सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मौसमी संकट और आपदाएँ ( Meteorological Hazards and Disasters)

मौसमी संकट और आपदाएँ (मौसम संबंधी खतरे और आपदाएँ) प्रकृत्तिजन्य अप्रत्याशित ऐसी सभी घटनाएँ जो प्राकृतिक प्रक्रमों को इतना तीव्र कर देती हैं कि विनाश की स्थिति उत्पन्न होती है, चरम प्राकृतिक घटनाएँ या आपदा कहलाती है। इन चरम घटनाओं या प्रकोपों से मानव समाज, जन्तु एवं पादप समुदाय को अपार क्षति होती है। चरम घटनाओं में ज्वालामुखी विस्फोट, दीर्घकालिक सूखा, भीषण बाढ़, वायुमण्डलीय चरम घटनाएँ; जैसे- चक्रवात, तड़ित झंझा, टॉरनेडो, टाइफून, वृष्टि प्रस्फोट, ताप व शीत लहर, हिम झील प्रस्फोटन आदि शामिल होते हैं। प्राकृतिक और मानव जनित कारणों से घटित होने वाली सम्पूर्ण  वायुमण्डलीय एवं पार्थिव चरम घटनाओं को प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। इन आपदाओं से उत्पन्न विनाश की स्थिति में धन-जन की अपार हानि होती है। प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं का वर्णन निम्न प्रकार है:- चक्रवात (Cyclone) 30° उत्तर से 30° दक्षिण अक्षांशों के बीच उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्णकटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं। ये आयनवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाला एक निम्न वायुदाब अभिसरणीय परिसंचरण तन्त्र होता है। इस चक्रवात का औसत व्यास लगभग 640 किमी...

Man and Nature Relation



मानव एवं पर्यावरण सम्बन्ध

(Man and Nature Relation)

मानव भूगोल में हम मनुष्य तथा उसके वातावरण में होने वाली प्रतिक्रिया का अध्ययन करते हैं। मनुष्य तथा उसके वातावरण के बीच अन्तर्सम्बन्धों में प्रायः क्षेत्रीय विविधताएँ पाई जाती हैं। मानव भूगोल, मानव वर्गों और वातावरण की शक्तियों, प्रभावों तथा प्रतिक्रियाओं के पारस्परिक कार्यात्मक सम्बन्धों का प्रादेशिक आधार पर किया जाने वाला अध्ययन है।

मनुष्य तथा पर्यावरण के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है और दोनों एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं तथा साथ ही एक-दूसरे को प्रभावित भी करते हैं। मनुष्य तथा पर्यावरण के बीच अन्तर्सम्बन्ध समय तथा स्थान के साथ बदलते रहते हैं। विश्व के कुछ भागों में मनुष्य पूर्णतः प्रकृति से प्रभावित हैं तो कुछ अन्य भागों में वह प्रकृति को प्रभावित भी करता है। प्राचीनकाल में मनुष्य पूर्णतया प्रकृति के नियमों का पालन करके जीवन व्यतीत करता था, परन्तु आधुनिक युग में उसने विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के विकास के बल पर प्रकृति पर विजय पाना शुरू कर दिया है। मनुष्य सभी प्राणियों में श्रेष्ठ है और प्रकृति से लड़ने में सक्षम है। परन्तु प्रकृति भी मनुष्य को अपने नियमों के अन्तर्गत नियन्त्रित करने की कोशिश करती है और अधिक नियम तोड़ने पर उसे दण्डित भी करती है। इस प्रकार मनुष्य तथा प्रकृति बड़े जटिल क्रिया-प्रतिक्रिया के सूत्र में बँधे हुए हैं जिसे स्पष्ट करने के लिए निम्नलिखित तीन विचारधाराएँ प्रचलित हैं

पर्यावरणीय निश्चयवाद

इसे निश्चयवाद अथवा पर्यावरणवाद भी कहते हैं। इस विचारधारा के अनुसार मनुष्य प्रकृति का दास है। पर्यावरण सर्वशक्तिमान है और मानवीय क्रियाकलाप को पूर्णतया नियन्त्रित करता है। प्राकृतिक शक्तियों के सामने मानव तुच्छ, महत्त्वहीन एवं निष्क्रिय होता है। विश्व के विभिन्न भागों में मानवीय व्यवहार में अन्तर प्राकृतिक पर्यावरण में पाए गए अन्तर के अनुसार होता है। उदाहरणतया जायरे बेसिन के पिग्मी, कालाहारी मरुस्थल के बुशमैन, उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के एस्किमो तथा मध्य एशिया के खिरगीज लोगों का जीवन

एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न है और प्राकृतिक शक्तियों द्वारा पूर्णतया नियन्त्रित है। भूगोल में पर्यावरण निश्चयवाद की विचारधारा इतिहास के प्रारम्भिक काल से ही चली आई है और यह किसी-न-किसी रूप में द्वितीय विश्वयुद्ध तक प्रचलित रही। प्राचीनकाल से ही विद्वान, मनुष्य पर उच्चावच, जलवायु, मृदा, प्राकृतिक वनस्पति, जलाशय आदि भौतिक तत्त्वों के प्रभाव का अध्ययन करते आए हैं। इनमें हिप्पोक्रेट्स, अरस्तू, थ्यूसीडाइडस, हैरोडोटस आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

हिप्पोक्रेट्स (420 ई. पू.)

इन्होंने वायु, जल तथा स्थानों का वर्णन करते हुए बताया कि एशियाई लोगों को यूरोपीय लोगों की अपेक्षा अधिक अनुकूल भौतिक पर्यावरण प्राप्त होता है। उन्होंने पर्वतों के पवनाभिमुख ढालों पर रहने वाले लम्बे, वीर तथा भले लोगों की तुलना शुष्क निम्न क्षेत्रों में रहने वाले पतले तथा बलवान लोगों से भी की। अरस्तू ने भी अपनी राजनीति में ऐसे ही विचार प्रकट किए। उन्होंने उत्तरी यूरोप तथा एशिया के निवासियों में पाए जाने वाले अन्तर का मुख्य कारण जलवायु को ही माना था।

हैरोडोटस

ये इतिहास के पिता कहे जाते हैं। इन्होंने बताया कि, “मिस्र की सभ्यता वहाँ की भौगोलिक परिस्थितियों पर निर्भर है।” विज्ञान के पिता व महान् यूनानी वैज्ञानिक अरस्तू ने बताया कि ठण्डे इलाकों में रहने वाले यूरोपीय लोग बहादुर होते हैं, परन्तु इनमें विचारहीनता पाई जाती है। एशियन लोग दार्शनिक हैं होते हैं परन्तु साहसी नहीं होते। इसलिए दासत्व उनकी स्वाभाविक अवस्था है।

स्ट्रैबो

इसने बताया कि ढाल, उच्चावच, जलवायु आदि सभी ईश्वर की देन हैं और ये सभी मनुष्य की जीवन-शैली को प्रभावित करते हैं। उन्होंने अपने भौगोलिक लेखों में यह स्पष्ट किया कि किस प्रकार इटली के आकार, आकृति, जलवायु तथा स्थानिक सम्बन्धों ने रोमन साम्राज्य को फैलने तथा सुदृढ़ करने में सहायता दी। 8वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी तक अरब के विद्वानों ने विस्तृत तथा गहन भौगोलिक अध्ययन किए। उन्होंने भूगोल की अन्य शाखाओं के साथ मानव तथा पर्यावरण के सम्बन्ध को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया। इनमें अलबरूनी, अलमसूदी, इब्नहाकल, अल इदरीसी तथा इब्न खलदून के नाम प्रमुख हैं। अरब भूगोलवेत्ताओं ने आवासीय विश्व को सात जलवायु प्रदेशों में बाँटा और इन प्रदेशों में निवास कर रही जातियों के भौतिक तथा सांस्कृतिक लक्षणों का वर्णन किया।

इन विद्वानों ने मानवीय क्रिया तथा उनकी जीवन-शैली का सम्बन्ध पर्यावरण के साथ स्थापित करने का प्रयास किया। उदाहरणतः अलमसूदी का दृढ़ विश्वास था कि अधिक जल वाले प्रदेशों के निवासी प्रसन्न तथा विनोदी होते हैं। इसके विपरीत शुष्क प्रदेशों के निवासी चिड़चिड़े स्वभाव के होते हैं। घुमक्कड़ लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं और खुले वातावरण में निवास करते हैं।

वे शक्तिशाली, दृढ़ निश्चयी, विवेकी तथा शारीरिक योग्यता वाले होते हैं। 18वीं, 19वीं तथा 20वीं शताब्दी के आरम्भिक काल में भी पर्यावरण निश्चय की विचारधारा का ही बोलबाला रहा। इस अवधि के प्रमुख विद्वान् काम्टे, अलेक्जेण्डर वॉन हम्बोल्ट, कार्ल रिटर, हैकेल, बकल, फ्रेडरिक रैटजेल डिमोलिन्स सेंपुल आदि थे।

इमेनुअल काण्ट

ये जर्मन वैज्ञानिक तथा दार्शनिक थे जिनका दृष्टिकोण पर्यावरण निश्चयवादी था। उन्होंने यूरोप के विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न स्तर पर उन्नति होने का मुख्य, सेपुल वातावरण में क्षेत्रीय भिन्नता बताया।

अलेक्जेण्डर वॉन हम्बोल्ट

ये सही अर्थों में पर्यावरण निश्चयवाद के पथ-प्रदर्शक थे। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक कॉसमॉस में आरम्भिक सभ्यता के विकास पर मैडिटेरेनियन क्षेत्र की भू-आकृति के प्रभाव का वर्णन किया है। हम्बोल्ट महोदय ने कॉसमॉस की रचना पाँच खण्डों में की, जिसमें समस्त विश्व का वर्णन , किया गया है। उन्होंने भौगोलिक तत्त्वों; जैसे-अक्षांश, देशान्तर, समुद्रतल से ऊँचाई, चुम्बकीय अन्तर, चट्टानों के भेद, तापमान, वायुभार, पवन दिशा, वनस्पति और मानवीय क्रियाकलापों का बारीकी से विश्लेषण किया।

कार्ल रिटर

इनका मत था कि पर्यावरण के तत्त्व मानवीय क्रियाकलापों पर ही प्रभाव नहीं डालते, बल्कि मानवीय चरित्र को भी प्रभावित करते हैं। उन्होंने अपनी , विख्यात पुस्तक, अर्डकुण्डे में मनुष्य-पर्यावरण सम्बन्धों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया।

पर्यावरण निश्चयवाद की परिकल्पना को प्रोत्साहित करने में चार्ल्स डार्विन ने बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी पुस्तक 'जीवों की उत्पत्ति' 1859 ई. में प्रकाशित हुई जिसमें उन्होंने यह माना कि जीनों की उत्पत्ति पर्यावरण से प्रभावित होती है। पर्यावरण निश्चयवाद के समर्थकों के लिए यह पुस्तक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण थी, क्योंकि यह पर्यावरण और जीवों के सम्बन्धों को बताती है।

इस पुस्तक की विशेष बात यह है कि इसमें विकास का अनुक्रम चित्रों की सहायता से दर्शाया गया है। डार्विन के विचारों ने 19वीं शताब्दी के आरम्भिक चरणों में विश्वभर के वैज्ञानिकों तथा भूगोलवेत्ताओं के विचारों को प्रभावित किया। डार्विन का अनुसरण करके बहुत से अमेरिकी तथा जर्मन भूगोलवेत्ताओं ने पर्यावरण निश्चयवाद की विचारधारा को बहुत हद तक विकसित किया। रैटजेल के विचारों पर डार्विन की कल्पना की छाप साफ दिखाई देती है।

रैटजेल

इनका सही अर्थों में निश्चयवाद का प्रतिपादक माना जाता है। उसके विख्यात ग्रन्थ 'एन्थ्रोपोज्योग्राफी' का प्रथम खण्ड 1882 में प्रकाशित हुआ। यह ग्रन्थ पर्यावरण निश्चयवाद के उदाहरणों तथा विचारों से पूर्णतया सुसज्जित है। रैटजेल के अनुसार, 'समान दिशाएँ समान जीवन-शैली को जन्म देती हैं।'

इस कथन को सिद्ध करने के लिए रैटजेल ने ब्रिटिश द्वीप समूह तथा जापान के उदाहरण दिए। रैटजेल महोदय के कथनानुसार, इन दोनों की द्वीपीय स्थिति ऐसी है जो उनको बाहरी आक्रमण से सुरक्षा प्रदान करती है। परिणामस्वरूप इन दोनों देशों के निवासियों ने तीव्र गति से प्रगति की है और इन देशों को विश्व में महाशक्तियों का स्तर प्राप्त है। रैटजेल योग्यतम की उत्तरजीविता के सिद्धान्त में विश्वास करता था और मानव को उद्विकास के अन्तिम उत्पाद के रूप में मानता था। रैटजेल का मत था कि मानव अपने पर्यावरण की उपज है और पर्यावरण की प्राकृतिक शक्तियाँ ही मानव जीवन को ढालती हैं। मनुष्य तो केवल वातावरण की माँग के साथ ठीक समायोजन करता है और उसके अनुसार अपने को योग्य बनाता है। 20वीं शताब्दी के आरम्भ में पर्यावरण निश्चयवाद की विचारधारा संयुक्त राज्य अमेरिका में बड़ी लोकप्रिय हो गई। यहाँ सेम्पुल तथा हंटिंगटन इसके प्रबल समर्थक बने ।

एलन सेम्पुल

एलन सेम्पुल एक विख्यात अमेरिकन भूगोलवेत्ता थीं जिन्होंने पर्यावरण निश्चयवाद का समर्थन अपनी पुस्तक तथा लेखों में किया। वह रैटजेल की शिष्या थी और उन्होंने रैटजेल के विचारों को अंग्रेजी भाषा जानने वाले जगत के सामने प्रस्तुत करने के लिए भौगोलिक पर्यावरण के प्रभाव की रचना सन् 1911 में की। उन्होंने इस पुस्तक का आरम्भ ही अग्रलिखित पंक्तियों से किया।

“मनुष्य पृथ्वीतल की उपज है। इसका अभिप्राय केवल इतना ही नहीं कि वह पृथ्वी की सन्तान है, उसकी धूल का कण, किन्तु यह भी है कि पृथ्वी ने उसे मातृत्व कार्य दिया है, उसका पालन-पोषण किया है, उसके विचारों को दिशा दी है"

आगे चलकर मनुष्य पर पर्यावरण के प्रभाव को सेम्पुल ने निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया।”वह उसकी हड्डियों और ऊतकों तथा उसके मस्तिष्क एवं आत्मा में प्रवेश कर गई है। पर्वतों पर चढ़ने के लिए उसने फौलादी मांसपेशियाँ दी हैं। तट के सहारे इन्हें कमजोर और ढीला छोड़ दिया है, किन्तु इसके स्थान पर उसकी छाती और हाथों की शक्ति का पूर्ण विकास किया है, जिससे वह अपने पतवारों को चला सके। नदी घाटियों में पृथ्वी ने उसे उपजाऊ भूमि प्रदान की है।

  • सेम्पुल ने विभिन्न प्रदेशों में रहने वाले मानव समूहों की जीवन-शैली का बड़ा सटीक वर्णन किया है। उनका कहना है कि पवन प्रभावित पठारों अथवा जलविहीन मरुस्थलों में रहने वाले पशुचारकों को चारे तथा जल की तलाश में एक चरागाह से दूसरे चरागाह तथा एक मरुद्यान से दूसरे मरुद्यान तक जाना पड़ता है। उनका जीवन बड़ा कठोर होता है, परन्तु उनको पशु चराने में काफी अवकाश मिल जाता है और तब उनकी चिन्तन शक्ति काम करती है।
  • विस्तृत वातावरण में रहने के कारण उनके विचारों में महान् सादगी आ जाती है। धर्म का स्वरूप एकेश्वरवादी हो जाता है। अर्थात् ईश्वर एक हो जाता है और उसका कोई दूसरा प्रतिद्वन्द्वी नहीं होता। यह ठीक उसी प्रकार से होता है जिस प्रकार मरुस्थल या स्टैपी घास के मैदान बिना किसी अवरोध या परिवर्तन के लगातार विस्तृत क्षेत्र में फैले होते हैं। उसके मस्तिष्क को नए-नए विचारों का भोजन न मिलने के कारण वह अपने साधारण विचारों को ही बार-बार दोहराता है और उसका विचार कट्टरपन में परिवर्तित हो जाता है। उसके कुछ विचार उसके लगातार घूमते रहने के कारण उसके देश की सीमा के बाहर निकल जाते हैं और वह साम्राज्य बढ़ाने की लालसा में आक्रमणकारी बन जाते हैं।
  • सेम्पुल के अनुसार, पर्वतीय प्रदेशों के निवासी मुख्यतः रूढ़िवादी होते हैं और उनका पर्यावरण उन्हें परिवर्तन के लिए बहुत ही कम प्रेरित करता है। ये अपेक्षाकृत एकाकी जीवन व्यतीत करते हैं, जिस कारण उनमें बाह्य व्यक्तियों के प्रति कट्टरपन, रूढ़ीवाद, संवेदनशील और संशय व्यवहार की भावना पनपती है। वे अपनी परम्पराओं के प्रति बड़े संवेदनशील होते हैं और किसी भी प्रकार की आलोचना को पसन्द नहीं करते। अपने अस्तित्व के लिए कड़ा संघर्ष, इन लोगों को परिश्रमी, मितव्ययी, सतर्क तथा ईमानदार बना देता है। इसके विपरीत यूरोप के मैदानी भागों में रहने वाले लोग शक्ति सम्पन्न गम्भीर, भावुक की अपेक्षा विचारशील तथा आवेगी की अपेक्षा सचेत होते हैं। सेम्पुल के अनुसार भूमध्य सागरीय प्रदेश की जलवायु शीतोष्ण और सम होती है और वहाँ के निवासी प्रसन्नचित्त तथा कल्पनाशील होते हैं। उनका जीवन सुगमता से चलता है।
  • इस प्रकार, सेम्पुल ने प्राकृतिक पर्यावरण का नियन्त्रण मनुष्य के केवल भोजन, वस्त्र, आवास और आर्थिक विकास पर ही नहीं वरन उसके विचारों, भावनाओं और धार्मिक विश्वासों पर भी बताया। उन्होंने अपनी , पुस्तक में प्राकृतिक पर्यावरण के भिन्न तत्त्वों; जैसे— उच्चावच, भूमि की बनावट, जलवायु, मृदा, खनिज सम्पदा, वनस्पति तथा पशु धन आदि का प्रभाव का मनुष्य के शरीर पर उसके जीविकोपार्जन के ढंगों पर, उसके सामाजिक संगठन और रीति-रिवाजों तथा उसकी संस्कृति पर माना है। विश्वभर के भूगोलवेत्ताओं का मानना है कि कुमारी सेम्पुल ने पर्यावरण निश्चयवाद की विचारधारा को चरम सीमा तक पहुँचा दिया।

एल्सवर्थ हंटिंगटन
    दूसरे अमेरिकी भूगोलवेत्ता थे, जिन्होंने पर्यावरण निश्चयवाद का समर्थन किया। उनका विचार था कि सभ्यता के विकास में जलवायु की प्रमुख भूमिका होती है। उन्होंने अपनी पुस्तक मानव भूगोल के सिद्धान्त में विश्व के विभिन्न भागों में जलवायु तथा मानवीय क्रियाकलाप का वर्णन किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि समशीतोष्ण जलवायु क्षेत्रों में स्वास्थ्य, शक्ति तथा सभ्यता का उच्च स्तर पाया जाता है। उनके अनुसार समशीतोष्ण कटिबन्ध में प्रत्येक व्यक्ति विश्व के अन्य क्षेत्रों के निवासियों की तुलना में औसतन 5 से 6 गुना अधिक उत्पादन करता है।
    हटिंगटन ने विश्व को सम तथा विषम जलवायु प्रदेश में बाँटा और बताया कि विश्व की प्राचीन सभ्यताएँ (मिस्र, मेसोपोटामिया, चीनी तथा सिन्धु) नदी घाटियों की सम जलवायु में ही विकसित हुई थीं। हटिंगटन के अनुसार, धर्म और जातीय, जलवायु की उपज हैं। लगभग 20 डिग्री से. तापमान तथा परिवर्तनशील वायुमण्डलीय दशा (शीतोष्ण चक्रवातीय मौसम) उच्च मस्तिष्क तथा शारीरिक कार्यक्षमता के लिए आदर्श हैं। इस प्रकार की आदर्श जलवायु सम्बन्धी दिशाएँ उत्तर-पश्चिमी यूरोपीय देशों में पाई जाती हैं। यूरोपीय जातियों द्वारा विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अत्यधिक विकास का मुख्य कारण वहाँ की अनुकूल जलवायु ही है। इसके विपरीत उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में जलवायु उष्ण तथा आर्द्र है जो मानव स्वास्थ्य के लिए अधिक अनुकूल नहीं है। इस प्रकार की जलवायु उष्णकटिबन्धीय प्रदेशों के निवासियों को निश्चेष्ट, आलसी, अकुशल, संदिग्ध तथा भीरू बना देती है। 
    हंटिंगटन के बाद भी अनेक भूगोलवेत्ताओं ने पर्यावरण निश्चयवाद का किसी-न-किसी रूप में समर्थन किया। इनमें मेकिण्डर, चिशोल्म डेविस, बोमन, रॉबर्ट मिल, गैडिस, सावर, हरबर्टसन, टेलर आदि नाम प्रमुख हैं।
      ओ एच के स्पेट
      इन्होंने पर्यावरण निश्चयवाद के कट्टर समर्थकों की आलोचना करते हुए कहा कि, पर्यावरण स्वयं में अर्थहीन वाक्यांश है, बिना मानव के पर्यावरण का कोई अस्तित्व नहीं है। रिचर्ड हार्टशोर्न ने भी पर्यावरणवाद को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया है कि यह प्रकृति तथा मानव को अलग करता है और भूगोल विषय की मूलभूत एकता को नष्ट करता है, अर्थात् एक संगठित विज्ञान के रूप में भूगोल का विरोधी है।
      सम्भववाद
      मानव पर्यावरण अन्तर्सम्बन्धों को व्यक्त करने वाली यह एक ऐसी विचारधारा है जिसके अनुसार मानव पर्यावरण की कठपुतली अथवा इसका दास नहीं है। यद्यपि वह प्रकृति से प्रभावित होता है तथापि वह अपनी बुद्धि बल तथा कार्यकुशलता के आधार पर पर्यावरण को प्रभावित करता है। समय बीतने के साथ-साथ विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का विकास होता है और मनुष्य की प्राकृतिक शक्तियों पर विजय पाने की क्षमता बढ़ जाती है। मनुष्य अपनी कार्यकुशलता के बल पर आदि जीवन को छोड़कर आधुनिक जीवन में प्रवेश किया है। ने
      उसने वनों को काटकर कृषि शुरू की और साथ ही पशुपालन का लाभ उठाया। नदियों पर बाँध बनाकर सिंचाई की सहायता से मरुभूमियों में कृषि की । खनिजों का उपयोग करके उद्योग-धन्धे स्थापित किए। नगरों और परिवहन मार्गों का निर्माण किया और यहाँ तक कि अन्तरिक्ष की खोज की। ये सभी मनुष्य की प्रकृति पर विजय के उदाहरण हैं।
      मानव सभ्यता के विकास को ध्यान में रखते हुए विश्वभर के भूगोलवेत्ताओं ने 20वीं शताब्दी के आरम्भ में निश्चयवाद को छोड़कर सम्भववाद को अपनाना शुरू कर दिया। पी हेगेट ने सम्भववाद की परिभाषा देते हुए कहा, “निश्चयवाद के विपरीत सम्भववाद भौगोलिक स्थिति के होते हुए भी मनुष्य को व्यवहार के वैकल्पिक प्रारूप का चयन करने की स्वतन्त्रता पर बल देता है।"
      लूसियन फेब्रे
      फ्रांसीसी विद्वान् लूसियन फेब्रे ने पहली बार सम्भववाद की संकल्पना का प्रयोग किया था। उनके अनुसार, “मनुष्य एक भौगोलिक अभिकर्ता है और न्यूनतम नहीं है। उसने परिवर्तनशील अभिव्यक्ति के साथ पृथ्वी के रूपाकृति विज्ञान की छानबीन में अपना योगदान दिया है जोकि भौगोलिक अध्ययन का विशिष्ट दायित्व है। उन्होंने आगे चलकर लिखा यहाँ आवश्यकताएँ नहीं हैं, अपितु सर्वत्र सम्भावनाएँ हैं और मानव इन सम्भावनाओं के उपयोग करने के निर्णय का स्वामी है।”
      विडाल - डी - ला- ब्लाश
      फ्रांस के विडाल-डी ला-ब्लाश को सही अर्थों में सम्भववाद का संस्थापक माना जाता है। ब्लाश के मानव भूगोल सम्बन्धी सिद्धान्त उसकी मृत्यु के बाद 1923 में उसकी पुस्तक मानव भूगोल के सिद्धान्त में छपे थे। इस पुस्तक के दूसरे भाग में ब्लाश ने मानव द्वारा वातावरण के विकास की विधियों और मानवीय संस्कृतियों का विश्लेषण किया है। ब्लाश ने भौगोलिक एकता के सिद्धान्त के अतिरिक्त मनुष्य को सक्रिय भौगोलिक कारक माना है। मानवीय क्रिया पृथ्वी के सजीव तथा निर्जीव दोनों प्रकार के तथ्यों में परिवर्तन करती है।
      उदाहरणतः, मानव समाज ने अपनी प्रिय फसलों को अपनाया, उगाया और उनके उद्गम क्षेत्रों का विस्तार किया। विभिन्न प्रकार की जलवायु को उपयोगी बनाने के लिए फसलों की नई किस्मों का विकास किया। मनुष्य के सक्रिय सहयोग के बिना कृषि का विकास नहीं हो सकता था।
      इस प्रकार, ब्लाश ने मानव के विकल्प तथा क्रिया को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया। ब्लाश के अनुसार, “मानव का विकल्प मानव समूह के मानसिक एवं सामाजिक प्रारूप तथा प्रौद्योगिकी के स्तर पर निर्भर करता है।"
      संक्षेप में, मानव की छाँट उसकी संस्कृति के अनुरूप होती है। ब्लाश ने मानव के सक्रिय योगदान को महत्त्व देते हुए प्रकृति के सीमित प्रभाव को ही मान्यता दी और लिखा, “प्रकृति एक परामर्शदाता से अधिक कभी नहीं होती।” ब्लाश के अनुसार, "जीवन-शैली, सभ्यता का परिणाम और उसका प्रतिबिम्ब होती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि विभिन्न समूहों के बीच पाया जाने वाला अन्तर भौतिक पर्यावरण के प्रभाव के कारण होता है। अभिरुचियों और आदतों में अन्तर मानव समुदायों के लिए अनेक सम्भावनाएँ उपस्थित करता है, जो सम्भववाद का मूल दर्शन है।"

      जीन ब्रूश
      फ्रांस का जीन ब्रूश, ब्लाश का शिष्य था और सम्भववाद का कट्टर समर्थक था। उसकी पुस्तक मानव भूगोल सन् 1910 में प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में जीन बूंश ने ब्लाश के विचारों को ही आगे नहीं बढ़ाया, बल्कि मनुष्य-पर्यावरण सम्बन्धों को भी विस्तारपूर्वक समझाया। बूंश की मान्यता थी कि मनुष्य अपने पर्यावरण के प्रभाव को चुपचाप सहन नहीं करता, वरन् उसे परिवर्तित करने के लिए क्रियाशील रहता है।
      उन्होंने मनुष्य की प्रभावशाली क्रियाशीलता के अनेक उदाहरण दिए। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक पर्यावरण द्वारा कुछ सीमाएँ निर्धारित की जाती हैं और मनुष्य यद्यपि इन सीमाओं को पूर्णतया लांघ नहीं सकता है। तो भी उनमें परिवर्तन अवश्य कर सकता है। मनुष्य के क्रियाकलापों पर प्रकृति द्वारा निर्धारित की गई समस्याएँ, समय तथा स्थान के अनुसार परिवर्तित होती रहती हैं, क्योंकि मनुष्य उसमें हस्तक्षेप करता रहता है।

      ईसा बोमैन
      इन्होंने अपनी पुस्तक में पर्यावरण पर मनुष्य के प्रभाव को उजागर किया है। बोमैन ने बताया कि वातावरण के भौगोलिक तत्त्व संकुचित तथा विशिष्ट अवस्था में ही स्थिर हैं; जैसे ही वे मानव के सम्पर्क में आते हैं वे मानवता की भाँति परिवर्तनशील हो जाते हैं। सावर की सम्भववादी विचारधारा को बड़ी मान्यता मिली। सावर ने स्पष्ट किया कि भूगोलवेत्ताओं को कार्य प्राकृतिक से सांस्कृतिक भूपटल की संक्रमण की प्रकृति की खोज करना तथा उसे समझना है।
      समय बीतने के साथ-साथ निश्चयवाद की भाँति सम्भववाद की भी आलोचना होने लगी। ब्लाश, बूंश तथा सम्भववाद के अन्य समर्थकों के बाद कई विद्वानों ने मनुष्य की प्रकृति पर विजय के सम्बन्ध में आशंका व्यक्त की। उनका विचार था कि जिस प्रकार निश्चयवाद मनुष्य पर प्रकृति के प्रभाव की चरम सीमा भी दर्शाता है, उसी प्रकार सम्भववाद प्रकृति पर मनुष्य की विजय को बढ़ा-चढ़ाकर व्यक्त करता है। यद्यपि मानव प्रकृति का लाभ उठाने में सफल हुआ है। तथापि मानव द्वारा प्रकृति के शोषण की एक सीमा होती है।
      मनुष्य चाहे कितनी ही उन्नति कर ले वह प्रकृति के नियन्त्रण से सम्पूर्णतया मुक्त नहीं हो सकता है। न तो प्रकृति पूर्णतया मनुष्य को नियन्त्रित करती है और न ही मनुष्य पूर्णतः प्रकृति पर विजय पा सका है। वास्तविकता यह है कि समस्त मानव जाति प्रकृति के साथ मित्रतापूर्वक तालमेल बनाकर पृथ्वी पर निवास करती है। अतः प्रकृति मनुष्य पर या मनुष्य प्रकृति पर हावी नहीं होता। इस प्रकार, उन दोनों में चरम सीमाओं के बीच एक नई स्थिति उत्पन्न होती है, जिसने एक नई विचारधारा को जन्म दिया है जिसे सम्भावनावाद कहते हैं।

      नव नियतिवाद
      यह वातावरणवाद तथा सम्भववाद के बीच की विचारधारा है जिसे ऑस्ट्रेलियन भूगोलवेत्ता ग्रिफिथ टेलर ने विकसित किया। इसे 'रुको और जाओ' नियतिवाद भी कहा जाता है।
      टेलर के अनुसार, "किसी देश के लिए वही आर्थिक कार्यक्रम सर्वोत्तम है जो कि मुख्यतः प्रकृति द्वारा निर्धारित है। मानव समुचित या अनुकूल निर्णय लेकर देश या प्रदेश के विकास की गति को तेज कर सकता है या धीमे कर सकता है अथवा रोक सकता है परन्तु यदि वह बुद्धिमान है तो उसे प्रकृति के दिशा-निर्देशों से विचलित नहीं होना चाहिए। "
      मानव की भूमिका महानगर के एक ट्रैफिक नियन्त्रक की भाँति है जोकि यातायात की गति को तो नियन्त्रित कर सकता है, परन्तु उसकी दिशा नहीं बदल सकता। नव निश्चयवाद को वैज्ञानिक निश्चयवाद भी कहते हैं। जॉर्ज टेथम ने इसे ‘क्रियात्मक सम्भववाद' कहा है। टेलर की भाँति जॉर्ज टेथम तथा ए एफ मार्टिन भी नव निश्चयवाद के समर्थक हैं।
      मानव-पर्यावरण सम्बन्धों की एक अन्य विचारधारा सम्भाव्यवाद है, जिसका प्रतिपादन ओ एच के स्पेट द्वारा किया गया है। यह भी एक मध्यम मार्गी विचारधारा है। जो यह कहती है कि प्रकृति प्रदत्त सम्भावनाओं में से कुछ सम्भावनाएँ दूसरों से अधिक "सम्भाव्य” होती हैं, जिनका चयन किया जाता है।
      New determinism Neo-determinism New determinism का संस्थापक रैटजेल को माना जाता है।
      टेलर महोदय ने 1920 के दशक में यह बताया कि ऑस्ट्रेलिया में कृषिय अधिवास की सीमा को वर्षा जैसे भौतिक पर्यावरण के तत्त्व प्रभावित करते हैं। निश्चयवाद तथा सम्भववाद की चरम सीमाओं के बीच सम्भावनावाद की अवधारणा को समझाने को टेलर ने 'रुको और जाओ निश्चयवाद' वाक्यांश का प्रयोग किया। इसके अनुसार टेलर ने मनुष्य पर प्रकृति के प्रभाव को स्वीकार किया, परन्तु साथ ही यह तर्क भी दिया जाता है कि मनुष्य अपनी दक्षता, मानसिक क्षमता तथा विज्ञान व प्रौद्योगिकी के विकास के आधार पर अपनी आवश्यकताओं के अनुसार प्रकृति का उपयोग भी कर सकता है। टेलर ने अपनी अवधारणा को निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया
      “मनुष्य किसी भी देश के विकास की गति को तेज कर सकता है, धीमी कर सकता है या उसे अवरुद्ध कर सकता है, परन्तु यदि वह बुद्धिमान है तो उसे प्रकृति द्वारा दर्शाई गई दिशा से दूर नहीं जाना चाहिए। वह किसी बड़े नगर यातायात के नियन्त्रक के समान है जो प्रगति की गति परिवर्तित कर सकता है और सम्भवत: 'रुको और जाओ निश्चयवाद' का संक्षिप्त वाक्यांश लेखक के भौगोलिक दर्शन को पूर्णतः स्पष्ट करता है।"
      इस संकल्पना के अनुसार प्रकृति मनुष्य को उसकी बुद्धिमत्ता के अनुसार सम्भावनाओं का उपयोग करने का अवसर देती है। यदि मानव चतुर है तो वह प्रकृति के कार्यक्रमों का अनुसरण करता है। यह माना जाता है कि पर्यावरण द्वारा निर्धारित सीमा में मानव सर्वोत्तम सम्भावना को चुन सकता है। टेलर इसे चतुर और मूर्ख के बीच चयन करके अनुमति देता है। विवेक और मूर्खता मानवीय अवधारणाएँ हैं जिनके सम्बन्ध में प्राकृतिक पर्यावरण कुछ नहीं जानता । प्रकृति में केवल सम्भव तथा असम्भव होता है।
      ग्रिफिथ टेलर
      कुछ के लिए कुछ टेलर के अनुसार, किसी भी पर्यावरण द्वारा किए जाने वाले अवसर समान नहीं होते। कुछ मानव से कम प्रयास की माँग करते हैं तो . निरन्तर संघर्ष की आवश्यकता होती है, कुछ अधिक उत्पाद देते हैं तो कम उत्पाद देते हैं। प्रयास और उत्पादकता के बीच अनुपात को मूल्य के रूप में माना जा सकता है जो प्रकृति मानव द्वारा किए गए विकल्प विशेष के बदले में माँगती है।
      किसी भी पर्यावरण में सम्भावनाएँ असीम नहीं हैं और प्रत्येक विकल्प के लिए कीमत चुकानी होती है। इस तथ्य को सम्भववाद के प्रचारक भी स्वीकार करते हैं, परन्तु इन सीमाओं के होते हुए भी विकल्प चुनने की स्वतन्त्रता होती है। मनुष्य अपना विकल्प स्वयं चुनता है और वह अपनी सापेक्षिक बुद्धिमत्ता अथवा मूर्खता का निर्णय उन लक्ष्यों के सन्दर्भ में करता है जो उसने स्वयं निश्चित किया है। टेलर के अतिरिक्त अन्य भूगोलवेत्ताओं ने भी नव निश्चयवाद की संकल्पना को माना और उसके विकास में योगदान दिया।
      कार्ल ओ सावर
      इन्होंने आधुनिकतम युग के निश्चयवाद को मानते हुए प्रकृति में तथा मानव के बीच समायोजन को प्रधानता दी है। ओ एच के स्पेट के अनुसार, नवनिश्चयवाद कुछ भी नहीं, बल्कि निश्चयवाद तथा सम्भववाद की चरम सीमाओं के बीच का दर्शन है। स्पेट के नवनिश्चयवाद के स्थान पर प्रसम्भववाद शब्द का प्रयोग अधिक उपयुक्त माना है। बेकन का कथन बहुत महत्त्वपूर्ण है। उसके अनुसार, “प्रकृति पर उसके आदेशों का पालन करके ही विजय प्राप्त की जा सकती है।

      टिप्पणियाँ

      इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

      प्रिज्मीय कम्पास सर्वेक्षण

                                        प्रिज्मीय कम्पास सर्वेक्षण                         (Prismatic Compass Surveying) परिचय  (Introduction) धरातल पर किन्हीं दो बिन्दुओं को मिलाने वाली सरल रेखा के चुम्बकीय दिशा कोण या दिकमान (magnetic bearing) तथा लम्बाई को मापनी के अनुसार अंकित करके प्लान में उन बिन्दुओं की एक-दूसरे के सन्दर्भ में स्थितियाँ निश्चित करना प्रिज्मीय कम्पास सर्वेक्षण का मूल आधार है। इस सर्वेक्षण में दो बिन्दुओं के मध्य की दूरी को ज़रीब अथवा फीते से मापते हैं तथा उन बिन्दुओं को मिलाने वाली सरल रेखा के चुम्बकीय दिक्मान को प्रिज्मीय कम्पास की सहायता से ज्ञात करते हैं। किसी सरल रेखा के चुम्बकीय दिक्मान से हमारा तात्पर्य चुम्बकीय उत्तर (magnetic north) से उस रेखा तक घड़ी की सुई की दिशा में मापे गये कोण से है। प्रिज्मीय कम्पास के द्वारा किसी क्षेत्र का सर्वेक्षण करने के लिये प्रायः चंक्रमण या माला रेखा विधि (traverse method) का प्...

      प्लेन टेबुल सर्वेक्षण

      परिचय (Introduction) प्लेनटेबुलन (plane tabling) सर्वेक्षण करने की वह आलेखी विधि है, जिसमें सर्वेक्षण कार्य तथा प्लान की रचना दोनों प्रक्रियाएँ साथ-साथ सम्पन्न होती हैं। दूसरे शब्दों में, प्लेन टेबुल सर्वेक्षण में किसी क्षेत्र का प्लान बनाने के लिये ज़रीब, कम्पास या थियोडोलाइट सर्वेक्षण की तरह क्षेत्र-पुस्तिका तैयार करने की आवश्यकता नहीं होती । क्षेत्र-पुस्तिका न बनाये जाने तथा क्षेत्र में ही प्लान पूर्ण हो जाने से कई लाभ होते हैं, जैसे-(i) समस्त सर्वेक्षण कार्य अपेक्षाकृत शीघ्र पूर्ण हो जाता है, (ii) क्षेत्र-पुस्तिका में दूरियां आदि लिखने में होने वाली बालों की समस्या दूर हो जाती है तथा (iii) सर्वेक्षक को प्लान देखकर भूलवश छोड़े गये क्षेत्र के विवरणों का तत्काल ज्ञान हो जाता है। त्रिभुज अथवा थियोडोलाइट संक्रमण के द्वारा पूर्व निश्चित किये गये स्टेशनों के मध्य सम्बन्धित क्षेत्र के अन्य विवरणों को अंकित करने के लिये प्लेन को सर्वाधिक उपयोगी एवं प्रामाणिक माना जाता है। इसके अतिरिक्त प्लेनटेबुलन के द्वारा कछ वर्ग किलोमीटर आकार वाले खुले क्षेत्र के काफी सीमा तक सही-सही प्लान बनाये ज...

      परिच्छेदिकाएँ ( Profiles)

                                            परिच्छेदिकाएँ                                        (Profiles) किसी समोच्च रेखी मानचित्र में प्रदर्शित उच्चावच तथा ढाल की दशाओं का परिच्छेदिकाओं की सहायता से स्पष्ट प्रत्यक्षीकरण किया जा सकता है। परिच्छेदिकाएँ स्थल रूपों या भू-आकृतियों को समझने तथा उनका वर्णन एवं व्याख्या करें में महत्वपूर्ण सहायता देती हैं। [I]  परिच्छेदिका तथा अनुभाग का भेद  (Difference between a profile and a section) प्रायः 'परिच्छेदिका' तथा 'अनुभाग' शब्दों का समान अर्थों में प्रयोग किया जाता है परन्तु इनमें थोड़ा अन्तर होता है। अनुभव का शाब्दिक अर्थ काट (cutting) या काट द्वारा उत्पन्न नग्न सतह होता है। इसके विपरीत काट द्वारा उत्पन्न सतह की धरातल पर रूपरेखा (outline) परिच्छेदिका कहलाती है। दूसरे शब्दों में, यदि किसी भू-आकृति को एक रेखा के सहारे ऊर्ध्वाधर दिशा में नीचे तक ...