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मौसमी संकट और आपदाएँ ( Meteorological Hazards and Disasters)

मौसमी संकट और आपदाएँ (मौसम संबंधी खतरे और आपदाएँ) प्रकृत्तिजन्य अप्रत्याशित ऐसी सभी घटनाएँ जो प्राकृतिक प्रक्रमों को इतना तीव्र कर देती हैं कि विनाश की स्थिति उत्पन्न होती है, चरम प्राकृतिक घटनाएँ या आपदा कहलाती है। इन चरम घटनाओं या प्रकोपों से मानव समाज, जन्तु एवं पादप समुदाय को अपार क्षति होती है। चरम घटनाओं में ज्वालामुखी विस्फोट, दीर्घकालिक सूखा, भीषण बाढ़, वायुमण्डलीय चरम घटनाएँ; जैसे- चक्रवात, तड़ित झंझा, टॉरनेडो, टाइफून, वृष्टि प्रस्फोट, ताप व शीत लहर, हिम झील प्रस्फोटन आदि शामिल होते हैं। प्राकृतिक और मानव जनित कारणों से घटित होने वाली सम्पूर्ण  वायुमण्डलीय एवं पार्थिव चरम घटनाओं को प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। इन आपदाओं से उत्पन्न विनाश की स्थिति में धन-जन की अपार हानि होती है। प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं का वर्णन निम्न प्रकार है:- चक्रवात (Cyclone) 30° उत्तर से 30° दक्षिण अक्षांशों के बीच उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्णकटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं। ये आयनवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाला एक निम्न वायुदाब अभिसरणीय परिसंचरण तन्त्र होता है। इस चक्रवात का औसत व्यास लगभग 640 किमी...

URBAN SETTLEMENT


नगरीय अधिवास
URBAN SETTLEMENT
नगरीय अधिवास स्थल के एक बड़े भू-भाग एवं व्यापारिक केन्द्रों के मार्ग पर बसे मनुष्यों तथा अधिवासों का एक स्थायी सतत् तथा घना बसा समूह होता है, जहाँ लोग गैर-प्राथमिक कार्यों में संलग्न रहते हैं।
नगर का अर्थ एवं परिभाषाएँ 
(Meaning and Definitions of City)

शब्द का प्रयोग टाउन (Town) और सिटी (City) दोनों के लिए किया जाता है। नगर शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है। उदाहरणस्वरूप संकुचित अर्थ में लघु नगरीय इकाइयों के लिए, जैसे-टाउन एरिया, टाउनशिप आदि में होता है, वहीं व्यापक अर्थ में सभी नगरीय इकाइयो, जैसे-टाउन, सिटी, महानगर ((Metropolia), बृहतनगर (Megapolis) आदि के लिए नगर शब्द का प्रयोग किया जाता है।
फ्रेडरिक रेटजेल के अनुसार, "नगर जनसंख्या और गृहों का सतत् समूह होता है, जो भूमि के वृहत भाग को आत करता है और वृहत व्यापारिक मार्गों के केन्द्र पर स्थित होता है।" पीटर हैगेट के अनुसार, "नगर बड़ी संख्या में एकसाथ रहने वाले लोगों का समूह है, जो अति उच्च पनत्व वाला सपन पुंज होता है।"
नगरीय अधिवासों का वर्गीकरण/नगर की परिभाषा के मापदण्ड 
नगरीय बस्तियों का वर्गीकरण जनसंख्या के आकार, व्यावसायिक संरचना तथा प्रशासन (प्रशासनिक ढाँचा) के आधार पर किया जाता है, जिनका वर्णन इस प्रकार है
जनसंख्या का आकार
  •  नगरीय क्षेत्रों के लिए जनसंख्या को मुख्य आधार माना गया है, जिसका मापदण्ड विश्व के सभी देशों में अलग-अलग होता है, जैसे- कोलम्बिया में 1.500, अर्जेण्टीना एवं पुर्तगाल में 2,000, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं पाइलैण्ड में 2,500, भारत में 5,000 और जापान में 30,000 जनसंख्या को निर्धारित किया गया है।
  • भारत में जनसंख्या के अतिरिक्त जनसंख्या घनत्व के साथ-साथ गैर-कृषि क्षेत्रों में संलग्न जनसंख्या को भी ध्यान में रखा जाता है। फिनलैण्ड, डेनमार्क तथा स्वीडन में 250 व्यक्ति, आइसलैण्ड में 300 व्यक्ति तथा येनेजुऐला एवं कनाडा में 1,000 व्यक्ति वाले क्षेत्र को नगरोय कहा जाता है।
व्यावसायिक संरचना
भारत सहित विश्व के कई देशों में आर्थिक गतिविधियों को भी नगरीय बस्तियों का मापदण्ड माना जाता है; जैसे-इटली में ऐसी बस्तियों को नगर कहा जाता है, जहाँ पुरुष जनसंख्या का 75% भाग गैर-कृषि कार्यों में संलग्न हो। भारत में इस मापदण्ड को 75% रखा गया है।
प्रशासन
विश्व के कुछ देशों में प्रशासनिक ढाँचे को नगरीय बस्तियों का आधार (मापदण्ड) माना जाता है; जैसे- भारत में नगरपालिका, छावनी बोर्ड या अधिसूचित नगरीय क्षेत्र समिति वाले क्षेत्र को नगरीय बस्ती माना जाता है। लैटिन अमेरिका के देश ब्राजील एवं बोलीविया में प्रशासकीय केन्द्र को नगरीय केन्द्र माना जाता है।
कार्यों के आधार पर नगरों का वर्गीकरण 
कार्यों के आधार पर नगरों का वर्गीकरण निम्नलिखित है।
प्रशासनिक नगर
किसी देश में केन्द्र स्तर पर राजधानियों तथा राज्य स्तर पर प्रशासनिक कार्य करने वाले नगरों को प्रशासनिक नगर कहा जाता है, जहाँ प्रशासनिक कार्यालय अवस्थित होते हैं; जैसे-नई दिल्ली, कैनवरा, बीजिंग, अदीस अबाबा, वाशिंगटन डी सी एवं लन्दन प्रशासनिक नगर हैं, साथ ही विक्टोरिया (ब्रिटिश कोलम्बिया), अलबैनी (न्यूयॉर्क) व चेन्नई (तमिलनाडु) आदि राज्य स्तर पर प्रमुख प्रशासनिक नगर हैं।
व्यापारिक एवं व्यावसायिक नगर
व्यापार अथवा व्यवसाय से सम्बन्धित कार्य करने वाले प्रमुख नगरों को व्यापारिक एवं व्यावसायिक नगर कहा जाता है; जैसे-विनिपेग एवं कंसास को कृषि उत्पाद आधारित नगर तथा फ्रैंकफर्ट एवं एम्सटर्डम को बैंकिंग एवं वित्तीय कार्य करने वाले नगर के रूप में जाना जाता है। इसके अतिरिक्त मैनचेस्टर एवं सेंट लुइस अन्तर्देशीय केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध है। बगदाद, आगरा और लाहौर प्रमुख अन्य व्यापारिक केन्द्र हैं।
सांस्कृतिक नगर या धार्मिक नगर
सांस्कृतिक नगर वे नगर होते हैं, जो धार्मिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण होते हैं। जेरूसलम, मक्का, जगन्नाथपुरी तथा बनारस आदि प्रमुख सांस्कृतिक नगर है। ऐसे नगर अन्य कई प्रकार के कार्यों को भी करते हैं; जैसे-स्वास्थ्य एवं मनोरंजन सम्बन्धी कार्य (मियामी एवं पणजी), औद्योगिक कार्य (पिट्सबर्ग एवं जमशेदपुर), खनन (ब्रोकन हिल एवं धनबाद) तथा परिवहन (सिंगापुर एवं मुगलसराय) आदि।
आकृति के आधार पर नगरों का वर्गीकरण
किसी भी नगर की आकृति, वास्तुकला एवं भवनों की शैली वहाँ की ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक परम्पराओं पर आधारित होती है। परिणामस्वरूप नगरों का आकार रेखीय, वर्गाकार, तारा आकार अथवा चन्द्राकार (चापाकार) रूप में पाया जाता है।
विकसित तथा विकासशील देशों के नगर नियोजन में अन्तर पाया जाता है; जैसे विकसित देशों में नगर योजनाबद्ध तरीके से बसाए जाते हैं, जबकि विकासशील देशों में नगरों की उत्पत्ति ऐतिहासिक स्थल के रूप में होती है, जिनकी आकृति अनियमित होती है। उदाहरणस्वरूप; चण्डीगढ़ एवं कैनवरा नियोजित नगर हैं तथा भारत के अन्य छोटे कस्बे गैर-योजनाबद्ध हैं।
विकसित और विकासशील देशों में नगरीकरण की विशेषताएँ
विकसित और विकासशील देशों की नगरीकरण की विशेषताएँ इस प्रकार है 
  • विकासशील देशों में नगरीकरण के स्पष्ट विभाजन में स्पष्टता का अभाव होता है जबकि विकसित देशों में नगरीकरण स्पष्ट रूप में विभक्त होती है। विकासशील देशों के नगरीकरण में कार्यों की विविधता पाई जाती है, जबकि विकसित देशों में स्पष्ट विभाजन होता है।
  • विकसित देशों का नगर एक नियोजित प्रक्रम के तौर पर बसा होता है, जबकि विकासशील देशों का अधिकांश नगर अनियोजित तरीके से बसा पाया जाता है।
  • विकसित देशों के नगरों में विकासशील देशों की अपेक्षा जनसंख्या का घनत्व कम पाया जाता है।
  • विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों के नगरों में औद्योगिक विकास उतना नहीं पाया जाता है, जिससे रोजगार के कम ही अवसर उत्पन्न हो पाते हैं।
  • विकासशील देशों के नगरीकरण में विकसित देशों की तुलना में अधिक सामाजिक परिवर्तन पाया जाता है
  • विकसित देशों की नगरीकरण में विकासशील देशों की तुलना में नगरों में सीवरेज आदि की उचित व्यवस्था होती है। पेयजल, आवास, विकासशील देशों के नगरों की तुलना में विकसित देशों के नगरों में कम सामाजिक गतिशीलता पाई जाती है।
  • विकसित देशों के नगरों में सेवाओं एवं तकनीकों का उच्च होने के साथ लोगों का जीवन स्तर भी विकासशील देशों के नगरों की तुलना में उच्च पाया जाता है। 
  • विकासशील देशों के नगरों में लोगों का नगरों की ओर स्थानान्तरण काफी तीव्र गति से होता है, जबकि विकसित देशों में यह प्रवृत्ति अपेक्षा कम होती है।
  • विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों के नगरों में गन्दी बस्तियों का जमाव अधिक पाया जाता है।
विकसित और विकासशील देशों में नगरीकरण की प्रक्रिया या प्रक्रम
नगरीकरण की प्रक्रिया या प्रक्रम में नगरों के वृद्धि के कारक, नगरीयकरण की प्रवृत्तियाँ, नगरों के आकार तथा नगरों के प्रकार्यों का अध्ययन किया जाता है। अतः इनका वर्णन इस प्रकार है।
नगरीकरण की वृद्धि एवं उसके कारण
प्राचीन विश्व में नगरीकरण की प्रक्रिया अत्यल्प एवं मन्द थी, क्योंकि उस समय कृषि सघन एवं श्रम उन्मुख थी। इसके पश्चात् तकनीकी विकास, औद्योगीकरण आदि ने नगरीकरण के प्रतिरूप में बदलाव लाया और नगरों के विकास में क्रान्ति सी आ गई। 1800 से 1950 के बीच नगरीय जनसंख्या का स्थायी रूप से तीव्र गति से वृद्धि हुई।वर्ष 2001 की गणना के अनुसार भारत में 10,00,000 से अधिक जनसंख्या वाले नगरों की संख्या 35 नगरों तक पहुँच गई। इतना ही नहीं वर्ष 2011 के जनगणना के अनुसार भारत में 10-40 लाख जनसंख्या वाले नगरों की संख्या 44 हो गई है।
अतः वर्ष 2014 के अनुसार विश्व में नगरीकरण का प्रतिशत 54% है। वहीं वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की 31.1% जनसंख्या नगरीय है। इतना ही नहीं विश्व विकास संकेतक रिपोर्ट 2015 के अनुसार कम आय वाले देशों में 30%, मध्यम आय वाले देशों में 50% तथा उच्च आय वाले देशों में 80% नगरीकरण पाया जाता है। इस नगरीकरण की वृद्धि में बहुत से कारकों ने योगदान दिया है। ऐसे प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

कृषि में उन्नति
खाद्य, उन्नत सिंचाई सुविधा, कृषि में मशीनों का प्रयोग आदि कृषि को उन्नत बनाने में सहायक होते हैं। यह गैर-कृषि कार्यों में संलग्न जनसंख्या के निर्वाह में सक्षम होता है। साथ ही उन्नत कृषि से अधिक लोगों को कृषि कार्य से मुक्ति मिल जाती है जिससे नगरीय प्रवास को बढ़ावा मिलता है। यूरोप से अमेरिका के धान्य प्रदेश में जनसंख्या का स्थानान्तरण इसी से प्रेरित था। अतः कृषि में उन्नति भी नगरीकरण की वृद्धि में योगदान देते हैं।
औद्योगीकरण
उद्योगों द्वारा वस्तुओं में मूल्य वृद्धि होती है साथ ही लोगों को जीविका अर्जन के साधन मिल जाते हैं तथा कम क्षेत्र में अधिक लाभ प्राप्त होता है। इससे नगरों में रहने वाले लोगों को अनेक प्रकार की सेवाओं की आवश्यकता होती है। इसके लिए अधिक लोगों की भी आवश्यकता होती है। इस तरह की घटनाओं से एक श्रृंखला बन जाती है, जिसमें संहति का विकास होता है। अतः यह उद्योगों में वृद्धि के साथ नगरीकरण को बढ़ावा देता है।
बाजार का बल
नगर उपभोक्ता वस्तुओं के लिए बाजार का काम करता है। साथ ही यह नए-नए उपभोक्ता वस्तुओं के लिए उद्योगों को आकर्षित करता है। इन उद्योगों में श्रम के रूप में श्रमिकों की आवश्यकता भी होती है, जो बाजार को वृहद बनाने में सहायता करता है। इस प्रकार बाजार, उद्योग के साथ परिवहन तन्त्र का भी समुचित विकास होता है। इस प्रकार से नगरीकरण को बढ़ावा मिलता है।
परिवहन साधनों की उत्पत्ति
परिवहन एवं यातायात की सुविधा लोगों की गति को बढ़ाने में सहायक होती है। इसकी उन्नत प्रणाली का विकास यातायात के मार्गों के विकास के साथ-साथ नगरों के विस्तार में सहायक होती है। अत: यह नगरीकरण को बढ़ाने में सहायक की भूमिका निभाती है।
सामाजिक सांस्कृतिक केन्द्रों के रूप में नगरों का विकास
औद्योगिक एवं व्यावसायिक क्रिया-कलापों के रूप में विकसित होने के साथ-साथ नगरों का विकास सामाजिक-सांस्कृतिक केन्द्रों के रूप में भी होता है। उल्लेखनीय है कि मनोरंजन के केन्द्र के रूप में जहाँ सिनेमाघर, थियेटर, मनोरंजन पार्क इत्यादि का विकास होता है वहाँ सभी परवर्ती क्षेत्रों से लोगों का प्रवास विभिन्न क्षेत्रों से होता है। यही प्रक्रम से धीरे-धीरे नगरों का विकास होने लगता है।
जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि
नगरों के आकार में वृद्धि का प्रमुख कारण जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि तथा जनसंख्या का ग्रामों या छोटे कस्बों से नगरों में स्थानान्तरण का होना है। इस प्रकार जनसंख्या वृद्धि नगरीकरण की वृद्धि में सहायक कारण है।

विकसित तथा विकासशील देशों की नगरीय प्रवृत्तियाँ 
विकसित तथा विकासशील देशों की नगरीय प्रवृत्तियों का उल्लेख इस प्रकार हैं
  • विकसित देशों में विकासशील देशों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों की ओर लोगों का स्थानान्तरण कम पाया जाता है। इससे नगरीय स्वरूप दीर्घकाल तक बना रहता है।
  • विकासशील देशों में विकसित देशों की तुलना में औद्योगिक विकास उतना नहीं पाया जाता है, जिससे नगरों का विकास तो होता है, किन्तु कार्य वर्गीकरण का स्पष्ट विभाजन नहीं पाया जाता है।
  • विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में गन्दी बस्तियों का अधिक जमाव पाया जाता है, जिससे नगरीकरण को अनुकूल बढ़ावा कम मिल पाता है। 
  • विकसित देशों में परिवहन व यातायात की पर्याप्त सुविधाएँ पाई जाती हैं, जबकि विकासशील देश इस व्यवस्था को पूरा करने में पूर्णतः सफल नहीं होते हैं जिससे नगरीकरण को विकसित देशों के जैसा बढ़ावा नहीं मिलता है। .
  • विकासशील देशों के नगरों में ऊर्जा संकट की समस्या पाई जाती है, जिससे विकसित देशों के जैसा सुविकसित नगरीय प्रवृत्ति को बढ़ावा नहीं मिल पाता है।
  • विकसित देशों के नगरों के केन्द्रीय भाग में बढ़ती भीड़ प्रदूषण, उच्च भूमि, मूल्य आदि कारण अपकेन्द्रीय शक्तियों के रूप में कार्य करते हैं और उपनगरों का विकास होने लगता है। वहीं विकासशील देशों में उपनगरीकरण की प्रक्रिया विकसित नहीं होती है। इसका एक प्रमुख कारण यातायात की समुचित व्यवस्था का अभाव पाया जाना है।
  • विकसित देशों में नगरों के केन्द्र में नगरीय क्षेत्रों के नवीकरण एवं पुनर्निवेशन की क्रिया पाई जाती है, जबकि विकासशील देशों के नगरों में इसका अभाव पाया जाता है। इससे भी नगरीय विकास की प्रवृत्ति प्रभावित होती है।
  • विकसित देशों के नगर विकसित होते हुए एक-दूसरे से मिलकर महानगरों का रूप ले लेते हैं जबकि विकासशील देशों में इसकी प्रवृत्ति काफी धीमी पाई जाती है। उल्लेखनीय है कि महानगरों के विकास के लिए केवल जनसंख्या की वृद्धि ही नहीं बल्कि औद्योगिक विकास के साथ प्रादेशिक स्तर के कार्यों का जमाव होना भी आवश्यक होता है।
  • बुनियादी सुविधा (पेयजल, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, सीवरेज आदि) के अभाव के कारण विकासशील देशों में नगरीकरण की प्रवृत्ति धीमी पाई जाती है।
नगरों का आकार
आकार तथा सुविधाओं की उपलब्धता और सम्पन्न होने वाले कार्यों के आधार पर नगरीय बस्तियों को निम्नलिखित नामों से जाना जाता है
नगर
नगर, गाँव से बड़े होते हैं। इनके लिए जनसंख्या का आकार मापदण्ड नहीं होता है, साथ ही गाँवों एवं नगरों के कार्यों में स्पष्टता नहीं पाई जाती है, किन्तु निर्माण कार्य, खुदरा एवं थोक व्यापार तथा अन्य व्यावसायिक सेवाएँ नगरों में ही उपलब्ध होती हैं।
शहर
शहर, नगर से बड़े होते हैं तथा इनके आर्थिक क्रियाकलाप भी अधिक होते हैं। लेविस ममफोर्ड के अनुसार, “शहर उच्च एवं अधिक जटिल प्रकार के सहचारी जीवन का भौतिक रूप होता है।” शहरों में वित्तीय संस्थान, प्रादेशिक प्रशासकीय कार्यालय एवं यातायात के प्रमुख केन्द्र होते हैं। दस लाख से अधिक जनसंख्या हो जाने पर शहर को 'मिलियन सिटी' कहा जाता है।
स्वस्थ शहर
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्वस्थ शहर में निम्न सुविधाएँ होना आवश्यक है
  • स्वच्छ एवं सुरक्षित वातावरण
  • सभी निवासियों की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति 
  • स्थानीय सरकार में समुदाय की भागीदारी
  • सभी के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं का उपलब्ध होना
सन्नगर
सन्नगर (Conurbation) एक विस्तृत नगरीय क्षेत्र होता है, जो अलग-अलग नगरों अथवा शहरों के आपस में मिल जाने से बनता है। वर्ष 1915 में पैट्रिक गिडिज द्वारा सन्नगर शब्द का प्रयोग किया गया था। ग्रेट लन्दन, मैनचेस्टर, शिकागो, टोक्यो तथा दिल्ली (एन सी आर) प्रमुख सन्नगर हैं।
विश्वनगरी
विश्वनगरी यूनानी शब्द मेगालोपोलिस से बना है, जिसका अर्थ विशाल नगर है। इस शब्द का प्रयोग वर्ष 1957 में जीन गोटमेन ने किया था। यह एक बड़ा महानगर प्रदेश होता है, जिसमें कई सन्नगर सम्मिलित होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तर में बोस्टन से दक्षिण में वाशिंगटन तक का भू-दृश्य इस नगर का प्रमुख उदाहरण है।
मिलियन सिटी
10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों को मिलियन सिटी कहा जाता है। वर्तमान समय में इस सिटी की संख्या में बदलाव आया है। इस श्रेणी में लन्दन 1800 ई. में, पेरिस 1850 ई. में तथा न्यूयॉर्क 1860 ई. में शामिल हुआ।
मेगासिटी
ये वे नगर होते हैं, जिनकी जनसंख्या मुख्य नगर तथा उप-नगरों को मिलाकर एक करोड़ से अधिक होती है, जिसमें उप-नगर शहरों के समीप ऐसे क्षेत्र होते हैं, जहाँ लोग स्वच्छ तथा खुले क्षेत्र की ओर अच्छी गुणवत्ता वाले जीवन जीने के साथ घरों में तथा कार्यस्थलों पर आते-जाते हैं। विश्व की पहली मेगासिटी न्यूयॉर्क वर्ष 1950 में बनी, जिसकी जनसंख्या 1.25 करोड़ थी।
नगरों की उत्पत्ति के सिद्धान्त 
(Theories of Origin of Towns)
नगरों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में दिए गए महत्त्वपूर्ण भूगोलवेत्ताओं के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं
गोरडन सिल्डे का नगरीय सिद्धान्त
ऑस्ट्रेलिया के प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद् गोरडन सिल्डे ने नगरीय उत्पत्ति के सम्बन्ध को अपने . सिद्धान्त के माध्यम से समझाने का प्रयास किया। इन्होंने इसके लिए नगरीय क्रान्ति की अवधारणा को जन्म दिया। इस नगरीय क्रान्ति शब्द का प्रयोग सबसे पहले इन्होंने 1930 में किया। इनकी यह संकल्पना इनकी पुस्तक 'मैन मेक्स हिमसेल्फ' में वर्ष 1936 में छपी। नगरीय क्रान्ति का शहरी समाज के छोटे किसानों से सन्दर्भित करता है। इस सन्दर्भ में यह बताया गया कि शहरी क्रान्ति वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा छोटे परिजन गैर कृषि वाले समाज को बड़े व शहरी जटिल समाज में बदल दिया गया। शहरी क्रान्ति के सन्दर्भ में सिल्डे का मानना था, कि इस क्रान्ति को लाने में प्रौद्योगिकी का बड़ा योगदान था, जिसने समाज में समग्र उत्पादन क्षमताओं और जीवन स्तर में सुधार लाने में सहायता की। इन्होंने वर्ष 1950 में 'जर्नल प्लानिंग रिव्यू' प्रकाशित किया, जिसमें इन्होंने शहरी क्रान्ति की विशेषता वाले परिवर्तनों के लिए 10 सूत्री मॉडल प्रस्तुत किया, जिसके माध्यम से इन्होंने बताया, कि
  1. आकार के सन्दर्भ में शहर, पिछली बस्तियों की तुलना में अधिक व्यापक रही होगी।
  2. संरचना और कार्य में शहरी आबादी पहले से ही किसी भी गाँव से भिन्न थी। 
  3. गाँवों व शहरों के अधिशेष में भी अन्तर पाया जाता था।
  4. सार्वजनिक इमारतें, स्मारक शहर को गाँवों से अलग करने के साथ सामाजिक एकाग्रता के प्रतीक भी थी।
  5. पुजारी, नागरिक तथा सैन्य नेताओं और अधिकारियों का शहरों में केन्द्रित होना तथा शासक वर्ग का उदय होना।
  6. लिखने की कला का विकास होना ।
  7. विज्ञान के साथ, अंकगणित, ज्यामिति और खगोल विज्ञान।
  8. अवधारणात्मक एवं परिष्कृत शैली
  9. नियमित विदेशी व्यापार
  10. एक राज्य संगठन का विकास व विस्तार।
उल्लेखनीय है कि कभी-कभी शहरों और शहरीवाद की उत्पत्ति का एक मॉडल के रूप में व्याख्या की जाती है। इस अवधारणा के तहत् कृषि गाँवों से राज्य स्तर, शहरी समाजों में संक्रमण का वर्णन करती है। अत: नगरीय क्रान्ति से नगरीय विकास को सिद्ध करने का प्रयास किया गया है।
पिरेन थीसिस का संक्षिप्त विवरण
  • 19वीं सदी के पिरेन थीसिस से यह जानकारी मिलती है, कि 9वीं सदी में लम्बी दूरी के व्यापार निम्न स्तर पर थे। इस समय एकमात्र ऐसी बस्तियाँ थीं, जो विशुद्ध रूप से कृषि कार्य में संलग्न नहीं थीं। वे किलेदार शाही निवास के रूप में सामन्ती शासक की सेवा करने वाली तथा सैन्य एवं प्रशासनिक केन्द्र थे।
  • जब 10वीं तथा 11वीं सदी में व्यापार पुनर्जीवित हुआ, तो व्यापारियों और कारीगरों के मौजूदा केन्द्रों के लिए तैयार किया गया। इससे उपनगर का विकास हुआ। इसमें व्यापार एवं विनिर्माण कार्य केन्द्रित थे
  • लोग व नए पुरुष सामन्ती संरचना के बाहर आदेश की परिधि में रहते थे।
  • इस दौरान सामन्ती कोर स्थिर तथा निष्क्रिय बना हुआ था। 
  • इस प्रकार आगे पिरेन बताते हैं, कि विकासशील व्यापारी ने बुर्जुआ संरक्षण का गठन किया। इस तरह से संरचना व क्षेत्र विस्तार की नगरीय प्रवृत्ति के बढ़ावा मिलने लगेगा। फलतः कार्य पद्धति को विस्तार के साथ शहरीकरण का भी विस्तार जारी रहा।
साइमन सैडलर
सैडलर, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में वास्तुकला और शहरी इतिहास के प्रोफेसर थे। इन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के इतिहास और वास्तुकला और शहरीवाद के सिद्धान्त पर शोध किया था। इन्होने एक सिचुएनिस्ट सिटी की संकल्पना को अपनी तीसरी पुस्तक में प्रकाशित किया। यह पुस्तक पाठकों को साइकोगोग्राफी, चक्कर, बहाव, स्थितियों और एकात्मक शहरीयता के विचारों के बारे में बताती है।
इसमें लोगों को घटनाओं और क्षेत्रों की तलाश में शहरों को खोजने व निर्मित हेतु प्रेरित किया जो, यातायात, और कार्यक्षमता से अप्रभावित हो। यह एक काल्पनिक व आश्चर्यजनक विचार प्रतीत होता है। सिचुएनिस्ट सिटी ने सैडलर के अनुक्रम को दर्शाया है, जिसमें यह भी बताया गया है, कि यूरोपिया की कल्पना का परित्याग, सिचुएनिस्टों के लिए विनाशकारी निर्णय था।
उल्लेखनीय है, कि इस पुस्तक में सैडलर सिचुएनिस्टों की आलोचना भी करता है और बताते हैं, कि वे विल्डर नहीं थे। वे केवल मौजूदा मार्गों और इमारतों को , बनाने में रुचि रखते थे। इस प्रकार सैडलर उसकी संकल्पना व्यक्त करते हैं, जिसे सिचुएनिस्ट ने अंजाम दिया है या अंजाम देने का प्रयास करता है।
लेविस या लुईस ममफोर्ड
लुईस ममफोर्ड प्रसिद्ध अमेरिकी इतिहासकार, समाजशास्त्री एवं दार्शनिक थे। इन्होंने नगरीय विकास के सन्दर्भ में विचार व्यक्त किए। इन्होंने नगरीय विकास की अवस्थाओं को सामाजिक स्तर के अनुसार क्रमों में विभाजित किया।
ममफोर्ड की नगरीय विकास की अवस्थाएँ
लुईस ममफोर्ड ने नगरों की अवस्थाओं को सामाजिक स्तर के अनुसार निम्नलिखित क्रमों में विभाजित किया हैं
  • पूर्व नगरीय (Epolis) इसे नगर की प्रारम्भिक अवस्था माना। 
  • नगर (Polis) इन्होंने बताया कि अनेक ग्राम एक सी भौगोलिक स्थिति व सामूहिक सुरक्षा के मिल जाते हैं, तब इसका प्रादुर्भाव हुआ।
  • महानगर जब चारों ओर छोटे-छोटे नगर विकसित हो जाते हैं, तब महानगर का प्रादुर्भाव होता है। 
  • विश्व नगरी इस सामाजिक अवस्था में नगर अपने विकास की चरम अवस्था में पहुँच जाता है।
  • ह्रासोन्मुख नगर ऐसे नगरों में सामाजिक बुराइयाँ अत्यधिक बढ़ जाती हैं। शान्ति भंग हो जाती है। 
  • मृत प्रायः नगर यह नगर के समाप्त होने की अवस्था होती है।
ममफोर्ड ने ग्रीड्स महोदय के प्रभाव से आर्थिक विकास की अवस्थाओं के आधार पर भी नगरों की विकास की अवस्थाओं को भी वर्गीकृत किया। इस वर्गीकृत अवस्था का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
  • अत्यन्त प्राचीन अवस्था यह अवस्था यूरोप में 10 से 18वीं सदी के मध्य रही, जिसमें उत्पादन हेतु पवन, जल, लकड़ी का प्रयोग किया जाता था। 
  • पूर्व तकनीकी अवस्था इस अवस्था में लोहे तथा कोयले का प्रयोग किया जाने लगा। इस समय के नगरों की कुरूपता के बारे में डिकन्स ने 'कोयले की कस्बे' की भी संज्ञा दी। 
  • नई तकनीकी अवस्था इस अवस्था का प्रारम्भ 1880 के बाद प्रारम्भ हुआ। इसमें एल्युमीनियम, टंगस्टन धातुओं का उपयोग प्रारम्भ हुआ। 
  • जैविक अवस्था इस अवस्था में भौतिक विज्ञान की अपेक्षा औषधि विज्ञान का उपयोग बढ़ा। नवीन नगरों का स्वास्थ्यपरक वातावरण में विकास होने लगा।

ममफोर्ड की शहरी सभ्यताओं के सन्दर्भ में विचार 
ममफोर्ड की शहरी सभ्यताओं के सन्दर्भ में विचार निम्नलिखित हैं
  • ममफोर्ड ने शहरी सभ्यताओं के विकास के सन्दर्भ में बताया, कि आधुनिक शहरों की संरचना पश्चिमी समाज में देखी गई। कई सामाजिक समस्याओं के लिए जिम्मेदार है।
  • ममफोर्ड 'आदर्श शहर' के रूप में मध्ययुगीन शहर को प्रस्तुत किया और बताया कि आधुनिक शहर रोमन शहर के काफी करीब है, जिसका पतन हो गया है। 
  • शहरी संस्कृति के सन्दर्भ में ममफोर्ड ने बताया, कि शहर पृथ्वी का उत्पाद है...प्रकृति का एक तथ्य...मनुष्य की अभिव्यक्ति का तरीका है। 
  • शहरी संस्कृति में महानगरीय वित्त, शहरीकरण, राजनीतिक और अलगाव की आशंका जताई।
  • ममफोर्ड ने बताया कि शहरों का मौलिक डिजाइन और उनके आर्थिक कार्य प्राकृतिक पर्यावरण और मानव समुदाय के आध्यात्मिक के साथ उनके सम्बन्धों के लिए माध्यमिक है।
  • उल्लेखनीय है, कि सुब्बरिया ने ममफोर्ड की आलोचना करते हुए यह कहा कि उपनगर भ्रम के संरक्षण के लिए एक शरण स्थल के रूप में कार्य करता है। इसके बावजूद ममफोर्ड नगरीय विकास की अवस्था के साथ नगरीय संस्कृति को बेहतर ढंग से समझाने का पूरा प्रयास किया।




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                                  प्रिज्मीय कम्पास सर्वेक्षण                         (Prismatic Compass Surveying) परिचय  (Introduction) धरातल पर किन्हीं दो बिन्दुओं को मिलाने वाली सरल रेखा के चुम्बकीय दिशा कोण या दिकमान (magnetic bearing) तथा लम्बाई को मापनी के अनुसार अंकित करके प्लान में उन बिन्दुओं की एक-दूसरे के सन्दर्भ में स्थितियाँ निश्चित करना प्रिज्मीय कम्पास सर्वेक्षण का मूल आधार है। इस सर्वेक्षण में दो बिन्दुओं के मध्य की दूरी को ज़रीब अथवा फीते से मापते हैं तथा उन बिन्दुओं को मिलाने वाली सरल रेखा के चुम्बकीय दिक्मान को प्रिज्मीय कम्पास की सहायता से ज्ञात करते हैं। किसी सरल रेखा के चुम्बकीय दिक्मान से हमारा तात्पर्य चुम्बकीय उत्तर (magnetic north) से उस रेखा तक घड़ी की सुई की दिशा में मापे गये कोण से है। प्रिज्मीय कम्पास के द्वारा किसी क्षेत्र का सर्वेक्षण करने के लिये प्रायः चंक्रमण या माला रेखा विधि (traverse method) का प्...

प्लेन टेबुल सर्वेक्षण

परिचय (Introduction) प्लेनटेबुलन (plane tabling) सर्वेक्षण करने की वह आलेखी विधि है, जिसमें सर्वेक्षण कार्य तथा प्लान की रचना दोनों प्रक्रियाएँ साथ-साथ सम्पन्न होती हैं। दूसरे शब्दों में, प्लेन टेबुल सर्वेक्षण में किसी क्षेत्र का प्लान बनाने के लिये ज़रीब, कम्पास या थियोडोलाइट सर्वेक्षण की तरह क्षेत्र-पुस्तिका तैयार करने की आवश्यकता नहीं होती । क्षेत्र-पुस्तिका न बनाये जाने तथा क्षेत्र में ही प्लान पूर्ण हो जाने से कई लाभ होते हैं, जैसे-(i) समस्त सर्वेक्षण कार्य अपेक्षाकृत शीघ्र पूर्ण हो जाता है, (ii) क्षेत्र-पुस्तिका में दूरियां आदि लिखने में होने वाली बालों की समस्या दूर हो जाती है तथा (iii) सर्वेक्षक को प्लान देखकर भूलवश छोड़े गये क्षेत्र के विवरणों का तत्काल ज्ञान हो जाता है। त्रिभुज अथवा थियोडोलाइट संक्रमण के द्वारा पूर्व निश्चित किये गये स्टेशनों के मध्य सम्बन्धित क्षेत्र के अन्य विवरणों को अंकित करने के लिये प्लेन को सर्वाधिक उपयोगी एवं प्रामाणिक माना जाता है। इसके अतिरिक्त प्लेनटेबुलन के द्वारा कछ वर्ग किलोमीटर आकार वाले खुले क्षेत्र के काफी सीमा तक सही-सही प्लान बनाये ज...

परिच्छेदिकाएँ ( Profiles)

                                      परिच्छेदिकाएँ                                        (Profiles) किसी समोच्च रेखी मानचित्र में प्रदर्शित उच्चावच तथा ढाल की दशाओं का परिच्छेदिकाओं की सहायता से स्पष्ट प्रत्यक्षीकरण किया जा सकता है। परिच्छेदिकाएँ स्थल रूपों या भू-आकृतियों को समझने तथा उनका वर्णन एवं व्याख्या करें में महत्वपूर्ण सहायता देती हैं। [I]  परिच्छेदिका तथा अनुभाग का भेद  (Difference between a profile and a section) प्रायः 'परिच्छेदिका' तथा 'अनुभाग' शब्दों का समान अर्थों में प्रयोग किया जाता है परन्तु इनमें थोड़ा अन्तर होता है। अनुभव का शाब्दिक अर्थ काट (cutting) या काट द्वारा उत्पन्न नग्न सतह होता है। इसके विपरीत काट द्वारा उत्पन्न सतह की धरातल पर रूपरेखा (outline) परिच्छेदिका कहलाती है। दूसरे शब्दों में, यदि किसी भू-आकृति को एक रेखा के सहारे ऊर्ध्वाधर दिशा में नीचे तक ...