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मौसमी संकट और आपदाएँ ( Meteorological Hazards and Disasters)

मौसमी संकट और आपदाएँ (मौसम संबंधी खतरे और आपदाएँ) प्रकृत्तिजन्य अप्रत्याशित ऐसी सभी घटनाएँ जो प्राकृतिक प्रक्रमों को इतना तीव्र कर देती हैं कि विनाश की स्थिति उत्पन्न होती है, चरम प्राकृतिक घटनाएँ या आपदा कहलाती है। इन चरम घटनाओं या प्रकोपों से मानव समाज, जन्तु एवं पादप समुदाय को अपार क्षति होती है। चरम घटनाओं में ज्वालामुखी विस्फोट, दीर्घकालिक सूखा, भीषण बाढ़, वायुमण्डलीय चरम घटनाएँ; जैसे- चक्रवात, तड़ित झंझा, टॉरनेडो, टाइफून, वृष्टि प्रस्फोट, ताप व शीत लहर, हिम झील प्रस्फोटन आदि शामिल होते हैं। प्राकृतिक और मानव जनित कारणों से घटित होने वाली सम्पूर्ण  वायुमण्डलीय एवं पार्थिव चरम घटनाओं को प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। इन आपदाओं से उत्पन्न विनाश की स्थिति में धन-जन की अपार हानि होती है। प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं का वर्णन निम्न प्रकार है:- चक्रवात (Cyclone) 30° उत्तर से 30° दक्षिण अक्षांशों के बीच उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्णकटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं। ये आयनवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाला एक निम्न वायुदाब अभिसरणीय परिसंचरण तन्त्र होता है। इस चक्रवात का औसत व्यास लगभग 640 किमी...

डिजिटल इमेज

डिजिटल इमेज 
(Digital image)

डिजिटल इमेज लघु आकार के समक्षेत्र पिक्चर तत्वों के क्रम में व्यवस्थित की जाती है। डिजिटल इमेज में प्रत्येक छोटे से छोटे तत्व (Element) को पिक्सल (pixel) कहते हैं। पेल (Pel) इसका संक्षिप्त नाम है। प्रत्येक पिक्सल का नाम संख्याओं में होता है जिन्हें डिजिटल नम्बर (DN) कहते हैं। पिक्सल धरातल की दूरियों को मीटर अथवा किलोमीटर में प्रदर्शित करते हैं।  पिक्सल का आकार संवेदक के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है जिसे विभेदक (Resolution) कहते हैं। पिक्सल का आकार तथा धरातलीय दूरी के अनुपातिक सम्बन्ध को ही विभेदन कराहते हैं। 
डिजिटल मानों (DN) को पंक्तियों (Rows) तथा कॉलम (Columns) में व्यवस्थित किया जाता है प्रत्येक पिक्चर तत्व अथवा पिक्सल की स्तिथि को XY निर्देशांक के द्वारा निर्धारित किया जाता है। इस प्रकार सामान्यतः डिजिटल संख्याओं (DN) को निम्न में से किसी एक प्रारूप (Format) में संग्रह किया जाता है। 

डिजिटल बिम्ब आंकड़ों का प्रारूप( Data Formats of Digital Image) - किसी बिम्ब में बहु स्पैक्ट्रल चैनल होते हैं जो बहु आयामी बिम्ब प्रदर्शित करते हैं। डिजिटल सुदूर संवेदन आँकड़े अक्सर निम्न प्रारूपों में से किसी एक प्रारूप में रखे जा सकते हैं । निम्न प्रारूप प्रायः अधिक प्रचलित माने जाते हैं। 
(१) बिप (BIP- Band Interleaved by Pixel)- बिप  फॉर्मेट के अंतर्गत अभी बैंड के आँकड़ों को एक - एक पिक्सल क्रम के अनुसार लिखा जाता है। 
(२) बिल (BIL- Band Interleaved by Line)- बिल फॉर्मेट में सभी बैंडों के आँकड़ों को एक-एक करके लाइन क्रम में लिखा जाता है।











(३) बी. एस. क्यू. (BSQ- Band Sequenrial)- बैंड अनुक्रमत्व फॉर्मेट में प्रत्येक बैंड के आंकड़ों के एक फ़ाइल पर लिखा जाता है तथा क्रम से संग्रह किया जाता है। 

उपरोक्त प्रारूपों को इस प्रकार भी समझाया गया है । कल्पना कीजिये कि हमारे पास 6 पिक्सल (तीन कालम एवं दो पंक्तियाँ) अलग-अलग तीन बैंडों के आंकड़ों निम्न प्रकार से हैं- 

 इस इमेज डाटा को BSQ, BIL या BIP में से किसी भी एक प्रारूप में सघन कर रखा जा सकता है। 

दृश्य विश्लेषण (Visual Interpretation) फोटोग्राफी हार्ड प्रतियों के लक्ष्यों की पहचान तथा उनका वर्गीकरण करना दृश्य विश्लेषण कहलाता है जो कि इमेज विशेषताओं जैसे कि आकार, आभा, प्रतिरूप, आकृति, संगठन, स्थिति, सहसम्बन्ध, छाया तथा पहलू पर आधारित होते हैं। 


डिजिटल बिम्ब का मेटाडाटा (Metadata of Digital Image)- मेटा डाटा का अभिप्राय है डाटा से डाटा का निर्माण करना। डिजिटल बिग हमेशा मेटाडाटा रखते हैं जिन्हें शीर्ष सूचनायें भी (Ileader Information) कहते हैं। बिम्ब के शीर्ष पर उद्धरित सूचनायें अति महत्वपूर्ण होती हैं इस प्रकार की सूचनायें किसी बिम्ब के पंक्तियां, कालम, स्पैक्ट्रल बैंड का नम्बर, संवेदक सूचनायें, प्राप्त किये गये आंकड़ों की तिथि व समय, सूर्य की ऊंचाई व कोण, पाथ व रो नम्बर, प्रक्षेप, बिम्ब का विस्तार, उत्पाद के प्रकार, विभेदन, आँकड़ा फाइल का प्रारूप, भौगोलिक निर्देशांक इत्यादि सूचना उपलब्ध होती हैं। कुछ बिम्बों में प्रक्रिया प्रणाली का भी उल्लेख होता है। 

डिजिटल इमेज प्रक्रमण (Digital Image Processing) 
डिजिटल इमेज प्रक्रमण, कम्प्यूटर की सहायता से किसी प्राप्त इमेज का विश्लेषण तथा परिचालन करना होता है। धरातलीय आकृतियों के उपयुक्त अन्तर विश्लेषण तथा व्याख्या के लिये डिजिटल आंकड़ों को विभिन्न एल्गोरिथ्म पर रखा जाता है। इससे इमेज का उच्चीकरण किया जाता है। वास्तव में उपग्रह से प्राप्त इमेज आंकड़ों को समझने के लिए कम्प्यूटर मॉनीटर पर प्रदर्शित किया जाता है। कभी इन आंकड़ों को तीन स्पैक्टूल बैंडों के संयुक्त रूप से जैसे कि FCC (False Colour Composit ) तथा कभी अलग अलग स्पैक्टूल बैंड इमेज द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इस प्रक्रिया के लिये विभिन्न तकनीकियों का उपयोग किया जाता है।
डिजिटल इमेज के लाभ (Advantages of digital Image)

1- डिजिटल इमेज का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें उच्च रेडियोमेट्रिक विशेषताएं होती हैं। 

2- डिजिटल आंकड़ों को संचालित(Transmit), एकत्रित ( Store) व पुनर्प्राप्त ( Retrive) किया जा सकता है। इमेज निर्मित आँकड़ों को पुनः उपयोग में लाया जा सकता है। 

3- डिजिटल इमेज में प्रयुक्त आँकड़े पुराने नहीं होते हैं। इनके द्वारा किसी भी समय इमेज निर्मित की जा सकती है। इसके विपरीत फोटोग्राफिक इमेज समय के साथ-साथ पुरानी होकर नष्ट हो जाती है। डिजिटल आंकड़ों को यदि सुरक्षित रखा जाय तो इनमें पुनः इमेज तैयार की जा सकती है जबकि फोटोग्राफिक फ़िल्म में ऐसा संभव नहीं है।
फोटोग्राफी इमेज के लाभ (Advantages of Photographic Image) 
1. फोटोग्राफी इमेज में कम्प्यूटर पर डिजिटल इमेज की तुलना में धगतलीय विभेदन उत्तम एवं अधिक होता है। 
2. फोटोग्राफ इमेज से धरातलीय आकृतियों का पुनर्निमाण ज्यामितीय दृष्टि से उपयुक्त होता है। फोटोग्राफी इमेज वृहत पैमाने (Large Scale) पर छोटे क्षेत्र को दर्शाती है।
3. फोटोग्राफी इमेज वृहत पैमाने (Large Scale) पर छोटे क्षेत्र को दर्शाती है।
फोटोग्राफिक फिल्म को स्कैन अथवा डिजिटाइजेशन के द्वारा तथा डिजिटल इमेज की फिल्म अंकन के द्वारा फोटोग्राफी इमेज में परिवर्तित किया जा सकता है।

डिजिटल इमेज प्रक्रमण प्रणाली (Digital Image Processing System)
डिजिटल इमेज प्रक्रमण प्रणाली के अन्तर्गत कम्प्यूटर हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर दोनों का होना अति आवश्यक है जिनके द्वारा इमेज आंकड़ों का विश्लेषण किया जा सके। कम्प्यूटर प्रणाली में अन्तरगामी व निर्गत युक्तियाँ (Devices), संसाधित तत्व, अन्तर सक्रिय युक्तियाँ इत्यादि को सम्मिलित किया जाना है। इस प्रणाली में बहुत अधिक मात्रा में आंकड़ों को एकत्र तथा संसाधित करने की तीव्र क्षमता होती है। इस प्रणाली के घटक केन्द्रीय संसाधित इकाई, अंतर प्रदर्शक कार्यशाला, टेप ड्राइव, CD-ROM शक्तियां, डिजिटाइजर, रंगीन मॉनीटर, प्रिन्टर, प्लाटर तथा डिस्क स्टोरेज युक्तियाँ होती हैं।
डिजिटल बिम्ब प्रक्रिया, डिजिटल बिम्ब में एल्गोरिथ्म का उपयोग करने से है जो प्रक्रियन, विश्लेषण तथा सूचनाओं को चुनने का निष्पादन (Perform) करता है। प्रायः सुदूर संवेदन आंकड़े अंकों में होते हैं, इसलिये सुदूर संवेदन में डेटा प्रक्रियन (Data processing) प्रमुख रूप से डिजिटल बिद्ध प्रक्रियन से सम्बन्धित होते हैं। वास्तव में डिजिटल इमेज प्रक्रियन कम्प्यूटर पर डिजिटल बियों का परिचालन (Manipulation) करने वाली तकनीक का एक संग्रह है। इसका प्रमुख उद्देश्य यह है कि किसी मूल विम्ब में से सूचनाओं को चुनना, जिससे वे आसानी से पहचाने जा सकें।
डिजिटल बिम्ब प्रकियन के कई कदम कई कारणों से भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिये एक बिम्ब से दूसरे बिम्ब में भिन्नता के कारण आंकड़ों को एकत्र करने का प्रारूप, विम्ब की मूल स्थिति, सूचनाओं में रुचि (भूगर्भिक, भूमि उपयोग, वनस्पति आवरण), किसी दृश्य के तत्वों का संग्रह, तथा कई अन्य कारण हो सकते हैं। सुदूर से प्राप्त आंकड़ों के प्रक्रियन के लिये कई प्रकार के सॉफ्टवेयर विकसित किये गय हैं जो विशेष रूप से बिम्बों के प्रक्रियन (Professing) तथा विश्लेषण (Analysis) का कार्य करते हैं। 

बिम्ब प्रक्रियन का श्रेणीकरण (Categorization of Image Processing)- बिम्ब प्रक्रियन कार्यों को निम्न चार प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया गया है-
1. प्रारम्भिक प्रक्रिया (Pre-Processing) 
2. बिम्ब उच्चीकरण (Image Enhancement)
3. बिम्ब रूपान्तरण (Image Transformation)
4. बिम्ब वर्गीकरण (Image Classification) 
अन्ततः सम्पूर्ण प्रक्रिया के वाद वर्गीकृत बिम्ब प्राप्त किया जाता है। चार्ट में डिजिटल बिम्ब प्रक्रियन तकनीकियों को सम्मिलित किया गया है (Bhatta,2008P304)।




इमेज प्रक्रमण तकनीकियाँ (Image Processing Techniques) 
इमेज को शुद्ध तथा उपयुक्त बनाने के लिये निम्न तकनीकियों का उपयोग किया जाता है
ऑप्टिकल तकनीकि में लेंस (Lens) की निर्माण प्रक्रिया तथा उपयोग, इमेज के ऑप्टीकल प्रक्रिया के लिये किया जाता है। यह तकनीक एक प्रकार की गति पर इमेज को दर्शाती है। यद्यपि ऑप्टीकल तत्व का निर्माण एक जटिल समस्या है। ऑप्टीकल तकनीक का उपयोग इमेज से कमियों को निकालने के लिये किया जाता है।
 डिजिटल तकनीक का उपयोग डिजिटल इमेज की प्रक्रिया के लिये भी किया जाता है। यह एक लचकदार शक्तिशाली तकनीक है। विश्लेषणकर्ता द्वारा इमेज को संसाधित करने के लिए डिजिटल तकनीक का उपयोग किया जाता है। वर्तमान समय में डिजिटल इमेजरी के कम दामों में उपलब्ध होने के कारण यह तकनीक अधिक प्रचलित हुई है।
फोटोग्राफी तकनीक फोटोग्राफी प्रक्रिया की संकल्पना पर आधारित है। इसमें इमेज को आकर्षक तथा वर्गीकृत किया जाता है।
इमेज प्रक्रमण विधियाँ (Image Processing Methods)- इमेज प्रक्रमण विधियों को तीन श्रेणियों के समूहों में रखा जा सकता है-
चार्ट-02 में सुदूर संवेदन में प्रयोग की जाने वाली प्रमुख बिम्ब प्रक्रियन तकनीकियों को-सम्मिलित किया गया है।

(A) बिम्ब पुनस्थापन तकनीक (Image Restoration Techniques)
यह तकनीक आंकड़ा की त्रुटियों, शोर, ज्यामेट्रिक विकृतियो, संग्रह एवं पृष्ट संचालनों के दौरान  त्रुटियों  को ज्ञात किया जाता है। इस तकनीक के संचालन का प्रमुख उद्देश्य इमेज का विश्वसनीय एवं आकर्षक ढंग से प्रस्तुत करना होता है। इसके द्वारा मूल  दृश्य की विकृतियाँ एवं  निम्न स्तर की इमेज को  शुद्ध किया जाता है। प्रक्रिया से पूर्व के संचालनों को इनके अन्तर्गर सम्मिलित किया जाता है जिनमें आँकड़ों का संसोधन (Rectification) तथा पुनर्स्थापन (Respiration) करने की क्रियाविधि प्रमुख है । कहने का अर्थ यह है कि प्रथम दृश्या में इमेज के अन्तर्गत जो गलतियाँ या कमियाँ होती है उनमें गधार किया जाता है। प्रायः इस प्रकार की त्रुटियाँ  स्केनर, उपग्रह तथा अंकन प्रणाली के द्वारा की जा सकती है जो निम्न हैं-
(।)सामयिक विलुप्त रेखा का पुनस्थापन (Restoring Periodic Line Dropout)
(ii) सामयिक विलुप्त रेखीय स्ट्रिप की पुनर्स्थापना (Restoring Periodic Line Strip)
(ii) बेतरतीव शेर का छनन (Filtering of Randon Noise)
(iv) वायुमंडलीय प्रकीर्णन का सुधार (Correction of Atmospheric Scattering) 
(v) ज्योमैट्रिक विकृतियों का सुधार (Correction of geometric Distortions)

(i) सामयिक विलुप्त रेखा की पुनर्स्थापित करना - बहस्पैक्ट्रल स्कैनर इमेज में कभी-कभी विभिन्न (छः) संसूचकों में से कोई एक संसूचक आंकड़ों को अंकित करने में चूक जाता है इस प्रकार इमेज में प्रति छठी स्कैन रेखा का मान शून्य अंकित किया जाता है जो कि इमेज में काली रेखा होनी है इसी रेखा को सामयिक विलुप्त रेखा कहते हैं। इस विलुप्त रेखा को पुनः स्थापित किया जाता है। इसकी पुनर्स्थापना के लिये सम्पूर्ण दृश्य में प्रत्येक स्कैन रेखा के DN मानों का औसत निकाला जाता है। तत्पश्चात प्रत्येक स्कैन रेखा की औसत DN मानों की तुलना की जाती है कोई भी स्कैन रेखा जो औसत मानों से अलग होती है उसकी पहचान त्रुटिपूर्ण रूप में की जाती है। इसके बाद अगला कदम त्रुटिपूर्ण रेखा को परिवर्तित करने का होता है। त्रुटिपूर्ण रेखा में प्रत्येक पिक्सल के औसत (DN) मान की गणना की जाती है। यह गणना त्रुटिपूर्ण रेखा के पूर्व व बाद कि रेखाओं के पिक्सल के अनुरूप DN मानो के आधार पर की जाती है। औसत DN मान को त्रुटिपूर्ण पिक्सल के स्थान पर रखा जाता है।

(ii) सामयिक विलुप्त रेखीय स्ट्रिप की पुनर्स्थापना - इमेज में कहीं-कहीं कोई रेखा उखड़ी या नग्न सी प्रतीत होती है। इस विकार का कारण संसूचक के अपसरण (Drifting) या खिसकने के द्वारा होता है। कभी-कभी संसूचक उच्च तल पर चकमीले स्कैन रेखाओं तथा निम्न तल पर धुंधली स्कैन रेखाओं को दर्शाता है। इसी को सामयिक उखड़ी रेखा कहते हैं। इस विकार को दूर करने के लिये प्रत्येक संसूचक के DN मानों से छः अलग-अलग हिस्टोग्राम तैयार किये जाते हैं तथा सम्पूर्ण दृश्य में इसकी तुलना की जाती है। प्रत्येक संसूचक के औसत तथा विचलन मानों का समायोजन सम्पूर्ण दृश्य के मानों को मिलाने के लिये किया जाता है।

(iii) बेतरतीव शोर का छनन- कभी-कभी सम्पूर्ण दृश्य में किसी पिक्सल का मान आस-पास के DN मानों से अत्यधिक या न्यूनतम होता है। इमेज में ये पिक्सल या तो चमकीले नजर आते हैं या काले धब्बे दर्शाते हैं। इसी विकार को बेतरतीव शोर कहते हैं। इस शोर को कम करने के लिये आस-पास के आठ पिक्सल का औसत निकाला जाता है तथा औसत मान शोरयुक्त पिक्सल का नया मान होता है। वायुमण्डलीय प्रकीर्णन का सुधार-वायुमण्डल लघु तरंग दैर्ध्य पर प्रकाश का प्रकीर्णन करता है लैंडसेट बहुस्पैक्ट्रल स्कैनर (MSS) इमेज में बैंड 4 (0.5 से 0.6 माइक्रोमीटर) सबसे अधिक तथा बैंड 7(0.8 से 1.1 माईक्रोमीटर) सबसे कम ऊर्जा को संसाधित करता है। वायुमण्डलीय प्रकीर्णन धुंध को उत्पन्न करता है जो कि कम विपर्यास (Contrast) का परिणाम है। यदि इस प्रभाव को ठीक किया जाय तो विपर्यास अनुपात को सुधारा जा सकता है। धुंध को हटाने के लिए बैंड 4 व बैंड 7 के मध्य एक प्रकीर्ण प्लाट बनाया जाता है तथा कम से कम वर्ग तकनीक के उपयोग से एक सीधी रेखा को प्लाट से होकर फिट किया जाता है। इससे धुंध को हटाने में सहायता मिलती है।

(iv) ज्यामितीय आकृतियों का सुधार - सुदूर संवेदन आंकड़ों को सीधे ही उपयोग में नहीं लाया जाता है क्योंकि इमेज आँकड़ों में कई जन्मजात विकृतियों होती है। इनमें से कुछ पृथ्वी के परिभ्रमण (Earthi Rotation), विशालदर्शी (Panormic) तथा लघु रेडियोमेट्रिक (Radiometric) के कारण होने के कारण होते हैं जिनमें सुधार किया जा सकता है। इस प्रकार इमेज को अन्तिम रूप देने से पहले इमेज आँकड़ों को मानचित्र के संदर्भ में शुद्ध किया जाता है। सुदूर संवेदन इमेज को मानचित्र के गुणों जैसे मापक तथा प्रक्षेप के अनुकुल परिवर्तित करने को ज्यामितिक सुधार कहा जाता है।
ज्यामितीय संसाधनों में इमेज तथा मानचित्र के मध्य वाइब्रेट बहुपदीय रूपान्तरण मॉडल (Bivarate |Polynomial Transformation Model) की गणना की जाती है। इमेज तथा मानचित्र में सम्बन्ध स्थापित करने के क्रम में भूमि नियंत्रित बिंदुओं के पहचान की आवश्यकता होती है जो कि इमेज एवं मानचित्र में निहित होते हैं। भूमि नियंत्रित बिन्दुओं की स्पष्ट पहचान निर्धारित की जाती है। इसके लिये स्पष्ट पहचान बिन्दुओं जैसे कि दो सड़कों का क्रासिंग, दो नहरों का या सड़क का मिलन बिन्दु, संगम, इत्यादि चुने जाते  हैं। कुछ स्पष्टदर्शी प्राकृतिक बिंदु भी चुने जा सकते हैं जिनके द्वारा सम्पूर्ण इमेज को नियंत्रित किया जा सके। इस प्रकार इमेज में ज्यामितीय संशोधन कर मानचित्र के अनुरूप बना दिया जाता है।
रूपान्तिरित मॉडल तथा मूल इमेज में अन्तर्वेशन (Interpolation) या पुनर्रतिचयन (Resampling) प्रक्रिया द्वारा शुद्ध इमेज तैयार की जाती है। इमेज में ज्यामितीय संशोधन के लिये पुनःप्रतिचयन किया जाता है जो कि कई तकनीकियों (Nearest Neighborhood, Bilinear, Interpolation) के प्रयोग से सम्भव है।

(B) इमेज उच्चीकरण तकनीक (Image Enhancement Techniques) 
इमेज आंकड़ों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने के लिये इमेज उच्चीकरण तकनीकियों का उपयोग किया जाता है। इमेज उच्चीकरण किसी दृश्य में धरातलीय लक्षणों के मध्य दृश्य विभेदन को बढाता है। इस तकनीक का उपयोग करने के पश्चात निर्मित इमेज से सूचनाओं को एकत्र करने की क्षमता बढ़ती है। देखकर भी आंकड़ों का विश्लेषण किया जा सकता है। धरातलीय लक्षणों में भेद स्थापित करने को विपर्यास (Contrast) कहते हैं। 


विपर्यास (Contrast)-विपर्यास, इमेज में प्रकाश पुंज अथवा ग्रेस्तर के मानों में भेद अथवा विषमता को दर्शाता है। दूसरे शब्दों में समझाया जा सकता है कि विपर्यास किसी इमेज में अधिकतम तथा न्यूनतम प्रकाश गहनता का आनुपातिक सम्बन्ध है।
विपर्यास(Contrast) कि= 1Maxi( अधिकतम गहनता)/1Mini (न्यूनतम गहनता)
विपर्यास अनुपात के द्वारा किसी इमेज में विभिन्न लक्षणों में भेद स्थापित किया जा सकता है। अधिकतम विपर्यास मान इमेज के विश्लेषण में सरल एवं सहायक होते हैं।

कम विपर्यास के कारण (Reasons For Low Contrast) 
उपग्रह आँकड़ों से सीधे निर्मित इमेज में प्रायः विपर्यास की कमी पाई जाती है। इसमें सुधार की अत्यन्त आवश्यकता होती है। इमेज में विपयास कम होने के निम्न कारण हैं-

1. दृश्य द्वारा (By Scene)- कभी-कभी इमेज दृश्य में किसी लक्षण या वस्तु (जिसमें हमारी रुचि है) या उसके पृष्ठ भाग का विद्युत-चुम्बकीय विकिरण समान होता है। ऐसी दशा में दोनों में भेद स्थापित करना कठिन होता है। कम विपर्यास का दूसरा कारण सुदूर संवेदन प्रणाली है जो कभी-कभी सम्पूर्ण दृश्य में स्वतः ही कम विपर्यास अनुपात को दर्शाती है।

2. वायुमण्डलीय प्रकीर्णन द्वारा (By Atmospheric Scattering)- वायुमंडल में विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा का प्रकीर्णन होता है जिसका प्रभाव संवेदक पर पड़ता है। प्रायः लघुतरंग दैर्ध्य भाग में इस प्रकार का प्रभाव स्पष्ट होता है।

3. सुदूर संवेदक प्रणाली द्वारा (by Remote Sensing System)- कुछ सुदूर संवेदक प्रणालियों में इतनी क्षमता नहीं होती कि वह किसी दृश्य के विपर्यास को पहचान या अंकित कर सके । इस प्रकार कभी कभी गलत अंकन विधियों के द्वारा भी किसी दृश्य में कम विपर्यास अंकित होता है। जबकि स्वयं दृश्य अधिक इमेज लिए हुए होता है। किसी दृश्य में कम विपर्यास अनुपात को स्मार्ट विपर्यास (washed out) कहते हैं। इसमें सभी ग्रेमान एक तरह के होते हैं।

विपर्यास उच्चीकरण तकनिकियाँ (contrast Enhaneement Techniques)- सुदूर संवेदन प्रणाली में विपर्यास के बढ़ाने की पर्याप्त क्षमता है। इसके लिये कई तकनीकों का उपयोग किया गया है।

1. रेखीय विपर्यास परसन (Linear Contrast Stretching)- रेखीय विपर्यास परसन मूल अन्तरगामी ग्रे-मानों को बढ़ाता है। विश्लेषणकर्ता इमेज हिस्टोग्राम का निरीक्षण करता है जो रेखीय परसन समीकरण के उपयोग से निर्गतगामी इमेज के निर्माण में सहायक होती है। किसी भी दृश्य इमेज के मूल डिजिटल नम्बरों से हिस्टोग्राम तैयार किया जाता है। डिजिटल नम्बर बेहतरीन ढंग से बिखरे होते हैं। जिन्हें आरेखीय प्रतिरूपों में वितरित किया जाता है। आरेखीय विपर्यास विधि में मूल इमेज तथा परिवर्तित इमेज के डिजिटल संख्याओं में रेखीय सम्बन्ध होते हैं।

2. हिस्टोग्राम प्रसामान्यीकरण (Histogram Equalization)- इंस्टाग्राम प्रसामान्यकीरण एक रेखीय विपर्यास उच्चीकरण तकनीक है जो अधिकांश प्रयोग की जाती है मूल इमेज तथा परिवर्तित इमेज में अ-रेखीय सम्बन्ध होते हैं। इस विधि में मूल इमेज के हिस्टोग्राम में समान घनत्व दर्शाने के लिये ग्रेमानों को पुनर्वितरित किया जाता है इमेज पिक्सल मानों को 0 से 255 की रेन्ज में वितरित किया जाता है जिन्हें निकटवर्ती ग्रेमानों के समूहों द्वारा प्राप्त किया जाता है। अधिकतम संख्याओं वाले रेन्ज में अधिकतम विपर्यास को प्रयुक्त होता है। यह स्वतः ही इमेज के प्रकाशयुक्त व अंधकारयुक्त भाग में विपर्यास कम कर देता है। विपर्यास उच्चीकरण एलगोरिथम का चुनाव, मूल हिस्टोग्राम की प्रकृति तथा दृश्य में निहित तत्वों पर निर्भर करता है जो कि उपयोगकर्ता के लिये बड़े रुचि का विषय है ।

3. घनत्व स्तर खण्ड(Density Slicing)- इस विधि के अंतर्गत किसी इमेज के सतत ग्रे-टोन को अलग अलग घनत्व स्तरखण्डों  में विभाजित किया जाता है। विभिन्न स्तरखण्डों को अलग अलग रंगों में भी प्रसारित किया जा सकता है। यह तकनीक अतिसूक्ष्म ग्रे-मापक अंतरों को महत्व देती है।

4. किनारों का उच्चीकरण (Edge enhancement) - इमेज में दो श्रेणियों के मध्य के बसाव स्थिति को किनारा या कोर कहते हैं। विभिन्न लक्षणों की श्रेणियों में भेद स्थापित कर्ने नथा सीमांकन करने। के लिये किनारों की सूचनायें अति महत्वपूर्ण होती हैं। किनारा उन्तचीकरण तकनीक को थयाग्दार या स्पष्ट तकनीक भी कहते हैं। यह निम्न विपर्यास युक्त किनारों पर दृश्यता (Visibility) का बढ़ाता है तथा विता का बोध कराता है। जैसा कि स्पष्ट है कि किनारों पर ग्रे-माना की गहनता में अचानक परिवर्तन दिखाई देता हैं। इस प्रकार के आकस्मिक परिवर्तन उच्च आवृत्ति सूचनाओं के कारण होते हैं। किनारों को उठाने लिये उच्च मार्ग फिल्टर का उपयोग किया जाता है। कोर उच्चीकरण तकनीक धरातलीय विभेदन को बढ़ाने की क्षमता रखती है।


5. बैंड अनुपातीकरण (Band Ratioing) जैसा कि स्पष्ट है कि धरातीलय लक्षणों में प्रकीर्णन एवं चमक में भिन्नता के लिये धरातलीय ढाल (Topographic Slope), पहलू (Aspect), छाया, सूर्य प्रकाश का परावर्तन कोण तथा उसकी गहनता आदि कई कारण हैं। ये कारण विश्लेषणकर्ता की योग्यता को दिगभ्रमित करते हैं। यही कारण है कि वह इमेजेस में सही आकलन नहीं कर सकता है। इस प्रकार के प्राकृतिक प्रभावों को कम करने के लिये अनुपात रूपान्तरण (Ratio Transformation) का उपयोग किया जाता है। अनुपात इमेज में एक स्पैक्ट्रल बैंड के मानों को दूसरे स्पैक्टूल बैंड के अनुपातिक मानो से विभाजित किया जाता है। इस तकनीक में किसी दृश्य के दो स्पैक्टल इमेज में पिक्सल से पिक्सल का विभाजित किया जाता है। इसका अधिकतर उपयोग वनस्पति सूचकांक (Vegetation Index) की गणना के लिये किया जाता है। बैंड अनुपात करण पर आधारित यह सचकांक प्रासामान्यिकरण अन्तरीय वानस्पतिक सूचकांक (NDVI) कहलाती है। इस सूचकांक का उपयोग विस्तत रूप में किसी दृश्य में वनस्पति के वितरण तथा प्रकारों के अध्ययन के लिये किया जाता है।

6. धरातलीय निश्यन्दन (Spatial Filtering)- सुदूर संवेदन इमेज की विशेषता धरातलीय आवृत्तियाँ (Spatial Frequency) हैं। यह प्रति इकाई दूरी के हिसाब से चमकीले मानों में कई परिवर्तन दर्शाती है। उदाहरण के लिये यदि किसी क्षेत्र के चमक मानों में आंशिक परिवर्तन है तो इसका अर्थ है कि यह निम्न आवृत्ति वाला क्षेत्र है। इसके विपरीत अधिक आवृत्ति वाले भाग में चमक मान दूरी पर नाटकीय ढंग से परिवर्तित होते हैं। इस प्रकार धरातलीय निस्यन्दन (Spatial Filtering) की सहायता से इन विसंगतियों को दूर किया जा सकता है। 
वास्तव में धरातलीय निस्यन्दन एक ऐसी प्रक्रिया है जो किसी इमेज में निहित संघटक धरातलीय आवृत्तियों तथा कुछ चुने गये परिवर्तन करने वाली आवृत्तियों को विभाजित करती है। यह इमेज की आकृतियों को पहचानने में बल देता है। यह तकनीक विश्लेषणकर्ता की योग्यता को बढ़ाता है जिससे वह इमेज में निहित वस्तुओं में भेद स्थापित कर सके। सुदूर संवेदक आंकड़ों की प्रक्रिया के लिये मुख्यतः निम्न प्रकार के फिल्टर का उपयोग किया गया है -
1. मन्द मार्ग फिल्टर (Low Pass Filter)
2. उच्च या प्रबल मार्ग फिल्टर (High Pass Filter)
3. दिशात्मक फिल्टर (Directional Filter)
4. अ-दिशात्मक फिल्टर (Non-Directional Filter)

 मन्द मार्ग फिल्टर - इसका उपयोग आंकड़ों में निहित बेतरतीव अथवा सामान्य से उठे हुये भिन्न मानों को सामान्य करने के लिये किया जाता है। किसी दृश्य में कील की भाँति उठे हुये भिन्न आंकड़ों को शोर (Noise) कहते हैं। शोर मान अन्य सामान्य मानों की तुलना में अचानक परिवर्तित होते हैं जो कि अधिक धरातलीय मानों को दर्शाते हैं। प्रक्रिया के दौरान उच्च आकृतियों के मानों को बन्द कर दिया जाता है। इसी प्रक्रिया को मन्द मार्ग फिल्टर कहते हैं। मन्द मार्ग फिल्टर में धरातलीय विभेदन कम होता है परन्तु यह विश्लेषण के लिये उपयोगी है। इसमें 3x3 पिक्सल की खिड़की का उपयोग किया जाता है। प्रत्येक पिक्सल के मान को औसत मान से परिकलन किया जाता है।
उच्च प्रबल मार्ग फिल्टर (High Pass Filter)-दिशात्मक फिल्टर का उपयोग किसी इमेज में विशिष्ट रेखीय प्रवृत्तियों को उच्च करने के लिये किया जाता है। 

अदिशात्मक फिल्टर (Non Directional Filter)- लाप्लासियन एक अदिशात्मक फिल्टर है क्योंकि यह किसी भी दिशा में निहित रेखीय आकृतियों को उठाने में सहायक होती है। लाप्लासियन फिल्टर एक केरनेल (Kernel) है जिसके केन्द्र का मान अत्यधिक होता है। इसके प्रत्येक किनारों पर शून्य तथा केन्द्र के चारों ओर-1 होता है। लाप्लेसियन केरनेल 33 पिक्सल के आकार का होता है (चित्र 7.5)। इसके प्रत्येक पिक्सल को प्रतिस्थापित मानों से गुणा किया जाता है। तत्पश्चात 9 ज्ञात मानों को जोड़ा जाता है। ज्ञात मान को केन्द्र के पिक्सल मान में जोड़ा जाता है। इसके परिणामस्वरूप जो मान ज्ञात होता है वही केन्द्रीय पिक्सल का मान होता है जो कि मूल डिजिटल नम्बर के स्थान पर रखा जाता है। 

प्रमुख विश्लेषण घटक (Principal Component Analysis) 
जैसा कि पहले बता चुके हैं कि उपग्रहीय आंकड़े कई स्पैक्ट्रल बैंडों में उपलब्ध होते हैं। किसी भी दृश्य को अति उत्कृष्ट बनाने के लिये वह स्पेक्टर विम्ब आंकड़ों को प्रायः एक बैंड से दूसरे बैंड के साथ सक्रिय रूप से सहसम्बन्धित किया जाता है। इस प्रक्रिया को प्रमुख विश्लेषण घटक (PCA) या कारहुनेन लोइव ट्रान्सफोरेमेसेन (Karhunen Loeve Transformation) कहते हैं। प्रमुख विश्लेषण घटक (PCA) का उपयोग किसी प्रतिबिम्ब के अलग-अलग बैंड के आंकड़ों को आपस में मिलाने के लिये किया जाता है। पी.सी.ए. के द्वारा असंशोधित आंकड़ों से नये दृश्य का निर्माण किया जाता है। इस प्रक्रिया से किसी भी इमेज की श्रेणी का उच्चीकरण होता है।

सूचना निस्सारण (Information Extraction)- सूचना निस्सारण का अभिप्राय है किसी विश्व या दृश्य में अधिक से अधिक उपयोगी सूचनाओं को निकालना या चुनना । यह डिजिटल इमेज विश्लेषण की एक तकनीक है । इस संचालन प्रक्रिया का उद्देश्य किसी दृश्य के आकृतियों की पहचान के लिए इमेज का दृश्य विश्लेषण करना होता है । सूचनाओं को चुनने का यह गुणात्मक विश्लेषण है। इसके अन्तर्गत बहुस्पेक्ट्रम इमेज के आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है। किसी इमेज में प्रत्येक पिक्सल के भी आवरण की पहचान व निर्धारण के लिए सांख्यकीय विधियों का उपयोग किया जाता है । श्रेणी बद्ध आँकड़ों का प्रयोग विषद(Thems) सम्बन्धी मानचित्रों को तैयार करने के लिए होता है। भू-आवरण प्रकरणों का इमेज प्रस्तुतिकरण किया जाता है तथा प्रत्येक प्रकार के भूमि उपयोग का क्षेत्रीय विस्तार सांख्यकीय आंकड़ों में संग्रह किया जाता है। सूचनाओं को निस्सारण या चुनने की एक सबसे उपयोगी विधि बहुस्पेक्ट्रल वर्गीकरण (Multispectral Classification) है इसके अंतर्गत कई प्रकार के एल्गोरिथम प्रयोग किये जाते हैं। बहुस्पेक्ट्रल वर्गीकरण करने के निम्न प्रमुख प्रकार हैं। 

1. निरिक्षणात्मक वर्गीकरण(Supervised Classification)- निरिक्षणात्मक वर्गीकरण में कुछ भूमि उपयोगों के प्रकारों या किन्हीं अध्ययन लक्ष्यों की पहचान व वसाव स्थिति का पूर्व में ही (a) क्षेत्र परिभ्रमण (Field Study), (b) वायु फोटोचित्र तथा (c) व्यक्तिगत अवलोकन के सम्मिलित प्रसार से किया जाता है। व्याख्याकर्ता, सुदूर संवेदन आंकड़ों में जिस विशिष्ट स्थानों का चुनाव करता है। वे किसी भी तत्व की समागता(Homoginous) को प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार के क्षेत्र को परिशिक्षण वसाव स्थिति (Training Sites) कहते हैं क्योंकि इस क्षेत्र के स्पेक्ट्रल विशेषताओं का प्रयोग विश्लेषण के लिए किया जाता है। प्रत्येक परिशिक्षण केंद्र के बहुसांख्यकीय चारों की गणना की जाती है। इस प्रकार जिस वर्ग का निकटतम सूचकांक उच्चतम होता है। उसे एक नंबर निर्दिष्ट किया जाता है। इसी तरह कई एल्गोरिथिम का प्रयोग कर अलग अलग वर्गों को नम्बर निर्दिष्ट किये जाते हैं।

2. अनिरीक्षणात्मक वर्गीकरण (Unsupervised Classification ) अनिरीक्षणात्मक वर्गीकरण में किसी इमेज में अलग-अलग भू-आवरणों के प्रकारों को बिना पूर्व भूमि निरीक्षण के वर्गीकृत किया है। इसमें कम्प्यूटर से समान स्पैक्ट्रल विशेषताओं वाले पिक्सल को अलग-अलग ग्रुपों में विभाजित जाता है। समान पिक्सल के विशिष्ट समूहों को कुछ सांख्यिकीय विधियों के अनुसार निर्धारित किया जाता है। व्याख्याकर्ता समान स्पैक्ट्रल समूहों को जटिल सूचना वर्गों में सम्मिलित करता है। इसके लिये कई एल्गोरिथ्म प्रयोग किये जा चुके हैं। सबसे प्रचलित एल्गोरिथ्म Iterative Self Organising Data Analysis Technique (ISODAT) है जो सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है। यह एक स्वतः संगठित तकनीकि है जिसमें कम से कम मानव शक्ति का प्रयोग किया जाता है।

C. बिम्ब रूपान्तरण (Image Transformation)
अलग-अलग समय की दो अलग-अलग बिम्बों जिनका धरातलीय विभेदन अलग-अलग होता है को मिलाकर एक नये बिम्ब में परिवर्तन करने को विम्ब रूपान्तरण कहा जाता है। पूर्व बिम्द आकृतियों में बिना किसी परिवर्तन करके एक नई विम्ब में रूपान्तरण कर दिया जाता है। रूपान्तरण की कुछ महत्वपूर्ण विधियां निम्न प्रकार हैं
(i) बिम्ब गणितीय संचालन (Image Arithmetic Operation )
(ii)  पी. सी. टी. (PCT) Principal Component Transformation
(iii) टी. सी. टी.  (TCT) Tasselled Cap Transformation 
(iv) रंगों का रूपान्तरण (Colour Space Transformation ) 
(v) बिम्ब विलय (Image Fusion) 
(vi) फोरियर रूपांतरण (Fourier Transformation )



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