिन्न स्पेक्ट्रमी प्रदेशों के उन बैन्डों अथवा तरंग-दैर्ध्य परासों को छायांकित कर दिया गया है जिनकी ऊर्जा को वायुमण्डलीय गैसें अवशोषित कर लेती हैं। धरातल तक न पहुँच पाने के कारण इन अवशोषित तरंग-दैर्ध्य का दूरसंवेद में कोई उपयोग नहीं हो सकता। इसका यह अर्थ हुआ कि धरातल का दूरसंवेद केवल उन्हीं तरंग-दैर्ध्य बैन्डों में हो सकता है जिनकी ऊर्जा वायुमण्डल को पार करके धरातल पर पहुँच जाती है। ऐसे अबाधित तरंग-दैर्ध्य, बैंड या वायुमण्डलीय खिड़कियों को चित्र 15.9 B में पहचान हेतु छाया-रहित (unshaded) कर दिया गया है। जैसा कि चित्र 15.9 C से स्पष्ट है कि भिन्न-भिन्न वायुमण्डलीय खिड़कियों में अलग-अलग तरह के संवेदकों का प्रयोग होता है। उदाहरणार्थ, हमारी आँखें एक आवेदन के रूप में केवल दृश्य प्रदेश की वायुमंडलीय खिड़की के लिये उपयुक्त हैं । 1 0.3 से 0.9 um के मध्य स्थित वायुमण्डलीय खिड़कियों में कैमरे के द्वारा दूरसंवेद किया जा सकता है। पृथ्वी से ऊष्मा के रूप में उत्सर्जित ऊर्जा का आवेदन करने के लिये 3 से 5 um व 8 से 14um की वायुमण्डलीय खिड़कियों में तापीय क्रमवीक्षकों (thermal scanners) को संवेदकों के रूप में प्रयोग करते हैं । बह-स्पेक्टमी क्रमवीक्षकों (multispectral scanners) की सहायता से फोटोग्राफी पराबैंगनी बैन्ड से तापीय अवरक्त बैन्ड (अर्थात् 0.3 से 14.0 mm) तक की सभी वायुमण्डलीय खिड़कियों से धरातल का एक साथ संवेदन करना सम्भव है। इसी प्रकार लघु-तरंग प्रदेश (अर्थात् 01 से 100 सेमी) की किसी वायुमण्डलीय खिड़की में रेडार का प्रयोग होता है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि किसी दिये हुए दूरसंवेद प्रोग्राम में कोई व्यक्ति अपनी इच्छानुसार किसी संवेदक का चयन नहीं कर सकता। दूसरे शब्दों में, दूरसंवेद का कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व तीन बातों-(i) उपलब्ध संवेदक की स्पेक्ट्रमी सुमाहिता (spectral sensitivity), (in) इच्छित स्पेक्ट्रमी परास (spectral range) या परासों में किसी वायुमण्डलीय खिड़की का होना या न होना तथा (iii) सम्बंधित स्पेक्ट्रमी परास में प्राप्त ऊर्जा का स्रोत, परिमाण (magnitude) व स्पेक्ट्रमी संरचना (spectral composition), को ध्यान में रखना परम आवश्यक होता है।
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