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चिन्तनफलक स्थानान्तरण (Paradigm Shift)

चिन्तनफलक स्थानान्तरण (Paradigm Shift) कुहन के विचार से सामान्य विज्ञान के विकास में असंगतियों के अवसादन तथा संचयन (Accumulation) में संकट की स्थिति उत्पन्न होती है, जो अन्ततः क्रान्ति के रूप में प्रकट होती है। यह क्रान्ति नए चिन्तनफलक को जन्म देती है। जब नवीन चिन्तनफलक अस्तित्व में आता है वह पुराने चिन्तनफलक को हटाकर उसका स्थान ले लेता है। चिन्तनफलक के परिवर्तन की इस प्रक्रिया को 'चिन्तनफलक प्रघात' (Paradigm Shock) या 'चिन्तनफलक स्थानान्तरण (Paradigm Shift) के नाम से जाना जाता है। ध्यातव्य है कि इस प्रक्रिया में पुराने चिन्तनफलक को पूर्णरूप से अस्वीकार या परिव्यक्त नहीं किया जा सकता, जिसके कारण कोई चिन्तनफलक पूर्णरूप से विनष्ट नहीं होता है। इस गत्यात्मक संकल्पना के अनुसार चिन्तनफलक जीवन्त होता है चाहे इसकी प्रकृति विकासात्मक रूप से अथवा चक्रीय रूप से हो। जब प्रचलित चिन्तनफलक विचार परिवर्तन या नवीन सिद्धान्तों की आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं कर सकता है, तब सर्वसम्मति से नए चिन्तनफलक का प्रादुर्भाव होता है। अध्ययन क्षेत्र के उपागम में होने वाले इस परिवर्तन को चिन्तनफलक स्थानान्त

Dualism in Geography


भूगोल में द्वैतवाद 
(Dualism in Geography)

भौगोलिक तथ्यों के अन्तर्गत भौतिक तथा मानवीय दोनों प्रकार के तथ्य सम्मिलित होते हैं। द्वैतवाद केवल भूगोल में ही नहीं, बल्कि ज्ञान की अन्य शाखाओं में भी उपस्थित है। एक स्थानिक विज्ञान के रूप में भूगोल के सम्यक् अध्ययन के लिए निश्चित वैज्ञानिक विधियाँ आपेक्षित होती हैं। अध्ययन को सुविधाजनक तथा बोधगम्य बनाने के लिए भौगोलिक अध्ययनों में दो प्रमुख विधियाँ प्रयुक्त होती हैं

  • क्रमबद्ध विधि (Systematic Method)
  • प्रादेशिक विधि (Regional Method)
अध्ययन विषय के आधार पर पारम्परिक रूप से भूगोल को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है
  • भौतिक भूगोल
  • मानव भूगोल
भौतिक भूगोल में भौतिक (प्राकृतिक) तथ्यों का और मानव भूगोल में मानवीय (सांस्कृतिक) तथ्यों का अध्ययन किया जाता है। यूनानी, रोमन और अरब भूगोलवेत्ताओं की रचनाओं में भी द्वैतवाद के लक्षण दिखाई देते हैं। जैसे हैरोडोटस ने जनजातियों के विवरण के साथ-साथ उनकी प्राकृतिक परिस्थितियों की ओर ध्यान दिया।
स्ट्रैबो का प्रादेशिक विवरण और टॉलमी का गणितीय भूगोल पर ध्यान भी ऐसे विवरण हैं, जो द्वैतवादी हैं। अन्य विद्वानों ने भी अपने लेखों में द्वैतवाद की झलक प्रस्तुत की है। इस प्रकार, भूगोल में द्वैत (Dualism) तथा द्विभाजन (Dichotomy)
निम्नलिखित रूपों में प्रचलित हैं
  • भौतिक भूगोल बनाम मानव भूगोल
  • क्रमबद्ध भूगोल बनाम प्रादेशिक भूगोल
  • ऐतिहासिक भूगोल बनाम समकालीन भूगोल।
भौतिक भूगोल बनाम मानव भूगोल का द्वैत (Dualism of Physical Geography Vs Human 
Geography)
पारम्परिक रूप से भूगोल को बाँटने का कार्य यूनानियों ने किया। हिकेटियस भौतिक भूगोल को अधिक महत्त्व देता था, जबकि हैरोडोटस और स्ट्रैबो ने अपने लेखों में मानवीय दृष्टिकोण को अधिक महत्त्व दिया। वास्तव में, भौतिक भूगोल बनाम मानव भूगोल के विवाद को व्यावहारिक नहीं माना जा सकता है। हार्टशोर्न ने भूगोल के इस द्वैत को असंगत बताया है।
भौतिक भूगोल शब्द की उत्पत्ति 18वीं शताब्दी में जर्मन के प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता वरेनियस ने की थी। परवर्ती वर्षों में इसका प्रयोग काण्ट, हम्बोल्ट, रिटर आदि प्रख्यात जर्मन भूगोलवेत्ताओं ने भी किया।
हम्बोल्ट ने भौतिक भूगोल का प्रयोग भौतिकी जैसे विज्ञान के नियमों के सन्दर्भ में ही किया। हम्बोल्ट के अनुसार, 'भौतिकी भूगोल' (विश्व की भौतिकी) की प्रमुख समस्या उन सम्बन्धों के सिद्धान्तों को निश्चित करना है, जो जीवन की दृश्य घटनाओं का सम्बन्ध अजैव प्रकृति से करते हैं। परवर्ती वर्षों में भूगोलवेत्ताओं ने हम्बोल्ट का ही अनुसरण किया तथा भौतिक भूगोल में मानव जातियों का अध्ययन भी सम्मिलित किया। किन्तु 20वीं शताब्दी में 'मनुष्य' को भौतिक भूगोल से अलग कर दिया गया और उसके लिए 'मानव भूगोल' नामक नई शाखा सृजित की गई।
यद्यपि इस प्रवृत्ति का आरम्भ उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ही हो गया था। बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशक के वाइडल डी-ला ब्लाश, बूंश, डिमांजियाँ आदि फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं ने मानवीय पक्षों तथा क्रियाकलापों के अध्ययन पर अधिक बल दिया और मानव भूगोल की पुस्तकें लिखीं। परिणामस्वरूप भूगोल का विषय क्षेत्र दो भागों भौतिक भूगोल एवं मानव भूगोल में विभक्त हो गया। शैक्षिक जगत में विभिन्न संकायों में स्थान प्रदान करने तथा अध्ययन की सुविधा के दृष्टिकोण से भूगोल के प्राकृतिक और मानवीय दोनों पक्षों के गहन अध्ययन के लिए ही भूगोल या यह विभाजन किया गया है।
भौतिक भूगोल
यह भूगोल की एक प्रमुख शाखा है जिसमें पृथ्वी के भौतिक (गैर-मानवीय) तत्त्वों का भौगोलिक अध्ययन सम्मिलित होता है।
इसके अन्तर्गत उन समस्त भौतिक तत्त्वों का अध्ययन सम्मिलित होता है, जो प्राकृतिक पर्यावरण का निर्माण करते हैं। भौतिक भूगोल की मुख्य शाखाओं का विवरण निम्न प्रकार है 
  • भू-आकृति विज्ञान इसके अन्तर्गत भू-आकृतियों की उत्पत्ति, उनकी संरचना एवं विकास तथा भू-आकृतिक प्रक्रमों जैसे अपक्षय एवं अपरदन की घटनाएँ आदि का अध्ययन किया जाता है। 
  • जलवायु विज्ञान जलवायु विज्ञान के अन्तर्गत जलवायविक घटनाओं; जैसे-बादल, वर्षा, तापमान, आर्द्रता एवं ऋतु परिवर्तन आदि का अध्ययन किया जाता है।
  • समुद्र विज्ञान उसके अन्तर्गत महासागरीय जल की प्रकृति (घनत्व, तापमान, लवणता आदि), जल की गहराई एवं गति, महासागरीय नितल की बनावट, महासागरीय जल की वनस्पति तथा प्राणियों के अध्ययन को सम्मिलित किया जाता है।
  • जैव भूगोल इसमें जीवमण्डल के जीवों (पादपों एवं प्राणियों) के वितरण सम्बन्धी क्षेत्रीय विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है।
  • पर्यावरण भूगोल इसके अन्तर्गत पारिस्थितिक तन्त्र (Ecosystem) के विभिन्न संघटकों की प्रकृति, कार्यों, पारस्परिक अन्तःक्रिया आदि का अध्ययन किया जाता है।
भौतिक भूगोल की विभिन्न शाखाओं का विभाजन मुख्यत: क्षेत्रीय विशेषताओं के आधार पर किया जाता है, किन्तु ध्यातव्य है कि स्थल मण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल, जीवमण्डल आदि एक-दूसरे से पूर्णतः भिन्न और अलग नहीं हैं, बल्कि वे परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि भौतिक भूगोल में सम्बद्धता का अभाव पाया जाता है।
किर्क ब्रायन के शब्दों में, “भौतिक भूगोल के पारस्परिक तत्त्वों में सम्बद्धता का अभाव है। वह विशिष्ट विज्ञानों का समूह है जिसमें प्रत्येक का अध्ययन उसके लिए ही किया जाता है।"

मानव भूगोल
मानव भूगोल के अन्तर्गत मानव तथा उसके पर्यावरण के मध्य स्थापित पारस्परिक सम्बन्धों और उससे उत्पन्न भू-दृश्यों एवं तथ्यों का अध्ययन किया जाता है। उसके अन्तर्गत सम्पूर्ण मानवीय क्रियाओं तथा गुणों का भौगोलिक अध्ययन सम्मिलित होता है। मानव भूगोल “मानव एवं उसका प्राकृतिक पर्यावरण के साथ समायोजन का अध्ययन" ही है।
मानव भूगोल के अध्ययन तत्त्वों के आधार पर मानव भूगोल की अनेक शाखाओं एवं उप-शाखाओं का विकास हुआ है। आर्थिक भूगोल, अधिवास भूगोल, जनसंख्या भूगोल, राजनीतिक भूगोल, सांस्कृतिक भूगोल, सामाजिक भूगोल, ऐतिहासिक भूगोल आदि मानव भूगोल की प्रमुख शाखाएँ हैं।
  • आर्थिक भूगोल इसके अन्तर्गत मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का भौगोलिक अध्ययन किया जाता है। संसाधन भूगोल, कृषि भूगोल, औद्योगिक भूगोल, वाणिज्य भूगोल, परिवहन भूगोल आदि आर्थिक भूगोल की प्रमुख शाखाएँ हैं।
  • अधिवास भूगोल इसके अन्तर्गत ग्रामीण और नगरीय अधिवासों का अध्ययन सम्मिलित होता है। ग्रामीण अधिवास भूगोल और नगरीय भूगोल इसकी दो शाखाएँ हैं।
  • जनसंख्या भूगोल इसके अन्तर्गत जनसंख्या के वितरण, घनत्व, संघटन एवं स्थान्तरण, जनसंख्या परिवर्तन, जनसंख्या- संसाधन सम्बन्ध, जनसंख्या समस्या आदि का अध्ययन किया जाता है।
  • सामाजिक भूगोल इसके अन्तर्गत सामाजिक वर्गों, सामाजिक प्रक्रियाओं, सामाजिक विशेषताओं, सामाजिक संगठनों, सामाजिक समस्याओं आदि का अध्ययन सम्मिलित होता है।
  • ऐतिहासिक भूगोल इसके अन्तर्गत किसी प्रदेश के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक विकास के अनुक्रम, विकास प्रक्रिया, विकास अवस्थाओं आदि का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है।
  • राजनीतिक भूगोल इसके अन्तर्गत राष्ट्र देशों की सीमा विस्तार, विभिन्न घटकों, उप-विभागों, शासित भू-भागों, आन्तरिक तथा बाह्य राजनीतिक सम्बन्धों आदि का अध्ययन सम्मिलित होता है।
  • सांस्कृतिक भूगोल (Cultural Geography) इसके अन्तर्गत सांस्कृतिक क्रियाओं, सांस्कृतिक समूहों और उनके तथा पर्यावरण के मध्य होने वाली अन्तःक्रियाओं आदि का अध्ययन किया जाता है।
भौतिक भूगोल और मानव भूगोल में भूगोल का द्विभाजन और उनके उपवर्गों में पुनर्विभाजन का आरम्भ 20वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशक में ही हो गया था। ब्लाश, बूंश, डिमांजियाँ आदि फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं ने भूगोल में मानवीय तत्त्वों के अध्ययन की आवश्यकता पर अधिक बल दिया, जिसके परिणामस्वरूप भूगोल में द्वैतवाद के विचार का उदय हुआ ।
हार्टशोर्न के अनुसार, इसकी उत्पत्ति भूगोल में आन्तरिक आवश्यकता से नहीं हुई है, बल्कि उस दार्शनिक सोच से हुई है जिसने मनुष्य को शेष प्रकृति से पृथक् करके और यथासम्भव दृश्य घटनाओं (भू-दृश्यों) के पृथक् अध्ययन का प्रयत्न किया। मानवीय प्रभाव से मुक्त दृश्य घटनाओं का विचार प्राकृतिक नियमों की रचना और प्रयोग में सुविधाजनक होता है।
भूगोल की प्रतियोगिता वर्गीकृत (क्रमबद्ध) विज्ञानों से है। भूगोल वर्गीकृत विज्ञानों से तभी मुकाबला कर सकता है जब वह अपनी सभी शाखाओं में अपने विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति कर सके । सामान्यतः कोई भी भू-तत्त्व या उसकी विशेषता शुद्ध रूप से 'प्राकृतिक अथवा शुद्ध रूप से 'मानवीय' नहीं हो सकती। हार्टशोर्न ने कहा 'भू-विशेषताओं के अन्तर्सम्बन्धों के अध्ययन में भूगोल उन विशेषताओं का उतना ही अध्ययन करता है जहाँ तक वे उसके अन्तर्सम्बन्धों की व्याख्या करते हैं चाहे वे प्राकृतिक नियम हों अथवा सामाजिक नियम। उन्होंने विषय के सुदृढ़ विकास तथा विद्यार्थियों के लिए विश्व बोध की दृष्टि से 'प्राकृतिक 'विज्ञान' और सामाजिक विज्ञान' के विभाजन को ही दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। पिछले दशकों में भूगोल में बढ़ते विशिष्टीकरण के परिणामस्वरूप विभिन्न प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानों में प्रयुक्त सिद्धान्तों तथा नियमों का इतना अधिक अन्धानुकरण किया जाने लगा कि भूगोल भूतल के एकीकृत अध्ययन के अपने मूल उद्देश्य से काफी हट गया है। इस प्रकार सभी विज्ञानों की जननी कहे जाने वाले भूगोल विषय को अपने अस्तित्व की रक्षा कर पाना कठिन होता जा रहा है। इसलिए आवश्यक है कि भूगोल के द्विभाजन के विपरीत उसके समग्र स्वरूप को प्रतिष्ठित करने पर बल दिया जाए।

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