मौसमी संकट और आपदाएँ (मौसम संबंधी खतरे और आपदाएँ) प्रकृत्तिजन्य अप्रत्याशित ऐसी सभी घटनाएँ जो प्राकृतिक प्रक्रमों को इतना तीव्र कर देती हैं कि विनाश की स्थिति उत्पन्न होती है, चरम प्राकृतिक घटनाएँ या आपदा कहलाती है। इन चरम घटनाओं या प्रकोपों से मानव समाज, जन्तु एवं पादप समुदाय को अपार क्षति होती है। चरम घटनाओं में ज्वालामुखी विस्फोट, दीर्घकालिक सूखा, भीषण बाढ़, वायुमण्डलीय चरम घटनाएँ; जैसे- चक्रवात, तड़ित झंझा, टॉरनेडो, टाइफून, वृष्टि प्रस्फोट, ताप व शीत लहर, हिम झील प्रस्फोटन आदि शामिल होते हैं। प्राकृतिक और मानव जनित कारणों से घटित होने वाली सम्पूर्ण वायुमण्डलीय एवं पार्थिव चरम घटनाओं को प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। इन आपदाओं से उत्पन्न विनाश की स्थिति में धन-जन की अपार हानि होती है। प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं का वर्णन निम्न प्रकार है:- चक्रवात (Cyclone) 30° उत्तर से 30° दक्षिण अक्षांशों के बीच उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्णकटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं। ये आयनवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाला एक निम्न वायुदाब अभिसरणीय परिसंचरण तन्त्र होता है। इस चक्रवात का औसत व्यास लगभग 640 किमी...
(Definition and Importance of Scale)
किसी वस्तु का फ़ोटोग्राफ उस वस्तु के वास्तविक आकार (size) से छोटा या बड़ा हो सकता है परन्तु उस वस्तु की वास्तविक आकृति (shape) तथा फ़ोटोग्राफ में अंकित आकृति एक जैसी होती है। इसी कारणवश जब हम किसी पूर्व परिचित व्यक्ति, वस्तु, भवन या स्थान का फोटोग्राफ देखते हैं तो हम उसे तुरन्त पहचान लेते हैं। चूँकि कैमरे के लेन्स को दिखलायी देने वाली किसी वस्तु के सभी भाग या अंग एक ही अनुपात (ratio) में छोटे अथवा बड़े होकर फिल्म पर छप जाते हैं इसलिये आकार में अन्तर आ जाने के बावजूद फोटोग्राफ में उस वस्तु की आकृति शुद्ध रहती है। यह अनुपात ही मापनी (scale) कहलाता है। यदि यह अनुपात अशुद्ध हो जाये अर्थात् फ़ोटोग्राफ में किसी वस्तु के भिन्न-भिन्न भाग भिन्न-भिन्न अनुपातों या स्वतंत्र रूप से घट-बढ़ कर छप जायें तो उस फोटोग्राफ से सम्बन्धित वस्तु की वास्तविक आकृति का ज्ञान प्राप्त करना असम्भव हो जायेगा। मानचित्रों की रचना में इस अनुपात या मापनी का विशेष महत्व होता है।
मानचित्र में प्रदर्शित किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच की दूरी तथा उन बिन्दुओं के बीच की धरातल पर वास्तविक दूरी के मध्य के अनुपात को उस मानचित्र की मापनी कहते हैं। उदाहरणार्थ, मान लीजिये किसी मानचित्र पर दो बिन्दुओं के बीच की दूरी 1 सेमी है तथा उन बिन्दुओं के मध्य धरातल पर मापी गई दूरी 1 किमी है तो स्पष्ट है कि मानचित्र व धरातल पर मापी गयी दूरियों में 1 तथा 100,000 (सेमी) का अनुपात है। यही अनुपात अर्थात् 1:100,000 उस मानचित्र की मापनी कहा जायेगा। दूसरे शब्दों में, मापनी का अभिप्राय वह अनुपात है जिसमें धरातल की दूरियों को छोटा करके मानचित्र पर प्रदर्शित किया जाता है।
हमारी पृथ्वी इतनी विशाल है कि इसके आकार के बराबर आकार वाला कोई मानचित्र बनाना अथवा ऐसे मानचित्र को एक दृष्टि में पढ़ना एक असम्भव बात है। मापनी वह युक्ति है, जिसके द्वारा समस्त पृथ्वी अथवा उसके किसी भाग को आवश्यकतानुसार आकार वाला मानचित्र बनाकर प्रदर्शित किया जा सकता है तथा उस मानचित्र की सहायता से धरातल पर स्थानों के बीच की वास्तविक दूरियाँ ज्ञात की जा सकती हैं। मापनी के महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि बिना मापनी केवल अनुमान से बनाये गये किसी 'मानचित्र' को रेखा मानचित्र (sketch map) की संज्ञा दी जाती है ।
मापनी का चयन
(Selection of Scale)
किसी मानचित्र के लिये उपयुक्त मापनी का चयन करते समय दो बातों पर विचार किया जाता है-(i) कागज़ आदि, जिस पर मानचित्र बनाना है, का आकार तथा (ii) मानचित्र का रचना करने का उद्देश्य । चूंकि मानचित्र का आकार चुनी गई मापनी पर निर्भर करता है अत: मापनी निश्चित करने से पूर्व उपलब्ध कागज़ का आकार देख लेना परम आवश्यक है। इस बात पर ध्यान न दिये जाने के कारणवश कभी-कभी मानचित्र या तो इतना बड़ा हो जाता है कि उसे दिये हुए कागज़ पर बनाना सम्भव नहीं होता अथवा अनावश्यक रूप से बहुत छोटा बन जाता है। दोनों ही दशाओं में सारा परिश्रम व्यर्थ हो जाता है। मापनी के चयन पर मानचित्र बनाने के उद्देश्य के प्रभाव को इस बात से समझा जा सकता है कि अधिक विवरण प्रदर्शित करने के लिये ज्यादा स्थान की आवश्यकता होती है। अतः नगरों के प्लान तथा अन्य भूसम्पत्ति मानचित्रों के लिये अपेक्षाकृत बड़ी मापनी का चयन करते हैं। इसके विपरीत मानचित्रावलियों में संसार एवं महाद्वीपों के अपेक्षाकृत कम विवरण वाले भौतिक, आर्थिक, राजनीतिक व समाज-सांस्कृतिक मानचित्र छोटी मापनियों पर बने होते हैं।
मापनी व्यक्त करने की विधियाँ
(Methods of Expressing the Scale)
जैसा कि पहले संकेत किया जा चुका है प्रत्येक मानचित्र पर उसकी मापनी का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए जिससे पाठकगण धरातल एवं मानचित्र पर मापी गई दूरियों का अनुपात समझ सकें। मानचित्रों पर मापनी प्रदर्शित करने की तीन विधियाँ होती हैं-(i) साधारण कथन विधि, (ii) निरूपक भिन्न विधि तथा (iii) आलेखी विधि। इन विधियों के अन्तर को संक्षेप में नीचे समझाया गया है।
[I] साधारण कथन विधि (Simple statement method)
साधारण कथन विधि में शाब्दिक विवेचन के द्वारा किसी मानचित्र की मापनी बतलायी जाती है जैसे, 1 सेमी %3 1 किमी, अथवा 1 इन्च = 1 मील आदि। भारतवर्ष में ग्रामों के भूसम्पत्ति मानचित्रों तथा व्यक्तिगत भवनों आदि के प्लानों में प्रायः इसी विधि से मापनी को प्रदर्शित करते हैं। यद्यपि मापनी व्यक्त करने है। की यह सबसे सरल विधि है परन्तु इसका प्रयोग बहुत सीमित है, जिसके दो कारण हैं-प्रथम, इस विधि से व्यक्त मापनी को पढ़कर केवल वे ही व्यक्ति मानचित्र पर दूरियों की गणना कर सकते हैं. जो उस रैखिक माप-प्रणाली (linear measurement system) को समझते हों। उदाहरणार्थ, 'पैल्ट्ज' तथा 'वस्स्टस्' में लिखी मापनी को पढ़कर मानचित्र पर दूरियों की गणना करना तभी सम्भव हो सकता है जब हम रूसी रैखिक माप-प्रणाली के इन शब्दों का अर्थ जानते हों। द्वितीय, शब्दों या निरूपक भिन्न में व्यक्त मापनियों के मानचित्रों को उनके मूल आकारों से भिन्न आकारों में मुद्रित करना सम्भव नहीं है क्योंकि इससे मुद्रित मानचित्र की मापनी अशुद्ध हो जायेगी।
[II] निरूपक भिन्न विधि
(Representative fraction or R. F. method)
मानचित्र एवं धरातल पर मापी गई दूरियों के अनुपात को प्रदर्शित करने वाली भिन्न को निरूपक भित्र या प्रदर्शक भिन्न (R. F) कहते हैं। इस भिन्न का अंश (numerator) व हर (denominator) किसी माप-प्रणाली की समान इकाइयों में क्रमशः मानचित्र व धरातल पर मापी गई दूरियाँ प्रकट करते हैं तथा इस भिन्न में अंश का मान सदैव 1 होता है। उदाहरणार्थ, यदि किसी मानचित्र की निरूपक भिन्न 1/50,000 है तो इसका यह अर्थ होगा कि मानचित्र व धरातल की दूरियों में 1 तथा 50,000 का अनुपात है अर्थात् मानचित्र में किसी माप-प्रणाली की एक इकाई दूरी धरातल पर उसी माप-प्रणाली की 50,000 इकाई दूरी के बराबर है। अतः निरूपक भिन्न (R. F.)
=मानचित्र में किसी रैखिक माप की एक इकाई की दूरी/उस रैखिक माप की उन्हीं इकाइयों में धरातल पर मापी गई दूरी
इस विधि का सबसे बड़ा गुण यह है कि निरूपक भिन्न को देखकर मानचित्र में प्रदर्शित धरातल की वास्तविक दूरियों का किसी भी रैखिक माप-प्रणाली में मान ज्ञात किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, 1/50,000 निरूपक भिन्न का अर्थ मीट्रिक प्रणाली में 1 सेमी = 50,000 सेमी, अंग्रेज़ी रैखिक माप-प्रणाली में 1 इन्च = 50,000 इन्च तथा रूसी माप-प्रणाली में 1 पैल्ट्ज =50,000 पैल्टज होगा। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि मूल आकार में मुद्रित किये जाने वाले मानचित्रों पर मापनी व्यक्त करने के लिये निरूपक भिन्न विधि का प्रयोग सर्वाधिक उपयोगी रहता है क्योंकि इसे देखकर किसी भी देश के लोग अपने यहाँ प्रचलित माप प्रणाली में मानचित्र से वास्तविक दूरियाँ ज्ञात कर सकते हैं।
[III] आलेखी विधि
(Graphical method)
इस विधि में निरूपक भिन्न के अनुसार ज्ञात की गई लम्बाई के बराबर मानचित्र पर एक रेखा खींचकर उसे प्राथमिक व गौण भागों में विभाजित कर देते हैं तथा इन उपविभागों पर उनके द्वारा प्रदर्शित वास्तविक दूरियों के मान लिख दिये जाते हैं। मूल आकार से भिन्न आकारों में मुद्रित किये जाने वाले मानचित्रों पर केवल इसी विधि के द्वारा मापनी व्यक्त करते हैं। आलेखी मापनी के भेदों तथा उन्हें बनाने की विधियों को आगे चलकर विस्तारपूर्वक समझाया जायेगा ।
मापनियों का रूपांतरण
(Conversion of Scales)
कभी-कभी साधारण कथन से निरूपक भिन्न में अथवा निरूपक भिन्न से साधारण कथन में मापनी का रूपांतरण करने की आवश्यकता होती है। नीचे उदाहरण देकर मापनियों का रूपांतरण समझाया गया है।
उदाहरण (1) साधारण कथन के द्वारा व्यक्त निम्नलिखित मापनियों का निरूपक भिन्नों में रूपांतरण कीजिये : (i) 1 सेमी = 2 किमी, (ii) 1 सेमी =3 किमी 5 हेमी 3 डेमी तथा 5 सेमी, (ii) 4 सेमी %3 1 किमी 8 हेमी 4 डेमी तथा 8 सेमी, (iv) 1 इन्च = 1 मील, (v) 1 इन्च = 1 मील 4 फलांग 60 गज 2 फीट तथा 6 इन्च, (vi) 2 इन्च =1 मील 2 फलोंग 40 गज 1 फुट तथा 4 इन्च ।
हल - (i) मानचित्र पर 1 सेमी
= धरातल पर 2 किमी की दूरी
=2X 1,00,000 सेमी
अतः निरूपक भिन्न = 1/200,000
(ii) मानचित्र पर 1 सेमी
= धरातल पर 3 किमी 5 हेमी 3 डेमी व 5 सेमी
=3,00,000 + 50,000 + 3,000 +5 सेमी
अतः निरूपक भिन्न =1/3,53,005
(iii) मानचित्र पर 4 सेमी
= धरातल पर 1 किमी 8 हेमी 4 डेमी व 8 सेमी
.•. मानचित्र पर 1 सेमी
=1,00,000 + 80,000 + 4,000 + ৪/4 सेमी
= = 46,002 सेमी
अतः निरूपक भिन्न = 1/46,002
(iv) मानचित्र पर 1 इन्च
= धरातल पर 1 मील
=1x 63,360 इन्च
अतः निरूपक भिन्न = 1/63,360
(v) मानचित्र पर 1 इन्च
= धरातल पर 1 मील 4 फर्लाग 60 गज
2 फीट 6 इन्च
=63,360 +31,680 +2,160 +24 +6
=97,230 इन्च
अतः निरूपक भिन्न %3 1/97,230
(vi) मानचित्र पर 2 इन्च
= धरातल पर 1 मील 2 लोग 40 गज 1 फुट 4 इन्च
.•. मानचित्र पर 1 इंच
=63,360 + 15,840 + 1,440 + 12 + 4/2
= 40,328 इन्च
अतः निरूपक भिन्न = 1/40,328
आलेखी मापनी
(Graphical Scale)
[I] सरल रेखा के विभाजन की ज्यामितीय विधियाँ (Geometrical methods of dividing a straight line)
आलेखी मापनी बनाने के लिये सर्वप्रथम दी हुई निरूपक भिन्न के अनुसार गणना करके मापनी (रेखा) की लम्बाई ज्ञात करते हैं। इसके पश्चात् इस रेखा को प्राथमिक व गौण भागों में बाँटने की आवश्यकता होती है। किसी सरल रेखा को समान भागों में बाँटने के लिये ज्यामितीय विधियाँ प्रयोग की जाती हैं। ये विधियाँ नीचे दी गई हैं :
प्रथम विधि-मान लीजिये AB कोई दी हुई सरल रेखा है जिसे 5 समान भागों में विभाजित करना है। चित्र A के अनुसार A बिन्दु पर न्यून कोण बनाती हुई कोई रेखा AC खींचिये। अब परकार में कोई दूरी भरकर AC रेखा में समान अन्तर पर D, E, F G तथा H पाँच चिह्न अंकित कीजिये। H तथा B बिन्दुओं को मिलाइये तथा D, E, F, व G बिन्दुओं से HB रेखा के समान्तर DD', EE', FF' तथा GG रेखाएँ खींचिये जो AB रेखा पर क्रमशः D', E', F व G बिन्दुओं पर मिलती हैं। ये बिन्दु AB रेखा को पाँच समान भागों में विभाजित करेंगे।
द्वितीय विधि-चित्र B के अनुसार AB रेखा के दोनों सिरों पर विपरीत दिशाओं में AC तथा BC' लम्ब खींचिये। अब परकार में कोई दूरी भरकर दोनों लम्ब रेखाओं पर समान दूरी के अन्तर पर चार-चार चिह्न (अर्थात् D, E, F, G तथा G', F, E, D') अंकित कीजिये । इसके पश्चात् इन चिह्नों को मिलाते हुए DD', EE', FF' तथा GG' रेखाएँ खींचिये । ये रेखाएँ AB सरल रेखा को पाँच समान भागों में विभाजित करेंगी।
[II] आलेखी मापनी बनाने के सामान्य नियम
(General principles of constructing a a graphical scale)
किसी आलेखी मापनी की रचना करते समय निम्नलिखित सामान्य नियमों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है :
(1) मानचित्र के आकार के अनुसार किसी भी लम्बाई की छोटी या बड़ी आलेखी मापनी बनायी जा सकती है परन्तु भूगोल की अभ्यास-पुस्तिका आदि में प्रायः 12 से 16 सेमी लम्बी आलेखी मापनी बनाना अच्छा माना जाता है।
(2) मापनी में प्राथमिक व गौण भागों का विभाजन किसी ज्यामितीय विधि के अनुसार करना चाहिए, जिससे विभाजन में पूर्ण शुद्धता बनी रहे।
(3) आलेखी मापनी को इस प्रकार विभाजित करते हैं कि उसका प्रत्येक भाग धरातल की दूरी को पूर्णांकों में प्रकट करे।
(4) जैसा कि नीचे दिये चित्र से स्पष्ट है आलेखी मापनी के प्राथमिक भाग सदैव शून्य से दायीं ओर को तथा गौण भाग, जो प्रथम प्राथमिक भाग के उप-विभाग होते हैं, शून्य से बायीं ओर को अंकित किये जाते हैं।
(5) यदि मापनी में केवल प्राथमिक भाग दिखलाये गये हैं, तो मापनी के बायें सिरे पर शून्य अंकित करके दायीं ओर को प्राथमिक भागों पर मान लिखे जायेंगे इसके विपरीत यदि मापनी में प्राथमिक व गौण दोनों भाग दिखलाने होते हैं तो बायीं ओर से 1 प्राथमिक भाग छोड़कर शून्य अंकित करते हैं। इसके बाद प्राथमिक भागों पर शून्य से दायीं ओर तथा गौण भागों पर शून्य से बायीं ओर को मान लिखते हैं। ऐसा करने से मापनी पर दूरी मापना सरल जाता है।
(6) मापनी पढ़ने में सरल एवं देखने में आकर्षक होनी चाहिए।
[।।।] आलेखी मापनी के भेद
(Kinds of graphical scale)
आलेखो मापनी के निम्नांकित चार मुख्य भेद होते हैं। इन भेदों को आगे अलग-अलग शीर्षकों में समझाया गया है।
(Plain Scale)
सरल मापनी के द्वारा किसी रैखिक माप-प्रणाली के अधिक से अधिक दो मात्रकों (units) जैसे, मील व फलांग, फर्लांग व गज, गज व फीट, किलोमीटर व हेक्टोमीटर, हेक्टोमीटर व डेकामीटर तथा डेकामीटर व मीटर आदि, में धरातल की दूरियाँ प्रदर्शित की जा सकती हैं। सरल मापनी बनाने की विधि को निम्नलिखित उदाहरणों से भली प्रकार समझा जा सकता है :
उदाहरण (1) 1/316,800 निरूपक भिन्न पर एक सरल मापनी बनाइये जिसमें 1 मील तक की दूरी पढ़ी जा सके।
हल-निरूपक भिन्न के अनुसार मानचित्र पर,
1 इन्च = धरातल पर 316,800 इन्च
= 316,800/63,360 = 5 मील
.•. मानचित्र पर 6 इन्च की दूरी
=5 x 6 = 30 मील
अब सरल मापनी बनाने के लिये 6 इन्च लम्बी एक सरल रेखा खींचिये तथा इसे 6 समान भागों में विभाजित कीजिये। यह रेखा धरातल के 30 मील को प्रदर्शित करती है अत: इसका प्रत्येक प्राथमिक भाग 5 मील की दूरी प्रदर्शित करेगा। बायीं ओर के पहले भाग को 5 गौण भागों में विभाजित कीजिये। प्रत्येक गौण भाग 1 मील की दूरी प्रदर्शित करेगा। नीचे दिये चित्र के अनुसार, गौण भागों को छोड़ते हुए अर्थात् मापनी में गौण तथा प्राथमिक भागों के मिलन बिन्दु पर शून्य अंकित कीजिये। शून्य के दायीं ओर स्थित 5 प्राथमिक भागों पर क्रमशः 5, 10, 15, 20 तथा 25 लिखिये तथा शून्य के बायीं ओर के 5 गौण भागों पर क्रमशः 1, 2, 3, 4 व 5 लिखिये । मापनी के दोनों सिरों पर मील तथा मध्य में कुछ ऊपर की ओर निरूपक भिन्न लिखिये।
हल-निरूपक भिन्न के अनुसार मानचित्र पर,
1 इन्च = धरातल पर 63,360 इन्च
= 1 मील
.•. मानचित्र पर 6 इन्च की दूरी
= धरातल पर 6 मील की दूरी
अब 6 इन्च लम्बी एक सरल रेखा खींचिये जो धरातल पर 6 मील की दूरी प्रदर्शित करेगी। इस रेखा को 6 समान भागों में विभाजित कीजिये जिससे प्रत्येक प्राथमिक भाग धरातल पर एक मील की दूरी प्रदर्शित करेगा प्रथम प्राथमिक भाग को 8 गौण भागों में विभाजित कीजिये । प्रत्येक गौण भाग धरातल पर एक फलांग की दूरी प्रदर्शित करेगा। गौण तथा प्राथमिक भागों के मिलन-बिन्दु पर शून्य अंकित कीजिये। शून्य के दायीं ओर के भागों पर 1, 2, 3, 4 व 5 मील तथा बायीं ओर के गौण भागों पर 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, व 8 फल्लांग लिखिये। मापनी के मध्यवर्ती ऊपरी भाग में निरूपक भिन्न लिखकर मापनी की रचना पूर्ण कीजिये ।
उदाहरण (3) 1/7,920 निरूपक भिन्न से एक सरल मापनी की रचना कीजिये। मापनी में 4 फल्लाग 66 गज की दूरी पढ़िये।
हल-निरूपक भिन्न के अनुसार,
1 इन्च की दूरी (मानचित्र पर)
= धरातल पर 7,920 इन्च
= 1 फर्लांग
.•. 6 इन्च की दूरी (मानचित्र पर)
= 6 फलांग की दूरी (धरातल पर)
अब 6 इन्च लम्बी कोई सरल रेखा खींचिये जो धरातल पर 6 फर्लांग की दूरी को प्रदर्शित करेगी। इस रेखा को 6 समान भागों में विभाजित कीजिये । प्रत्येक भाग धरातल पर एक पलंग 1. की दूरी प्रदर्शित करेगा। बायीं ओर के प्रथम भाग को 10 गौण भागों में विभाजित कीजिये । प्रत्येक गौण भाग 22 गज की दूरी प्रदर्शित करेगा। गौण तथा प्राथमिक भागों के मिलन-बिन्दु पर शून्य अंकित कीजिये । शून्य के दायीं ओर के प्राथमिक भागों पर 1, 2, 3, 4 व 5 फलांग तथा बायीं ओर के गौण भागों पर 22, 44, 66, 88, 110, 132, 154, 176, 198, व 220 गज लिखिये।
मापनी पर 4 फर्लाग 66 गज की दूरी अंकित करने के लिये शून्य के दायीं ओर फर्लाग की दूरी तथा शून्य के बायीं ओर गजों की दूरी पढ़कर 4 लोग तथा 66 गज की दूरियों को प्रदर्शित करने वाले प्राथमिक व गौण भागों के मध्य चित्र के अनुसार एक सरल रेखा खींचिये।
उपरोक्त उदाहरणों में 6 इन्च लम्बी रेखाओं के द्वारा धरातलीय दूरियाँ शून्यान्त संख्या (round number) में प्रदर्शित किये जाने के कारण मापनी को सरलतापूर्वक पूर्णांक मान वाले प्राथमिक भागों में विभाजित कर लिया गया। परन्तु कभी-कभी 6 इन्च लम्बी रेखा द्वारा प्रदर्शित होने वाली धरातलीय दूरी दशमलवांश में आती है। ऐसी दशा में उस दशमलवांश संख्या के समीप की कोई शून्यान्त संख्या लेकर मापनी की लम्बाई ज्ञात की जाती है। उदाहरणार्थ, मान लीजिये मानचित्र पर 6 इन्च की दूरी धरातल पर 19.4 मील प्रदर्शित करती है। स्पष्ट है कि इस दूरी को पूर्णांक मान वाले प्राथमिक भागों में नहीं बाँटा जा सकता। अतः 19.4 मील के स्थान पर 18 या 20 मील के अनुसार मापनी की लम्बाई ज्ञात की जायेगी। इसी प्रकार यदि निरूपक भिन्न के अनुसार मानचित्र पर 6 इन्च की दूरी धरातल पर 514 मील की दूरी प्रदर्शित करती है तो 514 के स्थान पर 500 शून्यान्त संख्या लेकर मापनी की लम्बाई ज्ञात करना उचित होगा।
उदाहरण (4) धरातल पर दो स्थानों के मध्य की दूरी 1 मील 1 फल्लांग है जबकि मानचित्र पर उन स्थानों के बीच की दूरी 2.4 इन्च है। निरूपक भिन्न ज्ञात कीजिये तथा एक सरल मापनी की रचना कीजिये जिसमें 1 मील 4 फलर्लांग की दूरी पढ़ी जा सके।
हल-प्रश्न के अनुसार,
मानचित्र पर 2.4 इन्च की दूरी
=धरातल पर 1 मील 1 फर्लांग की दूरी अर्थात् मानचित्र पर 24/10 इन्च की दूरी
= धरातल पर 63,360 + 7,920 इन्च
=71,280 इन्च की दूरी
.•. मानचित्र पर 1 इन्च की दूरी
=धरातल पर 71,280 x 10/24 इन्च
=29,700 इन्च
अतः निरूपक भिन्न = 1/29,700
•.• मानचित्र पर 1 इन्च
= धरातल पर 29,700 इन्च = 0.46875 मील
•.•मानचित्र पर 6 इन्च की दूरी
=धरातल पर 0.46875 X 6 = 2.8125 मील
अब यदि 6 इन्च लम्बी रेखा खींच दी जाये तो यह धरातल पर 2.8125 मील को प्रदर्शित करेगी। यह संख्या दशमलवांश में है अत: 6 इन्च लम्बी रेखा को पूर्णांक मान वाले भागों में नहीं बाँटा जा सकता। इसलिये 2.8125 मील के स्थान पर शून्यान्त संख्या 2 मील लेकर मापनी की लम्बाई ज्ञात की जायेगी।
•.•धरातल पर 28,125/10,000 मील
= 6 इन्च (मानचित्र पर)
•.• धरातल पर 2 मील
=6 x 10,000 x2/28.125= 4.26 इन्च
अब 4.26 इन्च लम्बी एक सरल रेखा खींचिये जो धरातल पर 2 मील की दूरी प्रदर्शित करेगी। इस रेखा को दो समान भागों में विभाजित कीजिये तथा प्रथम भाग को 8 गौण भागों में बॉटिये। चित्र के अनुसार प्राथमिक तथा गौण भागों पर मान लिखिये तथा पहले बतलाई गई विधि के अनुसार मापनी के ऊपर 1 मील 4 फलांग की दूरी सरल रेखा खींचकर व्यक्त कीजिये ।
उदाहरण (5) 1/50,000 निरूपक भिन्न से एक सरल मापनी की रचना कीजिये । मापनी में 5 किमी 7 हेमी की दूरी पढ़िये।
हल-निरूपक भिन्न = 1/50,000
•.• मानचित्र पर 1 सेमी की दूरी
= धरातल पर 50,000 सेमी
= 1/2 किमी
•.• मानचित्र पर 14 सेमी की दूरी
= धरातल पर 7 किमी
अब 14 सेमी लम्बी एक सरल रेखा खींचिये जो धरातल पर 7 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगी। इस रेखा को 7 समान भागों में विभाजित कीजिये तथा बायीं ओर के प्रथम भाग को पुनः 10 भागों में बाँटिये । इस प्रकार मापनी का प्रत्येक बड़ा अथवा प्राथमिक भाग धरातल पर 1 किमी प्रदर्शित करेगा तथा प्रत्येक छोटा अथवा गौण भाग धरातल की 1 हेमी की दूरी दिखलायेगा। प्राथमिक तथा गौण भागों के मिलन बिंदु पर शून्य अंकित कीजिये । शून्य के दायीं ओर स्थित प्राथमिक भागों पर 1, 2, 3, 4, 5, व 6 किमी तथा शून्य के बायीं ओर स्थित गौण भागों पर 1, 2, 3 ...... 10 हेमी लिखिये। मापनी के ऊपर एक सरल रेखा खींचिये जो शून्य के दायीं ओर पाँचवें खाने से शून्य के बायीं ओर सातवें खाने तक फैली हो । यह सरल रेखा धरातल पर 5 किमी 7 हेमी की दूरी प्रदर्शित करेगी।
उदाहरण (6) धरातल पर दो बिन्दुओं के बीच दूरी 3 हेमी 5 डेमी है जबकि मानचित्र में उन बिन्दुओं के बीच की दूरी 5 सेमी है। मानचित्र की निरूपक भिन्न ज्ञात कीजिये तथा एक सरल मापनी की रचना कीजिये एवं उसमें 7 हेमी 6 डेमी की दूरी पढ़िये।
हल-मानचित्र पर 5 सेमी
= धरातल पर 3x10,000 +5X1000 सेमी
=35,000 सेमी
•.• मानचित्र पर 1 सैमी
=35,000/5 =7,000 सेमी
अतः मानचित्र की निरूपक भिन्न = 1/7,000
अब, :- मानचित्र पर 1 सेमी
= धरातल पर 7,000 सेमी
=7,000/10,000 हेमी
•.• मानचित्र 15 सेमी
=0.7x15 = 10.5 हेमी
चूँकि 15 सेमी से धरातल पर प्रदर्शित होने वाली दूरी अर्थात् 10.5 हेमी दशमलवांश में है अतः मानचित्र पर शून्यान्त संख्या 9 या 10 हेमी को प्रदर्शित करने वाली दूरी ज्ञात की जायेगी।
•.• धरातल पर 105/10 हेमो
= मानचित्र पर 15 सेमी
•.•धरातल पर 9 हेमी
= मानचित्र पर 15 x 10 x 9/105 = 12.86 सेमी
अब 12.86 सेमी लम्बी एक सरल रेखा खींचिये जो धरातल पर 9 हेमी की दूरी प्रदर्शित करेगी। इस रेखा को 9 समान भागों में बाँटने पर प्रत्येक भाग 1 हेमी की दूरी प्रदर्शित करेगा। बायीं ओर के प्रथम भाग को 10 गौण भागों में विभाजित कीजिये। प्रत्येक गौण भाग 1 डेमी की दूरी प्रदर्शित करेगा। नीचे दिए चित्र के अनुसार इन भागों के मान लिखकर मापनी की रचना पूर्ण कीजिये ।
हल- निरूपक भिन्न = 1/200,000 अर्थात = मानचित्र पर 1 सेमी की दूरी
= धरातल पर 200,000 सेमी
=2 किमी की दूरी
.•.मानचित्र पर 15 सेमी की दूरी
= घरातल पर 2 x 15 = 30 किमी की दूरी
सरल मापनी बनाने के लिये 15 सेमी लम्बी एक सरल रेखा खीचिये। यह सरल रेखा धरातल पर 30 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगी। इस रेखा को 6 समान भागों में विभाजित कीजिये । प्रत्येक भाग 5 किमी दूरी दिखलायेगा। बायीं ओर के प्रथम भाग को 5 गौण भागों में बाँटिये। प्रत्येक गौण भाग धरातल पर 1 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगा । गौण तथा प्राथमिक भागों के मिलन बिन्दु पर शून्य अंकित कीजिये। शून्य से दायीं ओर को प्राथमिक भागों पर 5, 10, 15, 20, व 25 किमी तथा शून्य से बायीं ओर को गौण भागों पर 1, 2, 3, 4 व 5 किमी लिखिये।
मापनी पर 1 किमी दिखलाने वाले गौण भाग तथा 20 किमी दिखलाने वाले प्राथमिक भाग के मध्य एक सरल रेखा खींचिये। यह सरल रेखा धरातल पर 21 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगी।
उदाहरण (8) 1/135,000 निरूपक भिन्न से एक सरल मापनी बनाइये तथा उसमें 13 किमी की दूरी पढ़िये ।
हल-निरूपक भिन्न के अनुसार,
•.•मानचित्र पर 1 सेमी
=धरातल पर 135,000 सेमी
=135,000/100,000 किमी
•.•मानचित्र पर 15 सेमी
=धरातल पर 135,000×15/100,000 किमी
=20.25 किमी
मानचित्र पर 15 सेमी से धरातल पर प्रदर्शित होने वाली 20.25 किमी दूरी दशमलवांश में होने के कारण शून्यान्त संख्या 20 किमी की मानचित्र पर दूरी निम्न प्रकार ज्ञात की जायेगी-
•.•धरातल पर 2025/100 किमी
=मानचित्र पर 15 सेमी
.•. धरातल पर 20 किमी
= मानचित्र पर15×20×100/2025सेमी
= 14.81 सेमी
अब 14.81 सेमी लम्बी एक सरल रेखा खींचिये जो धरातल पर 20 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगी। इस रेखा को पाँच समान भागों में विभाजित कीजिये। प्रत्येक भाग 4 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगा। बायीं ओर के प्रथम भाग को 4 गौण भागों में बाँटिये जिससे प्रत्येक गौण भाग 1 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगा। नीचे दिए चित्र के अनुसार मापनी के भागों पर मान लिखिये तथा 13 किमी दिखलाने वाली सरल रेखा खींचिये।
उदाहरण (9) 1/2,000,000 निरूपक भिन्न पर बने किसी मानचित्र के लिये एक सरल मापनी की रचना कीजिये । मापनी में 200 किमी की दूरी पढ़िये।
हल- निरूपक भिन्न के अनुसार,
•.•मानचित्र पर 1 सेमी
= धरातल पर 20 किमी
•.•मानचित्र पर 15 सेमी
= धरातल पर 20 x 15 = 300 किमी
अब 15 सेमी लम्बी रेखा खींचिये, जो धरातल पर 300 किमी की दूरी प्रकट करेगी। इस रेखा को 5 समान भागों में बाँटिये जिससे प्रत्येक भाग 60 किमी प्रदर्शित करेगा। प्रथम भाग को 6 गौण भागों में विभाजित कीजिये। प्रत्येक गौण भाग 10 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगा । नीचे दिए चित्र के अनुसार मापनी के प्राथमिक तथा गौण भागों पर मान लिखिये तथा 200 किमी की दूरी दिखलाइये।
उदाहरण (10) 1/8,240 निरूपक भिन्न से एक सरल मापनी बनाइये जिसमें कदमों (paces) में दूरियाँ पढ़ी जा सकें ।
हल-निरूपक भिन्न के अनुसार,
•.•मानचित्र पर 1 सेमी
= धरातल पर 8,240 सेमी
=8,240/75 कदम
(•.• एक कदम में 75 सेमी होते हैं।)
•.• मानचित्र पर 15 सेमी की दूरी
=8240×15/75=1,648 कदम
1,648 की निकटतम शुन्यान्त संख्या 1,600 कदम की मानचित्र पर दूरी निम्न प्रकार से ज्ञात की जायेगी :
•.•1,648 कदम प्रकट होते हैं = 15 सेमी
.•. 1,600 कदम प्रकट होंगे
=15 x 1,600/1648 = 14.56 सेमी
अब 14.56 सेमी लम्बी कोई सरल रेखा खींचिये जो मानचित्र पर धरातल के 1,600 कदम की दूरी प्रदर्शित करेगी। इस रेखा को चार भागों में विभाजित कीजिये जिससे प्रत्येक भाग 400 कदम की दूरी दिखलायेगा। बायीं ओर के प्रथम भाग को पुनः चार भागों में बाँटिये जिससे प्रत्येक गौण भाग 100 कदम की दूरी प्रदर्शित करेगा। नीचे दिए चित्र के अनुसार मापनी पर कदमों की संख्याएँ लिखिये।
उदाहरण (11) किसी मानचित्र पर 5 वर्ग सेमी से धरातल पर 499,280 वर्ग किमी क्षेत्र प्रदर्शित होता है। एक सरल मापनी की रचना कीजिये जिसमें किलोमीटर पढ़े जा सकें। मापनी की निरूपक भिन्न भी ज्ञात कीजिये।
हल- प्रश्न के अनुसार,
•.•मानचित्र पर 5 वर्ग सेमी
= धरातल पर 499,280 वर्ग किमी
.•.मानचित्र पर 1 वर्ग सेमी
=499,280/5 = 99,856 वर्ग किमी
.•.मानचित्र पर 1 सेमी की दूरी
=√99,856 किमी= 316 किमी
= 316 x 100,000 = 31,600,000 सेमी
अतः निरूपक भिन्न = 1/31,600,000
अब•.•मानचित्र पर । सेमी
= धरातल पर 316 किमी
.•.मानचित्र पर 15 सेमी.
= धरातल पर 15 x 316 = 4,740 किमी
4,740 किमी की निकटतम शून्यान्त संख्या 4,800 किमी लेकर मापनी की लम्बाई निम्न प्रकार ज्ञात की जायेगी :
•.•4,740 किमी प्रदर्शित होते हैं = 15 सेमी से
.•. 4,800 किमी प्रदर्शित होंगे =15 X 4,800/4,740 सेमी
=15.18सेमी
नीचे दिए चित्र के अनुसार 15.18 सेमी लम्बी सरल रेखा खींचकर उसे 6 समान भागों में विभक्त कीजिये जिससे प्रत्येक भाग धरातल पर 800 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगा। प्रथम भाग को 8 गौण भागों में बाँटने पर प्रत्येक गौण भाग 100 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगा। मापनी पर शून्य के दायीं ओर के प्राथमिक भागों पर 800, 1600 . . . 4000 किमी तथा शून्य से बायीं ओर को 100, 200, 300 .. .800 किमी की दूरियाँ लिखिये।
तुलनात्मक मापनी
(Comparative Scale)
तुलनात्मक मापनी वह आलेखी मापनी होती है जिसमें एक से अधिक माप प्रणालियों में दूरियाँ प्रदर्शित की जाती हैं। इन मापनियों को बनाने का उद्देश्य मानचित्र में भिन्न-भिन्न मापों के मात्रकों (units of measurement) जैसे, मील तथा किलोमीटर, मीटर तथा गज, कदम तथा मीटर आदि में दूरियाँ ज्ञात करना होता है। कभी-कभी इन मापनियों के द्वारा समय एवं दूरी का तुलनात्मक प्रदर्शन भी किया जाता है। तुलनात्मक मापनी की रचना के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें विशेष उल्लेखनीय हैं :
(1) तुलनात्मक मापनी में अलग-अलग माप प्रणालियों में दूरियाँ प्रदर्शित करने वाली समस्त आलेखी मापनियाँ एक ही निरूपक भिन्न से बनायी जाती हैं।
(2) भिन्न-भिन्न मापों वाली इन मापनियों को मानचित्र में इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं कि समस्त मापनियों में अंकित शून्य के चिह्न एक सरल एवं ऊर्ध्वाधर रेखा में स्थित हों।
(3) कभी-कभी अलग-अलग मापों की अलग-अलग मापनियाँ न बनाकर एक ही आलेखी मापनी को इस प्रकार विभाजित किया जाता है कि उसमें भिन्न-भिन्न मापों को पढ़ा जा सके। उदाहरण के लिये, समय तथा दूरी की तुलनात्मक मापनी को ऐसी संख्या में विभाजित किया जाता है कि उसके भाग एक ओर दी हुई निरूपक भिन्न के अनुसार धरातल की दूरी प्रदर्शित करें तथा दूसरी ओर इन भागों के द्वारा प्रदर्शित दूरी को तय करने का समय दिखलाया जा सके। इस प्रकार की मापनियों में प्रत्येक भाग पर ऊपर की ओर दूरी की माप तथा नीचे की ओर समय की माप लिखते हैं। ऐसी मापनियों में भी दोनों मापों के प्राथमिक एवं गौण भागों के मिलन-बिन्दु अर्थात् शून्य के चिह्न एक सरल एवं ऊर्ध्वाधर रेखा में स्थित होने आवश्यक हैं।
(4) तुलनात्मक मापनी की शेष रचना-विधि जैसे मापनी की लम्बाई ज्ञात करना अथवा उसके प्राथमिक एवं गौण भागों की संख्या निश्चित करना आदि, सरल मापनी की रचना-विधि के अनुरूप होती है।
[I] विभिन्न मात्रकों में दूरियों की तुलनात्मक मापनी (Comparative scale of distances in different units)
तुलनात्मक मापनियों की रचना-विधि को निम्नलिखित उदाहरणों की सहायता से सरलतापूर्वक समझा जा सकता है
उदाहरण (1) 1/150,000 निरूपक भिन्न से एक तुलनात्मक मापनी की रचना कीजिये जिसमें मील तथा किलोमीटर में दूरियाँ पढ़ी जा सकें।
हल-स्पष्ट है कि इस तुलनात्मक मापनी में 1/150,000 निरूपक भिन्न से मील तथा किलोमीटर में दूरियाँ प्रदर्शित करने वाली दो मापनियाँ बनायी जायेंगी।
मीलों की मापनी की रचना करने के लिये निरूपक भिन्न के अनुसार,
•.•मानचित्र पर 1 इन्च
= धरातल पर 150,000 इन्च = 150,000/63,360 मील
.•.मानचित्र पर 5 इन्च
=धरातल पर =150,000×5/63,360= 11.83 मील
11.83 की उपयुक्त निकटतम पूर्णांक संख्या 12 है, अत: 12 मील प्रदर्शित करने वाली रेखा की लम्बाई निम्न प्रकार ज्ञात की जायेगी :
•.• धरातल पर 11.83 मील = मानचित्र पर 5 इन्च
.•. धरातल पर 12 मील = मानचित्र पर = 12 x 5/11.83
= 5.07 इन्च
अंतः 5.07 इन्च लम्बी एक सरल रेखा खींचकर उसे 4 समान भागों में बाँटिये तथा बायीं ओर के प्रथम भाग को 3 समान उपविभागों में विभाजित कीजिये जिससे प्रत्येक प्राथमिक भाग 3 मील तथा प्रत्येक गौण भाग 1 मील की दूरी प्रदर्शित करेगा।
अब किलोमीटर की मापनी बनाने के लिये निरूपक भिन्न के अनुसार,
•.•मानचित्र पर 1 सेमी
= धरातल पर 150,000 सेमी अर्थात् 1.5 किमी
.•. मानचित्र पर 15 सेमी प्रकट करेंगे
= धरातल पर 15 X 1.5 = 22.5 किमी
22.5 की निकटतम उपयुक्त शून्यान्त संख्या 20 है, अत: 20 किमी प्रदर्शित करने वाली रेखा की लम्बाई निम्न प्रकार ज्ञात की जायेगी :
•.•धरातल पर 22.5 किमी
=मानचित्र पर 15 सेमी
.•.धरातल पर 20 किमी
=मानचित्र पर =15 x 20/22.5 = 13.33 सेमी
अब 13.33 सेमी लम्बी सरल रेखा बनाकर उसको 5 भागों में विभाजित कीजिये तथा बायीं ओर के प्रथम भाग को 4 उपविभागों में बाँटिये जिससे मापनी का प्रत्येक प्राथमिक भाग 4 किमी तथा प्रत्येक गौण भाग 1 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगा।
दोनों मापनियों के भागों पर मान लिखिये तथा नीचे दिए चित्र के अनुसार दोनों मापनियों को इस प्रकार व्यवस्थित कीजिये कि उनमें अंकित शून्य के चिह्न एक सरल एवं ऊर्ध्वाधर रेखा में स्थित हों।
उदाहरण (2) 1/31,680 निरूपक भिन्न पर बने किसी मानचित्र के लिये एक तुलनात्मक मापनी की रचना कीजिये जिसमें एक फलांग तथा एक हेमी तक की दूरियाँ पढ़ी जा सकें।
हल-दी हुई निरूपक भिन्न 1/31,680 के अनुसार पहले मील-फर्लांग की मापनी सम्बन्धी गणनाएँ करते हैं।
•.•मानचित्र पर 1 इन्च
= धरातल पर 31,680 इन्च अर्थात्
31,680/63,360=1/2मील
.•.मानचित्र पर 6 इन्च प्रकट करेंगे
= धरातल 6 X 1/2 = 3 मील
अब 6 इन्च लम्बी एक सरल रेखा खींचिये। इस रेखा के तीन भाग करने पर प्रत्येक भाग 1 मील की दूरी प्रदर्शित करेगा।
बायीं ओर के प्रथम भाग को आठ भागों में बाँटने पर प्रत्येक भाग 1 फलांग की दूरी प्रदर्शित करेगा।
किलोमीटर-हेक्टोमीटर की मापनी की गणना निम्न प्रकार से की जायेगी।
•.•1 सेमी प्रकट करता है
=31,680 सेमी= 31,680/100,000 किमी
.•. 15 सेमी प्रकट करेंगे
=15 x 31,680/100,000= 4.75 किमी
4.75 की निकटतम उपयुक्त पूर्णांक संख्या 4 के अनुसार मापनी की लम्बाई,
•.•4.75 किमी प्रकट होते हैं
= 15 सेमी से
.•.4 किमी प्रकट होंगे
=15 x 4/4.75= 12.63 सेमी से
अब 12.63 सेमी लम्बी दूसरी सरल रेखा खींचिये जो 4 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगी इस रेखा के 4 भाग करने पर प्रत्येक भाग 1 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगा। बायीं ओर के प्रथम भाग के 10 उपविभाग करने पर प्रत्येक गौण भाग 1 हेमी की दूरी प्रकट करेगा।
दोनों मापनियों पर दूरियाँ लिखकर इस प्रकार व्यवस्थित कीजिये कि दोनों मापनियों में अंकित शून्य के चिह्न एक सरल और ऊर्ध्वाधर रेखा में स्थित हों ।
उदाहरण (3) 1/36 निरूपक भिन्न पर बने किसी मानचित्र के लिये एक तुलनात्मक मापनी की रचना कीजिये जिसमें गज-फीट तथा मीटर-डेसीमीटर में दूरियाँ पढ़ी जा सकें।
हल-दी हुई निरूपक भिन्न 1/36 के अनुसार,
•.•1 इन्च प्रकट करता है
=36 इन्च = 1 गज
.•.5 इन्च प्रकट करेंगे = 5 गज
अतः 5 इन्च लम्बी रेखा के 5 भाग करने पर प्रत्येक भाग 1 गज की दूरी प्रकट करेगा तथा पहले भाग के पुनः 3 उपविभाग करने पर प्रत्येक उपविभाग 1 फुट की दूरी प्रदर्शित करेगा ।
मीटर-डेसीमीटर की मापनी के लिये, निरूपक भिन्न 1/36 के अनुसार,
•.•1 सेमी प्रकट करता है = 36 सेमी
.•.15 सेमी प्रकट करेंगे
=36 x 15/100 = 5.4 मीटर
5.4 की निकटतम पूर्णांक संख्या 5 के अनुसार मापनी की लम्बाई,
•.•5.4 मीटर प्रकट होते हैं = 15 सेमी से
.•.5 मीटर प्रकट करेंगे
=15×5/5.4=13.88 सेमी
अतः 13.88 सेमी लम्बी रेखा के 5 भाग करने पर प्रत्येक भाग 1 मीटर को प्रकट करेगा तथा पहले भाग के 10 समान उपविभाग करने पर प्रत्येक उपविभाग 1 डेसीमीटर की दूरी प्रकट करेगा।
दोनों मापनियों के शून्य एक सीध में रखकर मापनी व्यवस्थित कीजिये तथा उन पर दूरियाँ आदि लिखिये।
[II] समय मापनी
(Time scale)
समय मापनी को समय तथा दूरी की तुलनात्मक. मापनी भी कहते हैं क्योंकि इस मापनी के द्वारा मानचित्र में दूरियाँ पढ़ने के साथ-साथ किसी निश्चित गति या चाल से उन दूरियों को तय करने का समय भी ज्ञात किया जा सकता है। समय मापनी की रचना अन्य तुलनात्मक मापनियों की रचना से दो बातों में भिन्न होती है :
(1) विभिन्न मात्रकों में दूरी प्रदर्शित करने वाली तुलनात्मक मापनी के विपरीत समय मापनी में समय तथा दूरी की माप प्रदर्शित करने वाले प्राथमिक तथा गौण भागों की संख्या एक समान होती है। अतः समय मापनी के प्राथमिक तथा गौण भागों की संख्या निश्चित करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि मापनी के प्रत्येक प्राथमिक तथा गौण भाग द्वारा प्रदर्शित दूरी को तय करने का समय भी पूर्णांकों में लिखा जा सके। अतः यह आवश्यक है कि मापनी की कुल लम्बाई समय एवं दूरी दोनों को पूर्णांकों में प्रदर्शित करने वाली होनी चाहिए।
(2) अन्य तुलनात्मक मापनियों के विपरीत समय मापनी में भिन्न-भिन्न मापनियाँ नहीं बनाई जातीं अपितु एक ही आलेखी मापनी में समय तथा दूरी दोनों का प्रदर्शन कर दिया जाता है।
उदाहरण (1) 3 किमी प्रति घण्टा की गति से चलते हुए किसी विद्यार्थी के लिये 1/100,000 निरूपक भिन्न पर बने मानचित्र के लिये एक समय मापनी की रचना कीजिये।
हल- प्रश्न की निरूपक भिन्न के अनुसार,
•.•1 सेमी प्रकट करता है : 100,000 सेमी = 1 किमी
.•. 15 सेमी प्रकट करेंगे = 15 किमी
15 किमी दूरी को तय करने का समय निम्न प्रकार ज्ञात किया जायेगा :
•.•3 किमी की दूरी तय करता है = 1 घण्टे में
.•.15 किमी की दूरी तय करेगा = 15/3
=5 घण्टे में
इस प्रकार 15 सेमी लम्बी रेखा 15 किमी की दूरी अथवा 5 घण्टे का समय प्रदर्शित करेगी। इस रेखा को पाँच समान भागों में बाँटने पर प्रत्येक भाग 3 किमी की दूरी अथवा एक षण्टे का समय प्रकट करेगा। बायीं ओर के प्रथम भाग को तीन गौण भागों में विभाजित करने पर प्रत्येक गौण भाग 1 किमी की दूरी अथवा 20 मिनट का समय प्रदर्शित करेगा। नीचे दिए चित्र के अनुसार मापनी की रचना पूर्ण कीजिये।
उदाहरण (2) 1 मील प्रति घण्टा की गति से चल रही किसी स्काउट टोली के लिये समय तथा दूरी की तुलनात्मक मापनी बनाइये जबकि मानचित्र की निरूपक भिन्न 1/63,360 है। मापनी में स्काउट टोली के द्वारा 4 घण्टे 15 मिनट में तय की जाने वाली दूरी प्रदर्शित कीजिये।
हल-
•.• 1 इन्च प्रकट करता है। = 63,360 इंच = 1 मील
.•. 6 इन्च प्रकट करेंगे = 6 मील
अब, •.•1 मील की दूरी तय होती है
= 1 घण्टे में
.•.6 मील की दूरी तय होगी
=6 घण्टे में
अतः 6 इन्च लम्बी रेखा 6 मील की दूरी अथवा 6 घण्टे का समय प्रकट करेगी। इस रेखा के 6 भाग करने पर प्रत्येक भाग 1 मील अथवा एक घण्टे का समय प्रकट करेगा। प्रथम भाग के चार उपविभाग करने पर प्रत्येक गौण भाग 2 फर्लांग की दूरी अथवा 15 मिनट का समय प्रदर्शित करेगा। नीचे दिए चित्र के अनुसार मापनी में 4 घण्टे तथा 15 मिनट के समय दिखलाने वाले भागों के मध्य सरल रेखा खींचिये तथा इस रेखा द्वारा प्रदर्शित दूरी को इस पर लिखिये।
उदाहरण (3) 30 किमी प्रति घण्टा की रफ्तार से जाने वाले किसी स्कूटर चालक के लिये एक समय मापनी की रचना कीजिये जबकि मानचित्र की निरूपक भिन्न 1/5,000,000 है। स्कूटर चालक द्वारा 18 घण्टे में तय की जाने वाली दूरी मापनी में प्रदर्शित कीजिये।
हल- निरूपक भिन्न के अनुसार,
•.•1 सेमी की दूरी प्रकट करती है
=5,000,000 सेमी अर्थात् 50 किमी
.•.15 सेमी की दूरी प्रकट करेगी
= 15 x 50 750 किमी
अब, •.•30 किमी स्कूटर चालक जाता है
= 1 घण्टे में
.•.750 किमी स्कूटर चालक जायेगा
=750/30 = 25 घण्टे में
अब 15 सेमी लम्बी रेखा खींचिये जो 750 किमी की दूरी अथवा 25 घण्टे का समय प्रदर्शित करेगी। इस रेखा के 5 भाग करने पर प्रत्येक भाग 150 किमी की दूरी अथवा 5 घण्टे का समय प्रदर्शित करेगा। बायीं ओर के प्रथम भाग को 5 उपविभागों में बाँटने पर प्रत्येक उपविभाग 30 किमी की दूरी अथवा 1 घण्टे का समय प्रदर्शित करेगा। नीचे दिए चित्र के अनुसार 18 घण्टे में तय की जाने वाली दूरी को सरल रेखा खींचकर प्रदर्शित कीजिये।
उपरोक्त उदाहरणों में दी हुई निरूपक भिन्नों के अनुसार 6 इन्च अथवा 15 सेमी द्वारा प्रकट होने वाली किलोमीटरों अथवा मीलों की दूरियाँ प्रति घण्टे तय होने वाली दूरियों से पूरी-पूरी विभाजित हो गयी थीं अत: 15 सेमी या 6 इन्च लम्बी रेखा को छोटा या बड़ा करने की आवश्यकता नहीं हुई थी। परन्तु कभी-कभी निरूपक भिन्न के अनुसार 6 इन्च अथवा 15 सेमी द्वारा प्रकट होने वाली दूरी दशमलवांश में आती है अथवा ऐसी संख्या होती है जो प्रति घण्टे तय की जाने वाली दूरी से पूरी-पूरी विभाजित नहीं होती। इन दशाओं में उस संख्या की ऐसी निकटतम पूर्णांक संख्या छाँटी जाती है जो प्रति घण्टे तय होने वाली दूरी से पूरी-पूरी विभाजित हो जाये और फिर इस छाँटी गई संख्या के अनुसार इन्च अथवा सेन्टीमीटर में मापनी की लम्बाई ज्ञात की जाती है। निम्नलिखित उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जायेगी।
उदाहरण (4) 50 किमी प्रति घण्टा की गति से दौड़ती हुई किसी मोटरकार के लिये एक समय मापनी की रचना कीजिये जबकि मानचित्र की निरूपक भिन्न 1/2,200,000 है।
हल-निरूपक भिन्न के अनुसार,
•.•1 सेमी की दूरी प्रकट करती है
= 2,200,000 सेमी अर्थात् 22
.•.15 सेमी की दूरी प्रकट करेगी
= 22 x15 = 330 किमी
330 ऐसी संख्या है जो प्रति घण्टा तय की जाने वाली दूरी अर्थात् 50 किमी से पूरी-पूरी विभाजित नहीं होती। 330 के निकट की 300 ऐसी संख्या है जो 50 से पूरी-पूरी विभाजित हो जाती है अतः 300 किमी को प्रकट करने वाली मापनी की लम्बाई ज्ञात की जायेगी।
•.•330 किमी प्रकट होते हैं = 15 सेमी से
.•.300 किमी प्रकट होंगे
= (15x300)/330 = 13.63 सेमी से
अब, •.•50 किमी मोटरकार जाती है = 1 घण्टे में
.•. 300 किमी मोटरकार जायेगी
=300/50 =6 घण्टे में
अब 13.63 सेमी लम्बी रेखा खींचिये जो 300 किमी की दूरी अथवा 6 घण्टे के समय को प्रदर्शित करेगी।
इस रेखा के 6 भाग करने पर प्रत्येक भाग 50 किमी अथवा 1 घण्टे का समय प्रदर्शित करेगा। बायीं ओर के प्रथम भाग को 5 गौण भागों में बाँटने पर प्रत्येक गौण भाग 10 किमी की दूरी अथवा 12 मिनट का समय प्रदर्शित करेगा ।
[III] परिक्रमण मापनी
(Revolution scale)
कभी-कभी धरातल पर दो स्थानों की बीच की दूरी साइकिल (bicycle) अथवा किसी अन्य वाहन के पहिये के पूर्ण परिक्रमणों के द्वारा ज्ञात की जाती है। दूरी ज्ञात करने के लिये पहिये की परिधि में पहिये के परिक्रमणों की संख्या से गुणा कर देते हैं। परिक्रमण मापनी के द्वारा मानचित्र में स्थानों के बीच की दूरियाँ तथा किसी दी हुई परिधि वाले पहिये के द्वारा उन दूरियों को तय करने के लिये लगाये जाने वाले परिक्रमणों की संख्या का प्रदर्शन किया जाता है। समय मापनी की तरह, परिक्रमण मापनी में भी मापनी के भागों पर ऊपर की ओर किसी रैखिक माप प्रणाली में दूरियाँ लिखते हैं तथा नीचे की ओर उन दूरियों को पूरा करने वाले परिक्रमणों की संख्या लिखी जाती है।
किसी पहिये की परिधि का मान धरातल पर उसके एक चक्र द्वारा तय होने वाली दूरी को मापकर ज्ञात किया जा सकता है। यदि पहिये का अर्द्धव्यास ज्ञात हो तो निम्नलिखित सूत्र के द्वारा उसकी परिधि ज्ञात करते हैं
पहिये की परिधि =2πR
जहाँ R पहिये का अर्द्धव्यास है तथा π (पाई) का मान 22/7 है। उदाहरणार्थ, यदि किसी पहिये का अर्द्धव्यास 56 सेमीहै तो उसकी परिधि निम्न होगी :
पहिये की परिधि =2πR
= (2 x 22 x 56) /7 =352 सेमी
=3 मीटर 52 सेमी
उदाहरण (1) 1/63,360 निरूपक भिन्न पर बने किसी मानचित्र के लिये एक परिक्रमण मापनी की रचना कीजिये जिसमें मील तथा परिक्रमण पढ़े जा सकें जबकि पहिये का अर्द्धव्यास 14 इन्च है।
हल-प्रश्न के अनुसार,
•.• पहिये का अर्द्धव्यास अर्थात् R = 14 इन्च
.•. पहिये की परिधि =2tR
= (2 X 22 X14)/7= 88 इन्च
अब निरूपक भिन्न के अनुसार,
•.•1 इन्च की दूरी प्रकट करती है
=63,360 इंच = 63,360/88 परिक्रमण =
.•.6 इन्च की दूरी प्रकट करेगी
= 63,360 x 6 = 3,80,160 इन्च
= 3,80,160/88=4,320 परिक्रमण
अब 6 इन्च लम्बी कोई सरल रेखा खींचिये जो 6 मील की दूरी अथवा 4,320 परिक्रमण प्रदर्शित करेगी। इस रेखा के 6 भाग करने पर प्रत्येक भाग 1 मील की दूरी अथवा 720 परिक्रमण प्रदर्शित करेगा। बायीं ओर के प्रथम भाग को 8 उपविभागों में विभाजित करने पर प्रत्येक उपविभाग 1 फर्लाग अथवा 90 परिक्रमणों की दूरी प्रदर्शित करेगा ।
हल- निरूपक भिन्न के अनुसार,
•.•1 सेमी की दूरी प्रकट करती है
=4,000 सेमी
.•.15 सेमी की दूरी प्रकट करेगी
= 4,000 X 15 =60,000 सेमी
= 600 मीटर = 6 हेमी
अब,•.•2 मीटर की दूरी
= 1 परिक्रमण
.•.600 मीटर की दूरी
= 600/2 =300 परिक्रमण
मापनी बनाने के लिये 15 सेमी लम्बी रेखा खींचिये जो 6 हेमी अथवा 300 परिक्रमण प्रदर्शित करेगी। इस रेखा के 6 भाग करने पर प्रत्येक भाग 1 हेमी अथवा 50 परिक्रमण प्रदर्शित करेगा। प्रथम भाग के 10 उपविभाग करने पर प्रत्येक उपविभाग 1 डेमी अथवा 5 परिक्रमण प्रदर्शित करेगा।
विकर्ण मापनी
(Diagonal Scale)
जिस आलेखी मापनी में विकर्णों की सहायता से गौण भागों को और छोटे भागों में विभाजित कर दिया जाता है, उसे विकर्ण मापनी की संज्ञा दी जाती है। सरल मापनी के द्वारा दो मात्रकों (units) जैसे, मील-फर्लांग, किलोमीटर-हेक्टोमीटर अथवा हेक्टोमीटर-डेकामीटर आदि में दूरियाँ पढ़ी जाती हैं जबकि विकर्ण मापनी के द्वारा तीन मात्रकों जैसे मील-फलांग-गज अथवा किलोमीटर हेक्टोमीटर-डेकामीटर में दूरियाँ पढ़ी जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त विकर्ण मापनी में 1 इन्च का 100 वाँ अथवा 1 सेन्टीमीटर का 10 वाँ भाग दिखलाया जा सकता है, जो सरल मापनी के द्वारा सम्भव नहीं है।
विकर्ण मापनी की रचना
(Construction of a Diagonal Scale)
जैसा ऊपर संकेत किया गया है विकर्ण मापनी में तीन मात्रकों में दूरियाँ पढ़ना सम्भव । प्रथम दो मात्रकों की दूरियों को सरल आलेखी मापनी की विधि के अनुसार प्रदर्शित करते हैं तथा तीसरे मात्रक की दूरी को मापनी के गौण भागों पर बनाये गये आयतों (rectangles) में विकर्ण खींचकर प्रदर्शित किया जाता है। प्रत्येक विकर्ण सम्बन्धित गौण भाग पर बने आयत में समान अन्तर पर निश्चित संख्या में आयत की क्षैतिज भुजा के समान्तर खींची गई सरल रेखाओं को अलग-अलग अनुपातों में विभाजित करता है। उदाहरणार्थ, यदि किसी आयत में क्षैतिज रेखा के अतिरिक्त समान दूरी के अन्तर पर खींची गई समान्तर रेखाओं की संख्या 10 है तो आयत का विकर्ण पहली रेखा को 1 : 9, दूसरी को 2 : 8, तीसरी को 3 : 7, चौथी को 4 : 6, पाँचवी को 5 : 5, छठी को 6 4, सातवीं को 7 : 3, आठवीं को 8 : 2, नवीं को 9 :1 में विभाजित करेगा तथा दसवीं भुजा आयत की क्षैतिज भुजा की लम्बाई प्रदर्शित करेगी। इस प्रकार यदि आयत की क्षैतिज भुजा अर्थात् गौण भाग की लम्बाई 1 इन्च है तो समान्तर खींची गई इन रेखाओं पर क्रमशः 0.1, 0.2, 0.3, 0.4, 0.5, 0.6, 0.7, 0.8 तथा 0.9 इन्च की दूरियाँ सरलतापूर्वक पढ़ी जा सकती हैं। अन्तिम अर्थात् दसवीं रेखा को विकर्ण विभाजित नहीं करेगा। अतः इसका मान 1 इन्च की दूरी होगा। यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि गौण भाग द्वारा प्रदर्शित दूरी को जितने भागों में बाँटना होता है उतनी ही संख्या में समान अन्तर पर आयत में उसकी क्षैतिज भुजा के समान्तर रेखाएँ खींची जाती है।
उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि विकर्ण मापनी में विकर्णों की सहायता से गौण भागों द्वारा प्रदर्शित दूरियों को आवश्यकतानुसार संख्या में समान भागों में विभाजित किया जाता है जिससे मापनी में छोटी-छोटी दूरियाँ पढ़ी जा सकें ।
विकर्ण मापनी की रचना निम्नलिखित नियमों के अनुसारकी जाती है:-
(1) मापनी को प्राथमिक तथा गौण भागों में विभाजित करने वाले प्रत्येक बिन्दु पर समान लम्बाई वाली लम्ब रेखाएँ बनाई जाती हैं। इन लम्ब रेखाओं की लम्बाई प्रायः 3 से 4 सेन्टीमीटर तक रखते हैं। कभी-कभी मापनी को गौण भागों में विभाजित करने वाले बिन्दुओं पर रचना-सम्बन्धी सरलता के लिये लम्ब नहीं बनाये जाते ।
(2) मापनी के बायें सिरे पर बनाये गये लम्ब को आवश्यकतानुसार संख्या में समान दूरी के अन्तर पर विभाजित करते हैं तथा इन विभाजक-बिन्दुओं के मान नीचे से ऊपर की ओर को लिखे जाते हैं।
(3) लम्ब रेखा को समान भागों में बाँटने वाले इन बिन्दुओं से मापनी की पूरी लम्बाई में समान्तर रेखाएँ खींची जाती हैं जो मापनी की प्रत्येक लम्ब रेखा को समान भागों में विभाजित करती हैं।
(4) मापनी के गौण भागों पर इस प्रकार बने आयतों में परस्पर समान्तर विकर्ण बनाये जाते हैं। प्राथमिक भागों पर बने आयतों में विकर्ण बनाने की आवश्यकता नहीं होती। विकर्ण बनाने के लिये सदैव आयत के ऊपरी बायें कोने से निचले दायें कोने को मिलाती हुई सरल रेखा खींची जाती है। यदि मापनी के गौण भागों पर आयत नहीं बनाये गये हैं तो जिस प्रकार मापनी की निचली रेखा पर शून्य से बायीं ओर को गौण भागों के 1, 2, 3, 4, आदि मान लिखे जाते हैं उसी प्रकार मापनी की ऊपरी रेखा पर शून्य से बायीं ओर को गौण भागों के 1, 2, 3, 4, आदि मान लिख देते हैं और तत्पश्चात् निचली रेखा पर अंकित 0, 1, 2, तथा 3 के मान वाले बिन्दुओं की ऊपरी रेखा पर अंकित क्रमशः 1, 2, 3, तथा 4. मान वाले बिन्दुओं से मिलाकर विकर्ण बनाते हैं।
(5) विकर्ण मापनी पर कोई दूरी पढ़ने के लिए सम्बन्धित समान्तर रेखा पर शून्य के दायीं ओर किसी प्राथमिक भाग के लम्ब पर तथा शून्य के बायीं ओर उस समान्तर रेखा तथा सम्बन्धित विकर्ण के छेदन बिन्दु पर गुणा (x) या तीर के चिह्न लगाये जाते हैं तथा इन चिह्नों के मध्य गहरी स्याही से रेखा खींचकर दूरी लिख देते हैं। उदाहरणार्थ, मान लीजिये विकर्ण मापनी पर 5 मील 4 फलांग की दूरी पढ़नी है तो 4 मील की दूरी प्रदर्शित करने वाले प्राथमिक भाग एवं शून्य के बायीं ओर दूसरे विकर्ण तथा चौथी समान्तर रेखा के छेदन-बिन्दु पर गुणा के चिह्न अंकित किये।
(6) प्राथमिक तथा गौण भागों द्वारा प्रदर्शित दूरियों को लिखने की तथा मापनी की लम्बाई आदि ज्ञात करने की विधि वही होती है जो सरल मापनी की होती है। गौण भाग की छोटी दूरियों को मापनी के बायें सिरे पर बनाये गये लम्ब पर नीचे से ऊपर की ओर को सम्बन्धित समान्तर रेखा के सामने लिखते हैं।
उदाहरण (1) 1/50 निरूपक भिन्न पर बने किसी मकान के प्लान के लिये एक विकर्ण मापनी की रचना कीजिये जिसमें 1 सेमी तक की दूरी पढ़ी जा सके।
हल- निरूपक भिन्न के अनुसार,
•.•1 सेमी की दूरी प्रकट करती है
=50 सेमी
.•.14 सेमी की दूरी प्रकट करेगी
= 50 x 14 सेमी अर्थात् 7 मीटर
अब 14 सेमी लम्बी कोई सरल रेखा खींचिये जो 7 मीटर की दूरी प्रकट करेगी। इस रेखा को 7 समान भागों में बाँटिये तथा विभाजक बिन्दुओं पर लम्ब खींचिये। इस प्रकार बना प्रत्येक भाग 1 मीटर की दूरी प्रदर्शित करेगा। बायीं ओर के भाग को पुनः 10 उपविभागों में बाँटिये जिससे प्रत्येक उपविभाग के द्वारा 1 डेसी (अर्थात् 10 सेमी) की दूरी प्रकट होगी। बायें सिरे पर बनाये गये लम्ब पर कोई दूरी लेकर 10 चिह्न लगाइये तथा इन चिह्नों से मापनी की पूरी लम्बाई में समान्तर रेखाएँ खींचिये। इन रेखाओं पर 1 से 10 सेमी तक की संख्याएं लिखिये। नीचे दिए चित्र के अनुसार गौण भागों पर विकर्ण बनाइये।
उदाहरण (2) 1/63,360 निरूपक भिन्न पर बने मानचित्र के लिये एक विकर्ण मापनी की रचना कीजिए तथा मापनी में 3 मील 3 फर्लाग 132 गज की दूरी प्रदर्शित कीजिये।
हल-निरूपक भिन्न के अनुसार,
•.•1 इन्च की दूरी प्रकट करती है
=63,360 इन्च अर्थात् 1 मील
.•. 5 इन्च की दूरी प्रकट करेगी =5 मील
अब 5 इन्च लम्बी कोई सरल रेखा खींचिये जो 5 मील की दूरी प्रकट करेगी। इस रेखा के 5 समान भाग कीजिये जिससे प्रत्येक भाग 1 मील की दूरी प्रदर्शित करेगा। विभाजक बिन्दुओं पर लम्ब उठाइये। फर्लाग दिखलाने के लिये बायीं ओर के पहले भाग को आठ समान भागों में विभाजित कीजिये। मापनी के बायें सिरे पर बनाये गये लम्ब पर कोई दूरी लेकर समान अन्तर पर 10 चिह्न लगाइये तथा इन चिह्नों से मापनी की आधार रेखा के समान्तर रेखाएँ खींचिये। नीचे दिए चित्र के अनुसार गौण भागों पर विकर्ण खींचिये। मापनी में 3 मील 3 फर्लांग 132 गज की दूरी प्रदर्शित करने के लिये शून्य से बायीं ओर की चौथी विकर्ण रेखा तथा छठी समान्तर रेखा के छेदन-बिन्दु पर तीर का चिह्न लगाइये तथा दूसरा चिह्न इस समान्तर रेखा तथा 3 मील प्रदर्शित करने वाली लम्ब रेखा के छेदन-बिन्दु पर अंकित किया जायेगा।
उदाहरण (3) 1/40,000 निरूपक भिन्न पर बने किसी मानचित्र के लिये विकर्ण मापनी की रचना कीजिये जिसमें 1 डेमी तक की दूरी पढ़ी जा सके।
हल- निरूपक भिन्न के अनुसार,
•.•1 सेमी की दूरी प्रकट करती है
= 40,000 सेमी
.•.12 सेमी की दूरी प्रकट करेगी
= 12x40,000 सेमी अथवा 4.8 किमी
चूँकि 4.8 की निकटतम पूर्णांक संख्या 5 है, अतः
•.• 4.8 किमी प्रकट होते हैं
= 12 सेमी से
.•. 5 किमी प्रकट होंगे
=12 x 5/4.8 = 12.5 सेमी से
अब 12.5 सेमी लम्बी रेखा को 5 भागों में विभाजित कीजिये जिससे प्रत्येक भाग 1 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगा। प्रथम भाग को 10 उपविभागों में बाँटने पर प्रत्येक उपविभाग 1 हेक्टोमीटर की दूरी प्रदर्शित करेगा। डेमी प्रदर्शित करने के लिये बायें सिरे पर बने लम्ब पर समान अन्तर पर 10 चिह्न लगाइये तथा पहले बतलाई गई विधि के अनुसार समान्तर तथा विकर्ण रेखाएँ खींचिये।
उदाहरण (4) किसी मानचित्र में 16 वर्ग सेमी क्षेत्र धरातल के 144 वर्ग किमी क्षेत्र को प्रदर्शित करता है। मानचित्र की निरूपक भिन्न ज्ञात कीजिये तथा एक विकर्ण मापनी की रचना कीजिए तथा उसमें 26 किमी 5 हेमी की दूरी पढ़िये।
हल-प्रश्न के अनुसार,
•.•16 वर्ग सेमी प्रकट करते हैं = 144 वर्ग किमी
.•. 4 सेमी की दूरी प्रकट करेगी = 12 किमी
( √16 =4 तथा √144 = 12)
.•.1 सेमी की दूरी प्रकट करेगी
= 3 किमी अर्थात् 300,000 सेमी
अतः निरूपक भिन्न
= 1/300,000
अब, •.•1 सेमी की दूरी प्रकट करती है =3 किमी
.•.13 सेमी की दूरी प्रकट करेगी =39 किमी
अब, •.•39 किमी प्रकट होते हैं। =13 सेमी से
.•.40 किमी प्रकट होंगे
=13×40/39=13.33 सेमी से
अब 13.33 सेमी लम्बी रेखा खींचिये जो 40 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगी। इस रेखा को 8 भागों में बाँटने पर प्रत्येक भाग 5 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगा। प्रथम भाग को 5 उपविभागों में बाँटने पर प्रत्येक उपविभाग 1 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगा। मापनी के बायें सिरे वाले लम्ब पर समान दूरी के अन्तर पर 10 चिह्न लगाइये तथा इन चिह्नों से समान्तर रेखाएँ खींचिये। गौण भागों पर विकर्ण बनाइये। 26 किमी 5 हेमी की दूरी पढ़ने के लिये शून्य से बायीं ओर को स्थित दूसरे विकर्ण तथा पाँचवीं समान्तर रेखा के छेदन-बिन्दु पर तीर का चिह्न लगाइये तथा दूसरा चिह्न इस समान्तर रेखा तथा 25 किमी दिखालाने वाली लम्ब रेखा के छेदन-बिन्दु पर अंकित कीजिये।
उदाहरण (5) 1/1,000 निरूपक भिन्न पर बने मानचित्र के लिये एक विकर्ण मापनी बनाइये जिसमें 1 मीटर तक की दूरी पढ़ी जा सके।
हल- निरूपक भिन्न के अनुसार,
•.•1 सेमी की दूरी प्रकट करती है
= 1000 सेमी अर्थात् 1 डेमी
.•.12 सेमी की दूरी प्रकट करेगी
= 12 डेमी
अब 12 सेमी लम्बी रेखा के 4 भाग कीजिये जिससे प्रत्येक भाग 3 डेमी की दूरी प्रकट करेगा। प्रथम भाग के तीन उपविभाग करने पर प्रत्येक उपविभाग 1 डेमी की दूरी प्रकट करेगा। बायीं ओर के लम्ब पर 10 चिह्न लगाकर समान्तर रेखाएँ खींचिये तथा नीचे दिए चित्र के अनुसार विकर्ण बनाकर मापनी में दूरियाँ लिखिये।
उदाहरण (6) 1/36 निरूपक भिन्न पर बने मानचित्र के लिये एक विकर्ण मापनी बनाइये तथा मापनी में 3 गज 2 फीट 5 इन्च की दूरी अंकित कीजिये।
हल- निरूपक भिन्न के अनुसार,
•.•1 इन्च की दूरी प्रकट करती है
= 36 इन्च अर्थात् 1 गज
.•.5 इन्च की दूरी प्रकट करेगी
= 5 गज
अब 5 इन्च लम्बी रेखा के 5 भाग करने पर प्रत्येक भाग 1 गज की दूरी प्रकट करेगा। बायीं ओर के भाग को तीन उपविभागों में बाँटने पर प्रत्येक उपविभाग 1 फुट की दूरी प्रकट करेगा। चूंकि 1 फुट में 12 इन्च होते हैं अतः बायीं ओर के लम्ब पर 12 चिह्न लगाकर समान्तर रेखाएँ खींची जायेंगी। नीचे दिए चित्र के अनुसार मापनी में विकर्ण खींचिये तथा तीर के चिह्नों द्वारा 3 गज 2 फीट 5 इन्च की दूरी प्रदर्शित कीजिये।
उदाहरण (7) 1/1,000,000 निरूपक भिन्न पर बने मानचित्र के लिये एक विकर्ण मापनी बनाइये जिसमें 1 किमी तक की दूरी पढ़ी जा सके।
हल-निरूपक भिन्न के अनुसार,
•.•1 सेमी की दूरी प्रकट करती है
=1,000,000 सेमी या 10 किमी
.•.15 सेमी की दूरी प्रकट करेगी
= 10 x 15 = 150 किमी
अब 15 सेमी लम्बी रेखा के 5 भाग करने पर प्रत्येक भाग 30 किमी की दूरी प्रदर्शित करेगा। प्रथम भाग को 3 उपविभागों में बाँटने पर प्रत्येक उपविभाग 10 किमी की दूरी प्रकट करेगा। बायें सिरे के लम्ब पर समान अन्तर पर 10 चिह्न लगाकर उन चिह्नों से होती हुई समान्तर रेखाएँ खींचिये तथा विकर्ण बनाकर मापनी के भागों पर नीचे दिए चित्र के अनुसार दूरियाँ लिखिये।
विशिष्ट मापनियाँ (Special Scales)
विशिष्ट मापनी से हमारा तात्पर्य उस आलेखी मापनी से है जिसकी रचना किसी विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति हेतु की जाती है। प्रस्तुत अध्ययन में विशिष्ट मापनियों के अन्तर्गत चार प्रकार की आलेखी मापनियों-(6) वर्नियर मापनी, (ii) वर्गमूल मापनी, (iii) घनमूल मापनी, तथा (iv) ढाल या प्रवणता मापनी, का उल्लेख किया गया है।
वर्नियर मापनी
(Vernier Scale)
वर्नियर मापनी में वस्तुतः दो मापनियाँ होती हैं। बड़ी मापनी को मुख्य या प्राथमिक मापनी (main or primary scale) तथा छोटी मापनी को वर्नियर मापनी (vernier scale) कहते हैं। मुख्य मापनी स्थिर रहती है तथा वर्नियर मापनी मुख्य मापनी से इस प्रकार जुड़ी होती है कि वर्नियर मापनी के अंशांकित किनारे (graduated edge) को मुख्य मापनी के अंशांकित किनारे के सहारे-सहारे आवश्यकतानुसार इधर-उधर खिसकाया जा सकता है। वर्नियर मापनी में शून्य की स्थिति बतलाने के लिये कोई सूचक चिह्न (index mark) अथवा तीर बना दिया जाता है। आकृति के विचार से वर्नियर मापनी दो प्रकार की होती हैं- (i) सीधे किनारे वाली मापनी (straight edge scale) तथा (ii) वक्र किनारे वाली मापनी (curved edge scale)। किसी सरल रेखा में स्थित दो बिन्दुओं के बीच की दूरी पढ़ने के लिये सीधे किनारे वाली वर्नियर मापनी बनायी जाती है जबकि वक्र किनारे वाली वर्नियर मापनी की सहायता से सेक्सटैन्ट (sextant) तथा थियोडोलाइट (theodolite) आदि सर्वेक्षण यन्त्रों के द्वारा धरातल पर स्थानों के बीच के कोणों के अंश, मिनट और सेकण्ड में मान ज्ञात किये जाते हैं I
वर्नियर मापनी का सबसे बड़ा गुण यह है कि इसके द्वारा प्राथमिक या मुख्य मापनी के सबसे छोटे भाग के भिन्नात्मक भागों (fractional parts) को विकर्ण मापनी की तुलना में अधिक शुद्धता से मापा या पढ़ा जा सकता है।
[I]अल्पतमाँक
(Least count)
किसी वर्नियर मापनी के द्वारा मापी जा सकने वाली सबसे छोटी दूरी को उस वर्नियर मापनी की अल्पतमाँक (least count) कहते हैं। उदाहरणार्थ, यदि किसी वर्नियर मापनी की अल्पतमांक 1/60 अंश है तो इसका अर्थ यह हुआ कि उस वर्नियर मापनी के द्वारा 1 अंश के साठवें भाग अर्थात् 1 मिनट तक की दूरी पढ़ी जा सकती है। इसी प्रकार यदि किसी वर्नियर मापनी में 1 इन्च के 100 वें भाग तक की दूरी पढ़ी जा सकती है तो उस वर्नियर मापनी की अल्पतमाँक 1/100 इन्च मानी जायेगी। अल्पतमाँक को वर्नियर कान्सटेन्ट (vernier constant) भी कहते हैं।
जैसा कि पहले बतलाया जा चुका है वर्नियर मापनी, मुख्य तथा वर्नियर मापनियों से मिलकर बनी होती है। इन दोनों मापनियों में बनाये गये सबसे छोटे भागों के अन्तर का मान मापनी का अल्पतमाँक होता है। उदाहरणार्थ, मान लीजिये प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग का मान P है तथा वर्नियर में बनाये गये सबसे छोटे भाग का मान V है तो मापना के अल्पतमांक का मान P तथा V के अन्तर के बराबर होगा,
अर्थात
अल्पतमाँक =P-V
(जहाँ P है तथा V = = प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग का मान वर्नियर मापनी के सबसे छोटे भाग का मान है।)
किसी वर्नियर मापनी में अल्पतमाँक (least count), वर्नियर के भागों की संख्या तथा प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग सूत्र में एक निश्चित पारस्परिक सम्बन्ध होता है, जिसे निम्नांकित के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है-
अल्पतमाँक =1/N×P
(जहाँ P :प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग का मान तथा N = वर्नियर मापनी में बनाये गये भागों की कुल संख्या है।)
अल्पतमाँक के उपरोक्त सूत्र को और सरल शब्दों में निम्न प्रकार लिखा जा सकता है-
अल्पतमाँक= प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग का मान/वर्नियर मापनी के भागों की कुल संख्या
इस प्रकार वर्नियर मापनी चाहे किसी भी प्रकार की हो उपरोक्त सूत्र की सहायता से अल्पतमांक, प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग का मान तथा वर्नियर मापनी के भागों की कुल संख्या में से किन्हीं दो का मान ज्ञात होने पर तीसरे का मान ज्ञात किया जा सकता है। निम्नलिखित कुछ उदाहरणों के द्वारा यह बात स्पष्ट की जा सकती है :
उदाहरण (1) किसी वर्नियर मापनी का अल्पतमाँक 1/100 इन्च है तथा वर्नियर के भागों की संख्या 10 है तो उसकी प्राथमिक मापनी के छोटे भाग का मान ज्ञात कीजिये।
हल- प्रश्न के अनुसार, अल्पतमांक = 1/100 इन्च तथा वर्नियर के भागों की कुल संख्या अर्थात् N =10 है। उपरोक्त मानों को अल्पतमाँक के सूत्र में रखने पर-
अल्पतमांक= 1/N x P
(जहाँ P प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग का मान है।)
1/100=P/10
अर्थात P=10/100=1/10 इन्च
उदाहरण (2) किसी वर्नियर मापनी को 20 भागों में बाँटा गया है। यदि प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग का मान 1/10 इन्च हो तो मापनी का अल्पतमाँक ज्ञात कीजिए।
हल-प्रश्न के अनुसार अल्पतमाँक ज्ञात करना है जबकि N = 20 तथा P = 1/10 इन्च है। अल्पतमौक ज्ञात करने का सूत्र-
अल्पतमाँक =1/N×P
=1/20×1/10इन्च
(सूत्र में N तथा P के मान रखने पर)
=1/200 इन्च
उदाहरण (3) किसी वर्नियर का अल्पतमांक 1/50 सेमी है। यदि प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग का मान 1/10 सेमी हो तो वर्नियर के भागों की कुल संख्या ज्ञात कीजिये ।
हल-प्रश्न के अनुसार अल्पतमाँक = 1/50 सेमी तथा P = 1/10 सेमी ।
अल्पतमाँक ज्ञात करने का सूत्र-
अल्पतमाँक =1/N×P
(जहाँ N वर्नियर के भागों की कुल संख्या है।)
अर्थात्1/50=1/N= 1/10
(सूत्र में अल्पतमाँक तथा P के मान रखने पर)
1/50=1/10N
N= 5
[II] वर्नियर मापनी के प्रकार (Types of vernier scale)
वर्नियर मापनियाँ कई प्रकार की होती हैं । वर्नियर तथा प्राथमिक मापनियों को अंशांकित करने की दिशा तथा वर्नियर के भागों द्वारा घेरे जाने वाले प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भागों की संख्या के विचार से विभिन्न प्रकार की वर्नियर मापनियों को दो श्रेणियों या समूहों में विभाजित किया गया है (i) प्रत्यक्ष वर्नियर मापनी तथा (ii) वक्री वर्नियर मापनी। इन दोनों प्रकार की वर्नियर मापनियों के पारस्परिक भेद तथा रचना-विधि को नीचे समझाया गया है।
1. प्रत्यक्ष वर्नियर मापनी (Direct vernier scale) - प्रत्यक्ष वर्नियर मापनी को उसके दो लक्षणों से पहचाना जा सकता है। प्रथम, इसकी दोनों मापनियाँ एक ही दिशा में अंशांकित होती हैं। दूसरे शब्दों में, यदि प्राथमिक मापनी में बायें सिरे पर शून्य अंकित करके दायीं ओर को मापनी के भागों के मान लिखे गये हैं तो वर्नियर मापनी में भी बायें सिरे पर शून्य अंकित करके दायीं ओर को उसके भागों के मान लिखे जायेंगे । इसी प्रकार यदि प्राथमिक मापनी के दायें सिरे पर शून्य लिखा है तो वर्नियर मापनी में भी शून्य की स्थिति दायें सिरे पर होगी । प्रत्यक्ष मापनी का दूसरा लक्षण यह होता है कि यदि प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग के Nवें भाग का मान का ज्ञात करना है तो प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भागों की N-1 संख्या की दूरी को वर्नियर मापनी के रूप में N भागों में विभाजित किया जाता है।
उदाहरणार्थ, मान लीजिये प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग का 10वां भाग ज्ञात करना है तो प्राथमिक मापनी के N-1 अर्थात् 10-1 =9 सबसे छोटे भागों की दूरी को वर्नियर मापनी के रूप में 10 भागों में विभाजित किया जायेगा । दूसरे शब्दों में वर्नियर मापनी के 10 भागों की दूरी प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे 9 भागों की दूरी 6. के बराबर होगी। इसी प्रकार मान लीजिये प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग का 30वाँ भाग ज्ञात करना है तो प्राथमिक मापनी के 30-1 = 29 सबसे छोटे भागों की दूरी को वर्नियर मापनी के रूप में 30 भागों में विभाजित किया जायेगा। अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्यक्ष मापनी में वर्नियर के सबसे छोटे एक भाग की लम्बाई प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे एक भाग की लम्बाई से 1/N भाग छोटी होती है। चित्र 4.33 के अनुसार वर्नियर मापनी का एक भाग प्राथमिक मापनी के एक भाग से 1/10 भाग छोटा है; वर्नियर के दो भाग प्राथमिक मापनी के दो भागों से 2/10 भाग छोटे हैं। इसी प्रकार वर्नियर के तीन, चार, पाँच, छः, सात, आठ, नौ व दस भागों की अलग-अलग दूरियाँ प्राथमिक मापनी के तीन, चार, पाँच, छ:, सात, आठ, नौ व दस भागों की अलग-अलग दूरियों से क्रमशः 3/10, 4/10, 5/10, 6/10, 7/10, 8/10, 9/10 व 10/10 अर्थात् 1 भाग छोटी हैं। इस उदाहरण में वर्नियर का एक भाग प्राथमिक मापनी के एक भाग से 1/10 भाग छोटा है यह बात दोनों भागों का अन्तर निकाल कर सिद्ध की जा सकती है-
अन्तर = प्राथमिक मापनी के एक भाग की लम्बाई
-वर्नियर के एक भाग की लम्बाई
=1-9/10 (मान रखने पर)
=1/10(भाग)
2. वक्री वर्नियर मापनी (Retrograde vernier scale)-वक्री वर्नियर पर विचार करने से पूर्व यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि वक्री वर्नियर का अर्थ वक्राकार किनारे वाली मापनी नहीं होता है। वस्तुतः वक्र किनारे वाली मापनी प्रत्यक्ष अथवा वक्री में किसी भी प्रकार की हो सकती है।
वक्री वर्नियर मापनी प्रत्यक्ष वर्नियर मापनी से दो बातों में भिन्न होती है:
(1) प्रत्यक्ष वर्नियर मापनी की दोनों मापनियाँ सदैव एक ही दिशा में अंशांकित होती हैं परन्तु वक्री मापनी की दोनों मापनियाँ परस्पर एक दूसरे के विपरीत दिशाओं में अंशांकित की जाती हैं अर्थात् यदि इसकी प्राथमिक मापनी के बायें सिरे पर शून्य अंकित है तो वर्नियर में शून्य की स्थिति दायें सिरे पर होगी।
(2) वक्री वर्नियर मापनी का दूसरा लक्षण यह है कि इसकी प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग के Nवें भाग का मान ज्ञात करने के लिये प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भागों की N +1 संख्या की लम्बाई को वर्नियर के रूप में N भागों में विभाजित किया जाता है। उदाहरण के लिये, यदि प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग का 10वाँ भाग ज्ञात करना है तो वक्री मापनी में प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भागों की N + 1 अर्थात् 10 +1 = 11 संख्या की लम्बाई को वर्नियर के रूप में 10 भागों में बाँटा जायेगा। इस उदाहरण में वक्री मापनी का एक छोटा भाग प्राथमिक मापनी के एक छोटे भाग से 1/10 भाग बड़ा होगा। इसी प्रकार वक्री मापनी के दो, तीन, चार, पाँच, छः, सात, आठ, नौ व दस भागों की अलग-अलग दूरियाँ प्राथमिक भागों के दो, तीन, चार, पाँच, छः सात, आठ, नौ व दस भागों की अलग-अलग दूरियां से क्रमशः 2/10, 3/10, 4/10, 5/10, 6/10, 7/10, 8/10, 9/10 व 10/10 अर्थात् 1 भाग बड़ी होंगी। इस तरह से वर्नियर व प्राथमिक भाग का अन्तर 1/10 रहता है-
अन्तर = वक्री मापनी के एक भाग की लम्बाई
- प्राथमिक मापनी के एक भाग की लम्बाई
=11/10-1( मान रखने पर)
=1/10 भाग
यद्यपि वक्री वर्नियर के खाने प्राथमिक मापनी की तुलना में बड़े होते हैं परन्तु पढ़ने की सरलता के कारण प्रत्यक्ष वर्नियर मापनी (direct vernier scale) का प्रयोग प्रायः अधिक होता है।
3. दोहरी वर्नियर मापनी (Double vernier scale) सरल वर्नियर मापनी द्वारा केवल एक दिशा में दूरी पढ़ी जा सकती है। यदि प्राथमिक मापनी मध्य में स्थित शून्य अंक से दोनों ओर को अंशांकित होती है तो प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग के Nवें भाग की दूरी ज्ञात करने के लिये दोहरी मापनी प्रयोग में लाते हैं। वस्तुतः दोहरी मापनी में दो सरल वर्नियर मापनियाँ इस प्रकार बनाते हैं कि दोनों वर्नियर मापनियों में शून्य का चिह्न उभयनिष्ट हो अर्थात् उभयनिष्ट शून्य से एक वर्नियर दायीं ओर को तथा दूसरा बायीं ओर को बनाया जाता है । इन वर्नियरों में एक के द्वारा घड़ी की सुईं की दिशा में तथा दूसरी से घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में दूरी पढ़ते हैं। घड़ी की सुई की दिशा में पढ़ने पर संख्याएँ बायीं ओर को तथा विपरीत दिशा में पढ़ने पर संख्याएँ दायीं ओर को बढ़ती हैं।
वर्नियर मापनी की कुछ अन्य प्रकारों में दोहरी वलित वर्नियर (double folded vernier) तथा विस्तृत वर्नियर (extended vernier) प्रमुख हैं।
[III] वर्नियर मापनी पढ़ने की विधि
(Method of reading a vernier scale)
वर्नियर मापनी में प्राथमिक मापनी के शून्य से वर्नियर के शून्य तक की दूरी को पढ़ा जाता है। अतः मापनी पढ़ते समय सर्वप्रथम वर्नियर की शून्य रेखा तक पड़ने वाले प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे पूरे-पूरे भागों द्वारा प्रदर्शित दूरी को लिख लिया जाता है। उसके बाद यह देखा जाता है कि वर्नियर की कौन सी रेखा प्राथमिक मापनी की किसी रेखा के बिल्कुल सीध में है। वर्नियर की इस रेखा पर लिखी संख्या में अल्पतमाँक की गुणा करने पर जो मान प्राप्त होता है उस मान को पहले लिखे गये प्राथमिक भागों के मान में जोड़कर अभीष्ट दूरी ज्ञात हो जाती है ।
नीचे दिए चित्र में वर्नियर की दायीं स्थिति के उदाहरण से मापनी पढ़ने की विधि को समझा जा सकता है। इस मापनी में अल्पतमाँक 1/10 है क्योंकि प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग का मान 1 है तथा वर्नियर के भागों की संख्या 10 है। वर्नियर की शून्य रेखा प्राथमिक मापनी के 14वें तथा 15वें भाग के बीच में है अतः प्राथमिक मापनी के शून्य से वर्नियर के शून्य तक की दूरी 14 से अधिक तथा 15 से कम है। चित्र से स्पष्ट है कि वर्नियर के शून्य तक पड़ने वाले प्राथमिक मापनी के भागों का मान 14 है। वर्नियर की क्रमांक 3 की रेखा प्राथमिक मापनी की किसी रेखा के बिल्कुल सीध में स्थित है अतः 3x1/10 = 0.3 को 14 में जोड़ने पर प्राप्त दूरी अर्थात् 14.3 अभीष्ट दूरी हुई।
वक्री मापनी में वर्नियर पढ़ने की विधि प्रत्यक्ष मापनी की विधि जैसी ही होती है अन्तर केवल इतना है कि वक्री मापनी में प्राथमिक मापनी की किसी रेखा के सीध में आने वाली वनियर की रेखा वर्नियर के शून्य से पहले स्थित होती है। चित्र 4.34 में वर्नियर की दायीं स्थिति में वर्नियर के शून्य तक पड़ने वाले प्राथमिक भागों की पूरी-पूरी संख्या द्वारा प्रदर्शित दूरी 23 है तथा वर्नियर की कमॉक 8 वाली रेखा प्राथमिक मापनी की किसी रेखा के बिल्कुल सीध में स्थित है अतः वर्नियर की दूरी 23 + (8x1/10) = 23 + 8/10 अर्थात् 23.8 हुई।
[IV] वर्नियर मापनी के उदाहरण
(Examples of vernier scale)
वर्नियर मापनी की रचना-विधि निम्नलिखित कुछ उदाहरणों के द्वारा स्पष्ट की जा सकती है।
उदाहरण (1) एक प्रत्यक्ष वर्नियर मापनी की रचना कीजिये जिसमें एक सेन्टीमीटर का 20वाँ भाग तक पढ़ा जा सके जबकि प्राथमिक मापनी को सेन्टीमीटर और आधा सेन्टीमीटर के भागों में विभाजित किया गया है। मापनी में 8.75 सेमी की दूरी प्रदर्शित कीजिये।
हल-प्रश्न के अनुसार अल्पतमाँक = 1/20 सेमी तथा प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग का मान = 1/2 सेमी है अतः अल्पतमाँक के सूत्र में इन मानों को रखने पर वर्नियर के भागों की संख्या ज्ञात की जा सकती है-
अल्पतमाँक=1/N=P
(जहाँ P = प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग का मान तथा N - वर्नियर के भागों की संख्या है)
1/20=1/N×1/2 (मान रखने पर)
1/20=1/2N अर्थात् N = 10
अब प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भागों की N-1 संख्या अर्थात् 10-1=9 भागों को प्रत्यक्ष वर्नियर के रूप में 10 भागों में बाँटिये तथा इन भागों के मान लिखिये। मापनी में 8.75 सेमी की दूरी पढ़ने के लिये पहले वर्नियर के शून्य को प्राथमिक मापनी के 8.5 वें भाग की सीध में कीजिये तथा उसके बाद 0.25 सेमी की और दूरी पढ़ने के लिए वर्नियर को इतना और खिसकाइये कि इसकी क्रमांक 5 की रेखा प्राथमिक मापनी की प्रथम अगली रेखा की सीध में आ जाये।
उदाहरण (2) यदि प्राथमिक मापनी पर इन्च तथा इन्च के 10 वें भाग बने हों तो एक इन्च का 100वाँ भाग पढ़ने के लिये प्रत्यक्ष वर्नियर बनाइये तथा मापनी में 3.25 इन्च की दूरी अंकित कीजिये।
हल-प्रश्न के अनुसार अल्पतमाँक = 1/100 इन्च तथा प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग अर्थात् P का मान = 1/10 इन्च है। इन मानों को अल्पतमाँक के सूत्र में रखने पर-
अल्पतमांक= 1/N×P
1/100=1/N×1/10
अर्थात10N=100 या N=10
अब प्राथमिक मापनी के N-1 अर्थात् 10-1=9 भागों की लम्बाई को वर्नियर मापनी के रूप में 10 भागों में विभाजित कीजिये । 3.25 इन्च की दूरी पढ़ने के लिये वर्नियर के शून्य को पहले प्राथमिक मापनी के 3.2 भाग की सीध में कीजिये और उसके पश्चात् वर्नियर इतना और खिसकाइये कि इसकी क्रमांक 5 की रेखा प्राथमिक मापनी की प्रथम अगली रेखा की सीध में आ जाये ।
उदाहरण (3) एक वक्री वर्नियर मापनी बनाइये, जिसमें एक सेन्टीमीटर का 40वाँ भाग पढ़ा जा सके। मापनी में 12.55 सेमी की दूरी अंकित कीजिये।
हल-15 सेमी लम्बी रेखा खींचिये। इस रेखा को पहले 15 भागों में तथा फिर प्रत्येक भाग को 5 उपविभागों में विभाजित करने पर प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे 1 भाग अर्थात् P का मान 1/5 सेमी होगा।
अल्पतमांक= 1/N×P
1/40=1/N×1/5 ( मान रखने पर)
5N=40 अर्थात N=8
वक्री वर्नियर बनाने के लिये प्राथमिक मापनी के 8+1 =9 भागों की लम्बाई को 8 भागों में विभाजित करके प्राथमिक मापनी की विपरीत दिशा में अंशाकित कीजिये। 12.55 सेमी पढ़ने के लिये सबसे पहले वर्नियर के शून्य को प्राथमिक मापनी के 12.4 भाग की सीध में कीजिए तथा उसके बाद इतना और खिसकाइये कि इसकी क्रमांक 6 की रेखा अपने नीचे बनी प्राथमिक मापनी की प्रथम अगली रेखा की सीध में आ जाये।
उदाहरण (4) एक वक्री वर्नियर मापनी बनाइये जिसकी अल्पतमाँक 1/25 इन्च है। मापनी में 5.16 इन्च की दूरी प्रदर्शित कीजिये ।
हल-6 इन्च लम्बी रेखा को पहले 6 भागों में तथा फिर प्रत्येक भाग को 5 उपविभागों में बाँटने पर प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग अर्थात् P का मान 1/5 इन्च के बराबर होगा।
सूत्र के अनुसार,
अल्पतमांक= 1/N×P
1/25=1/N×1/5
5N=25 अर्थात N=5
अब प्राथमिक मापनी के 5 + 1 अर्थात् 6 भागों की लम्बाई को वर्की वर्नियर के रूप में 5 भागों में विभाजित करके विपरीत दिशा में अंशांकित कीजिये तथा पहले बतलाई गई विधि के अनुसार 5.16 इन्च की दूरी प्रदर्शित कीजिये।
उदाहरण (5) एक अंश का 1/60 भाग पढ़ने के लिये सीधी (straight) एवं प्रत्यक्ष वर्नियर मापनी बनाइये जबकि प्राथमिक मापनी अंश तथा 1/5 अंश वाले भागों में अंशांकित है। मापनी में 2° 14' की दूरी अंकित कीजिये । मापनी में 1 अंश को 5 सेमी द्वारा दिखलाया गया है।
हल-15 सेमी लम्बी रेखा को तीन भागों में बाँटने पर प्रत्येक भाग का मान 1° होगा। प्रत्येक भाग को 10 उपविभागों में बाँटने पर प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग अर्थात् P का मान 1/10 अथवा 6' होगा। अतः सूत्रानुसार-
अल्पतमाँक=1/N×P
1/60=1/N×1/10 (मान रखने पर)
1/60=1/10N अर्थात 10N=60
N=60
अब प्राथमिक मापनी के N-1 अर्थात् 6-1=5 भागों की लम्बाई को प्रत्यक्ष वर्नियर के रूप में 6 भागों में बॉँटिये। 2 14 की दूरी पढ़ने के लिये पहले वर्नियर के शून्य को प्राथमिक मापनी के 2.2 भाग (अर्थात् 2° 12') पर रखिये तथा उसके बाद वर्नियर को इतना खिसकाइये कि इसकी क्रमांक 2 वाली रेखा प्राथमिक मापनी की प्रथम अगली रेखा के सीध में आ जाये।
उदाहरण (6) एक अंश का 1/60 भाग पढ़ने के लिये एक सीधी प्रत्यक्ष वर्नियर मापनी बनाइये जबकि प्राथमिक मापनी अंश तथा 1/4 अंश के भागों में अंशांकित है। मापनी में 1 अंश की दूरी 2 सेमी से दिखलाई गई है।
हल-14 सेमी लम्बी रेखा को सात भागों में बाँटने पर प्रत्येक भाग का मान 1 अंश होगा तथा प्रत्येक भाग को पुनः 4 उपविभागों में विभाजित करने पर प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग अर्थात् P का मान 1/4 अंश अथवा 15 मिनट होगा ।
सूत्र के अनुसार,
अल्पतमाँक =1/N×P
1/60=1/N×1/4 (मान रखने पर)
1/60=1/4N अर्थात 4N=60
N=15
अब प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे N-1 अर्थात् 15-1=14 भागों की लम्बाई को वर्नियर के रूप में 15 भागों में विभाजित किया जाएगा।
उदाहरण (7) एक मिनट का 1/60 भाग पढ़ने के लिये एक सीधी प्रत्यक्ष वर्नियर मापनी की रचना कीजिये जबकि प्राथमिक मापनी मिनट तथा 1/2 मिनट में अंशांकित है। मापनी में 30 मिनट की दूरी को 15 सेमी द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
हल-15 सेमी लम्बी रेखा खींचिये। इस रेखा को 15 समान भागों में बाँटिये तथा प्रत्येक भाग को पुनः 2 उपविभागों में विभाजित कीजिये जिससे प्राथमिक मापनी के सबसे छोटे भाग अर्थात् P का मान 1/2 मिनट अथवा 30 सेकण्ड होगा।
सूत्रानुसार,
अल्पतमाँक= 1/N×P
1/60=1/N×1/2 (मान रखने पर)
2N=60 अर्थात न=30
अब प्राथमिक मापनी के N-1 अर्थात् 30-1 = 29 भागों की लम्बाई को वर्नियर के रूप में 30 भागों में विभाजित कीजिये । नीचे दिए चित्र के अनुसार वर्नियर के भागों पर संख्याएँ लिखिये।
वर्गमूल मापनी (Square Root Scale)
कभी-कभी विभिन्न प्रदेशों के क्षेत्रफल अथवा विभिन्न भागों में निवास करने वाली जनसंख्या आदि के तुलनात्मक महत्व को स्पष्ट करने के लिये वृत्तारेखों (pie diagrams) का प्रयोग किया जाता है। इन आरेखों में वृत्त का आकार या क्षेत्रफल किसी संख्या की मात्रा बतलाता है अतः भिन्न-भिन्न संख्याओं को प्रदर्शित करने के लिये भिन्न-भिन्न आकार वाले वृत्तों की रचना की जाती है। चूँकि किसी वृत्त का क्षेत्रफल गर πR२होता है तथा π का मान (अर्थात् 22/7) सदैव समान रहता है इसलिए किसी वृत्त का अर्द्धव्यास (R), प्रदर्शित की जाने वाली संख्या अथवा वृत्त के क्षेत्रफल के अनुपात में होता है। अतः वृत्तारेख बनाने के लिए सर्वप्रथम सबसे छोटी अथवा सबसे बड़ी संख्या को प्रदर्शित करने वाले वृत्त का सुविधानुसार कोई अर्द्धव्यास मानकर निम्न सूत्र के अनुसार अन्य संख्याओं को प्रदर्शित करने वाले वृत्तों के अर्द्धव्यासों की गणना की जाती है:
अर्द्धव्यास = छाँटी हुई संख्या के वृत्त का अर्द्ध्यास
(सेमी)x√संख्या जिसके लिए अर्द्धव्यास ज्ञात करना है/छाँटी गई संख्या
उदाहरण के लिये मान लीजये A, B तथा C तीन नगर हैं जिनकी जनसंख्या क्रमशः 20,000, 30,000 व 50,000 है। यदि A नगर की जनसंख्या को प्रदर्शित करने वाले वृत्त का अर्द्धव्यास 1 सेमी मान लिया जाये तो B तथा C नगरों की जनसंख्या प्रदर्शित करने वाले वृत्तों के अर्द्धव्यास निम्न प्रकार ज्ञात किये जायेंगे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि वृत्तारेख बनाने के लिये अलग-अलग संख्याओं को प्रदर्शित करने वाले वृत्तों के अलग-अलग अर्द्धव्यास ज्ञात करने आवश्यक हैं। यदि अधिक संख्या में वृत्त बनाने होते हैं तो प्रत्येक वृत्त का उपरोक्त विधि के अनुसार अर्द्धव्यास ज्ञात करने में काफी गणनाएँ करनी पड़ती हैं। इस कठिनाई को दूर करने के उद्देश्य से केवल कुछ ही छाँटी गई संख्याओं के उपरोक्त विधिनुसार अर्द्धव्यास ज्ञात करके वर्गमूल मापनी की रचना की जाती है और अन्य संख्याओं को प्रदर्शित करने वाले वृत्तों के अर्द्धव्यास मापनी में सरलतापूर्वक माप लिये जाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक वृत्त का अर्द्धव्यास ज्ञात करने के लिये वर्गमूल आदि निकालने की आवश्यकता नहीं रहती । परन्तु यहाँ यह संकेत कर देना आवश्यक है कि वर्गमूल मापनी वृत्तों के अर्ध व्यास ज्ञात करने की एक आलेखी विधि (graphical method) है अतः मापनी में मापे गये अर्द्धव्यास केवल लगभग रूप में ही शुद्ध होते हैं।
वर्गमूल मापनी की रचना-विधि को निम्नलिखित उदाहरण के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है :
उदाहरण (1) निम्नांकित सारणी में कुछ नगरों की जनसंख्या दी गई है। वृत्तारेख बनाने के लिये एक वर्गमूल मापनी की रचना कीजिये जिससे विभिन्न वृत्तों के अर्द्धव्यास ज्ञात किये जा सकें।
जनसंख्या के समंकों को निकटतम शून्यान्त संख्याओं में परिवर्तित करने से ज्ञात होता है कि ये संख्याएँ 10,000 तथा 35,000 के मध्य में हैं अतः प्रथम, अन्तिम तथा मध्य की कुछ शून्यान्त संख्याओं के आधार पर वर्गमूल मापनी की रचना की जायेगी तथा शेष संख्याओं के अर्द्धव्यास मापनी में मापे जायेंगे मान लीजिये छाँटी गई शून्यान्त संख्याएँ 10,000, 15,000, 20,000, 25,000, 30,000 तथा 35,000 हैं तथा इनमें सबसे छोटी संख्या अर्थात् 10,000 को प्रदर्शित करने वाले वृत्त का अर्द्धव्यास 2 सेमी है तो शेष संख्याओं को प्रदर्शित करने वाले वृत्तों के अर्द्धव्यास सूत्र के प्रयोग द्वारा निम्न प्रकार से ज्ञात किये जायेंगे :
अब नीचे दिए चित्र के अनुसार कोई सरल रेखा XY खींचिये। इस रेखा में किसी उपयुक्त मापनी (मान लीजिये 1 सेमी = 2500 मनुष्य) के अनुसार 10,000, 15,000, 20,000, 25,000, 30,000 तथा 35,000 जनसंख्या प्रदर्शित करने वाले बिन्दुओं को अंकित कीजिये । इन बिन्दुओं पर पहले ज्ञात किये गये सम्बन्धित अर्द्धव्यासों के बराबर लम्बाई वाले लम्ब बनाइये तथा इन लम्ब रेखाओं के शीर्ष बिन्दुओं की मिलाते हुए एक वक्र रेखा खींचिये, जो एक परवलय होगी ।
मापनी में वृत्तों के अर्द्धव्यास ज्ञात करने के लिये दी गई मापनी (1 सेमी 2,500) के अनुसार XY रेखा में A, B, C, D, E, F, G, H, I तथा J बिन्दु अंकित कीजिये तथा इन बिन्दुओं से वक्र रेखा तक लम्ब खींचिये। इस प्रकार AA', BB', CC', DD', EE', FF', GG', HH', II' तथा JJ' रेखाएँ क्रमशः A, B, C, D, E, F, G, H, I तथा J नगरी की जनसंख्या प्रदर्शित करने वाले वृत्तों के अर्द्ध्यास होंगी।
घनमूल मापनी
(Cube Root Scale)
रचना के दृष्टिकोण से घनमूल मापनी बहुत कुछ वर्गमूल मापनी के समान होती है। अन्तर केवल इतना है कि वर्गमूल मापनी के द्वारा वृत्तों के अर्द्धव्यास ज्ञात किये जाते हैं जबकि घनमूल मापनी की सहायता से गोलों (spheres) के अर्द्धव्यास ज्ञात करते हैं। यहाँ यह संकेत कर देना आवश्यक है कि वृत्तारेखों (pie diagrams) में वृत्त के क्षेत्रफल द्वारा कोई संख्या प्रदर्शित की जाती है जबकि गोलाकार आरेखों (spherical diagrams) में गोले के आयतन (volume) से किसी संख्या का बोध कराया जाता है। गोले का आयतन 4/3πR३ होता है अतः स्पष्ट है कि किसी संख्या का घनमूल उस संख्या को प्रदर्शित करने वाले गोले के अर्द्धव्यास के अनुपात में होगा क्योंकि 4/3πका मान सदैव समान रहता है।
गोलाकार आरेखों द्वारा संख्याएँ प्रदर्शित करने के लिये सर्वप्रथम सबसे बड़ी अथवा सबसे छोटी संख्या को प्रदर्शित करने वाले गोले का सुविधानुसार कोई अर्द्धव्यास मान लिया जाता है और उसके बाद अन्य संख्याओं को प्रदर्शित करने वाले गोलों के अर्द्धव्यास निम्नलिखित सूत्र की सहायता से ज्ञात किये जाते हैं-
अर्द्धव्यास =छाँटी हुई संख्या के गोले का अर्द्ध्यास (सेमी)
उदाहरणार्थ, मान लीजिये A, B, C तीन नगरों की जनसंख्या क्रमशः 64,000, 1,25,000 तथा 2,16,000 है। यदि A नगर की जनसंख्या प्रदर्शित करने वाले गोले का अर्द्धव्यास 2 सेमी मान लिया जाये तो अन्य नगरों की जनसंख्या प्रदर्शित करने वाले गोलों के अर्द्धव्यास निम्नलिखित विधि के अनुसार ज्ञात किये जायेंगे:
घनमूल मापनी के प्रयोग द्वारा प्रत्येक संख्या को प्रदर्शित करने वाले गोले का उपरोक्त विधिनुसार अलग-अलग अर्द्धव्यास ज्ञात करने की आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि घनमूल मापनी दी गई संख्याओं में से केवल कुछ संख्याओं के अर्द्धव्यासों के आधार पर बनायी जाती है तथा विभिन्न संख्याओं के लिये गोलों के अर्द्धव्यास मापनी में मापकर निश्चित कर लिये जाते हैं। इस प्रकार गणितीय गणनाओं में कमी हो जाने से कार्य बहुत सरल हो जाता है। घनमूल मापनी की रचना विधि को नीचे एक उदाहरण के द्वारा स्पष्ट किया गया है।
उदाहरण (1) निम्नलिखित सारणी में दिये गये समंकों को गोलाकार आरेख (spherical diagram) द्वारा प्रदर्शित करने के लिये एक घनमूल मापनी की रचना कीजिये
हल-जनसंख्या के आँकड़ों को निकटतम शून्यान्त संख्याओं में बदलने पर ज्ञात होता है कि इन संख्याओं के मान 12,000 तथा 70,000 के मध्य हैं। अत: मापनी बनाने के लिये प्रथम, अन्तिम तथा बीच की कुछ संख्याएँ चुनकर उनके अर्द्धव्यासों की गणना करना पर्याप्त होगा ।
मान लीजिये चुनी हुई संख्याएँ 12,000, 31,000, 55,000 तथा 70,000 हैं तथा सबसे छोटी संख्या अर्थात् 12,000 को प्रदर्शित करने वाले गोले का अर्द्धव्यास 2 सेमी है तो शेष चुनी गई संख्याओं को प्रदर्शित करने वाले गोलों के अर्द्धव्यास निम्न प्रकार से ज्ञात किये जायेंगे :
अब नीचे दिए चित्र के अनुसार कोई सरल रेखा XY खींचिये। इस सरल रेखा में किसी उपयुक्त मापनी (मान लीजिये 1 सेमी = 5,000 मनुष्य) के अनुसार 12,000, 31,000, 55,000 तथा 70,000 जनसंख्या प्रदर्शित करने वाले बिन्दुओं को निश्चित कीजिये तथा इन बिन्दुओं पर क्रमशः 2, 2.74, 3.32 तथा 3,6 सेमी लम्बाई के लम्ब बनाइये तथा इन लम्ब रेखाओं के शीर्ष बिन्दुओं को मिलाते हुए एक वक्र रेखा खीचिये।
उपरोक्त विधि के अनुसार निर्मित मापनी में विभिन्न नगरों की जनसंख्या प्रदर्शित करने वाले गोलों के अर्द्ध्यास ज्ञात करने की विधि वही है जैसी कि वर्गमूल मापनी में होती है। दी गई 1. मापनी (1 सेमी = 5000 मनुष्य) के अनुसार XY रेखा में विभिन्न नगरों की जनसंख्या प्रदर्शित करने वाले A, B, C, D, E, F, G, H, I तथा J बिन्दुओं को अंकित कीजिये तथा इन बिन्दुओं पर लम्ब खींचिये । ये लम्ब वक्र रेखा को क्रमशः A', B, C, D, E, F, G', H', I' तथा J' बिन्दुओं पर काटते हैं। । इस प्रकार AA', BB', CC', DD', EE', FF', GG', HH', II' तथा JJ' लम्ब रेखाएँ क्रमशः A, B, C, D, E, F G, H, I तथा J नगरों की जनसंख्या प्रदर्शित करने वाले गोलों के अर्द्धव्यास होंगी।
ढाल की मापनी (Scale of Slope)
ढाल की मापनी के द्वारा किसी दिये गये समोच्च रेखी मानचित्र (contour map) में क्षैतिज तुल्यांक (horizontal equivalent) तथा ढाल की मात्रा या प्रवणता (degree of slope or gradient) का अन्तर्सम्बन्ध प्रदर्शित किया जाता है जिससे मानचित्र में किन्हीं दो उत्तरोत्तर (successive) समोच्च रेखाओं के मध्य मापे गये क्षैतिज तुल्यांक के अनुसार उन समोच्च रेखाओं के मध्य ढाल की मात्रा को मापनी में पढ़ा जा सके। स्मरण रहे कि भिन्न-भिन्न ऊर्ध्वाधर अन्तराल (vertical interval) वाले समोच्च रेखी मानचित्रों के लिये अलग-अलग ढाल की मापनी बनाना आवश्यक है।
मानचित्र पर दो स्थानों के बीच की सीधी दूरी को क्षैतिज तुल्यांक (horizontal equivalent or H.E.) कहते हैं तथा मानचित्र पर दो स्थानों के मध्य की ऊर्ध्वाधर दूरी अर्थात् उन स्थानों की समुद्र तल से ऊँचाइयों का अन्तर ऊर्ध्वाधर अन्तराल (vertical interval or VI.) कहलाता है। किसी समकोण त्रिभुज ABC में BC आधार रेखा B तथा C बिन्दुओं के मध्य का क्षैतिज तुल्यांक है; AB लम्ब रेखा B तथा C बिन्दुओं के मध्य का ऊर्ध्वाधर अन्तराल (VI.) है; तथा AC लम्ब रेखा के सामने का θ कोण प्रवणता या ढाल की मात्रा है । क्षैतिज तुल्यांक मानचित्र पर किसी पटरी या पैमाना आदि की सहायता से दूरी मापकर ज्ञात करते हैं तथा ऊर्ध्वाधर अन्तराल को मानचित्र पर बनी समोच्च रेखाओं के अनुसार निश्चित किया जाता है। यदि किसी मानचित्र पर 100 मीटर के अन्तर पर समोच्च रेखाएँ खींची गई हैं तो उस मानचित्र के ऊर्ध्वाधर अन्तराल का मान 100 मीटर कहा जायेगा । इस मानचित्र में जहाँ दो उत्तरोत्तर समोच्च रेखाएँ जितनी अधिक समीप होगी वहाँ प्रवणता की मात्रा उतनी ही अधिक होगी तथा जहाँ वे एक दूसरे से जितनी अधिक दूर होंगी वहाँ ढाल या प्रवणता की मात्रा उतनी ही कम होगी। इस बात को दूसरे शब्दों में इस प्रकार कहा जा सकता है कि दो स्थानों के मध्य जितनी अधिक प्रवणता होती उतना ही उनके मध्य क्षैतिज तुल्यांक कम होगा।
नियमानुसार यदि ऊर्ध्वाधर अन्तराल 1 फुट तथा ढाल की प्रवणता का मान 1° हो तो क्षैतिज तुल्यांक 57.3 फीट अर्थात् लगभग 20 गज के बराबर होता है। उपरोक्त सम्बन्ध को निम्नांकित सूत्र द्वारा व्यक्त किया जा सकता है :
उपरोक्त सूत्र की सहायता से क्षैतिज तुल्यांक, ऊर्धाधर अन्तराल तथा ढाल का कोण में से किन्हीं दो का मान ज्ञात होने पर तीसरे का मान ज्ञात किया जा सकता है। ढाल की मापनी बनाने के लिये इस सूत्र के द्वारा ढाल की अलग-अलग अंशों में मात्रा के अनुसार क्षैतिज तुल्यांकों के मान ज्ञात किये जाते हैं और उसके पश्चात् इन क्षैतिज तुल्यांकों की दूरियों को मानचित्र की निरूपक भिन्न के अनुसार बदलकर एक सरल रेखा पर अंकित कर देते हैं।
उदाहरण (1) किसी मानचित्र में 15 फीट के अन्तराल (interval) पर समोच्च रेखाएँ बनी हैं। यदि मानचित्र की निरूपक भिन्न 1 : 4,500 हो तो ढाल की मापनी की रचना कीजिये।
हल-प्रश्न के अनुसार ऊर्ध्वाधर अन्तराल = 15 फीट है। अतः सर्वप्रथम प्रवणता की भिन्न-भिन्न मात्राओं के सूत्र के अनुसार निम्नलिखित विधि से क्षैतिज तुल्यांक ज्ञात किये जायेंगे:
सूत्र के अनुसार क्षैतिज तुल्यांक
अब निरूपक भिन्न (1 : 4,500) के अनुसार उपरोक्त क्षैतिज तुल्यांकों की मानचित्र पर दूरी ज्ञात की जायेगी-
•.•4,500 इन्च अर्थात् 125 गज प्रकट होते हैं
=1 इन्च से
.•.300 गज प्रकट होंगे
= 300/125 = 2.4 इन्च से
उपरोक्त विधि के अनुसार गणना करके अन्य क्षैतिज तुल्यांकों अर्थात् 150 गज, 100 गज, 75 गज, 60 गज व 50 गज की मानचित्र पर दूरियाँ ज्ञात की जा सकती हैं जो क्रमशः 1.2, 0.8, 0.6, 0.48 तथा 0.4 इन्च होंगी। ढाल की मापनी बनाने के लिये अब एक सरल रेखा खींचिये। इस रेखा में बायें सिरे से दायीं ओर को मापकर सर्वप्रथम 2.4 इन्च की दूरी पर चिह्न बनाइये फिर इस चिह्न के आगे 1.2 इन्च की दूरी पर दूसरा चिह्न अंकित कीजिये। इस प्रकार आगे बढ़ते हुए शेष दूरियों के चिह्न लगाकर नीचे दिये चित्र के अनुसार मापनी पूर्ण कीजिये।
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