चिन्तनफलक स्थानान्तरण (Paradigm Shift) कुहन के विचार से सामान्य विज्ञान के विकास में असंगतियों के अवसादन तथा संचयन (Accumulation) में संकट की स्थिति उत्पन्न होती है, जो अन्ततः क्रान्ति के रूप में प्रकट होती है। यह क्रान्ति नए चिन्तनफलक को जन्म देती है। जब नवीन चिन्तनफलक अस्तित्व में आता है वह पुराने चिन्तनफलक को हटाकर उसका स्थान ले लेता है। चिन्तनफलक के परिवर्तन की इस प्रक्रिया को 'चिन्तनफलक प्रघात' (Paradigm Shock) या 'चिन्तनफलक स्थानान्तरण (Paradigm Shift) के नाम से जाना जाता है। ध्यातव्य है कि इस प्रक्रिया में पुराने चिन्तनफलक को पूर्णरूप से अस्वीकार या परिव्यक्त नहीं किया जा सकता, जिसके कारण कोई चिन्तनफलक पूर्णरूप से विनष्ट नहीं होता है। इस गत्यात्मक संकल्पना के अनुसार चिन्तनफलक जीवन्त होता है चाहे इसकी प्रकृति विकासात्मक रूप से अथवा चक्रीय रूप से हो। जब प्रचलित चिन्तनफलक विचार परिवर्तन या नवीन सिद्धान्तों की आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं कर सकता है, तब सर्वसम्मति से नए चिन्तनफलक का प्रादुर्भाव होता है। अध्ययन क्षेत्र के उपागम में होने वाले इस परिवर्तन को चिन्तनफलक स्थानान्त
प्रादेशिक भूगोल बनाम क्रमबद्ध भूगोल
(Regional Geography Vs Systematic Geography)
भूगोल के द्विभाजन का इतिहास, किन्तु इसका वास्तविक विकास उन्नीसवीं शताब्दी के भूगोलवेत्ताओं द्वारा सम्भव हुआ । सत्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध जर्मन भूगोलवेत्ता वरेनियस ने भूगोल को दो खण्डों में विभाजित किया था
सामान्य भूगोल
वरेनियस के अनुसार, “सामान्य भूगोल' विज्ञान का अंग है और पृथ्वी का सामान्य अध्ययन करता है। यह सम्पूर्ण पृथ्वी से सम्बन्धित है और उसके विभिन्न क्षेत्रों तथा दृश्य घटनाओं या तथ्यों का वर्णन करता है।" वरेनियस द्वारा प्रयुक्त शब्दावली और प्रयोग का अन्तर वास्तविक अर्थ में तत्त्वों और क्षेत्रों के अध्ययन से ही सम्बन्धित है। ब्लाश के अनुसार, वरेनियस की आस्था भूगोल के द्विभाजन में नहीं थी।
18वीं शताब्दी में काण्ट और उन्नीसवीं शताब्दी में हम्बोल्ट ने सामान्य (General) के स्थान पर भौतिक का प्रयोग करके पहले से अधिक भ्रान्ति उत्पन्न कर दी। रिचथोफेन के प्रभाव से उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक जर्मन भूगोलवेत्ता इस बात पर लगभग एकमत हो गए थे कि भूगोल में तत्त्वों और क्षेत्रों दोनों का अध्ययन समान रूप से महत्त्वपूर्ण है।
जर्मनी में भूगोल को 'लैण्डशाफ्ट' का अध्ययन माना गया और उसका अनेक अर्थों में प्रयोग किया गया। लैण्डशाफ्ट का एक अर्थ प्रदेश या सदृश्य भूमि से होता है तथा प्रादेशिक भूगोल का आधार बताया गया और सामान्य भूगोल को गौण स्थान दिया गया।
20वीं शताब्दी में फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता ब्लाश, बूंश, डिमांजियाँ आदि ने प्रादेशिक भूगोल को अधिक महत्त्व प्रदान किया और वहाँ प्रादेशिक अध्ययनों की भरमार सी हो गई। हार्टशोर्न के अनुसार, वर्गीकृत (क्रमबद्ध) और प्रादेशिक भूगोल के दीर्घकालीन विवाद और बदलते हुए दृष्टिकोण से स्पष्ट है कि इन दोनों का विकास लगातार और अन्तर्सम्बन्धित रूप से हुआ है।
प्रादेशिक भूगोल
यह भौगोलिक अध्ययन का एक प्रमुख उपागम (अध्ययन विधि) है, जिसमें किसी सम्पूर्ण क्षेत्रीय इकाई के विभिन्न खण्डों या प्रदेशों का अध्ययन पृथक्-पृथक् किया जाता है, यह प्रदेशों का भूगोल है। उदाहरणार्थ, जब विश्व को विभिन्न प्रदेशों में विभक्त करके उनका अलग-अलग भौगोलिक अध्ययन किया जाता है तब वह विश्व का प्रादेशिक भूगोल कहलाता है। हार्टशोर्न के शब्दों में, “प्रदेश एक ऐसा क्षेत्र होता है, जिसकी विशिष्ट स्थिति होती है जो किसी प्रकार से दूसरे क्षेत्रों से भिन्न होता है तथा जो उतनी दूरी तक फैला होता है जितनी दूरी तक वह भिन्नता पाई जाती है।
मांउकहाउस (भौगोलिक शब्दकोश) के अनुसार, “पृथ्वी तल का वह इकाई क्षेत्र जो अपने विशिष्ट अभिलक्षणों के कारण अपने समीपवर्ती अन्य इकाई क्षेत्रों से भिन्न समझा जाता है, प्रदेश कहलाता है।" प्रदेश का निर्धारण किसी एक उपादान अथवा बहुउपादानों की समानता के आधार पर किया जा सकता है। इस आधार पर प्रदेश के चार वर्ग बन सकते हैं
- एकलविषयी प्रदेश जिसका निर्धारण किसी एक उपादान की समानता के आधार पर किया जाता है; जैसे- मृदा प्रदेश, कृषि प्रदेश, भाषा प्रदेश आदि।
- बहुलविषयी प्रदेश जिसका निर्धारण कई संयुक्त तत्त्वों की समानता के आधार पर किया जाता है; जैसे- प्राकृतिक प्रदेश, आर्थिक प्रदेश, सांस्कृतिक प्रदेश आदि।
- सम्पूर्ण विषयी प्रदेश जिसके समस्त भौगोलिक उपादानों की समानता मिलती है, विभिन्न भू-भागों में स्थित ऐसे प्रदेशों में सभी तत्त्वों में एकरूपता पाई जाती है।
- विशिष्ट प्रदेश को डी. ह्विटलसी ने काम्पेज (Compage) की संज्ञा दी। अपने तरह के अकेले इन प्रदेशों में तत्त्वों का क्रम और संख्या परिवर्तनीय होती है।
क्रमबद्ध या सुव्यवस्थित भूगोल
भौगोलिक अध्ययन के इस उपागम के अन्तर्गत अध्ययन क्षेत्र को एक पूर्ण इकाई मानकर उसके विभिन्न भौगोलिक तत्त्वों या प्रकरणों का क्रमिक रूप से अध्ययन किया जाता है। इसे विषयगत उपागम के नाम से भी जाना जाता है। क्रमबद्ध भूगोल में अध्ययन क्षेत्र की स्थिति एवं विस्तार, उच्चवच, संरचना, अपवाह, जलवायु, जलाशय, मिट्टी एवं खनिज, प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु आदि प्राकृतिक तत्त्वों तथा विविध मानवीय क्रियाओं-आखेट पशुपालन, कृषि खनन, विनिर्माण, विधिक सेवाओं आदि के साथ ही जनसंख्या, मानव अधिवास आदि का क्रमशः अध्ययन किया जाता है।
क्रमबद्ध भूगोल की मौलिक विशेषता यह है कि यह विषय या प्रकरण प्रधान होता है। क्रमबद्ध रीति से भौगोलिक अध्ययन के लिए लघु, मध्यम अथवा दीर्घ किसी भी क्षेत्रीय इकाई का चयन आवश्यकता एवं सुविधानुसार किया जा सकता है। भौगोलिक अध्ययन का क्षेत्र सम्पूर्ण भूमण्डल (विश्व) महाद्वीप, देश अथवा कोई अन्य क्षेत्रीय इकाई हो सकता है, किन्तु अध्ययन की विधि क्रमबद्ध ही होनी चाहिए। ,
विश्व के क्रमबद्ध अध्ययन में सम्पूर्ण विश्व को अध्ययन इकाई माना जाता है और सभी भौगोलिक उपादानों (विषयों) का ( स्थिति विस्तार से लेकर जनसंख्या एवं अधिवास तक) क्रमबद्ध विश्लेषण किया जाता है। क्रमबद्ध विधि से अध्ययन के द्वारा ही सामान्यीकरण सिद्धान्त एवं मॉडल निर्माण आदि किए जाते हैं।
क्रमबद्ध एवं प्रादेशिक भूगोल के अन्तर्सम्बन्ध
भौगोलिक अध्ययन की क्रमबद्ध विधि और प्रादेशिक विधि परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित तथा एक-दूसरे की पूरक हैं। भौगोलिक अध्ययन में तथ्यों के समिश्रण को कम जटिल समूहों में और अध्ययन में क्रमबद्ध और प्रादेशिक दोनों विधियों के पारस्परिक सम्बन्ध काफी महत्त्वपूर्ण होते हैं। हेटनर का समर्थन करते हुए हार्टशोर्न ने क्रमबद्ध भूगोल तथा प्रादेशिक भूगोल के समन्वय को ही भौगोलिक अध्ययन की सर्वाधिक उपयुक्त विधि बताया है उनके अनुसार क्रमबद्ध तथा प्रादेशिक भूगोल में केवल विषयों और प्रदेशों के चुनाव के तरीकों का ही अन्तर है। क्रमबद्ध भूगोल में सम्पूर्ण अध्ययन क्षेत्र को एक पूर्ण इकाई मानकर उसके विभिन्न तत्त्वों (विषयों) का अध्ययन किया जाता है। प्रादेशिक भूगोल में भी लगभग उन्हीं विषयों का अध्ययन किया जाता है, किन्तु अन्तर यह है कि इसमें इनका अध्ययन विभिन्न उपविभागों (उपक्षेत्रों या प्रदेश) के अनुसार अलग-अलग किया जाता है।
एक स्थान से दूसरे स्थान तक किसी सूचना या समाचार के पहुँचने में कुछ मिनट का समय ही पर्याप्त होता है। फिर भी दो पास-पास स्थित या संलग्न क्षेत्रों तथा सुगम पहुँच वाले (अभिगम्य) क्षेत्रों के बीच पारस्परिक सम्पर्क और अन्तःक्रिया अधिक गहन होती है।
विश्व के विभिन्न भागों के संसाधनों और उत्पादनों में पर्याप्त भिन्नता पाई जाती है जो व्यापारिक क्रिया का मूलाधार होती है। वस्तुओं और सेवाओं के विनिमय के लिए एक क्षेत्र के साथ सम्पर्क का होना आवश्यक होता है। किसी वस्तु की अधिकता वाले स्थान से उस वस्तु का अन्य भागों को निर्यात किया जाता है और आवश्यक पदार्थों को अन्य क्षेत्रों से मँगाया जाता है। इस प्रकार विभिन्न क्षेत्रों के मध्य वस्तुओं के आदान-प्रदान और व्यापार के रूप में पारस्परिक सम्पर्क और अन्तःक्रिया होती है।
जिस प्रकार दो व्यक्तियों या समाजों के बीच सामाजिक अन्तःक्रिया होती है, उसी प्रकार दो स्थानों या क्षेत्रों के बीच स्थानिक अन्तःक्रिया होती है। स्थानिक अन्तःक्रिया संयोजक और वियोजक दोनों प्रकार की होती है, जो अन्तःक्रिया दो क्षेत्रों के मध्य सहयोग सद्भावना, एकीकरण, संगठन आदि को बढ़ाने वाली होती है उसे संयोजक अन्तःक्रिया कहते हैं। इसके विपरीत जो अन्तःक्रिया विघटन और पृथक्करण में सहायक होती है और परस्पर संघर्ष उत्पन्न करती है उसे वियोजक अन्तःक्रिया कहा जा सकता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें